रविवार, 10 मार्च 2013

अज मुंसफ होजा सोणियां...!

कहते हैं कि रहने लायक तमाम जगहें , नियम शासित होती हैं , सो स्वर्ग भी ऐसा ही है , प्रेम के नियमों से बंधा हुआ , प्रेम संचालित ! बहुत पुराने समय की बात है , जब एक नन्ही परी स्वर्ग के ऐसे ही एक नियम की अनदेखी कर बैठी...उसे सजा मिलनी ही थी...उस नन्ही जान को स्वर्ग से निर्वासित कर दिया गया ! इसके बाद वो फिर कभी , दिव्य संगीत के कोरस में शामिल नहीं हो पायेगी और ना ही दोबारा कभी अपने महान राजा का मुख देख सकेगी ! सजा पाकर , वह आखिरी बार स्वर्ग के बागीचे में अपने प्रिय फूलों को निहारती चली ! उसने सिसकते हुए कहा...मेरा हृदय टूट गया है , ओ मेरे प्रिय...मैं तुम्हारा बिछोह सह नहीं पाऊंगी !

हमदर्द फूलों ने अपने खूबसूरत चेहरे उस नन्ही परी की ओर घुमा लिए ! उनकी सुगन्धित साँसे परी का कोमल स्पर्श पाते ही हवा में बिखर गईं ! वो सब अपनी बांहे फैलाकर...करीब से गुज़रती हुई परी के कपड़ों को छूना चाहते थे ! नन्ही परी ने सुबकते हुए , उनसे कहा, प्रिय आत्मन क्या तुम सब मेरे साथ चलना चाहते हो ? उसने , उन सब को अपनी बांहों में समेटना चाहा , हालाँकि उसकी नन्ही बांहे इसके लिए नाकाफी थीं ! वो अपने पसंदीदा फूलों में से किसी एक को भी छोड़कर नहीं जाना चाहती थी...फिर जितना भी मुमकिन हो सकता था उसने अपनी बांहें फैलाईं और फूलों को अपनी आगोश में ले लिया !

आहिस्ता आहिस्ता सोग में डूबी हुई नन्ही परी अपनी बांहों में , अपनी चाहत के फूल समेटे हुए स्वर्ग के दायरे से बाहर हो गई ! उसकी नन्ही नन्हीं बाँहें लगातार इतने सारे फूलों को एकमुश्त सहेजकर चलने में नाकामयाब रहीं , सो उसकी आगोश से छिटक कर कुछ फूल नीचे धरती की ओर बिखर गये और उन्होंने अटलांटिक महासागर के अथाह जल में पनाह ली...नीली विपुल जलराशि में तैरते हुए,विश्रांति...वे सब, परी को देखते हुए मुस्कराये, उनकी ख़ूबसूरती द्विगुणित हो गई थी,उन्हें खोकर,दुखी परी ने आर्तनाद किया...मेरे प्रिय फूलो,मैंने तुम्हें खो दिया...मैं क्या करूं ? परी ने देखा कि पानी में बिखर चुके, खूबसूरत फूल, मुस्करा रहे हैं...उसने कहा खुश रहो! 

अपने लगातार बहते आंसुओं के बीच , वो मुस्कराई ...जैसे ही , उसने सोचा कि उसके पास , अब भी हैं कुछ फूल , एन उतने , जितने कि वो संभाल सकती है ! कहते हैं कि नन्ही परी के हाथों से बिखर गये फूल अब भी वहीं , नीले विशाल अटलांटिक महासागर में मौजूद हैं ! एक मुद्दत बाद उन्हें पुर्तगीज़ मल्लाहों ने खोजा !  उनका ख्याल है कि , नन्ही परी ने इन फूलों को अजोरेस नाम दिया था...बहरहाल वे खुद , फूलों की इस वादी / द्वीप को फ्लोरेस कहते हैं ! 

मेरा ख्याल है कि पुर्तगीज़ मूल के इस लोक आख्यान में इह-लौकिक खूबसूरती को फूलों की शक्ल में बयान किया गया है !  इस कथा के मुताबिक धरती का अप्रतिम सौंदर्य / धरती पर बिखर गई / व्यापित खुश्बुयें , केवल स्त्रियों की वज़ह से हैं ! जिन्होंने अपनी चाहतों में से कुछ का परित्याग कर भूमंडल में रंग भर दिए हैं ! उनके आंसुओं / उनके दुःख / उनके सोग के समानांतर उनके लबों पर एक दुआ / एक आशीष कि , जो उनके आँचल से बाहर हुआ , वो भी खुश रहे , आबाद रहे !  इस आख्यान में एक नन्ही परी का उल्लेख , स्त्रियों की मासूमियत / निश्छलता और अजाने ही प्रेम पथ में दण्डित हो जाने का संकेत देता है !

कथा कहती है कि प्रेम कहीं भी , किसी भी स्थान...यहां तक कि स्वर्ग में भी जीवन गुज़ारने का मूल सूत्र / आधार / नियम है !  हर इंसान / देवतुल्य परी इस नियम की अनदेखी करते ही निर्वासित होने को अभिशप्त है , भले ही यह अनदेखी , नवउम्र की वज़ह से ही क्यों ना हो ! इस लोक आख्यान से सबक मिलता है कि सारे संसार / सारे लोक , प्रेम संचालित हैं ! ...और प्रेम के नियमों से केवल एक फिसलन भी हमें , दिव्य संगीत / अनन्य सुखों और अपने स्वजनों से विलग कर देती है ! स्त्रियों के माध्यम से संसार के सौंदर्य की श्रीवृद्धि के आशय वाली इस कथा में निहित दो संकेत बेहद खटकते हैं , एक तो यह कि महान राजा को पुरुष ही होना है और दूसरा यह कि आरोपी की कम उम्र उसे सजा में किसी भी छूट का हकदार नहीं बनाती !

26 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सार्थक प्रस्तुति आपकी अगली पोस्ट का भी हमें इंतजार रहेगा महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाये

    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    अर्ज सुनिये

    कृपया आप मेरे ब्लाग कभी अनुसरण करे

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  2. लोक आख्यानों की कड़ी में यह पोस्ट पढ़ते हुए मैं सोंच रहा हूँ कि मूल भावना के साथ न्याय करते हुए इनका अनुवाद कितना दुरूह रहा होगा !
    आपका आभार !

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    1. सतीश भाई,
      शब्दश: अनुवाद करने की हिम्मत नहीं करता...कथा की फीलिंग को जीवित बनाये रखना अहम मानता हूं बस !

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  3. प्रेम का रंग सचमुच बहुत गाढ़ा होता है -यह श्रंखला चलती रहे

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    1. अरविन्द जी,
      रोजी रोटी की भाग दौड़ के गाढ़े समय में ब्लॉग की सक्रियता ऐसे ही बनाये रखी सकती है वर्ना :)

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  4. ....उस 'गुनहगार' ने अपनी तरफ़ से इस असुंदर धरती को फ़िर भी कुछ दिया !!

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    1. उस मासूम जान ने ऊबड़ खाबड़ धरती को स्वर्ग के फूलों का तोहफा दिया ! इसे भी आप 'कुछ' कहियेगा :)

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  5. हमदर्द फूल , नन्ही परी ...दुखी होकर भी कितनी सुखी है , क्या नहीं दिया उसने धरती को और फूलों ने उसको .
    कथा समझे बिना पढने में भी बहुत मीठी सी लगी :)

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    1. वाणी जी ,
      शुक्रिया ! अपना आप खोकर देना अहम बात है !

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  6. स्त्रीयां हर रूप में मनुष्यता को पोषित करती रही है ....

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  7. "जो उनके आँचल से बाहर हुआ , वो भी खुश रहे" सदके जाऊँ... ,

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  8. .
    .
    .
    वह जो स्वर्ग में रहती थी और स्वर्ग भी कैसा, प्रेम के नियमों से बंधा हुआ , प्रेम संचालित !... वह जो तमाम तरह के फूलों से भी इतना अधिक प्रेम कर सकती थी और फूल उससे भी... वह जो नन्ही सी थी यानी मासूम भी... वह जो एक नियम की अनदेखी कर बैठी... वह जिसे सजा मिलनी ही थी... उस नन्ही जान को स्वर्ग से निर्वासित कर दिया गया...

    अली सैयद साहब,

    अपना दिल तो यहाँ यह सवाल पूछने का करता है कि कैसा, प्रेम के नियमों से बंधा हुआ , प्रेम संचालित स्वर्ग था यह... जो एक नन्ही सी जान को एक नियम की अनदेखी करने पर निष्काषित कर देता है... जबकि प्रेम तो केवल और केवल स्वीकार है, नकार का तो कोई काम नहीं उसमें... तमाम बुराईयों, कमियों और कमजोरियों के बावजूद किसी को जस का तस चाहना-दिल में बिठा लेना ही तो प्रेम है... या नहीं...



    ...

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    1. वास्ते कैसा स्वर्ग और कैसे नियम,
      आलेख की आख़िरी दो लाइनों में यही संकेत दिया है !

      वास्ते प्रेम,
      आपसे असहमत होने का सवाल ही नहीं उठता !

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  9. आश्चर्य है ना! यह जानते हुए भी कि प्रेम करते ही दिव्य सुखों, अपनों का साथ, ऐश्वर्य आदि से वंचित होना होगा, मन प्रेम कर ही बैठता है या कहिये कि प्रेम में पड़ जाता है...हमारे पौराणिक आख्यानों में भी आपके द्वारा लिखी इस कथा से मिलती-जुलती कहानी, जिसका कथ्य है- उर्वशी का अर्जुन के प्रेम में पड़ना और स्वर्ग से च्युत होना..

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    1. वास्ते साम्य,
      आश्चर्य काहे, जब हम पूरी दुनिया के इंसानों को एक मानते हैं तो फेंटेसी / आख्यानों को भी एक जैसा होना / दिखना ही चाहिए ! भिन्न प्राकृतिक पर्यावासों में निवासरत जनसँख्या समूहों ने अपने अपने सामाजिक सांस्कृतिक वैशिष्ट्य को श्रेष्ठता के एकमेव ठेकेदार के रूप में स्थापित करने के यत्न के अंतर्गत इस दुनिया को भेदभावमूलक भले ही बना डाला हो पर मनुष्यों की आरंभिक / आदिकालिक कल्पनाशीलता के साम्य को छुपाया भी नहीं जा सकता !

      वास्ते अंतर,
      अप्सरा उर्वशी निपुण / पारंगत / बालिग़ होके मनुष्य अर्जुन के प्रेम में मुब्तिला हुई सो स्वर्ग से निष्कासन का कारण देवताओं और मनुष्यों के मध्य मौजूद जातिगत / वर्गगत / अमरत्व बनाम नश्वरतागत भेद माना जाएगा पर...इस आख्यान की परी, उर्वशी की तुलना में मासूम / नन्ही है सो धरती के किसी इंसान से प्रेम करके स्वर्ग से निष्कासित नहीं हुई मानी जाए !

      वास्ते प्रेम,
      कब कैसा परिणाम दे जाए कह नहीं सकते :)

      (आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद ज्ञापन बनता है क्योंकि वह विचारोत्तेजक है,सोचने को प्रेरित करती है)

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  10. जो दो संकेत आपको खटकते हैं वे इस संदेह को भी जन्म देते हैं कि कहीं स्वर्ग पुरूषों की कल्पना तो नहीं!

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  11. aapki hindi kitni achchhi hai! oochch streey ,sahityik . jaane kyon vishay ki gahrai me n utrkr sunder shbdawli dekhti rh gai jaise koi sunder swchchha jheel ko bss........niharta rhe aur utre na paani me.
    kl fir aati hun............mujhe gahraai me.......jheel ke pende me utrna ...tairna jyada psnd hai :)
    aapki lekhni ki main kaayal hun sir!

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