शनिवार, 1 नवंबर 2014

तितलियां 2

बसंत का समय था लेकिन तोलोविम युवती बेहद अकेलापन और बेचैनी महसूस कर रही थी, क्योंकि उसका पति, नदी के उदगम स्रोत की ओर सलमन मछलियों का शिकार करने गया था ! वह जानती थी कि मत्स्याखेट से लौटकर भी उसका पति अन्य पुरुषों की टोली में शामिल होकर हिरणों के शिकार के लिए निकल जाएगा !  उसे यह भी पता था कि उसके रजस्वला होने के कारण उसका पति उससे दूर रहकर, उस सामाजिक निषेध का पालन करेगा, जिसके तहत पुरुष गण शिकार से पहले अपनी रजस्वला पत्नियों से दूर रहकर स्वयं को शुद्ध / पवित्र बनाये रखते हैं, चूंकि उसका पति आखेट  अभियान में हिरण का रूप धारण कर के सहयोग करने वाला था, सो उसके लिए आगामी किसी संकट से बचने के लिए अपनी पत्नी की अशुचिता से दूर रहना और भी अधिक आवश्यक था !
यही समय था जबकि अच्छी पत्नियां घर के अंदर रहकर सामाजिक वर्जनाओं को टूटने से बचाती हैं ! हालांकि तोलोविम युवती भी एक अच्छी पत्नी थी किन्तु...उसे यह जानकारी भी थी कि बसंत ऋतु में पहाड़ पर सुंदर फूल खिलते हैं और वो तो वैसे भी अन्य तोलोविम स्त्रियों की गप-बाजी और आवाजों से उकताई हुई थी, सो उसने खामोशी से एक टोकरी अपने सिर पर रखी और अपने शिशु का पालना अपने कंधों के सहारे अपनी  पीठ पर टांग कर, वो घर से बाहर निकल पड़ी और नदी तट की पगडंडी पर तेज   क़दमों से चलती हुई जल्द ही पहाड़ पर जा पहुँची ! सूर्य आसमान में उसके ठीक ऊपर चमक रहा था ! इसलिए उसने, अपने सिर से टोकरी उतार कर एक तरफ रख दी और अपने शिशु के पालने को एक वृक्ष की शाख पर छायादार जगह पर लटका दिया ! वो थोड़ी देर सुस्ताने के ख्याल से जमीन पर बैठ गयी !
तभी एक तितली उसके शिशु की बांहों को छूते हुए, शिशु की मुस्कराहट का कारण बन गयी, इसके बाद तितली ने उस युवती के गालों को छुवा तो वो खुद भी खिलखिला उठी, तितली जैसे ही पेड़ की शाख पर बैठी, युवती ने झपट कर उसे अपनी टोकरी में कैद करना चाहा पर..तितली आगे उड़ चली, युवती ने फिर से कोशिश की लेकिन तितली और भी दूर उड़ गयी ! ये एक बड़ी तितली थी, जिसके पंखों के रंग संयोजन अद्भुत थे और जो देखने पर नायाब / अलभ्य किस्म मालूम होती थी, सो युवती उसे हर हाल में पकड़ लेना चाहती थी ! युवती ने एक बार पलट कर अपने शिशु की ओर देखा जोकि आराम से सोया हुआ था, इसलिए युवती ने तितली को पकडने की अपनी कोशिशे जारी रखीं ! तितली लगातार अनियमित / यादृच्छिक  सी उड़ान भर रही थी तो उसे पकड़ना काफी मुश्किल हो चला था !
युवती ने सोचा थोड़ी देर और कोशिश कर लूं फिर शिशु के पास लौट आऊंगी पर तितली इधर उधर उड़ते हुए उसको शिशु से काफी दूर ले आई ! भागते, दौड़ते, झाड़ियों में उलझते हुए, उसके कपड़े फटने लगे थे और केश विन्यास अस्तव्यस्त हो चला था, टहनियों में फंस कर उसकी माला के मोती ज़मीन पर बिखर गए पर तितली उसके हाथ नहीं आई ! वो थककर चूर हो गयी थी और ज़मीन पर गिर पड़ी, इधर आकाश का सूरज धरती की ओट में दुबकने की फिराक में था ! युवती के गिरते ही, तितली वापस मुड़ी और उसके पास ही बैठ गयी ! युवती ने डूबते सूरज की मद्धिम रौशनी में देखा कि तितली एक आकर्षक पुरुष में तब्दील हो गयी है, जिसने अपनी नग्नता छुपाने के लिए कमर में तितलियों की एक पोशाक पहनी हुई थी और सिर के लंबे बालों को काले / लाल रंग की पट्टियों से बांधा हुआ था ! 
उस पूरी रात वे दोनों साथ रहे ! अगली सुबह उस पुरुष ने युवती से पूछा कि, क्या तुम मेरे साथ जाना चाहोगी ? युवती ने कहा, हां ज़रूर ! पुरुष ने कहा, ठीक है ! आज दिन भर चलकर हम दोनों, मेरे देश पहुँच जायेंगे, जहां तुम मेरी पत्नी बनकर जीवन गुज़ार सकोगी, पर ध्यान रहे, तितलियों की घाटी का ये रास्ता बेहद खतरनाक है, वे तुम्हें, मुझसे दूर ले जाने की कोशिश करेंगी, इसलिए तुम मेरी पीठ के पास  चिपक कर चलना, जैसा मैं कहूँ वैसा ही करना, मेरे क़दमों के निशान पर अपने कदम रखना ! मैं तुम्हें घाटी से बाहर सुरक्षित निकाल लूँगा, अगर तुम मेरा कहा मानती रही तो...युवती ने कहा, ऐसा ही होगा ! पुरुष ने कहा, अब तुम दोनों हाथों से मेरी करधन को कस कर पकड़ लो, इसे एक क्षण के लिए भी छोड़ना मत, वर्ना मेरी शक्तिया क्षीण हो जायेंगी और मैं तुम्हें घाटी से पार नहीं ले जा पाऊंगा !  
वे दोनों घाटी में आगे बढ़ने लगे ! युवती ने देखा कि घाटी तितलियों से भर गयी थी,  ऊपर मंडलाती तितलियाँ, कोई उसके मुख, कोई आँखों, कोई बाल, कोई हाथों को छूते और कोई पैर खींचने की कोशिश करते हुए ! उसके कद से बड़ी और चमकदार तितलियाँ ! तितलियों की छुवन से उत्तेजित युवती करधन को कसकर पकड़ कर रखने की बात भूल गयी!उसने एक हाथ से दूसरी तितली को पकड़ना चाहा पर वो उड़ गयी, वहाँ अनेकों तितलियाँ उसे लालायित कर रही थीं! वो उन सभी को पकड़ लेना चाहती थी, करधन अब उसके दोनों हाथों से छूट चुकी थी ! मार्गदर्शक तितली उसकी निगाहों से दूर जा चुकी थी और वो इधर उधर भाग रही थी, सभी तितलियों को पकड़ने के लिए...लेकिन उसके हाथ में एक भी तितली नहीं आई...वो पस्त होकर धरती पर गिर पड़ी और...उसकी मृत्यु हो गई !
आख्यान की नायिका एक कम उम्र युवती है जोकि रजस्वला होने की बेचैनियों / तनाव के दौरान अपने पति के अ-साहचर्य / अनुपस्थिति की अनुभूति के समानान्तर घर से बाहर, बसंत ऋतु की मादकता को जीना चाहती है ! उसका समाज, उसे एक अच्छी पत्नी के नाम से घर के अंदर सीमित रखना चाहता है, जिसके लिए प्रचलित वर्जना यह है कि आखेटक पति, रजस्वला स्त्रियों, यानि कि अशुचिता से दूर रहें तो ही आगामी संकट से बच सकेंगे ! वो युवती जानती है कि उसका पति, मत्स्याखेट के बाद भी उसके निकट नहीं आएगा, क्योंकि सामाजिक निषेधों के अनुपालन में, वह जानबूझकर उससे दूर है ! यह नायिका अन्य घरेलू स्त्रियों की तरह से गपशप में जीवन अकारथ करने की इच्छुक नहीं है, सो पहाड़ के फूलों को चुनने की लालसा लिए, अपने नवजात शिशु के साथ घर से बाहर निकल पड़ती है !
उसके बहिरागमन का स्पष्ट आशय यह है कि वो, स्त्रियों को, एक खास समय में पति से दूर रहने तथा घर के अंदर सीमित रखने वाली सामाजिक वर्जना को तोड़ने के लिए संकल्पित है, उसे अपनी अभिलाषाओं पर कोई बंधन स्वीकार्य नहीं है ! घर से बाहर निकल कर उसके चलने की गति के बढ़ जाने का उल्लेख कदाचित इसलिए किया गया है कि वह समय रहते बासंती फूलों को चुनने की अपनी योजना पर अमल करके घर वापस लौटना चाहती हो या फिर खुलेपन में बसंत ऋतु के आनंद की अवधि में विस्तार चाहती हो ! उसे अपने शिशु की सुरक्षा का भान है, सो वह उसके लिए पेड़ की शाख और छायादार जगह का चयन करती है, यहाँ तक कि तितली का पीछा करने से पूर्व वह पलट कर अपने शिशु को देखर आश्वस्त हो जाना चाहती है कि वह सोया हुआ है और उसकी वापसी तक सुरक्षित रहेगा !
जिस समय उसे पति के साहचर्य की आवश्यकता है, वो उससे सायास दूर है, एक सामाजिक वर्जना के अनुपालन के नाम से और किसी संभावित काल्पनिक संकट पर विश्वास करते हुए, अपनी पत्नी के कठिन समय में ! कथा में युवती को एक अच्छी पत्नी कहा गया है किन्तु वह स्वयं इस स्थिति से संतुष्ट नहीं है, उसे अपने रजस्वला होने के तनाव को बसंत ऋतु के आनंद से कम करना है ! वह अपने पति की अनुपस्थिति के नाम पर अपनी अभिलाषा / अपने आनंद को घर की चाहरदीवारी के अंदर स्वाहा करने की इच्छुक नहीं है ! पहाड़ की ऊंचाई पर पहुँच कर वह तनिक विश्राम करना चाहती है...पर एक सुंदर अलभ्य / दुर्लभ तितली उसके शिशु और उसके आनंद का कारण बन जाती है, वह तितली के प्रति आकर्षित होकर उसे पकड़ना चाहती है, किन्तु तितली की अनियमित उड़ान उसे नाकाम कर देती है ! 
सियरानेवादा के आदिवासियों का यह आख्यान, तितली के पीछे भागती हुई युवती के माध्यम से सामाजिक वर्जना को तोड़ने के दुष्परिणामों की ओर संकेत करता है, संभवतः पहली तितली और फिर असंख्य तितलियों की मौजूदगी का उल्लेख, असीमित लालसाओं के लिए प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है, जिनके प्रति आकर्षित होकर मनुष्य, ना केवल अपनी संस्थिति बल्कि अपने कर्तव्य और अपने सामर्थ्य की औकात भी भूल जाता है ! वो युवती अपने पति के साहचर्य से वंचित है, सो पुरुष प्रेमी के रूप में एक तितली / एक लालसा का पीछा करती है ! तप्त सूर्य, ऊंचे पहाड़, गहरी असमतल घाटी, बीहड़ जंगल, घनी झाडियों को, लालसा की पूर्ति का यत्न कर रही, उस युवती के, प्रतिकूल हालातों के तौर पर स्वीकार किया जा सकता है ! हालाँकि उसकी गहन तीव्र लालसा ने उसका विवेक हर लिया है !
वह अपने शिशु से दूर जा चुकी है, उसके कपड़े फट चुके हैं, बाल बिखर गए हैं ,गले की माला टूट कर बिखर गयी है, यहां तक कि वह खुद भी थक कर जमीन पर गिर चुकी है, फिर भी एक मारीचिका में जी रही है कि उसकी लालसा / उसका प्रेमी / पुरुष तितली, उसके साथ है ! वह उसके पीछे, उसके भरोसे, उसके साथ, उसके देश जाना चाहती है, उसे लगता है कि उसकी कल्पना की पुरुष तितली, उसका लक्ष्य, उसका गंतव्य है, वह अपने शिशु को भूल चुकी है और अपने गाँव वापस जाने के बजाये, तितली के देश जाना चाहती है ! उसके साथ अपना जीवन व्यतीत करना चाहती है ! प्रतीत होता है कि वह युवती अपने घर में रहते हुए वर्जनाओं और सामाजिक हालातों से अत्यधिक कुंठित हो चुकी थी और अपनी लालसा की प्राप्ति के लिए घर का त्याग भी कर सकती थी !

तितली के पीछे चलते / भागते हुए उसे एक आश्वस्ति है कि वह अपने लक्ष्य हासिल कर लेगी ! वह नितांत काल्पनिकता में तितली की करधन को पकड़ कर अपने आनंद / कामनाओं के देश जाना चाहती है ! यह कथा प्रतीकात्मक रूप से एक सन्देश देना चाहती है कि सामाजिक वर्जनाएं आपको बंधन में भले ही रखती हों, अपने समूह के सदस्यों के लक्ष्यों का सौ प्रतिशत प्रतिफल ना भी देती हों...पर सदस्यों का जीवन सुरक्षित रहता है, किंचित त्याग और किंचित लालसापूर्ति के संतुलन के साथ ! यदि कोई एक सदस्य इन बंधनों को तोड़कर, कल्पनाओं के जीवन में एकाकी प्रवेश करता है, तो वह अपनी असीमित लालसाओं के चक्रव्यूह में फंस कर रह जाता है, जैसा कि उस युवती के साथ हुआ कि वह, अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सकी, शायद...आधी छोड़ पूरी को धावै ना आधी मिलै ना पूरी पावै के जैसा...