रविवार, 6 अप्रैल 2014

दहकां...!

मुद्दतों पहले की बात है जबकि इंसानों को पौधे लगाने और खेती करने के तौर तरीकों का कोई इल्म नहीं था ! उन दिनों इंसान अपने भोजन के वास्ते कुदरती तौर पर जंगलों में उगने वाले दरख्तों से मिलने वाले कंद मूल फलों, झड़ बेरियों, वनैले पशुओं के छुटपुट शिकार और नदी नालों में मिलने वाली मछलियों पर निर्भर था ! अक्सर बुरी आत्माओं की चपेट में आकर घायल या बीमार होने के समय में, खुद का इलाज करने का हुनर भी, तब के इंसानों के पास नहीं था, सो उनमें से ज्यादातर, बे-इलाज़ मर जाया करते थे ! आकाश में रहने वाले महान देवता कदाक्लान ने इंसानों की भूख और बीमारियों के मद्दे नज़र, अपने सेवक कबोनियान को धरती पर भेजा ताकि वो इंसानों को सांसारिक ज्ञान दे, प्रशिक्षित करे और उन्हें अनुभवहीनता से उबार दे !

फिर हुआ ये कि कालेंग में रहने वाली दयापान जो कि पिछले सात सालों से बीमार थी, एक दिन नहाने के लिये झरने में गई, जहां मौजूद कबोनियान की आत्मा उसकी देह में प्रविष्ट हो गई ! आत्मा के पास गन्ने और धान का बीज था, जिसे दयापन को देते हुए आत्मा ने कहा जाओ, अपने घर जाकर इसे धरती में बो देना और बड़ा होने पर इसकी कटाई कर लेना, इसके बाद कटी हुई फसल को अपनी ज़रूरत के हिसाब से सुरक्षित रखने के लिये एक अन्न भण्डार / पात्र बनाना तथा गन्ने की पेराई के लिये एक यंत्र भी ! जब ये सब काम खत्म हो जायें, तो तुम एक समारोह (सायुंग) आयोजित करना, उस दिन तुम्हारी बीमारी ठीक हो जायेगी ! हालांकि दयापान इस घटनाक्रम से हैरान थी, लेकिन वो अपने साथ धान बीज और गन्ने का टुकड़ा लेकर, घर वापस लौटी !

उसने कबोनियान के कहे मुताबिक़ बीज बोने की कोशिश की, लेकिन उसकी अपनी अनुभव हीनता और आत्मविश्वास की कमी के कारण वो ऐसा नहीं कर सकी, इसलिए कबोनियान की आत्मा एक बार फिर से दयापान की देह में प्रविष्ट हुई और धान तथा गन्ना बोने में दयापान की मदद की, इतना ही नहीं कबोनियान ने दयापान को फसल कटाई, उसे सुरक्षित रखने के लिये भंडार पात्र बनाने की तकनीक तथा खेती और दूसरे कामों में आने वाले यंत्रों के निर्माण, जैसे सारे व्यवहारिक ज्ञान दिए ! इस घटना के बाद से ही दयापान के कबीले तिंगुयान में साल दर साल खेती करने की परंपरा शुरू हुई ! चूंकि कबोनियान ने यह ज्ञान स्त्रियों को दिया था, इसलिए अब स्त्रियों के पास खाद्य सामग्री की कोई कमी नहीं हुआ करती !

ये आख्यान मूलतः आखेट जीवियों के कृषि युग में प्रवेश करने से सम्बंधित है, जोकि, प्रकृति से जुड़कर खुद ब खुद अनुभव प्राप्त करने वाले मनुष्यों को, उनके नये अनुभवों / नव ज्ञान के लिये, ईश्वर पर निर्भर, कहता है ! दक्षिण पूर्वी एशियाई मूल की इस कथा में मनुष्य द्वारा अपनाए गये, कृषि कर्म तथा अन्य नवाचारों की शिक्षा के लिये महान देवता कदाक्लान अपने सहायक कबोनियान को धरती पर भेजते हैं क्योंकि उन्हें मनुष्यों की भूख  और बीमारियों की फ़िक्र है ! कोई आश्चर्य नहीं कि लगभग इसी तर्ज़ पर मध्य भारत के आदिवासियों के महादेव, मनुष्यों को कृषि कर्म की शिक्षा देने के लिये अपने सहायक देव, भीमा को धरती पर भेजते हैं ! महादेव की चिंता ये है कि मनुष्यों की बढ़ती आबादी के अनुपात में जंगलों में उपलब्ध वन्यजीव तथा कंदमूल फल इत्यादि भविष्य में अपर्याप्त हो जायेंगे सो उन्हें आजीविका के नये उद्यम बतौर कृषि कर्म का ज्ञान होना चाहिए !

इन दोनों आख्यानों में उल्लिखित ईश्वर को धरती के मनुष्य के भविष्य और उसके अस्तित्व की चिंता है , सो वह अपने सहायक के माध्यम से उसे, आजीविका अर्जन के नये क्षेत्र में प्रवेश का मार्ग दिखलाता है, यानि कि ये दोनों कथायें संकेत देती हैं कि मनुष्य के ज्ञान को अद्यतन करने के लिये ईश्वर उत्तरदाई है ! हालाँकि इन दोनों कथाओं में अंतर यह है कि, जहाँ भीमा देव, ग्राम्य जन को कृषि का प्रशिक्षण देकर, कालांतर में धरती पर ही बस जाता है और कबीले के मुखिया की पुत्री से विवाह कर लेता है , वहीं कबोनियान एक आत्मा के तौर पर अपने प्रशिक्षु की देह को माध्यम चुनता है, यानि कि भीमा देव पुरुष बतौर सशरीर धरती पर आता है और आगे भी बना रहने वाला है जबकि कबोनियान एक स्त्री देह में अवस्थित होकर ज्ञान को शेष समाज तक पहुँचाने का कार्य करता है ! भीमा के बरक्स उसने स्त्री पात्र का चयन स्वयं से विवाह के लिये नहीं किया बल्कि स्त्री पात्र को समाज के पहले कृषि गुरु के रूप में प्रशिक्षित किया !  

आख्यान के अनुसार कबोनियान धरती पर ईश्वर की प्रतिनिधि आत्मा है और उसने प्रथम प्रशिक्षु बतौर जिस पात्र को उपयुक्त माना है, वो एक स्त्री दयापान है, ज़ाहिर है कि कथाकालीन आदिम समाज, ईश्वर दूत के चयन के माध्यम से ही सही पर, पुरुषों की तुलना में नव ज्ञान का प्रथम उपयुक्त पात्र स्त्री को चुनता है, एक स्त्री, जिसे आगत में समाज का प्रथम गुरु होना है, जोकि मानव जाति के सामने खड़े, आजीविका के संकट के विरुद्ध, अपनी ही पीढ़ी / अपने ही समुदाय को नव ज्ञान / नवाचार से लैस करने वाली है,स्मरण रहे कि उसके भावी शिष्यों में पुरुष भी शामिल हैं ! कथा उसके बीमार होने का संकेत देती है, लेकिन उसे निरोगी भी होना है,खासकर तब जबकि, वो अपने ज्ञान को व्यवहार में परिणित कर चुके ! वो कृषि युग की प्रथम ध्वजा वाहक है तथा जनसमुदाय को यंत्र निर्माण आदि की तकनीक देने के,अतिरिक्त सामाजिक उत्सवों की शुरुवात भी करने वाली है !