रविवार, 14 जुलाई 2013

आकाश गंगा का पुल : प्रणय अनुश्रुति 3

कहते हैं कि वो एक सरल स्वभाव का चरवाहा था, जिसे उसके बैल ने समझाया कि वह एक निश्चित दिन, नदी में नहाती हुई लड़की के कपड़े छुपा कर आसानी से एक सुन्दर पत्नी प्राप्त कर सकता है, दरअसल बैल एक छद्मवेशी बुद्धिमान था, अतः चरवाहे ने उसकी सलाह मानकर, उस खास दिन नहाती हुई युवती के वस्र छुपा दिये ! उस युवती का नाम चिह-नी था जो कि, पवित्र ईश्वर की दिव्य पुत्री थी, स्वर्ग में वह अपने पिता के लिए ज़री और बादलों से सीवन-हीन वस्त्र बुना करती थी ! उस दिन वह अपनी सहेलियों के साथ धरती पर घूमने और मौज मस्ती के लिए आई हुई थी, लेकिन चरवाहे के द्वारा, उसके वस्त्र चोरी करके छुपा दिये जाने की हालत में वह कपड़ों के बिना स्वर्ग वापस नहीं जा सकती थी !

चरवाहे ने बुद्धिमान बैल के दिशा निर्देशों के अनुसार इस मौके का फायदा उठाया और चिह-नी से विवाह कर लिया, वे दोनों कई वर्षों तक पति पत्नी की तरह से साथ रहे , इस दौरान उनके घर एक पुत्र और एक पुत्री का जन्म भी हुआ ! अब चिह-नी ने अपने पति से उन छुपाये हुए वस्त्रों के बारे पूछताछ की, तो चरवाहे ने उसे वह स्थान दिखाया जहां  उसने वस्त्र छुपाये हुए थे ! चरवाहा ये देख कर हैरान रह गया कि वस्त्र मिलते ही चिह-नी स्वर्ग वापस लौट गई ! चिह-नी के इस व्यवहार से दुखी / स्तब्ध चरवाहे और उसके बच्चों ने पुनः बैल से परामर्श किया, तो उसने उन्हें स्वर्ग जाने की सलाह दी और वहां तक पहुँचने में उनकी सहायता की ! स्वर्ग पहुंच कर चरवाहे ने पवित्र ईश्वर को अपनी व्यथा कथा कह डाली !

ईश्वर ने अपनी पुत्री चिह-नी से इस घटनाक्रम की पुष्टि करते हुए, अपने जामाता चरवाहे को उसकी नश्वरता से मुक्ति देकर, अमरता प्रदान की और उसे आकाश गंगा के पश्चिम में स्थित एक तारे का स्वामी बना दिया, जबकि चिह-नी आकाश गंगा के पूर्व में स्थित तारे की स्वामिनी थी ! हालांकि ईश्वर ने उन दोनों को सप्ताह में एक दिन मिलने की अनुमति दी थी लेकिन संवाद में भ्रम हो जाने के कारण वे एक दूसरे से साल के सातवें महीने के सातवें दिन ही मिल पाते हैं और ये क्रम सदा से चलता आ रहा है ! उस दिन धरती के सारे मैगपाई / परिंदे नन्हीं नन्हीं टहनियां लिए हुए एक साथ स्वर्ग की ओर उड़ान भरते हैं और उन दोनों प्रेमियों के मिलन के लिए आकाश गंगा में टहनियों का पुल बनाते हैं !

इस आख्यान का एक संस्करण ये भी है कि कथा नायक साधारण चरवाहा नहीं था बल्कि वह पहले से ही आकाश गंगा के पश्चिमी छोर वाले तारे का स्वामी था और पवित्र ईश्वर ने अपनी पुत्री की वस्त्र बुनाई कला से प्रसन्न होकर, उन दोनों का विवाह करवा दिया था, लेकिन नायिका प्रेम में इस कदर लीन हो गई कि उसने बुनाई के अपने नियमित कार्य की तरफ ध्यान देना बंद कर दिया, इसलिए विधाता ने नाराज होकर उसे, उसके पति से मिलने के अवसरों में लंबे समय अंतराल वाली बंदिशे लगा दीं ! कोई आश्चर्य नहीं कि चीनी मूल की इस लोक कथा से सामाजिकता के वो ही रंग निखरते / उभरते हैं, जोकि चीनी समाज की अपनी विशिष्टतायें हैं , मसलन वे कृषक समाज हैं सो कथा में बैल और चरवाहा और परिंदे महत्वपूर्ण और निर्णायक पात्र हैं !

कथा में बैल के बुद्धिमान होते हुए भी छद्मवेशी होने का उल्लेख, अनायास ही, भारतीय मिथकों में बेहद प्रभावपूर्ण ढंग से मौजूद शिव भक्त नंदी का स्मरण करा देता है ! एक चरवाहे की जीवनचर्या और नियति बुद्धिमान बैल तय करता है, यह संकेत अत्यंत महत्वपूर्ण है, तत्कालीन वैश्विक कृषक समाजों में पशुधन की महत्ता स्वयं स्पष्ट है ! पशुधन की उपलब्धता के आधार पर सामाजिक संबंधों की दिशा तय होने और उनके  बनने बिगड़ने के लिए किसी अन्य प्रमाण की आवश्यकता भी नहीं है ! नहाती हुई गोपियों के वस्त्र चोरी करने वाले चरवाहे / अवतारी ईश्वर का भारतीय प्रसंग अगर इस कथा से किंचित साम्य की अनुभूति कराये तो इसमें कोई हैरानी नहीं होना चाहिए ! अंततः दोनों ही कथाओं में वस्त्र चोरी प्रकरण में प्रणय के भाव अन्तर्निहित हैं !

प्रेमी जोड़े / दम्पत्तियों के लिए स्वसुर निर्णीत / निर्धारित विरह और मिलन एक सहज सामाजिक व्यवहार है ! हालांकि उल्लेखनीय बिंदु यह कि प्रणयलीन पीढ़ी को अपने सामाजिक पारिवारिक दायित्वों की अनदेखी करने की स्थिति में ही इस तरह के दंड का भागी होना पड़ता है , चिह-नी ने वस्त्र विन्यास के पूर्व निर्धारित दायित्व में उदासीनता बरती सो उसका परिणाम भी भुगता ! बादलों और ज़री से सीवन-हीन वस्त्र बुनने वाली सांकेतिकता की ओर ध्यान दिया जाये , तो वह एक निष्णात / कुशल उद्यमी थी , सो यह कल्पना भी नहीं की जा सकती कि वह निज हित के लिए समाज के प्रति अपने दायित्व से विमुख हो जाये ! कहने का आशय ये कि तत्कालीन समाज , निजता के लिए सार्वजनीनता की बलि नहीं दे सकता / अफोर्ड नहीं कर सकता था !

संभव है कि आज के समाज के लिए नवदंपत्ति के प्रति समाज का इस तरह व्यवहार...और परिणीता के लिए नायक का, नायिका के वस्त्र चोरी करने जैसा व्यवहार कदाचित अनुचित प्रतीत हो...पर स्मरण रहे कि हमें कथा को समाज के वर्तमान के बजाये कथाकालीन हालातों / परिदृश्य में विवेचित करना होगा तभी हम कथा के साथ न्याय कर सकेंगे ! गौर करें तो उस समय सीमेंट और लोहे के पुलों की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी अतः आकाश गंगा के दो पाटों पे बसे इस विरही प्रेमी जोड़े के मिलन के लिए काष्ट निर्मित पुल की डिजाइनरों / अभियंताओं के तौर पर परिंदों / मैगपाई का उल्लेख प्रतीकात्मक रूप से बेहद अहम है , वे तिनकों / तुच्छ टहनियों से घोंसला बनाती हैं , सो पुल भी, प्रणय मददगार परिंदे और बैल ! प्रणय मददगार सगरा जीव जगत ! 

20 टिप्‍पणियां:

  1. कदाचित अनुचित प्रतीत हो ...लिख दिया आपने , इसलिए कुछ नहीं कहेंगे !
    वर्ना ...विवाह के लिए बाध्य/मजबूर/ ब्लैकमेल किये जाने की प्रक्रिया माना जा सकता था !!

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    1. जी बिल्कुल , आपसे पूर्ण सहमति ! कथा के इस आयाम पर और भी ज्यादा सख्त टिप्पणी लिखने का इरादा था पर...गोपी प्रसंग से साम्यता के चलते हौसला नहीं किया !

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  2. वो छद्मवेशी बैल मुझे बारसूर में दिख गया. वहीँ नजदीक सरोवर भी है.
    http://goo.gl/el7Z6

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  3. अद्भुत कथा, सुंदर व्याख्या। ..आभार।

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  4. १- पहली कथा के मुकाबले दूसरी कथा ज्यादा सटीक लग रही है ,
    २ - हा पहली कथा से ये बात सामने जरुर आ रही है की सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी पत्नी पाने की बात हो तो सबसे ख़ास रूपवान महिला को ही चुनना चाहता है , साधारण स्त्री की चाहत किसी को नहीं होती है ।
    ३ - आज के युवाओ की तरह प्रेम प्रदर्शन के कारण उन्हें भी सजा भुगतनी पड़ती है ,
    ४ - दो प्रेम करने वालो को एक ही सजा दी जाती है एक लंबा विरह , उनके लिए वही सबसे बड़ी सजा है ।
    ५ डोरेमान जापानी अनिमेशन है उसमे भी मैंने बिलकुल ऐसी ही कहानी को देखा था ।
    ६ - पत्नी का चला जाना बिलकुल वैसा ही जैसे मेनका विश्वामित्र और बेटी को छोड़ वापस स्वर्ग चली जाती है

    @ निजता के लिए सार्वजनीनता की बलि नहीं दे सकता
    ये लाइन पता नहीं क्यों दिल्ली मैट्रो कांड की याद दिला रहे है :)

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    1. (१) जी सही है !
      (२) सर्वथा उचित कथन...यह भयावह किस्म की मानसिकता/व्याधि है ! सामान्य व्यक्ति के हवाले से संकेतित तथ्य पर वाणी जी ने भी टिप्पणी की है !
      (३,४)सहमति !
      (५) आश्चर्य हुआ डोरेमान तो मैं भी देखा करता हूं :)
      (६) सही !

      @ मेट्रो कांड की याद :)

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    2. डोरेमान हम देखते है क्योकि हमारी ६ साल की बेटी है किन्तु आप :))

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    3. कार्टून के मामले में हम को भी बच्चा ही मानिये :)

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  5. ऐसा लगता है कि‍ पहले की लोक कथाएं भी कवि‍ ही लि‍ख दि‍या करते थे :-)

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    1. शायद वो ज़माना आलराउंडर्स का रहा हो , क्या कवि क्या कहानीकार :)

      बहरहाल वो समय लिखने वाला नहीं था बल्कि वाचिक / मौखिक परम्परा वाला था ,यानि कि सुनो याद , रखो और अगली पीढ़ी में ठेल दो :)

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  6. यह कथा है किस मूल की? प्रेमिका के अछन्न (छूमंतर ) हो जाने का भय शाश्वत है ! :-)

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    1. आलेख के पैरा चार की पंक्ति पांच में कथा का 'मूल' लिखा तो है, आपने शायद गौर नहीं किया ;)

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  7. kitta pyara!
    apka andaz e bayan, nihayat Alif Lailvi hai.
    :)
    dhannyawad

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  8. उत्तर
    1. सो तो है पर...कथा के इंटरप्रटेशन पर कमेन्ट की उम्मीद :)

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