रविवार, 3 जून 2018

किन्नर - 5


एक समय था जबकि वेटिकन जैसी जगहों में स्त्रियों को गायन की मनाही थी इसलिए वैकल्पिक गायक बतौर बंध्याकृत पुरुषों की मांग चरम पर थी यानि कि किन्नर गायक जोकि ऊंचे स्वरों में गा सकें ! अतएव ऐसे धार्मिक आध्यात्मिक स्थलों पर गायन के लिये किन्नरों को खास तौर पर तैयार किया जाता था ! अनेकों अभिभावक इस लालसा में अपने बच्चों को बंध्याकृत कर देते, ताकि वे बच्चे प्रख्यात धार्मिक आध्यात्मिक केन्द्रों में गायन कर के यश नाम कमा सकें ! अलेसेंद्रो मोरेश्ची ऐसा ही गायक था !

यह वृत्तांत स्पष्ट करता है कि धार्मिकता, मानव जीवन को किस तरह से नियंत्रित कर सकती है ! भले ही किन्नर होना सहज के असहज हो जाने जैसा है पर वे अभिभावक, मनुष्य ही थे जो अपनी संतानों को यश कमाने के नाम पर बंध्याकृत कर डालते थे ! ऐसे अभिभावकों को बेहद करिश्माई धार्मिक सम्मोहन के प्रभाव के अधीन मान लिया जाए तो भी निज संतानों के जीवन को अपौरुष के नर्क में झोंक देने का यह कृत्य किस तरह से औचित्यपूर्ण माना जाएगा ? तत्कालीन समाज धर्मभीरू और पुरुष सत्तात्मक समाज रहा होगा जहां, धर्म स्थलों में स्त्रियों की गायकी पूर्णतः निषिद्ध थी, किन्तु कृत्रिम रूप से तैयार किये गये स्त्रैण पुरुष, गायकी के लिये सर्वथा उपयुक्त माने जाते थे !

यह तथ्य आश्चर्य जनक है कि स्त्रियों को धार्मिक केन्द्रों में गायकी के निषेध का पालन करना था, लेकिन ऐसे में पूर्ण पुरुष गण इन केन्द्रों में धर्मानुकूल गायन के अवसरों से वंचित क्यों किये गये थे ? और पुरुषों के स्थान पर किन्नरों का गायन किन कारणों से स्वीकार्य माना गया ? क्या यह संभव है कि धर्म स्थलों में तैनात पुरुष पुजारियों के लिये देवदासी तुल्य स्त्रियों के विकल्प सीमित थे अथवा उपलब्ध नहीं थे ? और किन्नर यानि कि स्त्रैण पुरुष, देवदास तुल्य होकर समलैंगिक तुष्टि के द्वार खोलते हों ? अथवा किन्नर होना केवल वीतरागी / वासना मुक्त / लालसाओं से मुक्त / माया मोह से मुक्त  होना माना गया हो जोकि पूर्णतः निस्पृह भाव से ईश्वर के लिये स्तुति गान कर सके?