गुरुवार, 23 अगस्त 2012

रांग नंबर ...?

परसों सुबह अखबार पढ़ते हुए एक खबर पर निगाह जा अटकी और दिमाग़ उससे भी पुरानी एक खबर पर ! पहली खबर (1) ये कि,युवक ने अपने किसी परिचित को फोन लगाया जोकि गलती से किसी और निशाने पे जा लगा, उभयपक्ष में,मुख्तसर सी बातचीत हुई और फोन काट दिया गया ! इससे आगे मसला यह कि युवक को रांग नंबर वाली आवाज़ इस कदर पसंद आई कि उसने दोबारा फोन लगा कर दोस्ती के लिए पहल कर डाली,अब इससे भी आगे सिलसिला यह कि जोड़े के दरम्यान खालिस दोस्ती से बढ़कर रोमान और फिर खालिस रोमान की हुदूद से आगे जाकर ब्याह का ख्याल जोर मारने लगा ! युवक ने अपने घरवालों से बात की सो वे भी राजी हो गये और सिलसिला लड़की देखने की हद तक जा पहुंचा ! लड़की को देखते वक़्त युवक के भाई को शक हुआ कि वह लड़की नहीं बल्कि एक लड़का है,उसे लड़की की साड़ी से बाहर झांकती जींस नज़र आई ! सहसा अनावृत्त हुए इस सत्य से आगे का अहवाल यह कि, ब्याहोत्सुक / प्रेम प्यासा युवक इस झटके से उबरने के उपक्रम में...और उसका भाई थाने जा पहुंचा !

पुलिस दोनों पार्टी को थाने ले तो गई पर उसके पास दोनों को समझा बुझाकर छोड़ने के अलावा कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था ! इस मामले में बिन ब्याही लड़की उर्फ लड़के का पक्ष यह है कि, वह पिछले एक दशक से स्थानीय नाटक मंडली में स्त्रियों की भूमिकाओं का निर्वहन करते करते...स्त्रैण व्यवहृति सहज व्यक्तित्व बन बैठा था !...मुद्दे पर अपना ख्याल यह है कि वह एक सच्चा अभिनेता था, जो अभिनय और वास्तविकता के भेद भुला बैठा,संभव है, उसमें जिस्मानी तौर पर पुरुषों की बजाये स्त्रियों के गुणों का आधिक्य रहा हो या फिर उसकी अवदमित आकांक्षायें अथवा उसका बाल्यकाल / उसके आदर्श उसे इस दिशा में धकेल बैठे हों ? बहरहाल उसके नायिका सदृश होने में, निहित मूल कारण जो भी रहे हों ? पर ब्याह को लेकर उसका दृष्टिकोण समलैंगिकता वादी ही रहा होगा,क्योंकि उसका कथित प्रेमी भले ही,उसकी वास्तविक लैंगिक पृष्ठभूमि से अनजान था किन्तु उसे स्वयं की लैंगिकता के प्रति कोई भ्रम रहा होगा,यह विश्वास करना कठिन है  !

अब दूसरी यानि कि पुरानी खबर (2) ये कि एक युवा व्यवसायी को वृहन्नला से प्रेम हो गया, वह एक समर्पित और सदाशय प्रेमी था,सो अपने प्रेम को अंजाम तक पहुंचाने के ख्याल से वृहन्नला के लिंग परिवर्तन की जुगत में था ! उसने चिकित्सकों से परामर्श किये ताकि अपनी प्रेमिका को स्त्री के परिवर्तित रूप में ब्याह कर अपने घर ला सके ! गहन विचार मंथन और परामर्शों के दौर से गुज़रते हुई इस प्रेमासक्त व्यवसायी ने एक लंबी रकम खर्च करके अपनी प्रेमिका की सर्जरी करवाई / आवश्यक चिकित्सकीय उपाय करवाये! अंततः उसका प्रयास सफल हुआ और उसकी प्रेमिका एक वृहन्नला से पूर्णरूपेण स्त्री के रूप में तब्दील हो गई, इसके बाद प्रेमी जोड़ा ब्याह के पवित्र बंधन में बंध गया ! कहने के लिए ये कथा इसी सुखद परिणय के परिणति बिंदु पर समाप्त हो जानी चाहिए थी, पर भूतपूर्व युवा व्यवसायी प्रेमी उर्फ पति अपनी भूतपूर्व प्रेमिका उर्फ पत्नी से चिकित्सकीय खर्चे की भरपाई चाहता है ! उसका मानना है कि उसके साथ छल हुआ है ! 

प्रकरण की अद्यतन स्थिति यह है कि, पति अपनी पत्नी से चिकित्सा के नाम पर किये गये व्यय की वसूली के लिए पुलिस की शरण में जा पहुंचा है, क्योंकि ब्याह के ठीक दो दिन बाद ही उसकी ब्याहता पत्नी उसके ही चचेरे भाई के साथ प्रणय - पलायन कर गई ! प्रेम में साथ जीने मरने की कसमें खाने और सप्तपदी के दौरान दिए गये वचनों के एन उलट स्त्री का यह कदम उस युवा के लिए स्तब्धता-कारी है, उसे लगता है कि उसके साथ धोखाधड़ी की गयी है ! ...मुद्दे पर अपना ख्याल यह है कि युवा प्रेमी, वृहन्नला की अदाओं पर सम्मोहित हुआ और उसे स्त्री रूप में अपने घर लाने की उसकी कवायद अंतत: सफल भी हुई, किन्तु युवती ब्याह के दूसरे ही दिन अगर उसके अपने चचेरे भाई के साथ पलायन कर गई तो इसका एक मतलब यह भी हो सकता है कि युवक को वृहन्नला से और वृहन्नला को युवक के चचेरे भाई से प्रेम रहा हो, किन्तु आर्थिक तंगी के चलते वे दोनों एक सीमा तक मौन बने रहे हों या फिर ब्याह के दो दिनों में ही पत्नी को इस बात का भान हो गया हो कि उसका पति उसके अनुकूल नहीं है / योग्य नहीं ? 

ये ख़बरें हमें चौंकाती हों या कि नहीं पर इनसे हमारे सामाजिक ढांचे के अंदर मौजूद प्रवृत्तियों का अंदाज़ बखूबी होता है, सेक्स के प्रति हमारे बुनियादी आकर्षण को लेकर प्राकृतिकता अथवा अप्राकृतिकता की तर्ज़ वाली बहस बेमतलब हैं...इनसे जी चुराना और निगाहें फेर कर शुतुरमुर्ग हो जाना भी अर्थहीन है, जबकि यह हमारे अपने यथार्थ हैं ! जैसा कि मैं पहले भी कहता रहा हूँ कि प्रेम मुझे हमेशा कन्फ्यूज करता है...इसके मुताल्लिक एक धन एक बराबर दो का कोई पक्का फार्मूला नहीं जानता मैं... 

साभार :
खबर (1) : दैनिक भास्कर ,रायपुर , मंगलवार 21 अगस्त 2012 , पृष्ठ पांच 
खबर (2) : बीपीएन टाइम्स, बिलासपुर ,मंगलवार ,,10 जुलाई 2012, पृष्ठ दो


{ पुनश्च : मित्रों इस पोस्ट को लिखते वक्त , घुघूती जी की एक पोस्ट को लिंक करने का ख्याल था ! उस वक़्त मुझे लगा कि उन्होंने यह पोस्ट डिलीट कर दी है  सो कोई लिंक नहीं जोड़ा,  चूंकि उनका लिंक सही सलामत मिल गया है तो उसे जोड़ रहा हूं }

55 टिप्‍पणियां:

  1. वैज्ञानिक तो कहते हैं कि यह मस्तिष्क में उत्सर्जित होने वाले रसायनों का खेला है बस। इसके आगे कोई कहां समझ पाया है प्रेम को!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. @ डाक्टर रजनीश ,
      मस्तिष्क में उत्सर्जित होने वाले रसायनों का खेला ? या शायद इससे आगे भी कुछ कहना चाहेंगे आप ? बाकी प्रेम अनिश्चित और अबूझ तो खैर है ही :)

      @ संजय भाई ,
      शुक्रिया :)

      हटाएं
  2. इतनी बड़ी दुनिया में सबकी सोच में अंतर तो होगा ही . इन्सान का दिमाग बहुत ज़टिल होता है . उसकी सोच कब क्या करा दे , कोई नहीं जानता .

    प्रेम और सेक्स हमेशा कन्फ्युजिंग रहे हैं .

    जवाब देंहटाएं
  3. पंडित जी, पहले तो बधाई स्वीकार करें - एक रोमानी हेडिंग के लिए "रोंग नम्बर" :)

    दुसरे धरती पर जीवन की कई परते/मानव रिश्ते उघाड़ते उघाड़ते आप थके या नहीं मेरे ख्याल से आपके पाठक थक गए होंगे, ये मेरा मानना है.

    तीसरे
    @..इसके मुताल्लिक एक धन एक बराबर दो का कोई पक्का फार्मूला नहीं जानता मैं ...
    प्रेम इतना सरल या गणित की प्रमेय अनुसार वैज्ञानिक होता, तो मात्र हीर रांझा - शिरी फरिहाद का नाम ही क्यों लिया जाता. काश प्रेम भी ५० रुपे की स्टाम्प पेपर जैसा होता.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. दीपक भाई ,
      रोमानी हेडिंग के लिए 'रांग नंबर' वाली बधाई स्वीकार कर ली है :)

      सच कहूं तो हर इंसान जीवन में एकदम नया नकोर / नया नवेला क्या जीता है ? सारी की सारी घटनायें पुनरावृत्तियों को छोड़कर और क्या हुआ करती हैं ? फिर जो है उसे कहने में थकना कैसा :) वैसे आपकी इस बात से सहमति कि पढ़ते पढ़ते मित्रगण उकता गये होंगे ! लेकिन अपना भी एजेंडा साफ़ है कि जो मित्र प्रेम से उकता जाये उसे कभी माफ मत करो :)

      बस यही बात है जो मुझे इस विषय से लगातार उलझाये हुए है वर्ना ...



      हटाएं
    2. 'लेकिन अपना भी एजेंडा साफ़ है कि जो मित्र प्रेम से उकता जाये उसे कभी माफ मत करो :) '
      इसे मेरी टिप्पणी भी मन जाए.
      घुघूतीबासूती

      हटाएं
  4. १. अदाकार प्राण का कहना था कि सच्चा विलन वही है जिसके परदे पर आते ही लोग गालियाँ बकना शुरू कर दें. यह भी सुना कि टीवी सीरियल में देवता बनने वाल अदाकारों के लोग पैर छुआ करते थे. कहने का मतलब ये कि अदाकार ने खुद को किरदार में ऐसा ढाल लिया होता है कि दिलीप साहब कोढी/बदसूरत आदमी का रोल करने से मना कर देते हैं और अदाकारा सुचित्रा सेन उम्र ढलने के साथ बुर्का पहनकर घर से बाहर निकलती हैं. आपकी पहली खबर वाला शख्स इन तमाम अदाकारों से दो कदम आगे निकला और उसने तो स्वयं को ही औरत मान लिया. दुनिया रंग बिरंगी!

    २. इस घटना पर कुछ भी कहना बेकार है. किसी ने कहा है कि इंसानी दिमाग के अस्सी फी सदी ख्याल सेक्स के गिर्द घूमते रहते हैं. यह घटना भी उसी को साबित करती है.

    रही बात आपके इस सिलसिले की और उनसे बोर होने वाले साथियों (?) की, तो खातिर जमा रक्खें, जिस रोज आख़िरी पाठक भी बचा रहेगा आपकी पोस्टों का, तो शायद वो मैं ही रहूंगा!!

    पुनश्च: उम्मीद करता हूँ परेशानियों ने डेरा समेट लिया होगा.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. (१)
      आभासी दुनिया में घुस कर जीने से यथार्थ के खुरदरेपन के अहसास कमतर लगते होंगे शायद इसीलिये अक्सर लोग यही विकल्प चुन लेते हैं !
      (२)
      सही !
      पाठक होने के मसले पर बहुत बहुत शुक्रिया ! परेशानियां मित्रों द्वारा आरोपित थीं उनके चेहरे स्याह होने लगे हैं सो अपनी परेशानियां भी डेरा डंडा समेट चली हैं :)

      हटाएं
  5. प्रेम मुझे भी कन्फ्यूज़ करता है. जिन समाजों में सेक्स को लेकर वर्जनाएँ उतनी नहीं हैं, वहाँ भी ऐसे किस्से सुनने को मिलते हैं. इसलिए मेरी समझ में ये बिलकुल समझ में ना आने वाली चीज़ है और सबके लिए इसका मतलब भिन्न-भिन्न होता है. इसके लिए कोई एक सर्वमान्य नियम नहीं बनाया जा सकता.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी बिल्कुल , कोई सर्वमान्य नियम / सिद्धांत नहीं ! इसीलिए विज्ञानों के बरक्स समाज विज्ञानों की दिक्कतें कहीं ज्यादा बड़ी हैं !

      हटाएं
    2. मुक्ति के कमेन्ट को हमारा भी माना जाए :)

      हटाएं
  6. खूब खोज-खबर (खबर खोज) रखी है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. खोजी को आभार दिया हुआ है ! हमने सिर्फ ध्यान दिया !

      हटाएं
  7. वैसे मेरे परिचित रांग नंबर की परिणिति, अब खुशहाल वैवाहिक जीवन व्‍यतीत करते सफल दम्‍पति से आप रायपुर आएं तो मिल सकते हैं.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. @ अब ,
      उन्हें सफल / खुशहाल जीवन के लिए शुभकामनायें !

      @ परिचित ,
      खबर में उनका नाम पता नहीं था सो इस विषय में कोई अनुमान नहीं लगाया !

      @ रांग नंबर ,
      प्रश्न चिन्ह पहले ही लगा रखा है !

      हटाएं
  8. फिर से गई भैंस (टिप्पणी) पानी (स्पैम) में!!! :)

    जवाब देंहटाएं
  9. सारी की सारी घटनाएँ पुरावृति ही है अब तो , अरबो खरबों वर्षों पुरानी दुनिया जो हो गयी ...
    मनोहर कहानियां जैसी कहानियों में प्रेम कहा मिलेगा , और मिलेगा तो कन्फ्यूजन रहेगा ही !
    वैसे मैं भी इससे सहमत हूँ कि विभिन्न आख्यानो और संदर्भो के बयान के बीच आपकी मौलिक रचना /आलेख को हम मिस कर रहे हैं !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. पुनरावृत्ति पे सहमति के लिए आभार !
      इस विषय में (उल्लिखित कहानियों के इतर भी) कन्फ्यूजन कोई और विकल्प है ही नहीं !
      व्यक्तिगत रूप से आपका ह्रदय से आभारी हूं कि आप मेरी मौलिक रचनाओं को मिस कर रही हैं !

      वाणी जी , असल में मौलिकता के विषय में मेरी धारणा ज़रा हटके है ! पहला वो बन्दा जिसने पहले पहल कोई एक विचार किया होगा वह मौलिक है और उसके आगे सब पुनरावृत्तियां , सो मैं खुद भी अपने आप को पुनरावृत्तिजीवी मानता हूं , जैसा कि आपने स्वयं दुनिया को वर्षों पुराना माना है तो फिर हमारे लिए 'विषय' की मौलिकता का समय शेष नहीं रहा ! अगर कोई मौलिकता हममें मौजूद है / हो भी , तो वह केवल नज़रिये / पढ़ने / अध्ययन /समझने /बोध , के तरीके की ही हो सकती है ! इसलिए मेरी तमाम पुरानी रचनायें भी मौलिक नहीं है,बस एक नज़रिया है जो मेरा अपना है,सो वो सबका अपना अपना हो सकता है !

      आपने शायद गौर नहीं किया इस ब्लॉग में सबसे नीचे की एक पंक्ति "जो जी चाहे ले लीजिये ! कोई कापी राईट नहीं" ...बस यही मैं हूं :)

      हटाएं
  10. पहली कहानी जहाँ 'रांग-नंबर' को चरितार्थ करती हुई हास्य रस उत्पन्न करती है ,वहीँ दूसरी कहानी हास्य से अधिक करुणा !

    ...दोनों प्रेमकथाओं से अधिक कहीं अपने लिए एक कोने की तलाश ज़्यादा लगती है.आजकल ऐसे किस्से खूब परवान चढ़ रहे हैं.यह भी गनीमत रही कि इन कहानियों में दोनों बेचारे मर्दों को शारीरिक नुकसान नहीं हुआ,वर्ना ऐसे किस्से अकसर अपराध-कथा में तब्दील हो जाते हैं !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपने रस निर्धारित कर दिये तो फिर कन्फ्यूजन कहां रहा :)

      हां , शारीरिकता और आपराधिकता के घालमेल की संभावनायें तो हैं ही / होती ही हैं !

      हटाएं
  11. यह कौन सी बात हुयी कि जो आपको कन्फ्यूज करता है उससे सारी जनता को कन्फ्यूज कर दिया जाय .... :-)
    बाकी इन इंटरसेक्स मामलों को अन्तरराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति नहीं सुलझा पायी तो चौकी थाने ...मगर हाँ चौकी थानों के अपने हथकंडे होते हैं ....
    मैं दो जानकर दंग रह गया कि जेनेटिक सेक्स एक्स वाई के बावजूद भी एक हार्मोनल कमी के चलते भारत की एक एशियाटिक पदक विजेता महिला धाविका और कितने ही दूसरे लोगों का विकास महिला सरीखा हुआ ....या इसके उलट भी मामले हैं -मेरे नज़रिए में इन जानकारियों से आमूल चूल परिवर्तन अभी कुछ माहों से हुआ है -ये सभी क्रूर प्राकृतिक परिहास के परिणाम हैं ...
    इनसे सहानुभूति है ...आप भी चूंकि समाज शास्त्री हैं -इन अध्ययनों से अपने को अपडेट कर लें ..कहेगें तो मैं रिफरेन्स देता रहूँगा -कुछ थोस काम भी करते रहिये -बस ब्लागिंग और ब्लॉग वा ...... पर सारा कुछ दांव मत लगा कर रखिये ..आप सबको मालूम नहीं यहाँ के बिताये पल मेरे जीवन के बस छोटे से छिटके घटक हैं ..बाकी तो मैं और भी जगहों पर हाथ पाँव फिरता रहता हूँ :-)

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अरविन्द जी ,
      कन्फ्यूजन पे सिर्फ इतना कि अपन कौन सा जनता से बाहर हैं :)
      ब्लागिंग के सिवा जो भी जगह हाथ पैर मारने लायक हो उसका पता हमें भी सुझाईयेगा :)
      जैविकता के मसले पर आपसे अपडेट होते रहने का हमारा आग्रह स्वीकार करियेगा !

      हटाएं
    2. "ब्लागिंग के सिवा जो भी जगह हाथ पैर मारने लायक हो उसका पता हमें भी सुझाईयेगा :-)"
      अभी इतना घमासान मचा और अभी भी आप संतुष्ट नहीं हुए -आखिर आप चाहते क्या हैं ?
      क्या बच्चे की जान लेकर ही छोड़ेगें या छुड्वायेगें ? :-)

      हटाएं
    3. मित्रों पे भरोसा बनाये रखिये :)

      हटाएं
  12. संसार का सबसे बड़ा मूर्ख जो सोचे कि वह सब जानता है, सबसे समझदार वह जो अपनी सोच में बदलाव लेन को तैयार रहे, जो मानकर चले कि अभी तो मानवजाति का ज्ञान ही बहुत सीमित है तो फिर एक मानव का ज्ञान कितना सीमित होगा.
    आपके बताए दोनों किस्सों में धोखा हुआ अत: गलत हुआ. किन्तु यदि धोखा न हो और कोई बिना किसीको हानि पहुंचाए जानबूझ कर सम्लैंगिक विवाह करे या फिर तीसरे या चौथे या न जाने कौन से जेंडर से सम्बन्ध बनाए तो हम आपत्ति करने वाले कौन हैं?

    डॉक्टर मिश्रा जी जो बात कर रहे हैं उसपर मैंने अपनी जेनेटिक्स विषय पर रिसर्च करती बेटी से काफी चर्चा की है और नेट पर भी बहुत कुछ उपलब्ध है, इतना कि आँखें खुल जाएँ. जिसे लोग अप्राकृतिक कहते हैं वह मजाक प्राय: प्रकृति भी मानव से करती है. माता पिता तक को अपने बच्चे का सही लिंग नहीं पता होता. बहुत जटिल विषय है.
    घुघूतीबासूती

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. घुघूती जी ,
      आपको हैरानी होगी कि इस पोस्ट के लिए मैंने आपका एक लिंक खोजा जो मुझे डिलीट मिला , आपने एक पोस्ट लिखी थी प्राकृतिक और अप्राकृतिक विषय वाली , मैं उसका लिंक यहां देने का इच्छुक था पर आपने वो पोस्ट डिलीट कर रखी है ! आपके चक्कर में मैंने खुद का भी एक लिंक नहीं दिया जिसमें मुझे वृहन्न्लाओं के बारे में काफी पहले लिखी गयी अपनी एक पोस्ट का ज़िक्र करना था !

      मुझे आपकी वो पोस्ट बहुत पसंद थी मैंने उसे गूगल पर शेयर भी किया था ! अपनी पोस्ट लिखने के बाद , उसे डिलीट देखकर आप पर (भयंकर) क्रोधित बना हुआ हूं !

      हटाएं
    2. चलिये किस्सा खत्म हुआ और गुस्सा भी ! उस वक्त लिंक खोलने पर यह आयटम मौजूद नहीं है का सन्देश कैसे आ रहा था हैरान हूं ! फिलहाल आपका शुक्रिया !

      हटाएं
    3. देखिये घुघूती जी इस विषय पर बिलकुल अपडेट हैं --मुझे अच्छा लगता है ब्लॉग कम्यूनिटी में जब इनफार्म्ड जन मिलते हैं -मैंने इसलिए ही आपको विषयगत अद्यनता की ओर आपका ध्यान दिलाया था ...मगर आप तो मेरी मजाक की बातों पर ज्यादा तवज्जो देने लग जाते हैं - :-( पारस्परिक/या विपरीत/या सामान लैंगिक आकर्षणों में अब जेनेटिक्स की समझ का पहलू आ जुड़ा है -घुघूती जी सही कह रही हैं कई बार बिचारे माँ बाप को भी यह पता नहीं हो पाता कि उनके बच्चे का वास्तविक लिंग क्या है ? किशोरावस्था में पहुंचकर लडके को मासिक स्राव होना पूरे परिवार को कितना आघात दे सकता है सोचिये भला ?
      इसलिए अब लैंगिक आकर्षणों के तमाम पहलुओं को बस कन्धा उचका के ही नहीं निबटाया जा सकता !

      हटाएं
  13. गुस्सा खत्म होने पर बधाई, किस्सा खत्म होने पर संतोष.
    घुघूतीबासूती

    जवाब देंहटाएं
  14. UK-Indian Aarthi Prasad’s theory of sex is quite old : Series 1
    http://www.internationalreporter.com/News-17740/uk-indian-aarthi-prasads-theory-of-sex-is-quite-old-series-1.html
    आरथी प्रसाद जैसी महिला को देख कर ही मन कह उठता हैं The Indian Woman Has Arrived जिस ने घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित की . http://indianwomanhasarrived.blogspot.in/2012/08/indian-woman-has-arrived.html
    Please see this link as well they may be of use to your with regards to this post in case not in sync feel free to delete

    जवाब देंहटाएं
  15. किस्से पढ़ लिए चुकि किस्से अखबरो से लिए गये है तो ये नहीं कहा जा सकता है की जो लिखा गया बिल्कुल वैसा ही हुआ हो और बहुत कुछ होगा जो हमें पता नहीं है ,बाकि रही धोखे वाली बात तो अंदाजे लगाना हो तो ये भी कहा जा सकता है दूसरे किस्से में की प्रेम रहा ही ना हो बस पैसे को लिए किसी का प्रयोग किया गया हो प्रेम के नाम पर , अभी कुछ समय पहले विदेश का भी एक किस्सा पढ़ा जहा पति ने पत्नी को अपना किडनी दान में दिया था अलगाव के बाद उसने अपनी किडनी की मांग कर दी थी पत्नी से :)
    फिर भी इन बातो को एक किनारे रखे और जो मुख्य मुद्दा है उसकी बात करे तो असल में समस्या कही और है , हमारे समाज में जब कभी भी प्रेम और विवाह की बात होती है तो लोगों के दिमाग में एक ही बात आती है वो है सेक्स ,और फिर लोगों को लगता है की एक ही लिंग के दो लोग सेक्स कैसे कर सकते है | सोच कर अजीब लगता है की लोग प्रेम और विवाह के साथ केवल प्रेम , एक दूसरे की सोच भावनाओ समझना, एक दूसरे के सुख दुख में साथ देना , एक दूसरे का जीवनसाथी बनना, एक दूसरे की इच्छाओ , जरूरतों को ध्यान रखना आदि आदि बाते क्यों नहीं जोड़ते है केवल और केवल सेक्स वाला एंगल ही लोगो को क्यों दिखता है , विवाह और प्रेम में जीवनसाथी की जगह सेक्स का साथी ही लोग क्यों देखते है | कई जगह ये सुन कर भी अजीब लगता है की , की सेक्स और प्रेम ( असल में तो इस प्रेम शब्द से भी उन्हें सेक्स की ही ध्वनि सुनाई देती है ) कीजिये किन्तु केवल विवाह के बाद क्या विवाह का अर्थ इतना छोटा और तुक्ष बना देना ठीक है | जब आप प्रेम और विवाह जैसी चीजो के केवल भावनाओ से जोड़ेंगे तो इन रिस्तो में कोई भी खराबी नहीं नजर आयेगी क्योकि किसी को समझने के लिए और उसके सुख दुःख का साथी बनने के लिए विपरीत लिंग का होना जरुरी नहीं है सामान लिंग के व्यक्ति भी ये काम कर सकता है, कई बार तो मुझे लगता है की ये काम विपरिंत लिंग से कही बेहतर सामान लिंग कर सकता है जैसा की हम सभी अक्सर कहते है की एक महिला\पुरुष को एक महिला \पुरुष ही बेहतर समझ सकते है |

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अंशुमाला जी,
      उस किस्से में क्या सच , क्या झूठ था कह नहीं सकते पर बात पुलिस तक पहुँची और सम्बंधित पक्ष ने खबर का खंडन भी नहीं किया सो उसी बिंदु पर हमने भी अपनी बात कह दी ! प्रेम के भिन्न आयाम में से , भाई बहिन और माता पिता वगैरह में सेक्स का एलिमेंट भले ही ना हो पर पति पत्नी में है सो चर्चा करने में हर्ज ही क्या है ! मुद्दा केवल इतना है कि पति पत्नी को पुरुष स्त्री के रूप से हटकर भी देखा जा सकता है स्त्री-स्त्री या फिर पुरुष-पुरुष यानि कि विषमलिंगी होना अहम शर्त ना मानी जाए (लोग इसमें प्राकृतिकता और अप्राकृतिकता जोड़ते हैं सो घुघूती जी का लिंक देखा जाये)

      जब पति पत्नी की धारणा वाले प्रेम पर बात की जायेगी तो सेक्स उसका अपरिहार्य एलिमेंट होगा , अब चाहे स्त्री बनाम स्त्री हो या पुरुष बनाम पुरुष या फिर पुरुष बनाम स्त्री ! आलेख का मुख्य मज़मून ये है कि प्रेम इन सारी धाराओं में मौजूद है जो परस्पर कितनी भिन्न हैं ! प्रेम का कोई एक उसूल ! कोई एक नियम नहीं ! वह बेहद अनिश्चित है , कब कहां घट जाए और कब कहां धोखे की शक्ल में दिखाई दे कह नहीं सकते !

      बहरहाल एक अच्छे कमेन्ट के लिए साधुवाद ! निश्चित ही प्रेम में सेक्स के अलावा दूसरी बातें भी दखी जानी चाहिए ! जैसा कि आपने कहा , इच्छाएं , ज़रूरतें वगैरह !

      हटाएं
    2. अली जी
      @ जब पति पत्नी की धारणा वाले प्रेम पर बात की जायेगी तो सेक्स उसका अपरिहार्य एलिमेंट होगा
      सहमत हूँ विवाह और प्रेम का "एक" एलिमेंट है किन्तु लोग बस इसे ही "एक मात्र" एलिमेंट विवाह और प्रेम में मानते है , जो की ठीक नहीं है |
      जितने भी आम लोगों से एक ही लिंग के लोगों के विवाह और संम्बंधो के बारे में बात कीजिये सभी के लिए पहला प्रश्न यही होता है की दोनों शारीरिक सम्बन्ध कैसे होगा सबसे बड़ी समस्या लोगो को यही दिखती है इसीलिए मैंने कहा की विवाह और प्रेम के लिए मात्र यही एक एंगल नहीं होना चाहिए | घुघूती जी के पहले शिखा जी ने इस विषय पर लिखा था वहा आये कुछ टिप्पणियों से आप को अंदाजा लगा जायेगा |
      आप की ये सभी पोस्टे मुझे भी पसंद है मुझे लगता है कहानी भले आप की ना हो किन्तु बाद में आप अपनी व्याख्या तो करते ही है जो आप का अपना मौलिक विचार है , साथ ही पाठको को भी "बहुत सुन्दर प्रस्तुति" जैसी टिप्पणियों की जगह अपनी सोच रखने का भी मौका मिलता है और लेखक के साथ कई पाठको के भी विचारो को जानने का मौका मिलता है |

      हटाएं
    3. अंशुमाला जी ,
      कमेन्ट की आखिरी पंक्ति में , मैंने आपसे सहमति व्यक्त की है कि सेक्स के अलावा , दूसरी बातें भी देखी जानी चाहिए !

      हम लोग (आप भी) इस दुनिया में बहुत देर से अवतरित हुए सो 'विषय की मौलिकता' के हमारे हिस्से में आने की गुंजायश नहीं बची , कोई ना कोई बन्दा लगभग हर मज़मून पे कह ही चुका है , सो ले दे के 'विषय पे नज़रिये' की मौलिकता का ख्याल मुझे अच्छा लगता है और इसीलिये वे लोग मुझे पसंद हैं जो अपना नज़रिया खुलकर रखते हैं और दूसरों से हटकर चिंतन कर पाते हैं !



      हटाएं
  16. बड़े दि‍न बाद आपका ब्‍लॉग वापि‍स भारत लौटा, अच्‍छा लगा /:-)

    जवाब देंहटाएं
  17. प्रेम का नहीं यह तो सेक्स की कुंठाओं का विस्तार लगता है। प्रेमी तो उगते सूरज, उड़ते परिंदों या फिर कटे चाँद से भी दिल लगा बैठते हैं। :)

    जवाब देंहटाएं
  18. खरगोश का संगीत राग रागेश्री
    पर आधारित है जो कि खमाज थाट
    का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया
    है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी
    झलकता है...

    हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया है.
    .. वेद जी को अपने संगीत कि
    प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
    ..
    Take a look at my web blog ; खरगोश

    जवाब देंहटाएं
  19. जैसा कि मैं पहले भी कहता रहा हूँ कि प्रेम मुझे हमेशा कन्फ्यूज करता है ...इसके मुताल्लिक एक धन एक बराबर दो का कोई पक्का फार्मूला नहीं जानता मैं ..

    शाश्वत सत्य

    जवाब देंहटाएं
  20. प्रेम के मामले में हम आपके अनुगामी हैं. बाकी विज्ञानं आधारित सूक्ष्म बातें हमारे भेजे में नहीं घुस पाती.

    जवाब देंहटाएं