शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

बिखरे रंग...

जब धरती नई नई थी, तब सृजनहारा अपने सृजन कर्म को देख देख कर खुश होता, उस समय दुनिया खूबसूरत थी और लोग भी खुश रहते थे, किन्तु समय गुज़रा और बढ़ती हुई उम्र साथ लोगों की मृत्यु, संसार में दुःख लेकर आई, लोगों के दुःख से सृजनहारा भी दुखी हुआ ! उसे लगा कि दुनियां में कुछ कमी रह गई है...सो उसे कोई नया सृजन करना चाहिए ! सृजनहारा, नये सृजन की लालसा के साथ, धरती पर आया और उसने एक थैले में, दुनिया के रंग एकत्रित करना शुरू कर दिया ! आसमान से नीला, पेड़ों से हरा, सूर्य से पीला...और सूर्यास्त के समय के आसमान से लाल, नारंगी और बैगनी रंग लिये, इसके बाद नन्हें बच्चों की मुस्कान से सुफैद तथा उनकी आंखों से भूरा रंग लिया,फिर परिंदों से गीत लिये और सभी को अपने थैले में भर लिया ! थैले में भरे हुए रंगों और गीतों को, उसने अच्छी तरह से मिश्रित कर दिया और लोगों को अपना नया सृजन कर्म, दिखाने जा पहुंचा !

सारे लोग, घेरा बना कर खड़े हो गये ताकि नये सृजन को देख सकें ! सृजनहारे ने जैसे ही थैला खोला, उसमें से हज़ारों तितलियाँ निकल पड़ीं, लोग खुश हुए, बच्चे नाचने गाने लगे, तितलियाँ भी, खुशी से झूमते हुए बच्चों के चारों तरफ, गाने / चहचहाने और इठलाने लगीं...दुनियां में खुशियां जैसे लौट आई हों, हालांकि सभी जीव इस नये सृजन से खुश नहीं थे, परिंदों ने शिकायती सुर में कहा, ओ महान सृजनहारे, तुमने हमारे गीतों / चहचहाहट को क्यों ले लिया ? इन गीतों के कारण से ही हमारी अलग पहचान थी ! इसे लेकर तुमने उचित नहीं किया ! सृजनहारे को परिंदों की ये बात ठीक लगी...सो उसने तितलियों से गीत वापस लेकर, परिंदों को सौंप दिये ! कहते हैं कि, इसके बाद से ही, तितलियाँ सृजन के सारे रंग, बेहद ख़ूबसूरती के साथ, बिखेरती फिरती हैं, लेकिन मौन रह कर...
 
उत्तरी अमेरिका के उत्तरी पूर्वी क्षेत्र के अमरीकन लेनापे इन्डियन समुदाय की ये गाथा, कुछ मायनों में अदभुत है, मसलन नये सृजन के लिये, नन्हे बच्चों की मुस्कान से सुफैद रंग का लिया जाना, सुफैदी, जो शांति प्रियता, निश्छलता का प्रतीक है, उसका बच्चों की मुस्कान में निहित होना, बेहद दार्शनिक और मानीखेज़ कथन है ये ! इसके इतर जब कथा कहती है कि परिंदों से गीत, सूरज से पीला, पेड़ों से हरा, आसमान से नीला, सूर्यास्त के समय का नारंगी लाल और बैगनी और नन्हों की आंखों से भूरा रंग लिया गया तो इसका आशय ये है कि सारे रंग / गीत धरती पर पहले से मौजूद थे और उनका पुनर्संयोजन / पुनर्प्रयोग, नये सृजन का आधार बना है यानि कि सृजनहारे ने जो पहले पहल रचा, उसमें ही दूसरे सृजन की संभावनायें / तत्व मौजूद थे ! हम कह सकते है कि एकालाप-गत उदासीनता को नवोन्मेष / नव प्रयोग से खुशियों में बदला जा सकता है !

कथा कालीन आदिम समाज की ये समझ, कितनी गहरी है कि, रचनाधर्मिता बाँझ नहीं होती...उसमें उर्वरता के तत्वों की विद्यमानता, एकरसता को तोड़, नव-रस-गान सृजन मुफीद होती है ! इधर परिंदों को शिकायत है कि उनकी पहचान छिन गई, उधर सृजनहारे की संवेदनशील न्यायप्रियता, कि परिंदों की पहचान बनी रहे, यानि कि सर्वशक्तिमान सृजनहारा भी गलतियां कर सकता है, लेकिन ध्यानाकर्षित कराये जाने पर, भूल सुधार में कोई देर नहीं ! कथा संकेत ये कि गलतियों पर ध्यानाकर्षण, श्रेष्ठि के अहम को ठेस पहुंचाने का कारण अथवा प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं, बल्कि त्वरित सुधार का विषय है ! अंतत: उसके औचित्यपूर्ण होने को सर्वशक्तिमान का समर्थन जो प्राप्त है ! तितलियों की जन्म के लिये, सृष्टि में पहले से ही मौजूद तत्वों का उपयोग किया गया, वे परिंदों की तरह से चहचहाईं, उनकी खुशियाँ बच्चों के इर्द गिर्द नाचने और इठलाने में निहित थी किन्तु...

परिंदों की पहचान छीन कर तितलियों का सौंदर्य गान निःसंदेह अन्यायपूर्ण था ! बहरहाल तितलियाँ अब भी इतराती, इठलाती है, वे दुनिया की अलभ्यतम सौंदर्य देवियाँ, देव हैं, उनकी ख़ूबसूरती रंगों के चटख और विविधतापूर्ण संयोजनों से है, असीमित आकाश में उड़ान भरने के लिये, उनके रंगों को मौन के पंख लग गये हैं...