एक बार चांद ने खरगोश को धरती पर मनुष्यों को , ये सन्देश देने के लिए भेजा कि जिस तरह से ‘चांद मरता है और फिर से जी उठता है , उसी तरह से मनुष्य भी मर कर पुनः जी उठेगा’ ! किन्तु खरगोश ने स्मृति विलोपन अथवा द्वेष वश , मनुष्य तक पहुंचाने के लिए सौंपे गए सन्देश को यथावत कहने के बजाये मनुष्य से कहा , ‘चांद जीता और मरता है , सो मनुष्य को मृत्यु के बाद और अधिक नहीं जीना होगा’ ! सन्देश देकर वापस लौटे खरगोश से चांद ने सन्देश पहुंचाने की अद्यतन स्थिति जाननी चाही , तो पहुंचाये गए सन्देश की वास्तविक स्थिति जानकर , चांद बहुत नाराज हुआ और उसने कुल्हाड़ी से खरगोश के सिर पर प्रहार किया , किन्तु कुल्हाड़ी का हत्था छोटा होने के कारण वह खरगोश के सिर के बजाये , ऊपरी होंठ पर जा लगी , जिससे खरगोश के ऊपरी होंठ पर गहरा घाव बन गया ! चांद के इस व्यवहार से क्षुब्ध होकर खरगोश ने अपने पंजों से चांद का मुंह नोच डाला ! इसीलिए हम देखते हैं कि खरगोश के ऊपरी होंठों पर कटा होने का चिन्ह और चांद के चेहरे पर काले काले दाग !
ज़ुलु आदिवासियों में मानव मृत्यु की इस कथा के दो और संस्करण मौजूद है , जिसमें से एक के अनुसार चांद ने खरगोश को मनुष्यों को यह कहने के लिए भेजा कि ‘जिस तरह से मैं मर कर पुनः जीवित हो जाता हूं उसी तरह से मनुष्य भी मरकर जी उठेगा’ लेकिन खरगोश ने मनुष्य को धोखा दिया , उसने कहा कि ‘जिस तरह से मैं मरकर नष्ट हो जाता हूं उसी तरह से तुम भी मरकर नष्ट हो जाओगे’ ! कथा का दूसरा ज़ुलु संस्करण कहता है कि , अपने आध्यात्मिक / अलौकिक संसार के सिंहासन से उठकर ईश्वर ने मनुष्य , पशु और अन्य सभी वस्तुयें बनाई इसके बाद उसने गिरगिट को मनुष्यों को यह बताने के लिए भेजा कि ‘मनुष्य की मृत्यु नहीं होगी’ किन्तु गिरगिट धीरे धीरे / देर लगाते हुए , रास्ते की झाड़ियों की पत्तियों को खाते हुए चला ! कुछ समय बाद ईश्वर ने सलमंदर ( समंदर / अग्नि छिपकली / ड्रेगन सदृश्य जीव ) को मनुष्यों को ये बताने के लिए भेजा कि ‘मनुष्य की मृत्यु होगी’ इस सन्देश लेकर, सलमंदर उसी रास्ते से निकली, किन्तु गिरगिट से पहले ही मनुष्यों तक जा पहुंची और उसने मनुष्यों से कहा ‘तुम्हारी मृत्यु हुआ करेगी‘ !
मृत्यु की ये कथा मसाई आदिवासियों की कथा से मिलती जुलती है , किन्तु यहां पर ईश्वर और मनुष्य के मध्य एक सन्देश वाहक के रूप में खरगोश / गिरगिट / छिपकली मौजूद है , जबकि मसाई कथा में ईश्वर मनुष्य से सीधा आलाप करता है ! वहां पर मृत्यु ईश्वर की अनुकम्पा प्राप्ति से चूक जाने वाली मनुष्य की स्वयं की भूल थी लेकिन ज़ुलु कथाओं में मृत्यु 'सन्देश वाहक के द्वारा पहुंचाये गए सन्देश' की परिणति मानी जायेगी ! एक सन्देश वाहक / गिरगिट की सुस्ती और दूसरे सन्देश वाहक / छिपकली की फुर्ती का अंतर , ईश्वरीय सन्देश के नश्वरता वाले अंश को मनुष्य की नियति बना देता है ! इसी प्रकार खरगोश के रूप में संदेशवाहक की स्वयं की मानसिक मलिनता / धोखेबाजी , अंततः मनुष्य की अनित्यता को निर्धारित कर देती है ! यह आख्यान , सन्देश की विद्रूपता / विरूपता को मनुष्य की मृत्यु का जिम्मेदार ठहराता है ! इस कथा में ईश्वर को सृष्टि का सृजनकर्ता और मनुष्य के लिए अमरता की भावना रखने वाला बताया गया है , किन्तु मनुष्य , संदेशवाहक की कुटिलता के चलते अमरत्व को खो बैठता है !
स्पष्ट तथ्य यह है कि प्राप्तियों / उपलब्धियों बनाम अप्राप्तियों / असफलताओं के निर्धारण में मध्यस्थ की भूमिकाओं का महत्व रेखांकित करते हुए यह कथा हमें यह समझाने का यत्न करती है कि , ईश्वर के सारे दूत मनुष्य के हितचिन्तक माने जाना उचित नहीं होगा , खासकर तब जबकि दूत स्वयं उसी जीवनचर्या से गुज़र रहा हो तो ! इस कथा का चांद ईश्वरीय संस्थिति रखता है , वह मनुष्य को अमरत्व दे सकता है , किन्तु परिस्थितियां मनुष्य के अनुकूल नहीं हैं और संदेशवाहक मनुष्य के लिए अपने जैसा क्षणभंगुर जीवन चाहता है ! चांद के दाग और खरगोश के होठों के बारे में कथा का सुझाव बेहद रोचक है , यहां पर एक सन्देश वाहक अपने स्वामी तुल्य / ईश्वर तुल्य / सन्देशदाता के व्यवहार से क्षुब्ध हो सकता है , उस पर पलटवार कर सकता है और चांद के रूप में ईश्वर स्वयं , सन्देश वाहक पर कुपित होकर ऐन मनुष्यों जैसा व्यवहार करता है , निश्चय ही मनुष्य के आख्यान , उसकी अतृप्त कामनाओं / उसकी वंचितताओं की टीस और कमोबेश उसके स्वयं के स्वभाव को ही अभिव्यक्ति करते हैं !
..ईश्वर के सारे दूत मनुष्य के हितचिन्तक माने जाना उचित नहीं होगा ,खासकर तब जबकि दूत स्वयं उसी जीवनचर्या से गुज़र रहा हो तो !..
जवाब देंहटाएं..आपकी इस पोस्ट के सार तत्व को पहचान लिया हूँ। साधने का प्रयास करता हूँ। वैसे भी मैं दूतों के प्रति तो शुरू से ही संदेह का भाव रखता आया हूँ लेकिन कई बार इन्होने उलझा भी दिया है। खासकर तब जब मैं मिट्टी का लोंदा था। अब खुद को ढालने मे रह रहकर चरक-दरक जाता हूँ। :(
..सुबह-सुबह जब पंछी चहचहाते हैं और वृक्षों के आसपास टहलता हूँ तो लगता है कि यह वह समय है जब मुझे ईश्वर से सीधे संवाद स्थापित करना चाहिए, बगैर किसी दूत के।:)
पुनः
खासकर तब जबकि दूत स्वयं उसी जीवनचर्या से गुज़र रहा हो तो !
.. मैं इस वाक्य अंश के प्रति भी शंकालू हूँ वह यह कि कभी न कभी तो दूत उसी जीवनचर्या से गुजरा ही होगा! उसी जीवनचर्या से गुजरने के फलस्वरूप प्राप्त ज्ञान को सहेज कर संदेश अब बांटता फिर रहा हो!! अतः सीधा संवाद ही श्रेयस्कर मार्ग प्रतीत होता है।
देवेन्द्र जी ,
हटाएंदूत के उसी जीवनचर्या से गुज़रने का आशय , मानवीय दुर्गुणों और सद्गुणों के चक्रव्यूह और मानवीय स्वभाव तथा जीवन मृत्यु के क्रम से जोड़ कर देखा जाए ! यह कथा में निहित एक संभावना है , जहां ईश्वर का संदेशवाहक, उसे प्राप्त सन्देश (प्राप्त ज्ञान) को विरूपित करके बांटता फिरता है ! सो कथा का सन्देश यह कि सीधा संपर्क बेहतर होगा ! वैसे आपने भी इससे मिलती जुलती भावना वाली एक कहावत ज़रूर सुनी होगी , अपना हाथ जगन्नाथ :)
और हां , इस सन्देश का वाहक मैं नहीं हूं :)
आदरणीय अली सा,
हटाएंसंदेशवाहक आप नहीं हैं यह मैं अच्छे से जानता हूँ। संदेश वाहकों की मक्कारी की टांग खींचने वाले और उनसे सतर्क करने वाले ही मानता हूँ। आपकी इस हिम्मत की दाद देता हूँ। संदेश वाहक(खरगोश) की हिम्मत तो देखिए उसने चाँद का मुँह ही नोच डाला! मतलब ये इतने मक्कार हैं कि अपनी बात पिटती देख सत्य को भी दागदार करने से नहीं चूकते। इनका वश नहीं चला वरना ये तो सत्य को मिटा ही देने पर आतुर थे। अब कटे होंठ लेकर भी विष वमन कर ही रहे हैं।:)
हां देखिये तो सही कितनी बार सन्देशवाहक होने का दावा करने वाले लोग ईश्वर को विस्थापित करके स्वयं ही स्थापित हो जाते हैं ! आशय यह कि स्वयं संदेशवाहक ही ईश्वर बन बैठता है !
हटाएंदेवेन्द्र जी,!!
हटाएंगजब का सत्य वचन……
"मतलब ये इतने मक्कार हैं कि अपनी बात पिटती देख सत्य को भी दागदार करने से नहीं चूकते। इनका वश नहीं चला वरना ये तो सत्य को मिटा ही देने पर आतुर थे।"
आशय यह कि स्वयं संदेशवाहक ही ईश्वर बन बैठता है !
हटाएंक़ोई संदेशवाहक खुद ईश्वर नहीं बनता हैं क्युकी ईश्वर भी बिना भक्त के ईश्वर नहीं होता .
अंधे भक्त संदेशवाहक को ईश्वर बना देते क्युकी ईश्वर को किसी ने देखा ही नहीं ,
सिवाए हिग्ग्स बोसन के . केवल हिग्ग्स बोसन को वो अंतर दृष्टि मिली जिसके सहारे से उन्होने दुनिया कैसी बनी को खोजा . लोग हिग्ग्स बोसान को वैज्ञानिक मानते हैं , चाहे तो ईश्वर का सन्देश वाहक मान ले . वो आये हैं ईश्वर का ये सन्देश देने की दुनिया का सृजन कैसे हुआ . हिग्ग्स बोसान पार्टिकल से दुनिया बनी हैं आज कहा जा रहा हैं , ईश्वर का सन्देश किस रूप में समझ आता हैं ये भक्त के आ ई क्यू पर निर्भर हैं
अगर आज के समय में देखा जाए तो कई बंदे पहले सन्देश वाहक होने का दावा करते हैं और बाद में खुद की पूजा शुरू करवा देते हैं , ऐसा सभी धर्मों में देखा गया है !
हटाएंऔर तो और जिन्होंने ईश्वर के होने का विरोध किया / उसके अस्तित्व पर सवाल उठाये हम उन्हें ही ईश्वर की तरह से पूजने लग गए !
बेशक भक्त/व्यक्ति का 'आई क्यू' महत्वपूर्ण है !
एक कथा पढ़ी थी जिसमे भगवान सूअर को ये कह मनुष्य के पास भेजते है की मनुष्य दो बार नहायेगा और एक बार खायेगा किन्तु सूअर ने उलटा कर दिया एक बार नहाना और दो बार खाना इससे मनुष्य का ज्यादा समय रोटी के जुगाड़ में ख़त्म हो जाता था और वो गन्दा भी रहता था सो उसने सूअर को गन्दा रहने और उसी गंदे में खाते रहने का श्राप दे घर से निकाल दिया इसी कारण सूअर वो घर के अंदर नहीं लेते है | खरगोश को छोड़ दे तो छिपकली और गिरगिट मनुष्यों द्वारा कोई खास पसंद नहीं किये जाते है और मौत मनुष्य के लिए सबसे बुरी चीज मानी जाती है हो सकता है इन जानवरों को घर में ना रखने और उनसे हो रही नफरत को देखते हुए इन कहानियो को बनाया गया हो | जहा तक अमरता की बात है तो अमरता के साथ यौवन भी अमर रहे तो तो उसका कोई अर्थ है किन्तु बुढ़ापे असहाय स्थिति में अमरता तो सजा के सामान | वैसे मै अमरता से सहमत नहीं हूं मै मौत का होना जरुरी है बिना मृत्यु के नये का जन्म कैसे होगा | यदि आप ने अपने जीवन में अपनी जिम्मेदारिय नहीं निभाई है और मौत आ जाये तो ये दुःख की बात है किन्तु जब सारी जिमेदारिया निभा दी तो उसके बाद मृत्यु से क्या डर |
जवाब देंहटाएंमनुष्य के इहलौकिक / दैहिक जीवन में अनित्यता में सुंदरता की बात इसी लिए कही गयी है कि वह वृद्धावस्था और असहायता से मुक्त रह सके ! सूकर प्रसंग का बढ़िया उल्लेख किया है आपने ! सुंदर प्रतिक्रिया !
हटाएंछिपकली और गिरगिट तो नापसंद वाले हुए पर हमने खरगोश का क्या बिगाड़ा था :)
मृत्यु अवश्यंभावी है मानव को पक्का यकिन था। पर मानना नहीं चाह्ता था कि उस जैसे बुद्धिमान प्राणी को अमरता प्राप्त नहीं हुई? और सभी की तरह नश्वरता में खपा दिया जाय? "हे जगत का सर्वश्रेष्ठ बुद्धिमान प्राणी तूं अपनी मृत्यु नहीं बचा सकता" इतने भयंकर उलहाने से मानव भीतर तक घायल हुआ होगा। उसने बहाने गढ़े, ईश्वर की वह प्रिय रचना है ईश्वर तो अमरता देना चाहता था (ईश्वर से कौन पंगा ले) पर बीच में इन दुष्ट जानवरों ने काम बिगाड़ दिया। ईश्वर आरोप मुक्त!! निर्बल पशुओं को आरोपी बना आगे कर दिया। कथा बनाकर यह सोचते हुए मुस्करा दिया कि "बुद्धि अभी भी काम कर रही है" :)
जवाब देंहटाएंमनुष्य भले ही नश्वरता के प्रति अरुचि रखता आया हो किन्तु नश्वरता की नित्यता अपने आप में एक तरह की अमरता है ! अगर भारतीय आख्यानों के सन्दर्भ में देखें तो ईश्वर / देवताओं ने पशु ,पक्षियों को अपने प्रतिनिधि / वाहन नियुक्त करके ये सन्देश दिया कि पशु , पक्षी किसी भी सूरत में मनुष्य से हीन नहीं हैं ! आख्यानों में पशुओं के सद और असद कर्मों का उल्लेख इसी आलोक में देखा जाना चाहिए कि वे ईश्वर के प्रिय प्रतिनिधि हो सकते हैं और मनुष्य तक सन्देश पहुंचाने में उनका उपयोग किया जा सकता है हालांकि यही एक जगह है जहां वे ईश्वर के विश्वास के साथ ईमानदार रह सकते हैं अथवा छल कर सकते हैं !
हटाएंवैसे ईश्वर ने बुद्धिमान मनुष्य को अमर नहीं करके बुद्धिमत्ता का ही काम किया है वर्ना मनुष्य ... :)
jitni purani ye dunia hai utni hi yahan har cheez ko lekar kathayen bhari padi hain.sarthak prastuti..प्रोन्नति में आरक्षण :सरकार झुकना छोड़े
जवाब देंहटाएंजी ! धन्यवाद !
हटाएंखरगोश,छिपकली और गिरगिट के बहाने मनुष्य (जो कथाकार है)ने एक तरह से अपनी ही श्रेष्ठता सिद्ध करने की कोशिश की है.वह यह बताना चाहता है कि वास्तव में कुटिलता कहीं और है.अमरत्व के बारे में भी यह उसके दंभ का ही संकेत है कि औरों की कपटता के चलते उसे 'यह' हासिल नहीं हुआ.
जवाब देंहटाएं...वर्ना ईश्वर को यदि मनुष्य को अमर ही करना था तो ऐसे संदेशों की भला क्या ज़रूरत ?
सहमत!! यही कहना चाहता था मैं :)
हटाएंपिछली कथा का हवाला देते हुए मैने भी कहा है कि ईश्वर का मनुष्य से सीधा आलाप हुआ ( देखें पैरा तीन दूसरी लाइन ) यानि कि अगर ईश्वर चाहता तो संदेशवाहक को बीच में नहीं आने देता :)
हटाएंइसका एक मतलब यह है कि यह सब ईश्वर ने जानबूझकर / सुनियोजित ढंग से किया कि मनुष्य अमर ना हो पाये और स्वयं को मनुष्य का हितचिन्तक भी बता दिया कि मैं तो तुम्हें अमर करना चाहता था किन्तु सन्देशवाहक ने गड़बड़ कर दी !
एक व्याख्या यह भी हो सकती है कि मनुष्य ,अमरत्व को लेकर अपनी असफलता को छुपाने के बहाने गढ़ रहा है , क्योंकि कथा उसने स्वयं ही कही है , सो जैसा वो चाहे , जिसके माथे ठीकरा फोड़ दे !
अली सा,
जवाब देंहटाएंआज कुछ कहने की जगह एक सवाल/शंका का समाधान चाहूँगा.. दूत/संदेशवाहक, एक पक्ष का सन्देश दूसरे पक्ष तक पहुंचाने का कार्य करते हैं, अतः दूतों का चयन उनकी बुद्धिमत्ता,ईमानदारी,स्मृति और सबसे ऊपर उसके व्यक्तिगत मनोभावों का मुख्य सन्देश के भावों से पार्थक्य के आधार पर किया जाना चाहिए. ऐसे में खरगोश का चयन जो कछुए के साथ होने वाली दौड में, आधे रास्ते में सो जाने जैसा गैरजिम्मेदाराना व्यवहार प्रदर्शित हो, सर्वथा अनुचित था (इस लोक कथा का उल्लेख मात्र उदाहरण के तौर पर किया है, न कि कालखंड के साम्य के तौर पर).
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दूसरी बात! (मन का संदेह) संदेशवाहक का कार्य सन्देश को जस का तस ग्राहक के समक्ष प्रस्तुत करना है. यदि वह तथ्यों की प्रस्तुति में भूल भी करे तो क्या उससे मूल सन्देश पर कोई प्रभाव पड़ना चाहिए? और यदि उसकी प्रस्तुति मात्र से मूल सन्देश परिवर्तित हो जाता हो, तो उसकी शक्ति मालिक (अर्थात सन्देश देने वाला) से अधिक प्रभावी दिखाई देती है. अतः चन्द्रमा ने जो भी सन्देश भेजा हो, अंततः उस शाप/वरदान का फलीभूत होना संदेशवाहक के ऊपर निर्भर करता है, तब तो भाग्यविधाता खरगोश/गिरगिट/सल्मंदर हो गया.
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जो भी हो, चन्द्रमा के विषय में कहते हैं और वैज्ञानिक मानते भी हैं कि वह मानव-मस्तिष्क का नियंत्रक है, ऐसे में चन्द्रमा द्वारा जीवन-मृत्यु का निर्धारण या चन्द्रमा की कलाओं को जीवन-मृत्यु का मानक मान लेना एक रोचक तथ्य है. इन आख्यानों की एक बात सबसे अधिक प्रभावित करती है... और वो है उनका थ्रिल. शायद इसी कारण, हैरी पॉटर जैसी फिल्मों की श्रृंखला इतनी लोकप्रिय होती रही हैं!!
सुन्दर व्याख्या…सलिल जी,
हटाएंसंदेशवाहक अगर कर्तव्यनिष्ठ नहीं है तो वह सर्वज्ञ का प्रीतिपात्र क्यों है? जानते बूझते अयोग्य हाथों में संदेश की कमान सौपना भयंकर भूल है और सर्वज्ञ कोई भी चूक नहीं करते। सर्वशक्तिमान की आज्ञाओं को निष्प्रभावी करने की क्षमता किसी संदेशवाहक में नही हो सकती, और अगर है तो उस्की शक्तियाँ निसंदेह अधिक है। सर्वशक्तिमान से अधिक शक्ति का संकेत पाखण्डी संदेशवाहक ही दर्शा सकते है। अतः स्पष्ठ है इस तरह की कथाएं थ्रिल के लिए मानवीय कुंठा की प्रतिक्रिया होती है।
सलिल जी ,
हटाएंपहली बात ये कि सन्देश वाहक के चयन में अगर कोई भूल हुई है तो वह चयनकर्ता यानि कि ईश्वर के हिस्से में आना चाहिए ! लेकिन...यदि संदेशवाहक ने निज कारणवश ईश्वर से छल / विश्वासघात किया है तो ईश्वर दोषमुक्त हुआ !
आपकी आशंका मायने रखती है फिर भी आपकी दूसरी बात के लिए एक मिसाल दूंगा ! कुछ दशक पहले संक्षिप्त तार देने का चलन था उसे देखते ही पाने वाला आशंकाओं से घिर जाता था यानि कि तार को पढ़ने से भी पहले :) तारघर को यहां पर सन्देश वाहक माना जाए ! एक व्यवसाई अरसे से घर से बाहर था और उसे घर वापस लौटना था ! सो हुआ ये कि उसके घर पर तार किया गया 'रमेश गुजरिया गए' सन्देशवाहक की मशीनी या शाब्दिक त्रुटि के कारण घर पर तार पहुंचा 'रमेश गुजर गए' इसे पढ़कर हुआ ये कि रमेश गुजरिया की पत्नी को हृदयाघात हो गया ! (यह एक सत्य घटना है)
कहते तो यही हैं कि चांद , धरती के समुद्र को और मनुष्य के भावनात्मक समुद्र को प्रभावित करने का सामर्थ्य रखता है ! शायद यह भी सच हो कि पूर्ण चन्द्र के दिन ज्यादातर आत्महत्यायें होती है ! आपकी प्रतिक्रिया हमेशा की तरह दमदार है !
प्रिय सुज्ञ जी ,
हटाएंकृपया संतोष जी और सलिल जी को दी गयी मेरी प्रतिक्रिया से काम चलाइयेगा !
जी,काम चल जाएगा :)
हटाएंवाह…!
हटाएंआख्यान की सुन्दर व्याख्या आपने कर ही दी है . फिर हम दिमाग पर जोर क्यों डालें !:)
जवाब देंहटाएंफ़िलहाल तो पाण्डे जी के साथ हुआ विमर्श पढ़कर आनंदित हो रहा हूँ .
डाक्टर साहब ,
हटाएंदेवेन्द्र जी ने अपनी दूसरी टीप में बड़ी जोरदार /धारदार बात कही है आनंद तो हमें भी आया !
पौराणिक कथाएं बहुत पढवा दीं , अब कुछ विषय परिवर्तन हो जाए तो कैसा रहेगा ! :)
जवाब देंहटाएंअर्थात कुछ मोडर्न सोडर्ण !
आपका सुझाव बड़ा नेक है पर (फरमाइशी) लक्ष्य अभी पूरा नहीं हुआ है :)
हटाएंडाक्टर साहब , विषय में बदलाव आपने देखा नहीं ? मैं 'स्त्रियां और प्रेम' से 'मौत' के द्वार तक जा पहुंचा हूं :)
लेकिन माध्यम एक ही है -- लोक कथाएं . :)
हटाएंकुछ संस्मरण , गीत , ग़ज़ल आदि हो जाएँ तो क्या हर्ज़ है !
अब विषय परिवर्तन में नारी नरक का द्वार हैं तक ना जाये ये आग्रह हैं
हटाएं@ नारी नरक का द्वार,
हटाएंअरे नहीं , बिलकुल भी नहीं ! मैंने तो डाक्टर साहब से अपने विषय चयन / लेबल्स के हिसाब से मजाक किया था !
डाक्टर साहब,
हटाएं(१)
माध्यम तो मैं भी एक ही हूं एक अदना सा इंसान लगातार :)
और माध्यम ब्लागर भी एक ही है :)
इस तरह से बदलवाईयेगा तो बड़ी मुसीबत हो जायेगी :)
(२)
जी ज़रूर कोशिश करूँगा कि संस्मरण या किसी अन्य विषय पर भी लिख सकूं ! ...लेकिन गीत गज़ल वगैरह तो लिखना नहीं आता मुझे !
अली सा , ज़ाहिर है आपके अनुभव लोक कथाओं तक सीमित नहीं हो सकते .
हटाएंअन्य वास्तविक अनुभव बांटेंगे तो और भी अच्छा लगेगा . :)
इस खरगोश को वाईट रेबिट, जेड रेबिट , गोल रेबिट के नाम से जाना जाता था . ये चन्द्रमा पर ही रहता हैं { था } और अमृत {elixir of immortality} बनाता हैं {था }
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने !
हटाएंसंदेशवाहक की गड़बड़ी ठीक ही रही , वरना पृथ्वी पर भी देव लोक होता , उर्वशी को पुरु कहाँ मिलते ?
जवाब देंहटाएंरोचक अख्यान , टिप्पणियां भी ज्ञानवर्धन कर देती हैं !
निश्चय ही मनुष्य के आख्यान, उसकी अतृप्त कामनाओं/उसकी वंचितताओं की टीस और कमोबेश उसके स्वयं के स्वभाव को ही अभिव्यक्ति करते हैं!
जवाब देंहटाएंBILKUL SAHI.
मनुष्य मरना ही नहीं चाहता. बस दूसरों को उसका दोष दे देता है.
जवाब देंहटाएंखरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल निशाद और
जवाब देंहटाएंबाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम
इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत में
पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
..
हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने
दिया है... वेद जी को
अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट
से मिलती है...
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