सोमवार, 2 जुलाई 2018

किन्नर - 32 (3)

गतांक से आगे...

यह सुनकर सारे पैगम्बरों / धार्मिकों ने कहा, हम तुम्हारी सहायता करेंगे...लेकिन उनमें से किसी की भी प्रार्थना काम नहीं आई राजा नाराम-सिन् जीवित बना रहा । हीबानी के पास राजा को क्षति पहुंचाने वाले साधनों की कमी थी, वो रोया, उसे अपने जीवन की परवाह नहीं थी, वो नहर के किनारे पहुंचा और उसने सोचा कि पानी में कूद कर आत्महत्या कर लूं । तभी उसे एक नाव / बजरा आता हुआ दिखाई दिया । यह नाव असाधारण थी । ये, नहर के प्रहरियों के द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली सभी नावों से आलीशान थी । वो सूर्य की रौशनी में सोने जैसी चमक रही थी । उसमें बेशकीमती धातु और पत्थर जड़े हुए थे । नाव में एक अद्वितीय महिला खड़ी हुई थी । उसके सिर पर त्रि-मुकुट था और उसने मोर तथा शुतुर्मुग के पंखों वाला परिधान पहन रखा था । उसके साथ, कोई परिचारक नहीं थे, केवल छै इथोपियाई दास नाव को खे रहे थे ।  

उसने हीबानी से कहा, तुमने सीधे मुझसे मदद क्यों नहीं माँगी ? तुमने दूसरों से मदद चाही जबकि मैं हरदम तुम्हारे साथ थी । हीबानी समझ गया ये देवी इन्नाना थी वो अवाक उसे ताकता रह गया । उन दिनों देवता मनुष्यों से सीधे संवाद नहीं करते थे । उसने शीश झुका कर देवी की उपासना की । इन्नाना ने फिर से कहा, सौम्य हीबानी, मेरे सेवकों में सर्वाधिक प्रिय, तुमने सही कहा, मैं दया / कृपा की देवी हूं ।  इसलिए मैं जो अब कह रही हूं, उसे ध्यान से सुनों, अगर तुम्हें राजा नाराम-सिन् के विरुद्ध न्याय चाहिए तो तुम अंधेरे के देवता आप्सू की सहायता मांगो जोकि धरती के नीचे पानी में रहता है । हीबानी ने आप्सू नाम की ध्वनि को ध्यान से सुना, उसे पता था कि स्वर्ग के राजा ने सृष्टि के आरम्भ में आप्सू को मृत्यु देव चुना था । सुमेरियन गल्प में उसे भयावह देव मानते हैं और कृतज्ञता वश उसकी प्रार्थना करते है ।

देवी इन्नाना कहती रही, तुम देव आप्सू के पास जाओ, गहराइयों में उसके मंदिर जाओ, वो महाकाय सर्प दिलमुन समुद्र के दक्षिण में रहता है । वहाँ बचे हुए स्थानीय मूल निवासी भी रहते हैं । आप्सू को सूकर की बलि प्रिय है, रीछ के जैसा सूकर जिसके काले बाल सीधे खड़े हों, उसे समर्पित करो, हालांकि यह तुम्हारी सफलता की गारंटी नहीं है किन्तु तुम्हारे पास अन्य कोई मार्ग भी नहीं है । हीबानी ने श्रृद्धा पूर्वक इन्नाना के समक्ष सिर झुकाया, वो जा चुकी थी । उसे देवी का कहा अक्षरशः याद रहा । हीबानी ने सेवक को सूकर पकड़ने के लिये जंगल भेज दिया । जब सेवक सूकर पकड कर लाया तो दोनों उसे बैलगाड़ी में लाद कर उरुक के दक्षिण दिशा वाले दलदली क्षेत्र की ओर निकल पड़े, जहां राजा नाराम-सिन् के हमले से शेष बचे स्थानीय मूल निवासी पनाह लिये हुए थे...                                                                                                                                                                                                                                                                   ...क्रमशः