सोमवार, 17 जुलाई 2017

उस पार वसंत

उस योद्धा की प्रेयसी की मृत्यु विवाह से ठीक पहले हो गई थी, हालांकि वह एक प्रतिष्ठित और भला इंसान था, किन्तु उसे मृत्यु ने ग़मगीन कर दिया ! वो समय पर खाने और सोने में असमर्थ था, यहां तक कि दोस्तों के साथ आखेट पर जाने के बजाय वो प्रेयसी की कब्र के पास शून्य में देखते हुए समय गुज़ारता ! एक दिन उसने बुजुर्गों से आत्मा के संसार के विषय में सुना और उस रास्ते के हर क्षण को गहनता से याद कर लिया ! उसे पता था कि आत्मा का संसार दक्षिण दिशा में है, सो उसने दक्षिण की ओर प्रस्थान कर दिया, यद्यपि दो सप्ताह तक चलते हुए भी उसे भूदृश्य में कोई परिवर्तन दिखाई नहीं दिया, जिससे पता चलता कि आत्मा का संसार निकट ही कहीं है !
चलते चलते वह जंगल से बाहर निकला और उसने देखा मैदान पर एक झोपड़ी बनी हुई है, जिसमें एक बुद्धिमान बूढा रहता था, उसने उस बूढ़े से दिशाओं के विषय में पूछा ! बूढा भली भांति जानता था कि यह वही / कौन योद्धा है ! उसने कहा कि उसकी वधु की आत्मा एक दिन पहले ही इस मार्ग से गुज़री है, योद्धा भी वहां जा सकता है, बशर्ते कि वो अपने शरीर को यहीं छोड़ कर अपनी आत्मा को उन डोंगियों तक ले जाए जो बड़ी झील के किनारे ठहरी हुई हैं, जहां से वे उसे आत्मा के संसार वाले टापू तक ले जायेंगी ! बूढ़े ने योद्धा से कहा कि वह तभी तक सुरक्षित रहेगा जब तक कि वह टापू तक पहुंचने से पहले अपनी वधु की आत्मा से बात नहीं करेगा !
बूढ़े ने मन्त्र पढ़े ! योद्धा ने अनुभव किया कि उसकी आत्मा उसके शरीर से बाहर आ गयी है और वो बड़ी झील के किनारे की डोंगी तक जा पहुंचा, उसने देखा कि उसकी वधु की आत्मा एक डोंगी पर बैठी हुई है, तो वो एक अलग डोंगी में बैठ कर डोंगी को झील में खेने लगा, उसने देखा कि उसकी वधु की आत्मा भी उसकी तरह से अपनी डोंगी का परिचालन करने लगी है ! वे दोनों एक ही डोंगी पर एक साथ इसलिए नहीं बैठे क्यों कि उन्हें मालूम था कि आत्मा के संसार तक एक आत्मा एक ही डोंगी में बैठ कर जा सकती है और जहां हरेक का व्यक्तिगत मूल्यांकन किया जाना होता है ! झील के मध्य तक पहुंचते पहुंचते एक तूफ़ान उठा और उन सभी आत्माओं की डोंगियों को उड़ा ले गया जो अपने जीवन काल में दुष्ट थे किन्तु योद्धा और उसकी प्रेयसी अच्छे लोग थे इसलिए वे दोनों अपनी डोंगियों सहित सुरक्षित बने रहे !
उसने देखा कि पानी उथला और पारदर्शी हो चला था ! वह द्वीप अत्यंत सुन्दर था वहां आस्मां साफ़ था और हर समय वसंत बिखरा रहता था ! ना ज्यादा गर्म और ना ही ज्यादा ठंडा ! उसने अपनी वधु का हाथ अपने हाथ में ले लिया बमुश्किल वह दस कदम ही साथ चले होंगे कि पीछे से एक मधुर आवाज़ आई, जो उसके जीवन स्वामी उसी बूढ़े की आवाज़ थी, जो कह रही थी कि योद्धा का समय अभी पूरा नहीं हुआ है, सो उसे वापस लौट आना चाहिए ! योद्धा सावधानी से वैसे ही वापस लौटा जैसे कि आगे बढ़ा था ! वहां से घर लौट कर वह एक महान मुखिया बना क्योंकि उसे मालूम था और वह आश्वस्त था कि कुछ समय वो बाद पुनः अपनी प्रेयसी से मिल / देख पायेगा !
अल्गोनक्यिन आदिवासियों की ये किंवदंती मूलतः जीवन और मृत्यु के दार्शनिक पक्ष को संबोधित है, कथा में नायक समर निपुण है किन्तु प्रेयसी की आसमयिक मृत्यु उसे जीवन के प्रति उदासीन बना देती है, प्रेयसी की कब्र के निकट बैठ कर  सतत शून्य / आकाश को निहारना उसकी मन:स्थिति का संकेत देती है, उसके जीवन में आई रिक्तता का विवरण देती है ! उसके लिये यह समय मृत्यु के बाद की परिस्थितियों के आकलन का समय है ! वो अनुभवी लोगों / वृद्धजनों से मृत्यु लोक के विवरण / दिशा ज्ञान आदि लेकर घर से निकल पड़ता है ! प्रवास के समय, गंतव्य स्थल के निर्धारण की अनिश्चितता इस आख्यान का महत्वपूर्ण कथन है !
जंगल के भटकाव की प्रतीकात्मकता के उपरान्त खुले सपाट मैदान में अनुभवी बूढ़े / ज्ञानी की उपस्थिति और मृत्यु लोक विषय विशेषज्ञ बतौर उसके साधारण से झोपड़े का संकेत / विवरण बेहद महत्वपूर्ण है ! जीवन समृद्धियों / विलासिताओं के उपरान्त ऐन मृत्यु के द्वार पर एक सहज सरल झोपड़ा, भारतीय परम्परा के उन ऋषियों / सिद्ध पुरुषों के वानप्रस्थी / सन्यस्त होने के जैसा, जो कि गार्हस्थ्य जीवन से मुक्ति यात्रा के दौरान इहलोक और परलोक की संधि रेखा में अभ्यास काल से गुज़र रहे हों ! अमेरिकन इन्डियन और भारतीय समाज के मध्य की भौगोलिक दूरियों के बावजूद मृत्यु के दर्शन का यह साम्य अद्भुत है, सम्पूर्ण विश्व में पसरी / व्यापी मानव जातियों के एक्य का प्रतीक !
बूढ़े ने मन्त्र पढ़े, दु:खी दिग्भ्रमित योद्धा की आत्मा को शरीर से मुक्त कर आत्माओं के संसार में भेजा जहां योद्धा की प्रेयसी अपनी मोक्ष यात्रा का अंतिम चरण पार करने वाली है ! एक आत्मा के लिये एक डोंगी जिसे स्वयं ही खेना है, तूफ़ान में बुरी आत्माओं के विनष्ट हो जाने, आसमान के बादल हीन होने और मृत्यु लोक के हमेशा वासंती बने रहने, मौसम साम्य तथा जल की पारदर्शिता जैसे कथन मृत्यु लोक की स्तुति के कथन हैं ! ये सारे इस आश्वस्ति के कथन हैं कि जीवन के बाद भी, भले लोगों के अनहद सुख और आह्लाद का एक संसार है ! अतः मृत्यु का शोक व्यर्थ है ! मृत्यु वास्तव में जीवन के उपरान्त का जीवन होने जैसी है, दैहिकता से आत्मिकता के सत्य की ओर ! 
कथा का नायक, जीवन और मृत्यु की इस दार्शनिक व्याख्या से संतुष्ट होकर, मृत्यु जनित प्रणय नैराश्य से मुक्त होकर, अपने समुदाय में अच्छे मुखिया की तरह से दायित्वों का निर्वहन करता है, क्योंकि उसे यह विश्वास हो गया है कि उसकी प्रेयसी और वो, अंततः मिलेंगे...हमेशा हमेशा के लिये, एक बेहतर और सुखकर दुनिया में !