शनिवार, 2 जून 2018

किन्नर - 4

एक समय था जब मुस्लिम शासक अपने सेवकों के तौर पर, जनसँख्या-गत, राजनैतिक शातिरपन की धारणा के अधीन ईसाई बच्चों को चुनते और ऐसे बच्चों का जबरन बंध्याकरण कर दिया जाता ! तुर्की के ओट्टोमन साम्राज्य में भी कम-ओ-बेश यही परम्परा प्रचलित थी ! बंध्याकृत बच्चे कालान्तर में नये रंगरूट मान लिये जाते, अतः सम्राटों के निरापद सेवकों की संख्या के साथ ही साथ सैन्य टुकड़ियों का विस्तार भी हो जाया करता ! जुदार पाशा भी ऐसा ही एक बच्चा था, जिसका जन्म १६ वीं शताब्दी में स्पेन में हुआ था, उस समय के प्रचलन के अनुसार बचपन में ही उसके मालिकों ने उसे बंध्याकृत कर दिया था और फिर उसे मोरक्को के सुलतान को बेच दिया गया था !

धीरे धीरे जुदार को सुलतान की सेना में पाशा / कमांडर का दर्जा मिल गया ! उसने सुलतान की ओर से उप-सहाराई अफ्रीका में सोंघाई साम्राज्य के विरुद्ध विजयी सैन्य अभियान भी चलाया था जोकि उस समय की सबसे बड़ी अफ्रीकी सल्तनत थी, हालांकि सहारा रेगिस्तान के आर पार जाने में उसके सैनिकों को अपार क्षति हुई ! सोंघाई सम्राट ने अपनी सल्तनत छोड़ने की एवज में मोरक्कन सुलतान को नज़राने / उपहार / कर के तौर पर पाशा के सैनिकों की सुरक्षित मोरक्को वापसी का प्रस्ताव किया जोकि जुदार को स्वीकार्य था किन्तु सुलतान ने इसे अस्वीकार कर दिया और जुदार पाशा को कमांडर के पद से मुक्त कर दिया गया ! कुछ समय के बाद मोरक्को के नये सुलतान के लिये हुए सत्ता संघर्ष में जुदार पाशा की मृत्यु हो गई  !

उन दिनों शासक गण अपने धर्मावलंबियों की संख्या में वृद्धि को अपनी सल्तनत की सुरक्षा का मूल आधार मानते थे अतः उनकी योजना यह हुआ करती कि विजित क्षेत्रों से विधर्मी बच्चों को बंध्याकृत कर सेवक बना लिया जाए और यथा समय उनका धर्मान्तरण कर के, आगत सैन्य अभियानों में सम्मिलित किया जाए ! शासकों के लिये इस अमानवीय योजना का तिहरा लाभ था, एक तो यह कि गैर युद्ध के समय किन्नर सेवक शाही हरमों के निरापद पहरेदार होते, दूसरा यह कि धर्मान्तरण के बाद राज्य क्षेत्र में एक ही धर्म के लोगों की संख्या बढ़ जाने से सत्ता में स्वयं के सुरक्षित बने रहने की भावना जागती और तीसरा यह कि युद्ध समय और अन्यान्य सैन्य अभियानों में ऐसे लोगों को शामिल कर लेने से, सैन्य संख्या बल बढ़ जाता !

बहरहाल जुदार पाशा का उद्धरण एक कमसिन बच्चे के बंध्याकृत हो जाने से लेकर, सेना प्रमुख बन जाने तक का है, जिसने अपने स्वामी के लिये विजय गाथायें लिखीं, जोकि स्वामी की असहमति के कारण पदच्युत हुआ और जिसने मोरक्कन सत्ता के संघर्ष में खुल कर भाग लिया और मारा गया ! हालांकि इस कथानक से एक प्रश्न यह भी उभरता है कि बाल्यकाल में पौरुष से वंचित कर दिये गये बच्चे तथा कालान्तर में धर्मान्तरित कर दिये गये बच्चे की स्वामी भक्ति / निष्ठा का रहस्य / कारण क्या है ?

प्रतीत होता है कि किन्नर बच्चे बचपन में ही कई बार खरीदी बिक्री की अमानवीय परम्परा का शिकार बन चुके होते थे, ऐसे में उनकी घृणा / उनके वैमनष्य उनके प्रथम स्वामियों के विरुद्ध बने रहें, तो यह बात अस्वभाविक नहीं मानी जायेगी, क्योंकि उनका बचपन, उनकी पहचान, प्रथम स्वामियों  के हाथों ही मिटाई जाती थी, किन्तु शाही स्वामियों / सम्राटों की शरण में पहुंच जाना, उनकी खरीदी बिक्री के सिलसिले का अंत हुआ करता, जहां उन्हें स्थायी आश्रय मिलता और स्वयं की नई पहचान को स्थापित करने के अवसर भी ! ऐसे में अंतिम स्वामियों के प्रति उनकी स्वामी भक्ति के अटूट बने रहने की संभावनायें तो खैर बनती ही हैं ! संभव है जुदार पाशा भी ऐसी ही परिस्थितियों से गुज़रा हो ?