बुधवार, 26 जून 2013

किनतू नाम्बी : प्रणय अनुश्रुति 1

किनतू नामित वो प्रथम पुरुष धरती पर एकाकी निवासरत था हालांकि उसके पास उदर पोषण हेतु एक गाय भी थी ! एक दिन आकाश के शासक गुलू की पुत्री नाम्बी धरती पर आई और किनतू पर आसक्त हो गई , सो नाम्बी को देख किनतू भी मोहित हुआ !प्रेमातुर यह जोड़ा ब्याह के लिए इच्छुक था पर नाम्बी के परिजन किनतू को अति-निर्धन और अनदेखा किया जाने योग्य समझते थे ! अपनी पुत्री नाम्बी की अभिलाषा के दबाब में गुलू ने किनतू के लिए कई परीक्षणों की व्यवस्था की ताकि वह अपनी योग्यता  साबित कर सके !  सर्वप्रथम उसने किनतू की गाय चोरी कर ली , इसके बावजूद किनतू पत्तियां खाकर जीवित रहा !  प्रेयसी नाम्बी ने किनतू को उसकी गाय के स्वर्ग में होने की सूचना दी तो वो अपनी गाय वापस लाने स्वर्ग की ओर चल पड़ा !  जहां गुलू ने उसे बंदी बना कर एक झोपड़ी में रख लिया !

बंदी किनतू को , गुलू ने खाने के लिए , इतना भोजन दिया,  जितना कि सौ व्यक्तियों के खाने के लिए पर्याप्त था और उसे यह भोजन करने के लिए विवश किया !  किनतू ने अपनी सामर्थ्य भर भोजन किया और शेष को फर्श में एक छेद बना कर छुपाते हुए, गुलू के नौकरों से खाली टोकरे वापस ले जाने को कहा !  इसके बाद गुलू ने ताम्बे की एक कुल्हाड़ी देकर , किनतू से कहा कि वह चट्टान को जलाऊ लकड़ियों की तरह काट डाले !  किनतू ने चट्टान की एक दरार देख कर उस पर प्रहार किया जिससे वो टुकड़ों में बदल गई ! यह देखकर गुलू ने किनतू को एक बर्तन देते हुए कहा कि वो इस बर्तन को ओस से भरकर दिखाए ! व्यथित किनतू ने ओस से भरने के लिए उस बर्तन को उठाया तो पाया कि वह बर्तन पहले से ही भरा हुआ था !

अब गुलू ने किनतू की गाय को , उसी के जैसी अपनी गायों के झुण्ड में छोड़कर कहा कि वह अपनी गाय को पहचान कर दिखाए ! गुलू ने कहा कि यदि किनतू झुण्ड में से अपनी गाय को पहचान लेगा तो फिर वह नाम्बी से ब्याह कर सकता है ! इस समय किनतू की दोस्त एक मधुमक्खी ने किनतू की गाय पर मंडराते हुए उसकी पहचान करने में किनतू की मदद की , इसी तरह से उसने उस गाय के तीन बछड़ों को भी पहचान लिया जोकि उसने स्वर्ग में रहते हुए जने थे !  अब गुलू के पास किनतू की चतुराई और अपनी हार मानने के सिवा कोई विकल्प ही नहीं था सो उसने किनतू और नाम्बी के ब्याह की अनुमति दे दी और सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए आशीर्वाद दिया !  विवाहोपरांत स्वर्ग से धरती पर वापस लौटते  हुए यह जोड़ा अपने साथ , अपनी गाय और उसके बछड़ों के अतिरिक्त , भेड़, बकरी ,मुर्गी , और रतालू तथा केला भी लेकर आया  !

युगांडा का यह लोक आख्यान , आदिम युगीन जीवन में जीवित बने रहने के न्यूनतम अवसरों पर अपना हस्तक्षेप / अपना अधिकार बनाये रखने के संघर्ष / आपाधापी के बीच स्त्री और पुरुष के पारस्परिक नैसर्गिक आकर्षण और फिर उस आकर्षण के एक निश्चित परिणति तक पहुंच जाने की कथा है !  कथा का नायक धरती का प्रथम पुरुष है और नितांत अकेले जीवन यापन कर रहा है , आश्चर्यजनक रूप से उसके पास एक गाय है जो उसके पोषण की तमाम आवश्यकताओं को पूर्ण करने का माध्यम है , चूंकि वह धरती पर प्रथम पुरुष है सो उसके आधिपत्य में सारी भूमि / सारे संसाधन भी हो सकते थे किन्तु वो या तो उनका दोहन करने की विधा से अनभिज्ञ है अथवा केवल गाय ही उसके जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने का सामर्थ्य रखती है और वह गाय से इतर किसी अन्य जीव अथवा अन्य संसाधन पर निर्भर नहीं है !

आकाश के शासक गुलू की पुत्री के तौर पर नाम्बी का धरती पर आगमन और फिर स्त्री पुरुष के दरम्यान स्वाभाविक रूप से पनपता नैकट्य ! सांकेतिक तौर पर शासक की पुत्री नाम्बी , धरती के किनतू की तुलना में उच्चवर्गीय ही मानी जायेगी , अस्तु कथा का प्रेम , वर्गभेद से इतर , प्रेम के कहीं भी , कभी भी , घट ही जाने की पुष्टि करता है ! पुत्री के लिए उचित वर के चयन का जो भी मानदंड , अभिजात्य वर्गीय गुलू के मन में रहा हो , वो कथा का अगला हिस्सा है और वर्तमान सामाजिक व्यवस्था में घटित स्वाभाविक घटनाक्रम जैसा है ! एक भावी स्वसुर , एक भावी जामाता को जिसे कि , वह अपने मानदंडों के अनुकूल नहीं समझता,हर तरह से निष्फल सिद्ध करने का यत्न करता है ! चयन और अस्वीकरण की इस विरोधाभासी प्रक्रिया में , प्रेयसी अपने प्रियतम के पक्ष में है और वह यथा संभव अपने प्रेमी की सहायता करती है !

किनतू की जीवनाधार गाय की चोरी से लेकर ,  कुल्हाड़ी से चट्टान काटने और ओस से बर्तन भरने जैसे प्रतीकात्मक माध्यमों से , स्वसुर गुलू अपने भावी जामाता के प्रति अपनी अस्वीकार्यता को अभिव्यक्त करता है ! वह किनतू को भूखा मार डालने और आहार अतिरेक से प्रताड़ित करने जैसे यत्न भी करता है , चूंकि इस संघर्ष में किनतू को अपनी प्रेमिका का समर्थन हासिल है सो वह बारम्बार विजेता की तरह से उभरता है ! कथा कालीन समाज संभवतः पशु पालक समाज रहा होगा , सो गुलू अपनी गायों के झुण्ड में , किनतू की एकमात्र गाय को समाविष्ट कर , अंतिम दांव खेलता है , जोकि एक छोटे से जीव की सहायता से किनतू के हक में / पक्ष में जाता है ! अपने अभिजात्य वर्गीय स्वसुर  की तुलना में , एक नन्हे से कीट की सहायता जनसाधारण किनतू को प्राप्त हुई और उसने अपनी गाय को चीन्ह लिया !

प्रतीत होता है कि जामाता और स्वसुर के मध्य स्वीकार्यता और तिरस्कार का यह घटनाक्रम कम से कम तीन वर्ष तक तो चला ही होगा , क्योंकि किनतू की गाय इस अवधि में तीन बछड़े जन चुकी होती है ! प्रेम के टिकाऊपन और किनतू की योग्यता / सामर्थ्य के प्रमाणीकरण के साथ ही इस घटनाक्रम का समापन सुखान्त में होता है , लेकिन किनतू और नाम्बी अपने भावी जीवन के लिए गाय , बछड़े के अतिरिक्त भेड़ / बकरी / मुर्गी / रतालू और केला ही लेकर वापस होते हैं , जिससे इस तथ्य की पुनः पुष्टि होती है कि कथाकालीन समाज पशुपालक रहा होगा और उसने रतालू और केले के माध्यम से कृषक समाज होने की दहलीज में कदम रख दिया होगा !  मोटे तौर पर यह प्रणय कथा पशुपालक जगत और कृषक जागतिकता के संधि काल की कथा है !


4 टिप्‍पणियां:

  1. गाय एक साथ तीन बछडे नहीं जन सकती ?

    कृपया इस विषय पर भी प्रकाश डालें ..

    लिखते रहिये ...

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  2. मजाल साहब ,
    लगता है कि आपने आलेख के आख़िरी पैरा की शुरुवाती दो लाइन पर गौर नहीं फरमाया , मैंने गाय को तीन बछड़े जनने के लिए तीन वर्ष का समय दिया है :)

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  3. .
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    .
    इस कथा में गुलू बिल्कुल आज के पिताओं सा ही है जो अपनी लाडली को सौंपने से पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहता है कि वर बुद्धि, बल, सामर्थ्य और साहस रखता है, जिससे भविष्य में पुत्री को दिक्कतें न हों... केला व रतालू देकर उसने अपने जामाता को जीवन यापन का एक और स्रोत भी सुझाया... नायक है गुलू !


    ...

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  4. जी,बिल्कुल,गुलू एक आम पिता जैसा ही है वो अपनी पुत्री को एक बेहतर/योग्य जीवन साथी देना चाहता है!
    अपनी व्याख्या में इसीलिए मैंने इसे एक स्वाभाविक घटनाक्रम माना है!

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