बुधवार, 30 मई 2018

किन्नर - 1

ईरान में क़जर साम्राज्य की स्थापना कबीलाई किन्नर द्वारा की गई थी ! कहते हैं कि आगा मोहम्मद खान क़जर संतानोत्पत्ति में सक्षम नहीं था, क्योंकि उसके प्रतिद्वंदियों / दुश्मनों ने सत्ता और शक्ति के संभावित संघर्ष को ध्यान में रखते हुए छै वर्ष की आयु में उसका बंध्याकरण कर दिया था ! हालांकि अठाहरवीं शताब्दी के इस कबीलाई व्यक्ति में, महत्वाकांक्षा की कोई कमी नहीं थी ! उसने शत्रु के दरबार में राजनैतिक बंदी की तरह से सोलह साल गुज़ारे किन्तु अवसर मिलते ही वो वहाँ से भाग निकला और अपने पारिवारिक कबीलाई प्रभुत्व क्षेत्र में जा पहुंचा ! धीरे धीरे उसने शक्ति संचयन करते हुए अगला एक दशक अपने कबीलाई आधिपत्य क्षेत्र के नगर तेहरान में बिताया ! इस दौरान उसने आस पास के क्षेत्रों में कई युद्ध जीते ! आगा मोहम्मद खान क़जर को उसके क्रूर दंड विधान / निर्णयों के लिये जाना जाता है !

उसके सफल सैन्य अभियानों के दौरान अनेकों बस्तियां तबाह और बर्बाद हो गईं ! इसमें कोई आश्चर्य नहीं जो, उसने पराजित प्रतिद्वंदी कबीलों के साथ निर्ममता पूर्वक व्यवहार किया ! उन दिनों नव-साम्राज्य की स्थापना और सत्ता को लेकर कबीलाई संघर्ष चरम पर था ! चूंकि तेहरान कज़र के कबीले के आधिपत्य क्षेत्र में था सो उसे अन्य कबीलों की तुलना में रणनीतिक बढ़त हासिल थी ! अन्य कबीले जानते थे कि कज़र कबीला उनकी तुलना में सामरिक बढ़त लिये हुए है , अतः उन्होंने कज़र कबीले के मुखिया के अल्प-वयस्क पुत्र आगा मोहम्मद खान क़जर को अवसर पाते ही बंदी बना लिया और उसका बंध्याकरण कर डाला! वे कज़र कबीले की सत्तागत महत्वाकांक्षाओं को कुचलना चाहते थे ! 

सत्ता के संघर्ष में शायद, उनके पास यही एक विकल्प शेष रह गया था ! बहरहाल आगा मोहम्मद खान क़जर में हौसलों की कोई कमी ना थी, उसे इंतज़ार था तो, केवल एक अवसर का, जबकि वो शत्रुओं के बंदी गृह से फरार हो सके ! लगभग डेढ़ दशक बाद उसके सामने यह अवसर आया भी और वो शत्रु के अधिपत्य क्षेत्र से भाग निकला ! अपने पारिवारिक कबीलाई प्रभाव क्षेत्र में रह कर उसने, अपनी सैन्य क्षमताओं का विस्तार किया और प्रतिद्वंदी कबीलों पर बर्बर हमले किये ! जैसे जैसे उसके द्वारा विजित क्षेत्रों की सीमाओं का विस्तार होता गया, उसकी क्रूरता बढ़ती गई ! पराजित बस्तियां और कबीले उसके कठोर निर्णयों का शिकार बने ! 

प्रतीत होता है कि उसे, अपने बाल्यकाल में ही छल बल पूर्वक छीन लिये गये पौरुष का प्रतिशोध लेना था ! उसके स्वप्न, उसकी महत्वाकांक्षाओं को बाधित करने वाले कबीलों का प्रतिकार करना था ! उसे अपने प्रतिद्वंदियों से उसको लंबे समय तक बंदी बनाए रखने का बदला लेना था ! यह निश्चित है कि उसके स्वभाव में आई क्रूरता उसके बचपन की घटनाओं का परिणाम थी ! उसने बेरहमी से उन सारी शक्तियों का दमन किया जो भी उसके मार्ग में बाधक बन कर खड़ी हुई थीं ! उसने बचपन खोया, बचपन में ही पौरुष खोया, यहां तक कि किशोर वय और युवावस्था के बहुमूल्य सोलह वर्षों तक परिजनों का साहचर्य खोया ! इसलिए यह स्वभाविक ही था, जो वो अपने पराजित प्रतिद्वंदियों के प्रति सौम्यता / सहृदयता / और सदाशयता खो बैठा ! 



( यह एक नई लेखमाला है जिसमें ब्लागर की ओर से लेखकीय मौलिकता का कोई दावा नहीं है, बस देखना ये है कि सत्ता / राजनीति क्या क्या गुल खिलाती है ? इसके इतर, खास बात ये कि, चर्चा में शामिल हर किन्नर, शीर्ष तक पहुंचा, एकदम अलग पहचान / पर्सोना के साथ ! )