बुधवार, 14 सितंबर 2016

माई री मैं कासे कहूँ पीर अपने जिया की...!

क्वाज़ल्टज़िन,अग्नि, ताप और दिन का देवता तथा ज्वालामुखियों का भी स्वामी है, वो मृत्यु के उपरांत जीवन, प्रकाश और अन्धकार, दुर्भिक्ष, बाढ़ तथा सर्दियों में ऊष्मा का भी देवता है ! उसे सभी देवताओं का अभिभावक माना जाता है, जो कि धरती के बीचो-बीच मौजूद कछुवे के रूप में भी मौजूद है, इसलिए एज़्टेक आदिवासियों के अर्वाचीन इतिहास में ज्वालामुखी परम पवित्र केन्द्र तथा देवताओं के प्रतीक हैं और उनकी जनश्रुतियों में विशिष्ट रूप से उल्लिखित हैं ! यानि कि उनके  लिए ज्वालामुखी बेहद महत्वपूर्ण हैं ! एज़्टेक जनश्रुतियों के अनुसार मेक्सिको शहर के निकट स्थित दोनों ज्वालामुखी, कभी जीवंत मनुष्य थे, एक युवती और एक युवा, गहन प्रेम निबद्ध ! कालांतर में वे ज्वालामुखी पर्वत के रूप में परिवर्तित हो गये और अब प्रेमी युगल के प्रणय प्रतीक के रूप में चीन्हे जाते हैं !

कहते हैं कि पोपोकेटपेट्ल एक बहादुर योद्धा और इज़्तासिहुआट्ल बेहद खूबसूरत राजकुमारी थी ! उन दोनों को पोपो और इज़्ता के संक्षिप्त नाम से जाना जाता था, राजकुमारी इज़्ता के पिता एक शक्तिशाली शासक थे ! उनका मानना था कि महावीर पोपो अगर राजकुमारी इज़्ता से विवाह करना चाहे तो उसे निकटवर्ती शक्तिशाली आदिवासी, शत्रु कबीले को युद्ध में पराजित करना और विजेता के तौर पर घर लौटना होगा ! युवा पोपो, राजकुमारी इज़्ता के इश्क में शिद्दत से गिरफ्तार था और उससे हर हाल में विवाह करना चाहता था, अतः उसने इज़्ता के पिता की चुनौती को स्वीकार किया और युद्ध में शत्रु कबीले को पराजित कर अपनी विजय के प्रमाण स्वरुप पराजित सेना प्रधान का कटा हुआ शीश लेकर अपने देश वापस लौटा !

युद्ध काल में इज़्ता, पोपो की सकुशल वापसी के लिए लंबे समय तक प्रतीक्षारत बनी रही ! उसके हृदय में प्रेमी से विरह की पीड़ा का समंदर हिलोरे मारता रहा ! अनुश्रुति ये है कि पोपो के प्रणय प्रतिद्वंदी ने इज़्ता से कहा कि समर निपुण पोपो युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गया है ! इस दु:खद समाचार को सुनकर इज़्ता का संसार जैसे कि स्तब्ध हो गया, वो प्रेमी के बिना, जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकती थी ! गहन दुःख में बेसुध होकर वो, भूमि पर गिर पड़ी, उसे प्राप्त समाचार पर शंका करने का अवसर ही नहीं मिला! दरअसल वो सोच भी नहीं सकती थी, कोई व्यक्ति, उससे इतना कठोर, क्रूरतम, असत्य कह सकता है ! परिणामतः टूटे हुए हृदय के साथ उसका निधन हो गया !

जब विजेता पोपो अपनी बस्ती वापस लौटा तो वो सबसे पहले अपनी भावी वधु इज़्ता को देखना चाहता था ! उसे बताया गया कि इज़्ता अब इस दुनिया में नहीं है ! पोपो को इस मर्मान्तक समाचार पर विश्वास ही नहीं हुआ और वह कई दिनों तक गहन दुःख और अविश्वास की स्थिति में लीन रहा, फिर उसने निर्णय लिया कि सूर्य के ठीक नीचे वो अपनी प्रेमिका का महान मकबरा बनाएगा ! ...अपने प्रेम को अपनी बांहों में समेटे, पोपो पहाड़ की चोटी पर जा पहुंचा, जहाँ उसने प्रियतमा के ओंठों को अंतिम बार चूमा और धुंआं उगलती चोटी पर प्रेयसी के निर्जीव शरीर के पास घुटनों के बल गिर पड़ा ! उसने इज़्ता की ओर देखा...गुज़रे पलों को याद किया और मुद्दतों तक उसी तरह बैठा रहा, जब तक कि बर्फ ने उन दोनों के शरीरों को ढँक नहीं लिया ! इस तरह से प्रेमी द्वय, ज्वालामुखी पर्वत के आकार वाले मकबरे में तब्दील हो गये ! जनश्रुति कहती है कि जब, जब पोपो, इज़्ता को याद करता है, उसके हृदय की धड़कने बढ़ जाती हैं और ज्वालामुखी से लावा फूट पड़ता है ! इसके बरक्स दूसरा ज्वालामुखी निरंतर सुषुप्त बना रहता है !

ये आख्यान दु:खांत है ! प्रेमी अपनी प्रेमिका के लिए अपना सर्वस्व दांव पर लगाकर शत्रु कबीले के मुखिया को ना केवल युद्ध में पराजित करता है, बल्कि उसका कटा हुआ शीश लेकर, प्रेयसी के पिता को अपने शौर्य का अकाट्य प्रमाण भी देना चाहता है ! गौर तलब है कि प्रेम कहानियों में रकीब / प्रतिद्वंदी की उपस्थिति, अनैसर्गिक नहीं हुआ करती, सो पोपो के प्रणय प्रतिस्पर्धी की मौजूदगी भी इस कथा को सहज बनाती है, प्रतिस्पर्धी को इज़्ता और पोपो के संबंधों में बाधायें खड़ी करना है ताकि वो स्वयं इज़्ता का सामीप्य हासिल कर सके ! अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उसने इज़्ता को पोपो की मृत्यु की भ्रामक सूचना दी, संभवतः उसे अनुमान ही नहीं था कि इज़्ता, पोपो के बिना जीवन ही त्याग देगी,  ज़ाहिर है कि रकीब नौजवान का दांव उल्टा पड़ा !  वो अपनी संभावित प्रेयसी इज़्ता की असामयिक मृत्यु का कारण बना !

सामान्यतः आदिवासी समुदाय प्रकृति के नैकट्य से अपनी कथायें गढ़ता है ! इसी अनुक्रम में विलक्षण कहन ये है कि दिवंगत प्रेमिका निष्क्रिय ज्वालामुखी जैसी है...और दिवंगत प्रेयसी को अपनी बांहों में उठाये फिरता योद्धा पोपो, अपनी पीर, अपने दुःख, सक्रिय ज्वालामुखी की शक्ल में, लावे की तरह से उत्सर्जित करता रहता है ! उसकी पीड़ा सतत है , शास्वत है, अमर है ! आख्यान में पीड़ा के उबलते लावे जैसा होने का कथन, अद्भुत है ! समय की सुदीर्घ अवधि में, हिम शीतित पर्वत शिखर और पर्वत के अंतस से रह रह कर फूटता लावा, जेता प्रेमी की चिरंतन, निरंतर, स्थायी पराजय का उदघोष करता रहता है ! सक्रिय तथा निष्क्रिय ज्वालामुखियों से, प्रेमी और प्रेमिका की सादृश्यता का बयान, प्रकृति के परिप्रेक्ष्य में, आदिम समुदाय के गहन अध्ययन और अवलोकन का परिणाम है !

कथा में प्रेम की जय के लिए शौर्य प्रदर्शन अथवा प्रेमिका से सामीप्य के लिए ईर्ष्या का प्रदर्शन, कोई नवीन घटनाक्रम नहीं है किन्तु पर्वत से निकलता धुंआं, अवसाद ग्रस्त प्रेमी के भ्रम और अनिश्चितता का प्रतीक है ! कथा में पर्वत के रूप में मकबरे की परिकल्पना नायाब है ! इस आख्यान के प्रेमी ने प्रेम खोया ! उसके दुःख अनन्त हो गये और उसकी यश कीर्ति भी ! जहाँ तक प्रणय प्रतिद्वंदी का प्रश्न है ! उसका हासिल ? प्रेमिका की असामयिक मृत्य का कलंक और सामाजिक अप्रतिष्ठा !

1 टिप्पणी:

  1. प्रेम एक आग बनकर बर्फ के नीचे दब गया ... स्तब्ध हुई, परंतु प्रेम का हश्र अक्सर यही हुआ है, बर्फ की पनाह से वह ज्वालामुखी बन धधकता रहा है

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