किन्नर
मा शान बा ओ मूलतः झेंग परिवार से नहीं था बल्कि वह चीनी मुस्लिम मा खानदान का
चिराग था, उसके पिता का नाम मा हा था और उसे, मा हे नाम दिया गया था । वे लोग, स्वयं को दक्षिणी पश्चिमी चीन के
युन्नान प्रान्त के मंगोल गवर्नर का वंशज मानते थे । उसका कुल नाम मा संभवतः अरेबिक नाम मुहम्मद का
चीनी संस्करण था । उसके पिता, देश विदेश
की यात्रायें करते रहते और फिर यात्राओं से लौट कर बालक मा हे को बाहरी दुनिया की
कथाएं सुनाया करते थे,सो शिशु मा हे भी
बाहरी दुनिया के प्रति सतत जिज्ञासु बना रहने लगा, उसे समुद्री यायावरी भाने लगी
थी । यहां यह तथ्य उल्लेखनीय है कि उसके
घर के पास कुंग यिंग झील थी, जिसमें वो प्रतिदिन स्नान किया करता और जिसके परिणाम
स्वरुप, एक कुशल तैराक बन गया था । कहते
हैं कि जब बालक मा हे दस साल का था, तो मिंग सम्राट ने चीन पर मंगोलों के आधिपत्य
के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया था । युद्ध में
मंगोलों की पराजय के उपरान्त बंदी बनाये गये अनेकों किशोरों में से, एक मा शान बाओ
भी था ।
यही
समय था, जबकि विजेता चीनियों ने सभी बंदी किशोरों सहित, मा हे का भी बंध्याकरण कर
दिया था और फिर उसे उन्नीस वर्ष (सामान्य काल 1390) की आयु में राजकुमार यान के
नेतृत्व वाली सैन्य टुकड़ी में साधारण अर्दली के पद पर तैनात कर दिया गया । यहां उसने अपनी पहचान एक कुशल योद्धा और कूटनीतिज्ञ कनिष्ठ अधिकारी के
तौर पर बना ली थी । इस समय तक शाही दरबार
में कई लोगों से उसके मित्रवत सम्बन्ध स्थापित हो चुके थे । सामान्य काल 1400 में राजकुमार यान ने अपने भतीजे सम्राट
जियानवेन के विरुद्ध विद्रोह कर दिया और सामान्य काल 1402 में स्वयं सम्राट बन बैठा । उसके कार्यकाल (1402-1424) में युद्ध में ध्वस्त
हुई चीनी अर्थव्यवस्था पुनः पटरी पर लौट आई थी, सो उसने, दक्षिणी पूर्व एशिया पर
नौसैन्य दबदबा स्थापित करने के प्रयास तेज कर दिये थे । इसके बाद, बाह्य दुनिया से चीन के संपर्क बढ़ गये
थे । व्यापार के इतर तकनीकी, जहाजरानी
निर्माण आदि क्षेत्रों में मिंग साम्राज्य की तूती बोलने लगी । यही कालखंड था जब कि शान बाओ को पहले मा हे फिर
झेंग हे के नाम से जाना गया।
दरबार
में मौजूद प्रभावपूर्ण किन्नर के तौर पर उसे, उसके मूल कुल-नाम मा के स्थान पर
झेंग (राज-कुलीन उपनाम) रखने का परामर्श दिया गया और फिर उसे, झेंग हे के रूप में
नई पहचान मिली । इसके बाद सम्राट यान ने
उसे पश्चिमी समुद्र में चलने वाले महत्वपूर्ण अभियान की कमान सौंप दी । उसके बेड़े में 62 जहाज और 27800 नौसैनिक
सम्मिलित थे । समद्री यायावरी के दौर में
उसने सात महत्वपूर्ण समुद्री यात्रायें की थीं । उसने 1405 में दक्षिणी वियतनाम की यात्रा की,
फिर थाईलैंड, मलक्का, जावा, केरल, श्रीलंका की यात्रायें पूर्ण कीं और 1407 में
वापस चीन लौट आया । 1408-09 में वो पुनः
दक्षिण भारत और श्रीलंका गया,इसी समय उसने श्रीलंका के राजा अलागोनक्कारा की
धोखेबाजी से निपटते हुए श्रीलंका की सेना को हराया और राजा अलागोनक्कारा को बंधक
बना कर चीन ले आया । सामान्य काल 1409-1411 में उसने तीसरी बार यात्राओं की
शुरूआत करते हुए होर्मुज जल डमरू मध्य, पर्सियन समुद्र और उत्तरी सुमात्रा की
यात्राएं सफलता से पूर्ण कीं ।
सामान्य
काल 1413 में उसका चौथा अभियान अरब, ओमान,
यमन, मिस्र, सोमालिया, कीनिया, मोजाम्बीक आदि देशों पर केंद्रित था । सामान्य काल 1417-19 के दरम्यान उसने पर्सिया की खाड़ी और
अफ्रीका के पूर्वी तट की ओर पांचवीं बार सफलता पूर्वक नौ-वहन किया । सामान्य काल 1421 में उसने छठवीं बार दक्षिणी एशिया, अरबिया
और अफ्रीका की यात्राएँ कीं । सन 1424 में
उसे अपना सातवाँ अभियान स्थगित करना पड़ा, क्योंकि सम्राट की मृत्यु हो गई थी और उत्तराधिकारी
सम्राट होंग झी ने उसे नानजिंग की रक्षक सेना का कमांडर बना दिया था तथा उसे
सेनाओं को पुनः नियोजित एवं तैयार करना था
। झेंग हे ने 1431-33 में अपनी सातवीं
समुद्र यात्रायें प्रारम्भ कीं, जिसके अंतर्गत उसने दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों,
फारस की खाड़ी, लाल समुद्र , पूर्वी अफ्रीकी देशों तक नौ-वहन किया किन्तु वापसी में
कालीकट भारत में वसंत के मौसम में उसकी मृत्यु हो गई और उसका बेड़ा चीन वापस लौट
आया । वास्तव में वो चीनी योंगली सम्राटों
का कूटनीतिक प्रतिनिधि था ।