शनिवार, 19 अप्रैल 2014

चाह बर्बाद करेगी...!

ये बात उन दिनों की है, जब कि राजा इयो कालाबार के शासक थे, तब मत्स्य कुमार धरती पर रहता था ! वो तेंदुए का घनिष्ठ मित्र था और उसके झाड़ीनुमा घर में अक्सर, उससे मिलने जाया करता, जहां तेंदुआ उसका यथोचित सत्कार करता !  तेंदुए की पत्नी बहुत सुंदर थी, सो मत्स्य कुमार को उससे प्रेम हो गया, इसीलिये जब भी तेंदुआ घर से बाहर जाता, मत्स्य कुमार अक्सर उसके घर पहुंच जाया करता और तेंदुए की अनुपस्थिति में उसकी पत्नी से  प्रेम करता, लेकिन एक बूढ़ी स्त्री ने तेंदुए को इस घटना क्रम से अवगत करा दिया जो कि उसकी गैरहाजिरी में घट रहा था !

पहले पहल तो तेंदुए को विश्वास ही नहीं हुआ कि उसका पुराना दोस्त मत्स्य कुमार ऐसा निकृष्ट व्यवहार कर सकता है ! एक रात वो अचानक अपने घर वापस लौट आया तो उसने देखा कि मत्स्य कुमार और उसकी पत्नी प्रेम लीन थे ! यह देखकर वो बहुत क्रोधित हुआ ! वो मत्स्य कुमार को जान से मारना चाहता था पर उसे ख्याल आया कि मत्स्य कुमार उसका बहुत पुराना दोस्त है, तो उसे स्वयं दंड देने के बजाये राजा इयो से इसकी शिकायत करना चाहिए और दंड की मांग करना चाहिए ! उसने ऐसा ही किया ! राजा इयो ने शिकायत पर कार्यवाही के लिये एक बड़ी पंचायत का आयोजन किया जहां तेंदुए ने अपना पक्ष रखा !

मत्स्य कुमार के पास अपनी सफाई में कहने के लिये कुछ भी नहीं था ! राजा इयो ने कहा यह बहुत बुरी बात है मत्स्य कुमार, तेंदुए का दोस्त था...और तेंदुआ उस पर विश्वास करता था ! लेकिन मत्स्य कुमार ने उसकी अनुपस्थिति का नाजायज फायदा उठाया, उससे विश्वासघात किया ! इसके बाद राजा ने निर्णय किया कि अबके बाद से मत्स्य कुमार को धरती के बजाये जल में रहना होगा ! वो जब भी धरती में आने की कोशिश करेगा उसकी मृत्यु हो जायेगी !  उसने यह भी कहा कि जब भी कोई मनुष्य या पशु मत्स्य कुमार को पकड़ पायें, उसे मार कर खा लें ! यही उसका दंड है , मित्र की पत्नी के साथ अनुचित व्यवहार करने का !

इस नाईजीरियाई लोक कथा में अन्तर्निहित संकेतों को चीन्हने की कोशिश करें तो किसी एक समय में भिन्न जातियों के सहअस्तित्व और मित्रवत रहवास की पुष्टि होती है, सामाजिकता के हिसाब से तेंदुआ किसी आक्रामक, आखेटक अथवा शौर्यजीवी जाति का प्रतिनिधि है जबकि उसका मित्र मत्स्य कुमार नि:संदेह किसी अन्य जाति का व्यक्ति है ! तेंदुए के घर का झाड़ीनुमा होना यह संकेत देता है कि वह आर्थिक रूप से संपन्न नहीं था पर उसमें अपने विजातीय मित्र के लिये सत्कार की भावना की कोई कमी नहीं थी ! कहने का आशय यह है कि तब के समय में मित्रता पर सजातीयता की बंदिशे नहीं हुआ करती होंगी !   

कथा में उल्लिखित बूढ़ी स्त्री, प्रचलित परम्पराओं की प्रतीक है, जोकि एक विवाहित स्त्री और उसके पति के मित्र के मध्य पनपते प्रेम के विरुद्ध आ खड़ी होती है, उसे परम्पराओं के विरुद्ध घट रहे , एक नवाचार को रोकना था, किसी विवाहिता के फिर से प्रेम में पड़ जाने का निषेध करना था ! मत्स्य कुमार अपने मित्र की पत्नी से प्रेम करता है पर...यह प्रेम एक तरफ़ा प्रतीत नहीं होता, अतः सामाजिकता / नैतिकता की दृष्टि से इसे भले ही अनुचित या निषिद्ध माना जाये, किन्तु समवयस्क स्त्री पुरुष के मध्य कभी भी पनप जाने वाले व्यवहार के रूप में आश्चर्यजनक भी नहीं कहा जा सकता !

ये कथा एक सुव्यवस्थित न्याय प्रणाली का कथन करती है जो मित्र के विश्वासघाती को अपना पक्ष रखने का अवसर देती है, यह एक किस्म की सार्वजानिक सुनवाई है, जहां राजा इयो, पर्याप्त पारदर्शिता पूर्ण प्रक्रिया अपनाता है !  प्रकरण में तेंदुए की पत्नी के व्यवहार पर विचारण का कोई उल्लेख नहीं मिलता, जिससे यह प्रतीत होता है कि उन दिनों विवाहेत्तर संबंधों के लिये पुरुषों को ही मूलतः उत्तरदाई माना जाता होगा ! मत्स्य कुमार को दंड स्वरुप, जन्म भूमि से बेदखल किया गया, उसकी मृत्यु के लिये सर्व समाज को अधिकृत किया गया, उसके लिये नये जलीय पर्यावास में रहने का आदेश नि:संदेह सामाजिक बहिष्कार का प्रतीक है !

मत्स्य कुमार अकेला तो उस धरती का वासी नहीं रहा होगा, उसके परिजन भी उस भूभाग के निवासी रहे होंगे अतः यह कल्पना की जा सकती है कि उसके, परम्परा / सामाजिक परिपाटी विरोधी, एक कृत्य / एक अपराध का दंड, उसके परिजनों को भी भुगतना पड़ा होगा ! आज की न्याय प्रणाली में भी, दंडित किसी अपराधी के परिजन, कारागार में निरुद्ध भले ही ना किये जायें, उन्हें अपराधी के साथ मृत्यु दंड भले ही ना दिया जाये पर उसके, अपराध का अप्रत्यक्ष भुगतान वे करते ही हैं ! इसके अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि कथा में उल्लिखित तेंदुआ विजातीय दिख रही न्याय प्रणाली पर भी पूर्ण विश्वास करता है !

सलिल वर्मा कहते हैं कि बूढ़ी स्त्री तेंदुए से सीधा शिकायत ना करते हुए, उस स्त्री को भी तो समझा सकती थी, वो अनुभवी थी उसे सामाजिक मर्यादाओं की चिन्ता होना स्वाभाविक है किन्तु उस स्त्री के लिये यह अगम्य गमन की तरह था तो उसे मर्यादाओं का आभास दिलाना उचित होता ! तेंदुए का अपने मित्र पर क्रोधित होना और पत्नी पर तनिक भी क्रोध ना करना अजीब लगता है ! उसमें मित्र के प्राण लेने की इच्छा जागृत हुई, किन्तु पत्नी को लेकर ऐसा कुछ भी नहीं अर्थात उसके क्रोध का मूल कारण मित्र का विश्वासघात है ! अगर उसकी पत्नी किसी अन्य पुरुष के साथ संलग्न होती तो वो क्या करता ?

उसके मन में दोनों को जान से मारने की बात क्यों नहीं आई ? जबकि वो दोनों इस अपराध में समान रूप से भागीदार थे ! विवाहेत्तर संबंधों के लिये केवल पुरुष को दोषी माने जाने की संभावना कम ही लगती है बल्कि यह मुकदमा मूलतः मित्र के विश्वासघात का रहा होगा ! इस बात की पुष्टि उस बूढ़ी स्त्री के व्यवहार से होती है , जो तेंदुए की पत्नी को समझाने की अपेक्षा, घटनाक्रम तेंदुए के ही संज्ञान में लाती है ! घटनाक्रम में राजा का न्याय तथा समाज का बहिष्कार समझ में आता है, किन्तु मारे जाने की अंतहीन सजा कि जो भी, उसे, जब भी पाये, उसका भक्षण कर जाये, औचित्य हीन है ! कब समाप्त होगी ये सजा ?  

(आलेख का शीर्षक मशहूर ब्लागर सलिल वर्मा के सौजन्य से)