मुद्दतों
हुईं जब कि उइगुर जमींदार ने अनीस नाम के बालक को बतौर चरवाहा काम पर रखा था ! अनीस
को बांसुरी बजाने का बेहद शौक था ! उसकी छोटी सी बांसुरी, साधारण से बांस से बनी
हुई थी, लेकिन उसके नन्हें हाथों में वह एक शानदार वाद्ययंत्र बन गई थी ! उसके बांसुरी
वादन को बहुतेरे लोग पसंद करते, वे लोग उसके चारों तरफ बैठ कर लुत्फंदोज़ हुआ
करते, लेकिन जमींदार को यह बात सख्त नापसंद थी ! जमींदार बात बात पर अनीस को
डांटा करता, तुम घटिया लड़के, क्या मैं तुम्हें बांसुरी बजाने के लिए पैसे देता
हूं ? हालांकि सच बात ये थी कि अनीस के बांसुरी बजाने की वज़ह से ज़मींदार के काम
का ज़रा भी हर्ज़ा नहीं होता था !
एक
दिन ज़मींदार ने अनीस की जम कर पिटाई की और उसकी बांसुरी को टुकड़ों में तब्दील कर दिया ! अनीस अपनी आँखों में आंसू लिए ज़मींदार
का घर छोड़ने को मजबूर हो गया ! संयोगवश, सड़कों पर बिलखते, भटकते अनीस को एक बूढ़ा
व्यक्ति मिला जिसने अनीस के सिर पर हाथ फेरते हुए, उसके रोने का कारण पूछा ! अनीस
ने कहा, दादा जी, मैं एक चरवाहा हूं, मुझे, मेरे जमींदार मालिक ने मार पीट कर
घर से बाहर निकाल दिया और उसने मेरी बांसुरी भी तोड़ डाली है ! बूढ़े व्यक्ति ने अनीस को सांत्वना देते हुए कहा
कि, तुम मेरे साथ चलो, मैं तुम्हें स्वयं को बदलने की राह दिखाऊंगा और वो अनीस
को अपने घर ले गया !
बूढ़े
व्यक्ति ने अनीस को उसकी पुरानी बांसुरी की तुलना में एक अच्छी बांसुरी बना कर दी
और उसे बांसुरी बजाने की बेहतर शिक्षा भी दी ! उस बूढ़े व्यक्ति की संगीत शिक्षा और
उसके सानिध्य में अनीस पहले से कहीं ज्यादा शानदार बांसुरी बजाने लगा, यहां तक कि
इंसानों के अलावा जानवर और परिंदे भी उसके बांसुरी वादन पर सम्मोहित होने लगे थे !
वे सभी उसके मित्र बन गये थे ! उधर
ज़मींदार ने एक दिन अपने पुत्रों को बुलाकर
कहा कि मैंने आज रात सपने में एक खरगोश देखा है, जो कि बर्फ की तरह से सफेद रंगत
वाला है और उसके माथे पर एक काला टीका है ! तुम लोग जाओ और जंगल से,उसे मेरे लिए ढूंढ कर
लाओ !
पुत्रों
ने कहा, पिता जी ऐसे खरगोश के बारे में हमने कभी नहीं सुना और ना ही कभी देखा है,
हम उसे कैसे ढूंढ पायेंगे ? ये सुनकर ज़मींदार गुस्से से चिल्लाया, अरे मूर्खो,
मैंने जो कहा है, वो ही करो, तुममे से जो भी ये काम पूरा करेगा वो ही मेरा वारिस
बनेगा ! सबसे बड़े पुत्र ने वारिस बनने के ख्याल से, अपने भाइयों से कहा कि मैं
आगत के किसी जोखिम से भयभीत नहीं हूं, सो पिता को खुश करने के लिए मुझे जाने दो...और
फिर बड़ा भाई खरगोश की खोज में निकल पड़ा, रास्ते में उसे एक बूढ़ा मिला जिसने, उसके
प्रवास कारण जान कर उसे सलाह दी कि वह जंगल की ओर जाये, जहां अनीस नाम का चरवाहा बूढ़े
के जानवरों की देखभाल करता मिलेगा !
बूढ़े
ने कहा कि अनीस, उसकी मदद ज़रूर करेगा, अतः बड़ा पुत्र, अनीस को खोजते हुए जंगल के
अंदर जा पहुंचा जहाँ अनीस से मिलते ही, उसने खरगोश की खोज में अनीस की मदद मांगी !
अनीस मुस्कराया, उसने कहा, अगर तुम मुझे एक हज़ार रुपये दोगे तो मैं तुम्हारी मदद
ज़रूर करूँगा ! ज़मींदार के बेटे ने विरासत
में मिलने वाली संपत्ति की तुलना में एक हजार रुपये की रकम की तुच्छता को ध्यान
में रख कर कहा, ठीक है , वो अपने घर गया और वहां से रुपये लेकर वापस लौटा तो उसने
देखा कि अनीस पेड़ की एक शाख में बैठा बांसुरी बजा रहा था और जंगल के सारे जानवर,
परिंदे उसके चारों ओर बेसुध से, बांसुरी की तानों में खोये हुए थे !
वहां
वह खरगोश भी था जो उसके ज़मींदार पिता ने स्वप्न में देखा था ! अनीस ने बांसुरी
धरती पर रख दी और उस खरगोश को पकड़ कर, उसके हवाले करते हुए कहा संभाल कर पकड़ो,
अगर यह छूट गया तो फिर मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी ! उसने कृतज्ञतापूर्वक खरगोश
को अनीस के हाथों से ले लिया और अनीस को रुपये देकर घर की ओर वापिस चल पड़ा ! जब वह
जंगल से बाहर निकलने ही वाला था तो अनीस ने पुनः बांसुरी बजाना शुरू कर दिया !
बांसुरी की धुन सुनते ही खरगोश उसके हाथों से फिसल कर भाग निकला फिर उसने खरगोश
की खोज में बहुत समय बर्बाद किया पर वो कहीं भी मिला ही नहीं !
वह
वापस अनीस के पास पहुंचा तो, अनीस ने उससे कहा, मैंने तुम्हें पहले ही आगाह कर
दिया था, अब मैं क्या कर सकता हूं ? मुझे बेवजह दोष देने से कोई फायदा नहीं होगा
! निराश पुत्र खाली हाथ घर वापिस लौटा और उसने घर वालों को सारा किस्सा बयान किया !
इसके बाद ज़मींदार के दोनों छोटे बेटों के साथ भी यही घटनाक्रम दोहराया गया ! अपने
बेटों के हाथों हुए तीन हज़ार रुपये के नुकसान से बौखलाये, ज़मींदार ने कहा, तुम सब
नाकारा हो अब मैं खुद ही जाऊंगा उस खरगोश को लाने ! अपनी आँखों में नफरत के अंगार
लिए वह अनीस के पास जा पहुंचा...इससे पहले कि वो कुछ बोलता कि अनीस ने फिर से
बांसुरी बजाना शुरू कर दिया !
लेकिन
इस बार अनीस के बांसुरी बजाते ही, जंगल के तमाम जानवरों, खरगोश, भालू, भेड़ियों, लोमड़ियों,
साँपों और तरह तरह के पशु पक्षियों ने जमींदार को चारों तरफ से घेर लिया, डर के
मारे ज़मींदार का चेहरा सफेद पड़ चुका था, वो अनीस के पैरों पर गिर पड़ा और चिल्लाया, मेरे स्वामी, मेरी जान बचा लो ! अनीस
ने उससे कहा, तुम्हें मेरी याद है ? मेरी बांसुरी के एक संकेत ( सुर ) मात्र से
ये सब तुम्हें जिंदा खा जायेंगे ! थरथर
कांपता हुआ जमींदार अनीस के चरणों में लोटने लगा, उसने बिलखते हुए कहा, आप जो
कहोगे मैं करूँगा पर...मेरे स्वामी, मेरे साथ वो व्यवहार मत करो जो मैंने आपके साथ
किया था !
जमींदार
ने कहा, मैं वादा करता हूं कि मैं अपनी निकृष्ट प्रवृत्ति का त्याग कर दूंगा ! अनीस ने कहा, ठीक है, मैं तुम्हें एक जीवन
अवसर ज़रूर दूंगा, लेकिन ध्यान रहे, यहां से लौटने के बाद तुम अपनी संपत्ति का
आधा हिस्सा गरीबों में बाँट दोगे और भविष्य में कभी भी किसी गरीब पर अत्याचार नहीं
करोगे ! ज़मींदार कांपते हुए अपने पैरों पर खड़ा हुआ और उसने अपनी प्राण रक्षा की
एवज वह सब करने का वचन दिया जो भी अनीस ने उससे कहा था ! गांव वापिस जाकर उसने
अनीस को दिये, अपने वादे को निभाया ! कहते हैं कि इस घटना के बाद से जन सामान्य के
मध्य अनीस और भी लोक प्रिय हो गया था !
शिनझियांग
प्रान्त की यह उइगुर लोक कथा, मूलतः संगीत की शक्ति को आख्यायित करती है ! एक
साधारण से बांस से बनी बांसुरी के सुर को साध कर एक साधारण सा चरवाहा, समाज में
व्याप्त वर्ग विभेद, संपत्ति वैषम्य को कम करने का सामर्थ्य पा जाता है ! इस
आख्यान का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि कथा में उल्लिखित ज़मींदार और चरवाहा पात्र
मूलतः इस्लाम धर्म के अनुयाई है यानि कि चीन के उइगुर मुसलमान, अतएव उनके धर्माचरण
के अनुसार संगीत के प्रशिक्षण और प्रसरण का कार्य सामान्यतः निषिद्ध होना चाहिए था
फिर भी अनीस बांसुरी वादन से प्रेम करता है ! यही नहीं समाज के बहुतेरे लोग भी उसके
बांसुरी वादन से प्रेम करते हैं !
इस
कथा से यह स्पष्ट होता है कि ज़मींदार को छोड़कर शेष जन साधारण पक्ष भी संगीत के
प्रति मोहासिक्त है, भले ही वे सभी घोषित तौर पर इस्लाम के अनुयाई हों ! मुझे लगता
है कि धर्मान्तरण से पूर्व के किसी एक लोक समाज के लिए धर्मान्तरण के बाद की सारी
शर्ते यथावत मान्य हों, ऐसा होना ज़रुरी नहीं है, नि:संदेह लोक जीवन के सांस्कृतिक सामाजिक तत्व शताब्दियों के मानवीय अनुभवों
का संचय हुआ करते हैं, अतः उन्हें किसी नवीन दार्शनिक धार्मिक प्रणाली, को
स्वीकार करते ही / में स्विच ओवर होते ही समूल नष्ट नहीं होना होता है ! इसी आलोक में उइगुर चरवाहे और जनसामान्य पक्ष के
बांसुरी प्रेम को भी देखा जाना चाहिए !
अनीस
अपने शौक को लेकर अपने मालिक से दण्डित है और बांसुरी के टूट जाने से दुखी भी ! निर्धन
होने के कारण दरबदर भटकने के सिवा उसके पास कोई विकल्प नहीं है, ऐसे में एक बूढ़े
के रूप में एक अनुभवी व्यक्ति, अनीस की सहायता करता है, वह संभवत: कथा का अलौकिक / चमत्कारिक पात्र रहा होगा ! इसे एक सांकेतिक कथन माना जा सकता है ! वह अनीस
को संगीत समृद्ध करता है, ताकि अनीस जागतिक मनुष्यों और जीवित पशु पक्षियों में एक
समान रूप से मौजूद सांगीतिक अभिरुचि की अभिव्यक्ति / प्रकटन का सहायक / माध्यम बने !
अनीस
शोषित वर्ग का प्रतिनिधि है और वह अपने सामर्थ्य का उपयोग अपने वर्ग की समुचित
सहायता मात्र के लिए करता है, कुल मिलाकर सामान्य सी दिखने वाली यह कथा, आर्थिक वर्ग
भेद के विरोध में खड़े सांगीतिक सम रूचि के एक व्यक्ति बनाम व्यक्तियों तथा अन्य
जीवित प्राणियों के सहज व्यवहार की कथा है ! इस कथा का नायक अपने सामर्थ्य और बूढ़े
/अनुभवी / संभवतः अलौकिक व्यक्तित्व से प्राप्त , अनुग्रह का दुरूपयोग नहीं करता !
संगीतज्ञ के रूप में अनीस मनुष्यों का ही
नहीं बल्कि अन्य जीव जंतुओं का भी प्रतिनिधि है क्यों कि वे सब उसके ही माध्यम से
अपनी अभिरुचि / पसंद को उजागर करते हैं !
( यह कथा इस्लाम धर्म के उइगुर लोगों तक पहुँचने से पूर्व की कथा लगती है जोकि हमारे अपने देश के श्री कृष्ण आख्यान से किंचित मिलती जुलती सी प्रतीत होती है )
( यह कथा इस्लाम धर्म के उइगुर लोगों तक पहुँचने से पूर्व की कथा लगती है जोकि हमारे अपने देश के श्री कृष्ण आख्यान से किंचित मिलती जुलती सी प्रतीत होती है )
सार्थक सन्देश देती कथा मन को गहराई तक छू गयी .प्रेरणादायक प्रस्तुति आभार आगाज़-ए-जिंदगी की तकमील मौत है .आप भी पूछें कैसे करेंगे अनुच्छेद 370 को रद्द ज़रा ये भी बता दें शाहनवाज़ हुसैन .नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN हर दौर पर उम्र में कैसर हैं मर्द सारे ,
जवाब देंहटाएंसकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद !
हटाएंअर्थपूर्ण कथा और सुंदर विश्लेषण!
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार !
हटाएंसंगीत को माध्यम बनाकर एक आदर्श नेता के सद्गुणों को इस कथा के माध्यम से बहुत कोमलता से दर्शाया गया है... और इस कोमलता के लिये सहारा लिया गया है 'कोमल गांधार' अर्थात संगीत का. एक सफल नेतृत्व और जनता में अपने लिये प्रेम वही पैदा कर सकता है जिसके कृत्य में जादू हो और सबको मोहित कर सके... मेरे विचार में यहाँ संगीत को एक प्रतीक के रूप में व्यवहार किया गया है.. क्योंकि आख्यान के अंत में संगीत का महत्व नहीं, एक ज़मींदार के सद्गुण और जनकल्याण की भावना को स्थापित किया है.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा वह अंश जब ज़मींदार का पुत्र खरगोश को पकडना चाहता है और वह उसके हाथ से छूट जाता है.. अर्थात रिश्वत देकर (एक हज़ार रुपये) तुम अवसर को प्राप्त तो कर सकते हो, किन्तु उसे संभालकर रख पाने की योग्यता न हो तो व्यर्थ है सब...
धार्मिक विषयों में मेरी योग्यता और ज्ञान दोनों अल्प हैं अतः धर्म और धर्मान्तरण की व्याख्या पर मौन.
इति!!
सुन्दर प्रतिक्रिया !
हटाएंहमारे लिए भी धार्मिक विषय का उल्लेख मात्र इतना ही है कि धर्मान्तरण से पूर्व के लोक जीवन की अनेकों विशिष्टतायें नवागत के कारण नष्ट नहीं हुआ करतीं !
प्रकृति की नैसर्गिक और अलौकिक देन है संगीत . इंसान इससे अछूता रह ही नहीं सकता ! कथा का उद्देश्य भी साफ़ है कि मधुर संगीत मनुष्य ही नहीं पशुओं को भी शुभ की और प्रेरित करता है!
जवाब देंहटाएंसही ! नैसर्गिकता उसे खुरचने / बदलने की तमाम कोशिशों के दरम्यान अपना वज़ूद बनाये रखती है !
हटाएंयह कहानी उस पाईड पाईपर की भी याद दिलाती है !कृष्ण की भी और तानसेन की भी -मतलब एक स्थान से उद्भूत कथा ने मानव
जवाब देंहटाएंविचलन के साथ बड़े भौगोलिक क्षेत्रों में भी अपना विस्तार किया !
आपने बहुत पहले मानव जाति के प्रवास पर एक आलेख लिखा था ! मुझे लगता है कि कथायें भी इसी तर्ज़ पर पर प्रवासी हुई होंगी , भले ही बाद में उनमें स्थानीयता के कुछ और रंग (विचलन)चढ़ गये हों !
हटाएंsikhaprad katha......bahut sundar.....
जवाब देंहटाएंpranam.
आपकी जय हो !
हटाएं@ मेरी बांसुरी के एक संकेत ( सुर ) मात्र से ये सब तुम्हें जिंदा खा जायेंगे !
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है की ये मात्र डराने के लिए कहा गया वाक्य था , संगीत में लोगो को अपने पास खीच लेने की शक्ति तो होती है किन्तु किसी को मार देने के लिए उकसाने की शक्ति नहीं होगी , तानसेन अपने संगीत से दिए तो जला सकते है किन्तु शत्रु की सेना जला देने की शक्ति नहीं रही होगी । निराशा हतासा , ख़ुशी दुःख उत्साह सभी में व्यक्ति एक मात्र संगीत से ही जुड़ा रह सकता है , और संगीत आप के मुड को भी बदल देता है , कई बार देखा है की सामान्य से लोग ज्यादा दुख भरे गीत सुन सुन कर दुखी आत्मा टाईप हो जाते है ।
@ धर्मान्तरण से पूर्व के लोक जीवन की अनेकों विशिष्टतायें नवागत के कारण नष्ट नहीं हुआ करतीं !
आप के इस कथन से एक बात याद आ गई , हम मुंबई के बाहर कुछ पिछड़ा सा इलाका था वहा गये देखा लगभग हर घर के बाहर आँगन में तुलसी को लगाने के लिए ओटा बना था किन्तु उसमे या तो मदर मेरी की मूर्ति थी या क्रास लगा था , सभी पर फुल माला चढ़ी थी और अगरबत्तिया जल रही थी , यहाँ तक की दिये रखने की जगह भी वहा बनी थी और वहा लगी कालिख बता रही थी की जले भी जाते होंगे , उसकी ऊंचाई इतनी कम थी की वहा दिये ही रखे जा सकते थे कैंडल नहीं :)
कभी कभी लगता है की आप अपनी कहानियो की व्याख्या न करे तो हम जैसे सामान्य जन के लिए उसका सही रूप अर्थ सामने न आ सके :)
असल में भले लोग अपने सामर्थ्य से डरायें भले ही पर वे वास्तव में किसी का अहित नहीं किया करते ! बस ऐसे ही तानसेन भी अपनी प्रतिभा का दुरूपयोग क्यों करते , सच्ची प्रतिभा सृजन के लिए होती है ना कि विद्ध्वंश के लिए ये बात गुणीजन जानते ही हैं ! लगता यही है कि अनीस ज़मींदार को नसीहत देने मात्र के लिए डरा रहा था ना कि अपने प्रिय पशुओं के माध्यम से उसकी जान लेने के लिए ! आपसे पूर्ण सहमति !
हटाएंहां ! आपने मदर मेरी वाला बहुत सुन्दर उदाहरण दिया है ! बेहतर प्रतिक्रिया के लिए आपका ह्रदय से आभार !
बेशक संगीत में इतनी ताकत है कि वह अपनी ओर इन्सान ही नहीं जानवरों को भी आकर्षित कर सकता है।
जवाब देंहटाएंम्यूजिक तो रोगियों के लिए भी लाभदायक रहता है।
बहुत बहुत शुक्रिया दराल साहब !
हटाएंहमारे हिसाब से जमींदार के सिन्धी या मारवाडी होने होने की संभावना को भी नहीं नकारा जा सकता .
जवाब देंहटाएंलिखते रहिये
शुक्रिया :)
हटाएंआपकी व्याख्या ने कथा में ग़ज़ब का प्राण फूँका है! अनीस द्वारा धमकाया जान थोड़ा असहज करता है मगर जैसा कि अंशुमाला जी ने लिखा कि यह मात्र संकेत ही होगा। उन्होने दूसरे पैरा में उदाहरण भी खूब दिया।
जवाब देंहटाएंएक क्षेत्र विशेष की परंपरा धर्म परिवर्तन के बाद भी कई पीढ़ियों तक जरूर ही प्रभाव डालती होंगी। संगीत तो जड़ के चेतन होने से पहले का संस्कार है।
सत्य वचन !
हटाएं:) pyaari kahani...
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