रविवार, 6 अगस्त 2017

आकाश नद

जब सृष्टि का सृजन अपने आरंभिक दौर में था, तब आकाश में तारे बहुत कम थे ! उन दिनों चेरोकी लोग भोजन के लिये मक्के की फसल पर निर्भर थे ! वे खेत से फसल काटने के बाद उसे सुखाते और फिर लकड़ी की बड़ी सी ओखली और मूसल की मदद से दाने दाने अलग कर के, बांस की बड़ी टोकरियों में सुरक्षित रख लेते ताकि सर्दियों में उनसे रोटियां बनाई जा सकें ! एक सुबह जब एक वृद्ध दंपत्ति अपने भण्डार कक्ष में गये ताकि वहां से मक्के का आटा निकाल सकें ! उन्हें लगा कि पिछली रात वहां कोई आया था ! वे इस घटना से बहुत परेशान हो गये क्योंकि इससे पहले चेरोकी गांव में चोरी की कोई घटना नहीं घटी थी ! उन्होंने देखा कि भण्डार कक्ष अस्तव्यस्त था और मक्के का आटा इधर उधर बिखरा हुआ था, जिसमें कुत्ते के पंजों के निशान दिखाई दे रहे थे !

निशान इतने बड़े थे कि उन्हें सामान्य कुत्ते के पंजे के निशान नहीं माना जा सकता था ! गांव के लोगों ने पंचायत में इस विषय में चर्चा की और लोगों को सावधान रहने की चेतावनी ज़ारी कर दी गई ! उन्हें पूरा विश्वास था कि ये कुत्ते की आत्मा रही होगी, जिसे डरा धमका कर गांव से भगा दिया जाना चाहिए ताकि वो फिर कभी वापस ना लौटे ! उन्होंने ढ़ोल और कछुवे के खोल वाले झुनझुने इकट्ठे किये और रात में उस जगह के आस पास छुप गये जहां पर चोरी की घटना घटी थी ! देर रात उन्होंने ढ़ेरों  चिड़ियों के पंख फड़फड़ाने जैसी आवाजें सुनी, उन्होंने देखा कि एक भीमकाय कुत्ता आकाश से नीचे, धरती की ओर झपट रहा है ! वो भण्डार कक्ष में आटे की टोकरी के पास उतरा और उसने अपने विशालकाय मुंह में भर भर कर आटा खाना शुरू कर दिया !

उसी समय लोगों ने ढ़ोल बजाना और शोर मचाना शुरू कर दिया! शोर इतना तेज था, जैसे कि आकाश में बिजलियां कड़क रही हों! कुत्ता वापस मुड़ा और सड़क पर भागने लगा ! लोग जितना भी तेज शोर कर सकते थे उतना ही करते हुए कुत्ते का पीछा करने लगे ! कुत्ता भागते हुए पहाड़ की चोटी पर जा पहुंचा और वहां से उसने वापस आकाश में छलांग लगा दी !  इस दौरान कुत्ते के मुंह के दोनों तरफ से मक्के का आटा आकाश में बिखर रहा था ! बहरहाल वो कुत्ता आकाश में अन्तर्ध्यान हो गया, लेकिन उसके मुंह से बिखरे हुए आटे का हर एक कण, एक तारा बन गया ! आकाश में बिखरे हुए, आटे का स्वरुप, तारों की एक विशाल नदी के जैसा था, यानि कि तारों भरा आकाश नद ! चेरोकी लोग कहते हैं कि ये वो रास्ता है, जहां से कुत्ता भागा था ! 

कथा सृजन का समय निश्चित रूप से चेरोकी समुदाय के खेतिहर हो जाने का समय है, जबकि वे लोग मक्के की फसल उगाते और तब उन्हें, सर्दियों के कठिन समय के लिये, फसल के भण्डारण और संरक्षण का, आरंभिक तकनीकी ज्ञान था ! आख्यान कहता है कि चेरोकी गांव में चोरी की घटना परेशान करने वाली थी,यानि कि चेरोकी लोगों को चोरी जैसे असामाजिक / आपराधिक कृत्य का कोई पूर्व अनुभव नहीं था ! उनके लिये यह असहज समय था, उनके समुदाय के लिये नितांत अस्वीकार्य घटनाक्रम, जिसके विरुद्ध पूरे गांव का एकजुट हो जाना महत्वपूर्ण है ! उस गांव में पंचायत की मौजूदगी, विषय विचारण के लिये न्यायालय जैसी और संकट के समाधान के लिये कार्यपालिका के जैसी थी ! उन सभी ने चोरी के लिये जिम्मेदार ठहराई गई कुत्ते की आत्मा से एक साथ जूझने का निश्चय किया, वे चोरी की पुनरावृत्ति और चोर के पुनरागमन को रोकने के लिये कृत संकल्प थे !

चेरोकी लोगों का अस्तित्व इस बात पर निर्भर था कि वे मक्के की फसल का सदुपयोग करें, इस कथा में सांकेतिक रूप से प्रस्तुत कथन यह कि मक्का, चेरोकी जीवन की संजीवनी है ! आधार तत्व है...सो तारों की उत्पत्ति, उनके जीवन चक्र और अन्य ब्रह्मांडीय पिंडों सह आकाशीय संरचनाओं के अस्तित्व के लिये भी, उसे ही उत्तरदाई होना चाहिए ! धरती और आकाशीय जीवन के लिये उत्तरदाई, एक ही तत्व की कल्पनाशीलता अद्भुत है ! संभव है कि मक्के के सूखते / फूटते दानों की चमक और तारों की चमक में साम्यता का आभास इस कहन की पृष्ठभूमि में मौजूद हो, इसके अतिरिक्त ध्यान रखने योग्य कथन यह कि कुत्ते की आत्मा, आकाश से धरती पर उतरती है, लेकिन संकट में पड़ जाने की स्थिति में भागते हुए, उसे पहाड़ की ऊंचाई का सहारा है, जहां से, वो वापस ऊंचे आकाश में उड़ान भर सकती है, गज़ब का विचार है...