विश्व
के अनेकों किन्नरों में से पीटर अबेलार्ड (सामान्य काल 1079-1142) इतिहास में बहुचर्चित नाम है
। वो एक मशहूर तर्कशास्त्री और गणित का शिक्षक
था । उसी समय शाही परिवार की कमसिन लड़की हेलोयिस को ट्यूटर की आवश्यकता थी सो
हेलोयिस के चाचा ने पीटर अबेलार्ड को इस कार्य के लिये नियुक्त कर दिया । नव-उम्र हेलोयिस बेहद खूबसूरत थी और पीटर एक
ज़हीन व्यक्ति, अध्ययन अध्यापन के दौरान दोनों को एक दूसरे को समझने का मौका मिला
और दोनों एक दूसरे के प्रति आकर्षित हो गये, अपनी ही शिष्या से रोमांस करते हुए
अबेलार्ड ने, ना केवल प्रचलित सामाजिक निषेधों का उल्लंघन किया था बल्कि शाही
परिवार के सम्मान को भी, चोट पहुंचाई थी ।
हम भले ही यह मान लें कि स्त्री पुरुष के लंबे
साहचर्य के दौरान ऐसा होना सहज है, प्रेम का अनायास होना, स्वयमेव होना, स्वचलित
होना, नितांत जैव-प्राकृतिक घटना है,किन्तु सामाजिकता, प्रेम के पूर्व नियोजित
होने की धारणा पर विश्वास रखती है । बहरहाल अबेलार्ड और हेलोयिस का प्रेम परवान चढ़ा
और उसकी जिस्मानी परिणति स्वरुप हेलोयिस गर्भवती हो गई । हेलोयिस ने एक पुत्र को जन्म दिया और फिर
प्रेमी जोड़े ने ब्याह कर लिया । हेलोयिस
के चाचा को यह बात पसंद नहीं आयी कि एक साधारण ट्यूटर, कुलीन युवती से प्रेम करे ।
वो अबेलार्ड की तर्क शीलता और गणित में
निपुणता के बावजूद, अबेलार्ड को एक साधारण कर्मचारी मानता था, जिसे अपने काम के
बदले पगार मात्र से मतलब होना चाहिए था । उसकी कुलीनता को ठेस पहुंचाने वाले, इस प्रेम से
रुष्ट होकर, उसने सदल बल धावा बोला और अबेलार्ड के घर का दरवाज़ा तोड़ कर, सारा घर तहस
नहस कर दिया फिर उसने, अबेलार्ड को बंदी
बना कर, उसका बंध्याकरण कर दिया, इसके बाद अबेलार्ड को सुदूरस्थ पुरुष मठ में भेज
दिया गया ताकि वह अपना शेष जीवन एक सन्यासी बतौर गुज़ारे । कुलीन परिवार की सुकन्या से प्रेम की कीमत,
अबेलार्ड को अपना पौरुष खोकर चुकाना पड़ी ।
इतना ही नहीं, हेलोयिस के चाचा ने हेलोयिस को भी, अपने कुल / अपने परिवार में वापस नहीं लिया बल्कि उसे भी अबेलार्ड के मठ से मीलों
दूर स्थित स्त्री मठ / नन गृह भेज दिया ताकि वो धार्मिक शिक्षा प्राप्त कर के अपने
पाप का प्रायश्चित करे । इस
तरह के वृत्तांत पूरी दुनिया में देखने को मिलते हैं,जहां प्रेमी जोड़ों के
अभिभावक गण प्रेमियों के बिछोह को सुनिश्चित करते हैं ।आजीवन बिछोह अथवा मृत्योपरांत बिछोह का दंड,
अभिभावकगणों के कथित कुल सम्मान को पहुंचने वाली ठेस की मात्रा पर निर्भर करता है ।
अबेलार्ड और हेलोयिस के प्रकरण में भी ऐसा
ही हुआ । उन्हें एक दूसरे से मिलने का
अधिकार ही नहीं था । सो वे एक दूसरे को
प्रेम पत्र लिखा करते और जीवन पर्यंत लिखते रहे । पीटर अबेलार्ड भले ही ख्यातिनाम तर्कशास्त्री था
और गणित के शिक्षक बतौर उसकी उपलब्धियां भी कमतर नहीं थी, लेकिन आज के दौर में
उसे, शास्त्रीय प्रणय साहित्य सृजन के लिये जाना जाता है, उसके प्रेम पत्रों ने
उसके तर्कशास्त्र पर बढ़त हासिल कर ली है । कहते हैं कि वे दोनों मृत्यु के बाद, पेरिस के
कब्रिस्तान में फिर से मिले...