शुक्रवार, 14 जुलाई 2017

सिरजनहार

तब हम महान आत्मा को नहीं जानते थे, उसने देखा, कहीं कुछ भी नहीं था, कोई रंग नहीं, कोई सौंदर्य नहीं ! समय, अन्धकार की कोख में दुबका हुआ ! सब अदृश्य, कोई शय / तत्व अनुभूति योग्य नहीं ! महान आत्मा ने निर्णय लिया कि वो इस रिक्तता को जीवन और प्रकाश से भर देगा ! अपने असीम सामर्थ्य से उसने सृजन की चिंगारी को प्रकटित किया और महाकाय कछुवे, तोल्बा को निर्देश दिया कि वो पानी से बाहर निकल कर धरती बन जाए ! इसके बाद महान आत्मा ने कछुवे की पीठ पर मैदान, घाटियां और पर्वत बनाए ! ...फिर उसने नीले आसमान पर सफ़ेद बादल बिखेर दिये ! वो बहुत खुश था और बुदबुदाया...सब तैयार है, अब मैं इस स्थान को जीवन के खुशनुमा पलों से भर दूंगा !

उसने सोचाबहुत सोचा कि, किस तरह के जीव उसे बनाना चाहिए ? वे कहां रहेंगे ? क्या करेंगे ? उनका जीवन लक्ष्य क्या होगा? वो एक त्रुटिहीन योजना बनाना चाहता था ! उसने गंभीर चिंतन किया, इतना कि, थक कर चूर हुआ और सो गया ! उसकी नींद उसके सृजन स्वप्नों से परिपूर्ण थी ! स्वप्न में उसने अनजानी और विलक्षण चीजें देखीं ! उसने देखे...रेंगते हुए, दो और चार पैरों से चलते हुए जीव, कुछ पंखों से उड़ान भरते...कुछ तैरते हुए भी ! धरती पर हर ओर पेड़ पौधे, रंग बिरंगे भांति भांति के ! चहुंदिश लघु कीट भिनभिन, भुनभुन, गुंजन करते, कुत्ते भौंकते हुए, पंछी गाते हुए...और मनुष्य एक दूसरे से बातें करते हुए !

सभी कुछ, उस स्थान से बाहरी जैसा आभासित, महान आत्मा ने सोचा यह एक बुरा सपना था, एक अपूर्ण / अशुद्ध विचार !  नींद से जागते ही उसने देखा कि एक ऊदबिलाव लकड़ी की टहनियों को दक्षता से एक आकार दे रहा है ! अपने परिवार के लिये एक घर, एक काष्ठ बांध और परिजनों के तैरने के लिये एक कुंड !  महान आत्मा ने समझ लिया कि उसके स्वप्न ने आकार ले लिया है ! पीढ़ी दर पीढ़ी इस कथा को कहते हुए, अबनाकी इंडियंस मानते हैं कि, हमें अपने स्वप्नों पर सवाल नहीं उठाने चाहिए, क्योंकि वे हमारा सृजन होते हैं !

इस आख्यान में पारलौकिक अधिसत्ता के हाथों धरती और जीव जगत की निर्मिति के संकेत दिये गये हैं ! कथा को बांचो तो मिलते हैं, कुछ विरोधाभासी कथन जैसे कि, पानी था और महाकाय कछुवा भी, साथ ही ये कि, कहीं कुछ भी नहीं था, ना रंग, ना सौंदर्य और ना ही अनुभूति योग्य कोई तत्व सह धरती भी ! बहरहाल पानी और कछुवे के इतर एक परम आत्म / सर्व शक्तिमान था और एक अन्धकार भी, अपनी कोख में समय को समेटे हुए ! कहन की दृष्टि से यह आख्यान अद्भुत है, एक ईश्वर जो सिरजनहार है / सृजन करता है और इस हेतु योजनाबद्ध गहन चिंतन मनन भी ! वो मनुष्यों की तरह से परिश्रम करता है, रचता है, मैदान, घाटियां, पर्वत वगैरह वगैरह !

सिरजनहारे को जीव जगत की निर्मिति के पूर्व त्रुटिहीन योजना बनाने के लिये, गहन विचारण करना पड़ता है और वो थक कर चूर हो जाता है, ऐन मनुष्यों की तरह से ! उसकी नींद, स्वप्नों से परिपूर्ण है, बिलकुल मनुष्यों की नींद के जैसी ! प्रतीत होता है कि, सारे का सारा ईश्वरीय सृजन, मनुष्यों के स्वयं के प्रकृति पर्यवेक्षण का हिस्सा है ! महाकाय कछुवे की पीठ पर स्थित धरती की कल्पना, कछुवे के कवच की सुदृढता के आलोक में, की गयी लगती है, या फिर संभव है कि अबनाकी लोग, महाकाय कछुवे को भी पारलौकिक शक्ति मान कर उसकी पीठ पर अधिकाधिक सपाट, किंचित उन्नतोदर और कुछ गर्त युक्त धरा के अस्तित्व पर  विश्वास करते  हों !

लोक कथाओं की विवेचना करते समय हम अक्सर, कथा स्रोतों को निरक्षर अथवा गंवार मान लेते हैं, किन्तु ये आख्यान मनुष्यों के सपनों को सृजन घोषित कर, कदाचित सपनों का आधार / आद्य बिंदु कह कर, हमारी इस मन:विकृति को क्षण में धूल धूसरित कर देता है !