सुंग
साम्राज्य के सम्राट शेन सुंग (सामान्य काल 998-1022) और एक गर्भवती महिला फू चिंग, नाव से
लोयांग नदी पार कर रहे थे, तब सांप और कछुवे की आत्मा ने बड़ी लहरें और तेज हवाएं
भेज दीं ताकि नाव डूब जाए किन्तु उसी समय आकाशवाणी हुई कि नाव में प्रोफेसर त्साई
मौजूद हैं इसलिए हवा और लहरें शांत हो जायें और फिर ऐसा ही हुआ । तूफ़ान शांत हो गया किन्तु नाव में सवार
यात्रियों को हैरानी हुई कि, नाव में उनके तथा सम्राट और गर्भवती महिला के सिवाय
कोई अन्य नहीं था तो प्रोफेसर त्साई कहां थे ? चूंकि फू चिंग, त्साई परिवार की बहू थी, इसलिए लोगों ने तूफ़ान थमने के लिये
उसे बधाई दी । फू चिंग ने कहा यदि मुझसे
पुत्र का जन्म हुआ और वह प्रोफेसर बना तो मैं उसे लोयांग नदी में पुल बनाने के
लिये तैयार करूंगी ।
कालांतर
में फू चिंग ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम त्साई ह सियांग रखा गया जोकि लगभग
सामान्य काल 1025 में प्रोफेसर बन गया । माता फू चिंग ने पुत्र को, उसके जन्म से पूर्व
हुए नाव, नदी और तूफ़ान संबंधी घटनाक्रम की जानकारी दी और कहा कि तुम नदी में पुल
बनाओगे, त्साई ह सियांग आज्ञाकारी पुत्र था सो उसने कहा कि ठीक है किन्तु समस्या
यह थी कि तत्कालीन चीनी साम्राज्य में अधिकारी अपने गृह क्षेत्र में तैनात नहीं
किये जाते थे, चूंकि त्साई ह सियांग, फूकिन का स्थानीय निवासी था इसलिए वो
चुवान-चोऊ का गवर्नर नहीं बन सकता था । संयोगवश प्रोफेसर त्साई ह सियांग का एक मित्र मुख्य
किन्नर था जिसने इस कार्य हेतु एक अदभुत योजना बनाई ।
जब किन्नर
को पता चला कि सम्राट शेन सुंग उद्यान में घूमने आयेंगे तो उसने शहद, शक्कर घुले
पानी से केले के पत्तों पर लिखा कि “त्साई ह सियांग को अपने गृह क्षेत्र का गवर्नर
अवश्य बनाया जाए” । शहद की गंध पा कर चींटियाँ, लेख पर एकत्रित हो गईं,
उत्सुक्तावश सम्राट ने चींटियों द्वारा निर्मित आकृति को देखा और फिर उस वाक्य को पढ़ा
जोकि आकृति में लिखा हुआ दिख रहा था, इसी समय मुख्य किन्नर ने सम्राट द्वारा पढ़े
गये / उच्चरित शब्दों को बारम्बार दोहराया तथा इसके बाद स्थानीय गवर्नर के तौर पर त्साई
ह सियांग की नियुक्ति का आदेश लिख दिया, जिसे देख कर सम्राट बहुत रुष्ट हुआ और
उसने मुख्य किन्नर को दण्डित करना चाहा, तो किन्नर ने कहा कि सम्राट ने जो उद्यान
में कहा था, वो मजाक तो नहीं था । यह सुन
कर सम्राट ने उसे क्षमा करते हुए आदेश पर हस्ताक्षर कर दिये और इस तरह से त्साई ह
सियांग अपने ही क्षेत्र का गवर्नर बना और उसने लोयांग नदी पर पुल निर्माण का कार्य
पूर्ण किया ।
इस
कथानक को बांचते हुए यह प्रतीत होता है कि प्रोफेसर त्साई ह सियांग का जन्म दैव
निर्धारित था और उसकी गर्भवती मां तथा अन्य सहयात्रियों को तूफ़ान के शांत हो जाने
से यही अनुभूति हुई थी । संभव है कि इस
गल्प में, तूफ़ान की शांति को लेकर हुई कथित आकाशवाणी के अंश नितांत काल्पनिक हों और
अनावश्यक रूप से जोड़े गये हों ।संभव यह
भी है कि भीषण तूफ़ान में जीवित बच जाने के उपरान्त गर्भवती मां और अन्य
सहयात्रियों ने लोयांग नदी पर एक पुल की निर्मिति की आवश्यकता शिद्दत से महसूस की हो
? और उन्हें गर्भस्थ शिशु के इह लोक आगमन, उसकी शिक्षा दीक्षा, अर्जित नव ज्ञान से
सकारात्मक भविष्य के प्रति आश्वस्ति जागृत हुई हो ?
कहने का आशय यह है कि गर्भवती
मां और अन्य सहयात्री गण आयु के उस पड़ाव पर पहुंच चुके थे, जहां नव ज्ञान अर्जन की
संभावनाएं लगभग समाप्त प्राय: / न्यूनतम
होने लगती है, ऐसे में नई पीढ़ी, नव ज्ञान अर्जित करे और भविष्य की सुदृढ़ता का आधार
बने, जैसी कामना सहज और स्वभाविक ही मानी जायेगी । इसलिए लगता यह है कि जीवित बचे यात्रियों ने
शिशु जन्म के उपरान्त / आगत पीढ़ी, को लेकर
एक स्वप्न देखा होगा जोकि नव ज्ञान अर्जनोपरांत पुरानी पीढ़ियों की समस्याओं का
निदान करने वाली / उनकी भौतिक बाधाएं हर लेने वाली होगी । सो माता ने अपने पुत्र को वही शिक्षा दीक्षा दी
/ दिलवाई जोकि हाहाकारी नदी में पुल निर्मिति की अभियांत्रिकी से सम्बंधित मानी
जायेगी ।