रविवार, 17 दिसंबर 2017

परिंदे

तब प्रेरी बाज़ और कौव्वा लकड़ी के कुंदे / लट्ठे पर बैठे हुए, जल प्लावन को देख रहे थे, उन्होंने बतख से पूछा कि उसने कितने स्वप्न देखे ? बतख ने कहा, दो, इस पर प्रेरी बाज़ ने उसे तीसरा कार्य / स्वप्न सौंपते हुए कहा कि वो पानी में डुबकी लगा कर, तलहट से रेत लेकर आये ! बतख ने गोता लगाया लेकिन तलहट तक पहुंचने से पहले ही उसे इस कार्य हेतु आबंटित तीन दिन का समय बीत गया और वो स्वप्न से जाग गई, परिणामतः उसकी मृत्यु हो गई और उसकी देह पानी की ऊपरी सतह पर उतराने लगी ! प्रेरी बाज़ ने उसमें प्राण फूंके और पूछा, क्या समस्या हुई ? बतख ने बताया कि उसका स्वप्न भंग हो जाने के कारण,  उसकी मृत्यु हो गई थी !

इसके बाद प्रेरी बाज़ ने कूट / टिकरी से पूछा कि उसने कितने स्वप्न देखे थे ? टिकरी ने कहा, चार, इस पर प्रेरी बाज़ ने उसे दूसरा कार्य सौंपा और डुबकी लगा कर तलहट से रेत लाने के निर्देश दिये, लेकिन टिकरी के तलहट तक पहुंचने से पहले ही दो दिन व्यतीत हो गये और स्वप्न भंग हो जाने के कारण उसकी भी मृत्यु हो गई, फिर उसका शव भी पानी की ऊपरी सतह में उतराने लगा ! प्रेरी बाज़ ने टिकरी की लाश देखी और उसे जीवन दान देकर पूछा, तुम्हें क्या कठिनाई हुई ? टिकरी ने निर्धारित अवधि खत्म हो जाने के कारण स्वप्न भंग और अपनी मृत्यु की बात कही !

इस बार प्रेरी बाज़ ने पनडुब्बी से पूछा कि उसने कितने स्वप्न देखे ? पनडुब्बी ने कहा, पांच, तब प्रेरी बाज़ ने उसे चौथा कार्य सौंपा और तलहट से रेत लेकर आने की बात कही, पनडुब्बी अपने कार्य में सफल रही और अपने दोनों पंजों में थोड़ी सी रेत लेकर वापस सतह की ओर आने लगी, किन्तु वापसी के दौरान निर्धारित समय खत्म हो जाने कारण, उसकी भी मृत्यु हो गई और उसकी लाश पानी में तिरने लगी, प्रेरी बाज़ ने उसे जीवन दिया और पूछा, क्या हुआ ? पनडुब्बी ने कहा कि वापसी के दौरान मृत्यु हो जाने से, उसकी मुट्ठी से पूरी रेत फिसल गई है !

प्रेरी बाज़ और कौव्वे को इस बात पर विश्वास नहीं हुआ और वे दोनों पनडुब्बी पर हंसे, इसके बाद उन्होंने, उसकी हथेलियों और नाखूनों की कोरों से रेत निकाली और उसे सभी दिशाओं में बिखेर दिया, इस प्रकार से उन्होंने धरती का निर्माण किया !   

यह आख्यान जल प्लावन के बाद धरती के पुनर्सृजन का श्रेय किसी मनुष्य को देने के बजाये प्रेरी घास के मैदानों वाले बाज़ और कौव्वे को देता है, यहां यह स्मरण रहे कि अनेकों आख्यानों में कौव्वा, दैवीय शक्तियों के स्वामी बतौर उद्धृत होता रहा है, कथा के अनुसार जल प्लावन के समय बाज़ और कौव्वा लकड़ी के लट्ठे / नाव पर बैठे हुए थे और उन्होंने जल पूरित धरती के तल में से रेत लाने का दायित्व क्रमशः बतख, टिकरी और पनडुब्बी को दिया, गौर तलब है कि ये तीनों परिंदे मूलतः जलीय पर्यावास में जीवन जीने वाले परिंदे हैं और उन्हें जल की गहराई में उतर कर रेत को लाने का कार्य सौंपा गया है !

इस जनश्रुति में मौजूद पाँचों पात्र परिंदे हैं जिसमें से दो को दैवीय शक्तियां प्राप्त हैं और वे सामर्थ्य से अधिक कार्य करने वाले परिंदों की मृत्यु के उपरान्त, उन्हें जीवित करने का सामर्थ्य भी रखते हैं जबकि शेष तीनों परिंदे जल जीवन के अभ्यस्त हैं, अतः उन्हें उनकी विशेषज्ञता के अनुसार कार्य सौंपा गया ! आख्यान के अनुसार, बतख ने केवल दो स्वप्न देखे थे जबकि उसे, उसके सामर्थ्य से अधिक तीसरा कार्य सौंपा गया, जिसे वह पूरा नहीं कर सकी, इसीलिए जब टिकरी ने चार स्वप्न देखने का दावा किया तो उसे, उसके दावे से केवल आधा यानि कि, दूसरा कार्य ही सौंपा गया जिसे पूर्ण करने में वो भी असफल रही !

बतख और टिकरी की तुलना में पनडुब्बी ने पांच स्वप्न देखने का कथन किया तो उसे, उसके सामर्थ्य से कम, चौथा कार्य सौंपा गया जिसे पूरा करने में वो सफल तो हुई किन्तु कार्य में लगने वाले समय की गणना में हुई चूक, उसकी मृत्यु का कारण बनी ! बाज़ ने उसे भी जीवन दान दिया और उसकी सफलता की प्रतीक रेत को सभी दिशाओं में बिखेर कर धरती का पुनर्सृजन किया ! इस जनश्रुति में, सौंपे गये दायित्वों और सामर्थ्यशीलता के तुलनात्मक कथनों के इतर, सर्वाधिक महत्वपूर्ण, किन्तु अघोषित कथन है, जल प्लावन के बाद, धरती के सृजन कर्म से मनुष्यों का सर्वथा विलोपित होना...और घोषित कहन, देवत्व धारी सह साधारण परिंदों का योगदान...