सोमवार, 31 मार्च 2014

अहलिया गोया चांद...!

सूर्य और चंद्रमा ने शादी तो की मगर सूर्य काफी बदसूरत और बेहद झगड़ालू स्वभाव का था ! एक बार, बहस के दौरान उसने चंद्रमा से कहा, तुम अच्छी नहीं हो, यहाँ तक कि तुम्हारे पास अपनी रौशनी भी नहीं है , अगर मैं तुम्हें अपनी रौशनी ना दूं तो, तुम किसी काम की नहीं हो, इस पर चंद्रमा ने उससे कहा कि तुम बेहद गर्म स्वभाव के हो, इसीलिये धरती पर स्त्रियां, मुझे तुमसे ज्यादा पसंद करतीं हैं, जब मैं रात को आलोक बिखेरती हूं तो वे अपने घरों से बाहर निकल कर नृत्य करने लगतीं हैं ! चंद्रमा का ये जबाब सुन कर सूर्य बहुत नाराज़ हुआ और उसने चंद्रमा के मुंह पर रेत फेंक दी, जिससे उसके मुंह पर गहरे काले दाग पड़ गये !ऐसे ही एक दिन झगड़े के वक़्त सूर्य, उसे दैहिक रूप से प्रताड़ित करने के लिये उसे पकड़ने के वास्ते , उसका पीछा करने लगा...सूर्य से डर कर भागते भागते चन्द्रमा थक चुकी थी और सूर्य लगभग उसे पकड़ने ही वाला था कि आसन्न संकट से सावधान होकर वो पुनः सूर्य की पहुंच से दूर हो गई, बस उसी दिन से लगातार ये सिलसिला चलता जा रहा है कि सूर्य हर बार उसे पकड़ते पकड़ते चूक जाता है / पीछे रह जाता है !

कहते हैं कि उनका पहला पुत्र, इंसानों जैसा दिखने वाला एक बड़ा तारा था, जिसे एक दिन गुस्से में आकर सूर्य ने छोटे छोटे टुकड़ों में काट कर आकाश में बिखेर दिया था और उन टुकड़ों से ही आकाश के असंख्य तारे बने ! उनका दूसरा पुत्र एक महाकाय केकड़ा था, जो कि आज भी जीवित है और ज्यादातर समय समुद्र की अतल गहराई में बने एक विशाल गर्त में रहता है , वो इतना शक्तिशाली है कि जब भी अपनी आँखे खोलता या बंद करता है तो बिजलियाँ कौंधने लगती हैं ! इस महाकाय केकड़े के गर्त में बैठने या गर्त को छोड़ते समय विशाल लहरें बनती और बिगड़ती हैं !  केकड़ा अपने पिता सूर्य की तरह से कलहप्रिय है और अक्सर अपनी मां को निगलने की कोशिश में लगा रहता है ! बहरहाल धरती के लोग चंद्रमा को पसंद करते हैं, इसीलिए जैसे ही केकड़ा चंद्रमा के करीब आता है , वे सब उसे बचाने के लिये अपने अपने घरों से बाहर निकल कर जोर जोर से घड़ियाल बजाने लगते हैं और तब तक शोर करते रहते हैं जब तक कि केकड़ा डर कर पीछे ना चला जाए...इस तरह से चंद्रमा का जीवन सुरक्षित बना रहता है !

दक्षिण पूर्व एशियाई मूल की इस लोक कथा में स्त्री और पुरुष के संबंधों, उनके स्वभाव तथा उनकी सामाजिक संस्थितियों का लेखा जोखा, सूर्य और चंद्रमा की प्रतीकात्मकता के माध्यम से, प्रस्तुत किया गया है ! इस आख्यान को गढ़ने वाला समाज, पुरुषों की तुलना में स्त्रियों को, उनके मृदु स्वभाव, समाज में उनकी लोकप्रियता और सौंदर्य के मापदंडों के अधीन कहीं ज्यादा बेहतर आंकता है ! सामान्यतः ये कथा सूर्य के रूप में पुरुष को उग्र स्वभाव / ज्वलनशील तथा पत्नि से मारपीट करने वाले झगड़ालू व्यक्ति के रूप में चिन्हांकित करती है ! बहस के दौरान पत्नि को निज तुलना में हेय ठहराने का यत्न और फिर तर्केत्तर गतिविधि के रूप में पत्नि के सुंदर चेहरे को खुरदरी रेत से विरूपित करने वाले कार्य का ठीकरा अंततः पुरुष वर्ग के माथे ही फोड़ा जा सकता है ! यही नहीं वो झगड़े के एक दिन अपनी पत्नि को दैहिक प्रताड़ना देने के मंतव्य से घर से बाहर पलायन करने को  मजबूर कर देता है , पुरुषों की दैहिक श्रेष्ठता / अहंकार / शक्ति प्रदर्शन की इस घटना में , आगे की सांकेतिकता यह कि स्त्रियां आज भी आतंकित बनी हुई हैं ...और अपने अस्तित्व की रक्षा के लिये निरंतर भाग रही हैं !

परस्पर विपरीत स्वभाव के बावजूद उनका पति पत्नि होना तथा पति की सतत आक्रामकता के विरुद्ध पत्नि को समाज से कोई विशेष संरक्षण प्राप्त नहीं होना, शायद इस बात का संकेत करता है कि उनका विवाह , व्यवस्थित विवाह ही रहा होगा ? कहने का आशय यह है कि प्रेम विवाह में स्त्री एवं पुरुष एक दूसरे को पहचान पाने का अवसर कदाचित पा ही जाते हैं , जबकि व्यवस्थित विवाह में इसकी सम्भावना न्यूनतम हो सकती है ! कथा कहती है कि, सूर्य की तुलना में चंद्रमा के पास खुद की रौशनी भी नहीं है , इसका मतलब बेहद साफ़ है कि समाज से प्राप्त तमाम शक्तियां / ऊर्जा और अधिकार केवल पुरुषों के आधिपत्य में हैं और स्त्रियां इन अधिकारों से वंचित हैं ! नि:संदेह , कथा कालीन समाज स्त्रियों को रौशनी / सामर्थ्य  / शक्तियों तथा ऊर्जा के लिये पुरुषों पर निर्भर बनाये रखने वाला समाज रहा होगा , कम-ओ-बेश आज के समाज के जैसा ! जहां पति सूर्य अपनी शक्तियों का इस्तेमाल व्यक्तिगत रूप से चंद्रमा को कुचलने तथा दुःख पहुंचाने के लिये करता है , वहीं पत्नि चंद्रमा, उधार अथवा कृपा की तरह से प्राप्त धधकती सौर्य ज्वाला को शीतल कर समाज की ओर परावर्तित कर देती है , यानि कि स्त्रियां क्रोध / अहंकार / अग्नि तत्व को भी आनंद योग्य बना देती हैं !

इस आख्यान में सूर्य अपने पहले पुत्र के टुकड़े कर देता है , नि:संदेह वो एक हिंसक परसोना है ! पुत्र के टुकड़ों का आकाश में बिखर कर असंख्य तारों में बदल जाना, दक्षिण पूर्व एशियाई समाज की एक अन्य लोक कथा की ओर ध्यान आकर्षित कराता है जहां एक स्त्री चावल के दानों को आकाश में बिखेर देती है , जिससे तारों का जन्म होता है ! तारों के जन्म की इस सांकेतिकता का उद्देश्य मोटे तौर पर स्त्री और पुरुष के व्यवहार के अंतर को समझाना भी हो सकता है , ये अंतर मूलतः संबंधों में अनुराग अथवा निर्ममता जैसे तत्वों को लेकर बेहद साफ़ दिखाई देता है ! सूर्य और चंद्रमा दम्पत्ति की दूसरी संतान के रूप में केकड़ा, समुद्र में रहता है, वो पिता की तरह से हिंसक और स्त्री विरोधी है ! यहाँ गौरतलब बात ये है कि चंद्रमा की मृदुता के प्रत्युत्तर में समाज, उसे उसके ही पुत्र के हिंसक व्यवहार से तो बचाता है पर...पति की निर्ममता के समय इसी समाज का मौन मुखर हो उठता है ! नि:संदेह समाज के दोहरे मानदंडों को उजागर करती है ये कथा ! स्त्री और पुरुष के प्रकृति रूप में सूर्य और चंद्रमा तथा उनके पुत्र के रूप में तारों और केकड़े को देखें तो टिम टिम रौशनी और उत्ताल तरंगों के बतौर अपना योगदान तो वे दे ही रहे हैं !