ईश्वर ने कीचड़ से कुछ मनुष्यों को बनाया, लेकिन वे लोग
बहुत मुलायम तथा पिलपिले थे और गीले होने पर खड़े भी नहीं हो सकते थे ! वे देख नहीं
सकते थे पर...बोल सकते थे हालांकि जो कुछ भी बोलते सब अर्थहीन हुआ करता ! ईश्वर
समझ गया कि वे लोग किसी काम के नहीं हैं, उसने उन्हें तोड़ डाला और कहा, मैं फिर से
कोशिश करूँगा ! इसके बाद ईश्वर ने लकड़ी से मनुष्य बनाये, जो पहले से बेहतर थे, ये,
बोलना और चलना जानते थे ! लकड़ी से बने मनुष्यों ने घरों का निर्माण किया और उनके
बच्चे भी पैदा हुए, उनकी संख्या बढ़ने लगी, लेकिन ये लोग सूखे, पीले और भावहीन
चेहरों वाले थे क्योंकि इनके पास दिल, दिमाग और आत्मा नहीं थी ! लकड़ी से बने
मनुष्य, अपने पशुओं को पीटते, उनके बर्तन अक्सर जल जाते पर...उन्हें समझ में नहीं
आता कि नये बर्तन कैसे बनायें, इतना ही नहीं, उन्हें ईश्वर का कोई एक नाम तक, याद
नहीं रहता !
ईश्वर ने कहा, ये लोग भी ठीक नहीं है, मैं इन्हें
नष्ट कर दूंगा और उसने धरती पर महान बाढ़ लाई, जिसके कारण से लकड़ी के मनुष्य और
उनके घर बह गये ! इस कठिन समय में पशुओं, जिन्हें वे पीटते थे, बर्तनों, जिन्हें
वो जला डालते थे और पेड़ों, जिनकी शाखें वे काट डालते थे, ने उनकी कोई मदद नहीं की
! कहते हैं कि महा-बाढ़ में जो, थोड़े से लोग बच गये, उनके वंशज बंदर हुए जो आज तक नीचे नहीं उतरते ! ईश्वर सच्चे मनुष्य
बनाना चाहता था, जब सूर्योदय हुआ तो उसने मकई के पीले भुट्टे और सुफैद भुट्टों के
दाने पीस कर मिला दिये, इस खाद्य सामग्री के साथ, उसने नौ तरह की
शराब बनाई ताकि उससे, मनुष्य को ऊर्जा और शक्ति मिले, इसके बाद ईश्वर ने इसकी लोई
से चार सुंदर और शक्तिशाली पुरुष बनाये जिन्हें, घातक हंसी, लापरवाह, कालिमा और
रात का जादूगर कहा गया ! ईश्वर ने उन्हें बुद्धिमत्ता और समझ, उपहार स्वरुप प्रदान
की !
जब ये चारों पुरुष सो रहे थे तो ईश्वर ने बहुत
सावधानी के साथ चार स्त्रियां बनाईं ! जब
वे जागे तो उन्हें अपने पहलू में सुंदर पत्नि मिली ! वे समझ गये कि वे, चहुँ दिश
घटित को देख सकते हैं, यहां तक कि आकाश का मेहराब और पृथ्वी का गोल चेहरा भी,
उन्होंने कहा, हमारे जीवन के लिये धन्यवाद ! हम, देख, सुन, बोल और चल सकते हैं !
हम, धरती और आकाश पर घटित, सब जान सकते हैं, अनुभव कर सकते हैं...ओ पिता, इसके
लिये धन्यवाद ! ये सुनकर ईश्वर को बड़ी चिंता हो गई कि ये मनुष्य तो बहुत ज्यादा और
बड़ी दूर तक देख सकते हैं ! ये लोग, मनुष्य के बजाये देवता तुल्य हो गये हैं ! ईश्वर
को लगा कि, थोड़ा बदलाव ज़रुरी है सो, उसने नीचे झुक कर, उनकी आंखों में धुंध फूंक
दी और उनकी दृष्टि में थोड़े से बादल भी, जैसे कि किसी आईने में भाप फूंक दी जाए,
अब वे ज्यादा दूर तक साफ़ साफ़ नहीं देख सकते थे !
उन चारों स्त्री पुरुषों ने पहाड़ से नीचे उतरने के
लिये, सुबह का इंतज़ार किया, उन्हें सबसे पहले भोर का तारा नज़र आया,फिर सूरज, जिसकी धूप ने तीन उपहारों के बाहरी
आवरण जला दिये / खोल दिये ! तब पहाड़ी बिलाव और तेंदुआ गुर्राये और सभी परिंदों ने
अपने पंख फैलाये तथा चहचहाने लगे, उनके साथ ही साथ, चारों पति पत्नि, आनंद विभोर
होकर नृत्य करने लगे ! सूरज आकाश पर चढ़ने लगा था...
इस जनश्रुति का सम्बन्ध,प्रख्यात क्यिचे माया सभ्यता से है, जिसका आद्योपांत विवरण १५०० ईसा पूर्व से लेकर १६ वीं शताब्दी के मध्य
सिमट कर रह जाता है, माया समुदाय में प्रचलित सृष्टि सृजन, विशेष कर मनुष्यों की
निर्मिति, संबंधी बयान इस कथा के माध्यम से प्रकटित होते हैं ! वे मानते हैं कि
ईश्वर ने सबसे पहले कीचड़ से मनुष्य को रचा था, ऐसे में उक्त मनुष्य की देह रचना का
मुलायम तथा पिलपिला होना और भीगने पर खड़े नहीं हो पाना अस्वभाविक कथन नहीं है, इसके
इतर उनका अंधत्व और वाचिक अर्थहीनता, उनके नष्ट हो जाने का कारण बनी ! कालांतर में
ईश्वर ने काष्ठ से मनुष्यों का निर्माण किया, जिनके चेहरे, काष्ठ की तरह पीले और
भावहीन थे, यह कथन बेहद दिलचस्प है ! उनमें बुद्धि, हृदय और आत्मा का अभाव था, अतः
वे क्रूर थे !
उनकी स्मरण-हीनता का आलम ये कि वे ईश्वर का कोई एक नाम
भी याद नहीं रख सकते थे, अतः उन्हें जल समाधि दे दी गई ! रोचक बयान ये कि उनमें से
कुछ के वंशज बंदर हुए, जोकि ऊंचाइयों में चढ़कर जीवित बचे, सो आज भी नीचे
नहीं उतरते ! ध्यान रहे कि काष्ठ मनुष्यों के आपात समय में पशुओं, बर्तनों और
पेड़ों की शाखाओं ने, साथ नहीं दिया क्योंकि वे सभी काष्ठ मनुष्यों द्वारा प्रताड़ित
किये गये थे, यह विशुद्ध सामाजिक व्यवहार है, जैसा बोया, वैसा ही काटोगे की, तरह
से ! ईश्वर सच्चे मनुष्य के सृजन में दो बार चूका था, इसका मतलब ये हुआ कि चूक,
ईश्वर से भी हो सकती है ! तीसरी बार मनुष्य का सृजन करते हुए ईश्वर ने मकई के आटे
के साथ ही साथ, नौ तरह की उत्तेजक और शक्तिवर्धक शराब का इस्तेमाल भी किया ! आटे
की लोई से बने मनुष्य में वो सभी खूबियाँ थीं जोकि ईश्वर चाहता था पर...इस बार भी
उससे एक गलती हुई !
कथा से प्राप्त, यह संकेत मजेदार है कि आटे के
मिश्रण और भिन्न शराबों से, मनुष्य बनाने वाला ईश्वर, देवता बना बैठा ! आटे और शराब
के गठजोड़ से देवत्व प्राप्ति संबंधी यह विवरण, अप्रत्यक्ष रूप से देवताओं के साथ
परिहास करने जैसा है या फिर मनुष्यों द्वारा शराब पीने को न्यायोचित ठहराने के
उद्धरण के जैसा ! बहरहाल चारों मनुष्यों को अनायास ही प्राप्त देवत्व से वंचित
करने के लिये ईश्वर द्वारा मनुष्य की आंखों में धुंध फूंकने और दृष्टि में भाप के
जैसे बादलों को आरोपित करने का कथन सांकेतिक
रूप से मनुष्य को मनुष्य बनाए रखने के जतन के तौर पर स्वीकार किया जाना चाहिए ! इस सम्बन्ध में आईने में भाप पड़ जाने वाली कहन अदभुत है ! ईश्वर ने मनुष्य को उपहार स्वरुप पत्नियां दीं, पशु दिये, परिंदे दिये और उल्लास
की अभिव्यक्ति के लिये नृत्य निपुणता भी !