शनिवार, 30 दिसंबर 2017

पर्वत आत्मा

वो पर्वत आत्मा थी, जोकि कब्रों से लाशें चुरा लेती और घर लौट कर उन्हें खा डालती ! एक व्यक्ति, यह जानना चाहता था कि लाशों को चुराने वाला कौन है ? सो उसने स्वयं को, कब्र में ज़िंदा दफन करवा लिया ! आत्मा ने जैसे ही नई कब्र देखी उसे खोद कर, उस व्यक्ति की देह निकाल ली ! दफनाए गये व्यक्ति ने अपने कपड़े के अंदर, सीने में, समतल पत्थर छुपा कर रखा था ताकि कोई उसका सीना चीरना चाहे तो ऐसा ना कर सके, रास्ते में मिलने वाले दरख्तों की टहनियाँ पकड़ पकड़ कर वो व्यक्ति, स्वयं को अधिक भारी बनाने का यत्न करता रहा, जिसके कारण से आत्मा को, उसे ढोने में काफी मेहनत करना पड़ी और वो अपने घर पहुंचने तक थक कर चूर हो गई ! घर पहुंच कर आत्मा ने देह को फर्श पर फेंक दिया और थकान मिटाने के लिये सो गई, इसी दौरान उसकी पत्नि खाना पकाने के लिये लकड़ियाँ एकत्रित करने के लिये घर से बाहर चली गई !

मृत होने का नाटक कर रहे व्यक्ति ने जैसे ही आंखें खोल कर चारों तरफ का जायज़ा लिया, तो आत्मा के बच्चे चिल्लाये, पिता जी, पिता जी, उसने अपनी आंखें खोली थीं ! आत्मा ने कहा, बकवास मत करो, ये एक मृत देह है जो रास्ते में, कई दरख्तों की टहनियों में अटक / गिर गई थी, तभी मृत-देह बना हुआ व्यक्ति उठा, और उसने आत्मा तथा उसके बच्चों को मार डाला फिर जितना भी तेज होना संभव था, उतना ही तेज, वहाँ से भाग निकला ! रास्ते में आत्मा की पत्नि ने उसे देखा, पत्नि ने समझा कि उसका पति भाग रहा है, उसने पूछा, तुम कहां जा रहे हो ? उस व्यक्ति ने कोई जबाब नहीं दिया, केवल भागता रहा ! आत्मा की पत्नि को लगा कि कुछ ना कुछ अघट घट गया है, सो वो भी उसके पीछे भागने लगी ! व्यक्ति चिल्लाया, पर्वतो ऊपर उठो और कई पर्वत, ऊंचे उठ गये ! आत्मा की पत्नि पीछे छूटने लगी थी क्योंकि उसे कई पर्वतों पर चढ़ना था !

भागते हुए व्यक्ति ने एक छोटी सी जलधारा देखी, वो कूद कर उसे पार कर गया और पुनः चिल्लाया, दोनों किनारों तक बढ़ कर बहो ! इसके बाद आत्मा की पत्नि के लिये, उफनती हुई जलधारा को पार करना असंभव हो गया वो तेज आवाज़ में बोली, तुमने इसे कैसे पार किया ? व्यक्ति ने कहा, मैं इसका पानी पी गया था, तुम भी ऐसा ही करो ! आत्मा की पत्नि, पानी पीने लगी, जिसके कारण से उसका पेट फूलने लगा था ! व्यक्ति ने उसकी तरफ घूम कर कहा, देखो, तुम्हारे अंगरखे का कोना, तुम्हारे पैरों के बीच लटक रहा है ! आत्मा की पत्नि ने जैसे ही झुक कर नीचे देखना चाहा, दबाब से उसका पेट फट गया और उसके बाहर, भाप निकलने लगी, जो धुंध में तब्दील हो गई और...आज तक पहाड़ों में तैरती है !

इस इन्युइट आख्यान में किसी अनजान, पर्वत वासी, मुर्दाखोर व्यक्ति और उसके परिजनों से पीड़ित, गांव वालों के प्रतिक्रियात्मक व्यवहार का विवरण दिया गया है ! कब्रों से मृत देहों का गायब होना, मृतक और उसके सम्बन्धियों के भावुक जुड़ाव को ठेस पहुंचाने वाला कृत्य माना जा सकता है, जिसके विरुद्ध प्रथम दृष्टया अपराधी की पहचान तदुपरांत दंड की व्यवस्था सहज सामाजिक व्यवहार है / अपराध निषेध की कार्यवाही है ! आख्यान कहता है कि आरोपी एक पर्वत आत्मा थी, तो सांकेतिक अर्थों में यह मान लिया जाए कि मृत देहों से आहार जुटाने वाला व्यक्ति और उसके परिजन, असामान्य व्यवहार करने वाले लोग हैं भले ही इसका कारण कुछ भी हो, चाहे बेरोजगारी, निर्धनता, दुर्भिक्ष या नर मांस खाने का शौक अथवा अन्य कोई भी कारण ! कहने का आशय ये है कि असामान्यता, मनुष्यों के लिये, मनुष्यवत ना होकर, आत्मा कदाचित प्रेतात्मावत है !

आरोपी को रंगे हाथों पकड़ने के प्रयास में, एक व्यक्ति स्वयं को, मौका-ए-वारदात में, मृत देह / चारे की तरह से प्रस्तुत कर देता है, वहाँ खतरा है सो अपने सीने को पत्थर के चपटे टुकड़े से संरक्षित कर लेता है, ये सहज सुलभ नैसर्गिक संसाधनों से निर्मित  कवच है, वस्तुतः अपराधी की खोज में निकले व्यक्ति की बुद्धिमत्ता / आत्मरक्षार्थ किये गये जतन का प्रमाण है ! खोजी व्यक्ति, मृत देह के अपहरण के दौरान, देह अपहर्ता आत्मा / व्यक्ति को थकाने का प्रयास करता है, ताकि सशक्त प्रतिकार की संभावनायें न्यूनतम की जा सकें ! कथा के अनुसार सारा घटनाक्रम खोजी व्यक्ति की अपेक्षाओं के अनुरूप घटता है और वो अपराधी को दंड देकर भाग निकलता है किन्तु अपराधी की पत्नि का दृष्टि भ्रम अब भी उसके सामने बाधक बन कर खडा हुआ है, वो भागता है और पीछा कर रही अपराधी की पत्नि के सामने पर्वतों और विशाल जलधाराओं की बाधायें खड़ी करता जाता है !

जनश्रुति का प्रथम पक्ष विशुद्धतः मुर्दाखोर परिवार की पहचान और अपराधीगण को दण्डित कर भागते हुए नायक की शौर्यगाथा को समर्पित है, किन्तु दूसरा पक्ष ये है कि पर्वतों में तिरती धुंध कैसे जन्मी होगी ? रुचिकर कथन ये कि उदर की गर्मी और उसमें समाहित पानी का मिश्रण भाप बन कर धुंध हो जाता है ! संभव है कि भोजन पकाने के दौरान, प्रज्ज्वलित आग में रखे खौलते पानी से निकलती हुई भाप इस निष्कर्ष का आधार बनी हो, या फिर पहाड़ों, घाटियों में मौजूद कोई तप्त जलकुंड इस निष्पत्ति का आधार बन गया हो ! बहरहाल अपने प्राकृतिक पर्यावास के प्रति सतत, सजग, चौकन्ने आदिम समुदाय के पर्यवेक्षणीय अनुभवों के प्रमाण बतौर, धुंध बनने का ये विवरण, इस कथा का महत्वपूर्ण बिंदु है !