अंतरीप के मुखिया की पुत्री बहुत सुंदर थी जिसे
ब्याहने के लिये अनेकों योद्धा उत्सुक थे लेकिन बात अंतिम रूप से दो योद्धाओं पर
अटक गई थी, उनमें से एक अंतरीप की
विन्नीपेगोसिस झील का मुखिया था और दूसरा राक्षस ताल का सिओक्स मुखिया ! कुल
मिलाकर उस युवती से ब्याह के दावे को लेकर उन दोनों में शत्रुता पनप गई थी !
हालांकि युवती स्वयं अंतरीप के योद्धा के पक्ष में थी और जब
विन्नीपेगोसिस झील के मुखिया ने युवती के पिता को मेक्सिको से लाकर एक सुफैद घोड़ा,
उपहार स्वरुप सौंपा तो वो भी अपनी पुत्री का हाथ उस अंतरीप योद्धा
को देने के लिये सहमत हो गया ! उधर सिओक्स मुखिया स्वयं के दावे को खारिज किये
जाते ही क्रुद्ध हो गया और उसने ब्याह के दिन एक बड़ी सेना लेकर युवती के घर पर
आक्रमण कर दिया !
आकस्मिक आक्रमण को देखकर अंतरीप योद्धा ने अपनी
पत्नी को सुफैद घोड़े पर बैठाया और स्वयं धूसर रंग के घोड़े पर बैठ कर सिओक्स मुखिया
की सेना से विपरीत दिशा की ओर चल पड़ा ! प्रेरीज घास के मैदानों की भूल भुलैयों में
उन्हें देख पाना मुश्किल था, एक समय उन्हें लगा कि सिओक्स मुखिया की सेना से पीछा छूट गया है तो वे फिर
से समतल मैदान में आ गये किन्तु अप्सरा जैसी उस युवती के सुफैद घोड़े को मीलों दूर
से भी देखा और पहचाना जा सकता था इसलिए उन दोनों प्रेमियों के ऊपर तीरों की बरसात
जैसी होने लगी, परिणाम स्वरुप प्रेमी द्वय काल के गाल में
समा गये ! उनकी मृत देहें घोड़ों से नीचे गिर गईं ! सिओक्स मुखिया ने धूसर घोड़े को
अपने कब्ज़े में ले लिया लेकिन सुफैद घोड़ा वहाँ से भाग गया !
इस घटनाक्रम के एक प्रत्यक्षदर्शी ने दावा किया
कि उसने वधु की आत्मा को सुफैद घोड़े में समाते हुए देखा है, उसके बाद ही वह घोड़ा सिओक्स मुखिया के चंगुल से निकल भागा
था ! कहते हैं कि सुफैद घोड़ा, अंतरीप योद्धा और उसकी ब्याहता
पत्नि की मृत्यु के सालों बाद तक उस मैदान में भटकते हुए देखा गया था ! स्थानीय
निवासी उस घोड़े के निकट जाने से डरते थे क्योंकि उसमें मृत युवती की आत्मा का वास
था ! वे तो ये भी मानते हैं कि घोड़े की स्वयं की मृत्यु के बाद भी, घोड़ा उस मैदान में भटकता रहता है ! आज भी उस मैदान को उस घोड़े के नाम से
जाना जाता है !
मूल रूप से यह एक दुखांत प्रेम कथा है, जिसमें प्रेम की वैवाहिक परिणति / पारिवारिक स्वीकृति का
आधार, सुकन्या के पिता को उपहार स्वरुप प्राप्त एक सुफैद घोड़ा है ! इस आख्यान से प्राप्त संकेतों के आधार पर सुफैद घोड़े की उपलब्धता
दुर्लभ मानी जानी चाहिये क्योंकि उसे दूसरे देश मैक्सिको से लाया गया है ! गौर तलब
बात ये कि सुफैद घोड़ा, सुकन्या के पिता को दिया गया है,
यानि कि यह अलभ्य वधु मूल्य है, जिसे विवाह के
पूर्व ही चुका दिया गया है ...स्पष्ट तथ्य ये कि उक्त समाज में लड़की के पिता को
अपने दामाद को क्रय करने के लिये दहेज की व्यवस्था नहीं करनी पड़ी, बल्कि दामाद ने स्वयं वधु मूल्य चुकाया ! स्मरण रहे कि तमाम दुनिया के
आदिम जातीय समाजों, यहां तक कि पुरुष सत्तात्मक समाजों में
भी, स्त्री पक्ष के महत्व को रेखांकित करने वाला बिंदु / कथन
/ चलन है, यह !
ये जनश्रुति विशुद्ध रूप से आदिम कबीलों के
मुखिया / राज कुलों / अभिजात्य परिवारों के दरम्यान स्थापित होने वाले रिश्तों का
कथन करती है, जिसमें विवाहोत्सुक, प्रतिभागी राज प्रमुख / मुखिया अपनी सफलता के लिये प्रयत्नरत है ! बहरहाल,
विवाह के लिये, वधु मूल्य चुकाए जाने और चुकाए
गये मूल्य को कन्या पक्ष द्वारा स्वीकार्य किये जाने के दौरान, हमें इस तथ्य को भी ध्यान में रखना चाहिए कि विवाह के लिये स्वीकृति
प्राप्त जामाता को सुकन्या की प्रेम सहमति भी प्राप्त थी ! मुखरित तथ्य यह कि उक्त
समाज में वर के चयन के लिये, सुकन्या की संस्वीकृति / सहमति
भी अनिवार्य तत्व रही होगी ! इसमें, कोई आश्चर्य नहीं कि कथा
में उल्लिखित पिता अपनी पुत्री के लिये वर चुनते समय तीन मुद्दों पर खास ध्यान
देता है, एक तो वधु मूल्य, दूसरा
सुकन्या की सहमति और तीसरा रिश्तों के लिये चयनित परिवार की समकक्ष प्रतिष्ठा /
समतुल्य कुलीन हैसियत !
प्रथम दृष्टया यह आख्यान, बहुश्रुत प्रेत कथाओं जैसा लगता है, जिसमें नवविवाहित दम्पत्ति अपनी, अतृप्त कामनाओं के
साथ अशरीरी रूप से, आज भी इस भौतिक जगत में भटकते फिरते हैं
! अतृप्त जागतिक इच्छाओं वाली, दिवंगत देहों की आत्माओं की
भटकन की कथाएं, कमोबेश पूरी दुनिया में ऐसे ही कही सुनी जाती
हैं जैसे कि इस कथा में, नायक प्रदत्त, उपहार पशु, सुफैद घोड़ा, अकाल काल
कवलित नायिका की भटकन का प्रतीक बन गया है ! इस कथा को बांचते समय हमें यह भी नहीं
भूलना चाहिए कि आरंभिक समाजों से लेकर आज तक के समाजों में, प्रणय
संगिनी चुनने की प्रक्रिया में असफल पुरुष अक्सर हिंसक पशु जैसा व्यवहार करने लगता
है जैसा कि इस कथा में सिओक्स मुखिया...जोड़ा चुनने में असफल होते ही वधिक /
हत्यारा हो गया, उसमें इतना भी विवेक शेष नहीं रहा कि उसे,
सुकन्या का प्रणय समर्थन प्राप्त नहीं है और प्रतिस्पर्धी मुखिया
द्वारा चुकाए गये वधु मूल्य की अलभ्यता, उसकी अपनी तुलनात्मक
पराजय है / अक्षमता है !
मुमकिन है कि सुफैद घोड़ा प्रणय प्रतीक हो, निश्छल, पवित्र, निष्कलंक प्रेम का...अथवा अपने स्वामी की यौन आकांक्षाओं के अतृप्त रह
जाने का...