शनिवार, 25 अक्तूबर 2014

मीन-वोंग : प्रणय अनुश्रुति 4

मुद्दतों पहले की बात है जब एक महा-सामंत और उसकी पुत्री, मीन-वोंग लाल नदी के किनारे बने अपने महल में रहते थे ! अपनी उम्र की ज्यादातर लड़कियों की तरह से मीन-वोंग पुरुषों की चाहत भरी निगाहों से दूर, अपने कमरे में ही रहती ! वो अपना ज्यादातर वक़्त पढ़ते, बुनाई करते, अपनी सेविका से बातें करते और महल के ऊंचे बुर्ज की चंद्राकार खिड़की से नदी या बागीचे को निहारते हुए गुज़ारती ! ऐसे ही एक दिन उसने नदी में तैरती एक नाव से बाहर हवा में तिरते सुंदर और सुमधुर गीत को सुना, उसने अपनी सेविका से कहा, तुमने सुना ?  कितना अद्भुत गीत है ये !
मेरा प्रेम खिलती हुई बयार की तरह // मेरा प्रेम लहरों पे पसरी चन्द्र किरणों सा !
रोमांचित मीन-वोंग बुदबुदाई, निश्चित ही वो युवा और हसीन होगा, शायद उसे मालूम है कि मैं यहां गवाक्ष पर बैठी हूं और वो मेरे ही लिए गा रहा है ! सेविका ने कहा, कदाचित वो किसी सामंत का पुत्र है, जिसे नियति ने आपसे विवाह के लिए तय किया है ? हां, मुमकिन है ऐसा ही हो, मीन-वोंग ने कहा, उसके चेहरे पे लालिमा छा गयी और उसके हृदय में एक सिहरन सी हुई, उसने उस नाविक को देखना चाहा पर...नाव आहिस्ता आहिस्ता दूर जा चुकी थी ! मीन-वोंग को अगले दिन उस नाविक का इंतज़ार था...पर वो नहीं आया और उसके अगले अनेक दिनों तक भी नहीं...
मीन-वोंग ने दुखी होकर सेविका से पूछा, वो क्यों नहीं आ रहा है ? जैसे जैसे दिन गुज़रते गए मीन-वोंग कृशकाय और पीली पड़ती जा रही थी, आखिरकार वो बीमार होकर शैया की शरण में थी ! उसके सामंत पिता ने उससे पूछा क्या बात है ? उसने कहा कुछ भी नहीं पिता जी ! पिता ने चिकित्सक बुलवाया पर चिकित्सक ने कहा, मीन-वोंग बीमार नहीं है, ऐसे में भला मैं उसका क्या इलाज कर सकता हूं ? दिन, हफ़्तों में बदलने लगे किन्तु मीन-वोंग की हालत में कोई सुधार ना देख कर सेविका ने सामंत से घटना का ब्यौरा बता दिया !
सेविका ने कहा कि, मीन-वोंग उस गायक / सामंत पुत्र के प्रेम में लीन है और अब उसके ही लिए गाती है ! मीन-वोंग के पिता ने हर दिशा में खोजी दूत भेजे पर उन्हें कोई सामंत पुत्र नहीं मिला, बल्कि निकटवर्ती गांव का एक साधारण मछुवारा उस गीत को गाने वाला निकला, सो सामंत ने फ़ौरन उसे महल में बुलवा लिया किन्तु उसे देखकर बहुत निराश हुआ, वो साधारण शक्ल-ओ-सूरत वाला निर्धन मछुवारा था ! उसका नाम ट्रू-ओंग-ची था !  महल के सुसज्जित कक्ष को देखकर हतप्रभ मछुवारा समझ भी नहीं पा रहा था कि उसे महल में क्यों लाया गया है ?
ट्रू-ओंग-ची को मीन-वोंग के कमरे के सामने गाने का निर्देश दिया गया ! कांपते हुए ट्रू-ओंग-ची ने गाना शुरू किया तो गीत की ध्वनियों को इतना निकट से सुनकर मीन-वोंग हैरान थी कि ऐन उसके कमरे के सामने उसके सपनों का प्रियतम कैसे पहुंचा ? उसने सेविका से कहा, मुझे जल्दी जल्दी तैयार कर दो, सलज्ज प्रेमिका की तरह, उसने द्वार खोले...फिर स्तब्ध सी बुदबुदाई...अरे ये तो सामंत पुत्र नहीं लगता, यह तो एक साधारण सा मछुवारा है, भला ये किस तरह से मेरा नियति पुरुष हो सकता है ? उसने मछुवारे के मुंह के सामने ही द्वार बंद कर लिए !
इधर मछुवारा ट्रू-ओंग-ची उस अनिन्द्य सुन्दरी को देखते ही मोहासक्त हो गया था, किन्तु मीन-वोंग के शब्दों और व्यवहार ने उसका हृदय तोड़ दिया ! वह अपने गांव वापस पहुँचते ही बीमार पड़ गया...यहां तक कि उसकी भी मृत्यु हो गयी ! उसके गांव के लोगों ने देखा कि बिस्तर पर पड़ी उसकी मृत देह के सीने में एक पारदर्शी चमकदार क्रिस्टल रखा हुआ था ! गांव की बुद्धिमान बुज़ुर्ग स्त्री ने कहा, ये तो ट्रू-ओंग-ची की आत्मा है, निश्छल, पवित्र और पारदर्शी, जोकि सामंत की पुत्री के उपहास के आघात से पत्थर जैसी सख्त हो गयी है !
गांव वालों ने ट्रू-ओंग-ची की अंत्येष्टि के बाद उस क्रिस्टल को नाव में रखकर नदी में छोड़ दिया ताकि उसकी आत्मा स्वतंत्र विचरण कर सके, लेकिन नाव नदी में बहती हुई सामंत के महल वाले घाट  पर आ लगी, सामंत के सेवकों ने, खाली पड़ी नाव में मौजूद उस क्रिस्टल को सामंत तक पहुंचाया तो सामंत ने उस सुंदर क्रिस्टल के वास्तविक मालिक की बहुतेरी खोज परख की...पर उसे कुछ भी नहीं पता चला ! उसने सोचा, मेरी पुत्री के लिए ये एक अच्छा उपहार होगा सो उसने क्रिस्टल को एक कप की शक्ल में तरशवाया और मीन-वोंग को भेंट कर दिया !
मीन-वोंग क्रिस्टल का कप पाकर बहुत खुश हुई, वो उसी क्षण उसमें चाय पीना चाहती थी, उसने अपनी सेविका से कहा, मुझे इसी वक्त इस कप में चाय पीना है !  सेविका ने ऐसा ही किया ! उस रात पूर्ण चन्द्र की किरणें नदी में बिखरी हुई थीं ! मीन-वोंग चाय पीना ही चाहती थी कि, उस कप में ट्रू-ओंग-ची की छवि और प्रेमिल नयन देख कर हैरान रह गई, उसे वो क्षण याद आ गया, जब कि उसने ट्रू-ओंग-ची के मुंह पर द्वार बंद किया था ! उसे अपना उपहास पूर्ण कथन भी याद आया ! बहरहाल इस वक़्त कमरे में एक गीत गूंज रहा था ... 
मीन-वोंग खिलती हुई बयार की तरह // मीन-वोंग लहरों पे पसरी चन्द्र किरणों सी !
ओह ये मैंने क्या किया ? मैं इतनी निर्मम कैसे हुई ? मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था, मेरी मंशा तुम्हें आहत करने की नहीं थी, मुझे दुःख है, मुझे क्षमा कर दो ! उसकी आंखों से पछतावे का एक आंसू, उस कप पर टपक गया और वह कप पिघलने लगा ! कप के पिघलते ही ट्रू-ओंग-ची की आत्मा मुक्त हो गयी थी और फिर मीन-वोंग ने आखिरी बार नदी की लहरों पर पसरा, बिखरा, तिरता वो गीत सुना...
मीन-वोंग खिलती हुई बयार की तरह // मीन-वोंग लहरों पे पसरी चन्द्र किरणों सी !   
वो बुदबुदाई अलविदा...अलविदा !  
इस दक्षिण पूर्वी एशियाई लोक आख्यान को पढते हुए कोई आश्चर्य नहीं होता कि महल की चौहद्दी में सीमित,एक सामंत पुत्री के बतौर लालन पालन ने उसे सेवक सेविकाओं और कुलीन सामंतों के मध्य भेदभाव करना सिखाया, उसे हमेशा जन-साधारण / ग्राम्य जनों से दूर रखा गया था अतः वह सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि उसका प्रियतम / उसका भावी पति कोई साधारण मछुवारा भी हो सकता है ! घटना के प्रथम दिवस कथित रूप से उसके लिए गाये जा रहे गीत के माधुर्य में भी उसे किसी सामंत पुत्र की ही अनुभूति होती है ! गौर तलब है कि उसकी सेविका, उसकी जी हुजूरी / दिलजोई के लिए तैनात थी, सो वो भी उसके भ्रम को यथावत स्वीकार करती है और नाव में मौजूद किसी अन्य संभावना के प्रति भी मीन-वोंग को आगाह नहीं करती !
पिता के रूप में सामंत अपने सामने एक साधारण मछुवारे की उपस्थिति से हैरान होकर भी अपनी पुत्री के स्वास्थ्य के लिए वर्ग भेद से समझौते का संकेत देता है, किन्तु उसकी सपनीली पुत्री, अपने सपने के टूट जाने के समय सहज व्यवहार और शिष्टाचार का पालन नहीं करती, उसके पालन पोषण के हिसाब से उसकी नकारात्मक प्रतिक्रिया औचित्य पूर्ण हो सकती है, किन्तु मछुवारे की साधारण शक्ल-ओ-सूरत को देखकर उपजी हताशा में वह ना केवल द्वार बंद कर लेती है बल्कि मछुवारे का उपहास भी करती है जोकि सामान्य शिष्टाचार के सर्वथा विरुद्ध है ! उसे क्षण भर को भी यह अनुभूति नहीं होती कि, उसके सपने / उसके भ्रम की टूटन का कारण वह मछुवारा नहीं है, सो उस मछुवारे को सहज नकारने और उपहास करते हुए नकारने में कोई त्रासद / भयावह / दुखदाई, अंतर भी हो सकता है !
घटनाक्रम से मछुवारे ट्रू-ओंग-ची की सतत अनभिज्ञता और सौंदर्य के प्रति अनायास / आकस्मिक तौर पर अनुरक्त हो जाने के मौके पर ही उपहास और अपमान का अहसास, उसे भीतर से तोड़ देता है ! इस कथा में मछुवारे की निश्छलता और उसके हृदय की निष्कलुषता के प्रतीक बतौर क्रिस्टल की पारदर्शिता का कथन अद्भुत है, गांव की अनुभवी बूढ़ी महिला ट्रू-ओंग-ची की मृत्यु को प्रेम में मिले आघात से जोड़ते हुए, उसके हृदय के क्रिस्टल की तरह से सख्त हो जाने का प्रतीकात्मक कथन करते हुए, साधारण किन्तु निर्दोष व्यक्ति के प्रति कुलीन व्यक्ति के निर्मम व्यवहार का आशय प्रस्तुत करती है ! इस आख्यान को बांचते हुए यह जानना / समझना महत्वपूर्ण है कि गांव के लोग नदी में ही मछुवारे की आत्मा की मुक्ति देखते है / कामना करते हैं ! क्रिस्टल के मूल मालिक की खोज करते समय सामंत पिता का एक और उजला पक्ष सामने आता है कि वह हर प्राप्त वस्तु पर अपना स्वभाविक अधिकार नहीं समझता !
सामंत अपनी पुत्री को उस क्रिस्टल के तराशे हुए कप की भेंट देकर, उसकी प्रसन्नता की कामना करता है पर मीन-वोंग कदाचित अपने अपराध बोध से मुक्त होने के लिए, उस पूर्णचन्द्र की रात्रि, क्रिस्टल कप की शुभता, चाय की ऊष्मा और नदी की चमकती लहरों के समेकित रोमानी माहौल में उस मछुवारे के प्रति अपने निर्मम व्यवहार को अपनी आंखों के रास्ते बाहर कर देती है, उसके पालन पोषण के इतर उसका पछतावा अंततः उसके एक भावुक स्त्री होने का संकेत देता है, जिसे किसी विशेष परिस्थिति में किये गए अपने अनुचित व्यवहार का दुःख है ! आशय यह कि स्त्रियां अपने पालन पोषण की लीक से हटकर भी सुहृदया हो सकती हैं, अपनी भूल का दंड स्वयं को देने / आत्मालोचन के सामर्थ्य / सद्गुण के साथ...