बहुत पहले की बात है जब श्वेत और हरी सर्पिणी, पश्चिमी झील पर दो युवतियों का रूप धारण करके घूमने के लिए आये ! वहां बरसात के इस दिन में वे , टूटे हुए पुल पर जू जियान से मिले ! श्वेत सर्पिणी, जू जियान पर आसक्त हो गई और उन दोनों ने शीघ्र ही विवाह भी कर लिया ! एक ओर कई पीढ़ियों पहले जू जियान ने उसे , क्वान यिन की मदद से शिकारियों से बचाया था और वो उस उपकार का बदला चुकाना चाहती थी , दूसरी ओर वो इस साधारण आदमी से सच्चा , ईमानदार और हार्दिक प्रेम करती थी ! विवाह के बाद उन्होंने एक औषधि भण्डार की स्थापना की जिस का नाम बाओहे तांग रखा गया ! कहते है कि अब ये एक राष्ट्रीय धरोहर संस्थान है जो वर्तमान में मनुष्यों को रोगों से बचाने के लिए कार्य करता है !
मई उत्सव के दिन जू जियांग ने अपनी पत्नी को लियुह्वांगजियु नाम का हर्बल पेय पीने के लिए दिया जिसे पीने के उपरान्त उसके औषध प्रभावों को रोक पाने की उसकी सारी कोशिशें व्यर्थ हुईं और वह पुनः श्वेत सर्पिणी के रूप में बदल गई जिसे देख कर , जू जियान आघात से मर गया ! अपने मृत पति के जीवन की रक्षा के लिए उसने धरती से लेकर स्वर्ग तक सहायता पाने के लिए भाग दौड़ की ! बहुतेरी असफलताओं और कष्टों को झेलने के पश्चात वो अपने पति को बचा पाने में सफल हुई ! इसके बाद उसे लेईफेंग टावर में कैद में डाल दिया गया जब तक कि उसके पुत्र जू शीलिन ने , जोकि एक मेधावी छात्र था और जिसने, राष्ट्रव्यापी शाही परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया था, लेईफेंग टावर में आकर ईश्वर से अपनी मां की रक्षा और सहायता की प्रार्थना नहीं की !
यह एक प्रेम कथा के साथ ही साथ पारिवारिक कथा भी है , जो चीनी लोगों की भावनाओं और सोच को अभिव्यक्त करती है ! पश्चिमी झील के दस दृश्यों में से खास कर दो , एक सांझ की आभा में लेइफेंग पैगोड़ा और दूसरा टूटे हुए पुल पर हल्के हल्के गिरती श्वेत बर्फ का दृश्य ! यदि आपको लोक आख्यानों और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की जानकारी हो तो इन दोनों दृश्यों के बारे में आपका नज़रिया / आपकी समझ बदल जायेगी ! प्रतीत होता है कि टूटे हुए पुल पर आहिस्ता अहिस्ता गिरने वाली बर्फ श्वेत सर्पिणी का अहसास कराती होगी और पैगोडा की पृष्ठभूमि संभवतः हरियल वर्ण की हो जोकि शाम के समय की आभा में अपना हरापन खो देती हो , जिससे यह आभास होता हो कि हरी सर्पिणी जा चुकी है !
सतीश सक्सेना शक्तिशाली सर्पिणी में सुहृदयता और बुद्धिमत्ता का संकेत देखते हैं ! वे उसे मानवोचित गुणों से लबरेज मानते हैं , जिसने मूर्ख व्यक्ति के प्रेम में सब कुछ किया पर सुख ना पाया ! रश्मि रविजा कथा से यह संदेश ग्रहण करती है कि स्वयं की मेहनत के सिवा कोई और उपाय नहीं है , साथ ही वे यह प्रश्न भी खड़ा करती हैं कि क्या पुत्र के मेधावी हुए बिना / उसकी सहायता के बिना मां की मुक्ति संभव नहीं थी ? सुज्ञ तत्कालीन समाज में देवयोनि, पशुयोनि और नागयोनि में वैवाहिक संबंधों का निषेध देखते हैं ! वे इच्छाधारी सर्पिणी की नारी रूपी माया और नायक से कपटपूर्ण विवाह का कथन करते हैं , जिसके संज्ञान से नायक को आघात लगता है , हालांकि नायिका नायक की मृत्यु को निष्फल करने के यत्न भी करती है ! नायिका की दुर्दशा के लिए नायक को कायर / कृतघ्न नहीं कहा जा सकता क्योंकि वह परिस्थितिजन्य कारणों से विवश था ! वे मनुष्यों में नाग जाति का अनुमान करते हुए सर्पिणी को नाग जाति का मनुष्य मान लेने , सहमत होते हैं ! वे नायिका की सौम्यता और क्रोध वाले स्वभाव को स्त्री और सर्पिणी के परिवर्तन की प्रतीकात्मकता के आशय में देखते हैं !
सुज्ञ का मानना है कि नायिका के इस प्रयास से नायक अनभिज्ञ रहा होगा / जीवन मृत्यु के बीच उसका स्मृति लोप हुआ होगा अतः उसने नायिका को दंडित किया , जबकि पुत्र ने माता के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह किया ! वे मानते हैं कि यह कथा , संबंधों में भ्रम से होने वाली हानियों के प्रति बोध / जागरण का सन्देश देती है ! रचना कहती हैं कि पत्नी हर्बल दवा पीने से सर्पिणी बन गई , मृत पति को पत्नी ने पुनः जीवित किया किन्तु पति ने उसे कैद कर दिया , कौन पति नहीं करेगा, अपनी पत्नी की सुरक्षा करना पति का धर्म है जो उसने निभाया ! सर्पिणी ही सही थी तो उसकी पत्नी ! वो पुनः स्त्री वेश में आई ऐसा मुझे नहीं दिखा ! अपनी पत्नी को जीवित रखने का और क्या उपाय था उसके पास ! संभव है कि बेटे के पढ़े लिखे होने और ईश्वर से उसकी प्रार्थना के फलस्वरूप वो पुनः स्त्री रूप में आ गई हो ! ये कथा है पत्नी के विश्वास की ,पति के प्रेम की और बच्चे के आत्मिक बल की !
रचना कथा की व्याख्या के पाठकों के अधिकार से सहमत होते हुए सचेत करती हैं कि छल कपट और बुराई के प्रतीकों को अनावश्यक रूप से नारी का पर्याय नहीं बनाया जाना चाहिये ! वे इतिहास की ऐसी तमाम कथाओं को तिलांजलि देने की बात कहती हैं जिनमें नारी को बुराई और पुरुष को अच्छाई का प्रतीक बनाया गया हो ! उनके अभिमत में इस आख्यान से ऐसा बोध नहीं होता कि सौम्यता के वक़्त नायिका स्त्री थी और क्रोध के समय वह सर्पिणी बन गई ! रचना , सुज्ञ के इस तर्क से अपनी असहमति व्यक्त करती हैं ! उनकी आपत्ति व्यक्तिगत रूप से सुज्ञ के विरुद्ध ना होकर उनके अभिमत के विरुद्ध है ! उनके अनुसार सुज्ञ की सौम्यता और क्रोध बनाम नारी और सर्पिणी वाली टीप नारी विरोधी है सो वे अपनी आपत्ति दर्ज कराती हैं ! वे स्त्री पुरुषों को लेकर सोच की भिन्नता को कंडीशनिंग का परिणाम मानती हैं ! इसके बरअक्स सुज्ञ , कथा में सर्पिणी प्रतीक को नारी के लिए प्रयुक्त मानते हैं , उनके मत में यदि पुरुष के लिए सांप का प्रतीक प्रयुक्त किया गया होता तो वे क्रोध / विषवमन जैसे दुर्गुणों की चर्चा पुरुष पात्र के लिए वैसे ही करते जैसे कि उन्होंने स्त्री पात्र के लिए किया है , अतः वे रचना के इस तर्क से अपनी असहमति व्यक्त करते हैं कि उनकी टीप नारी विरोधी है !
अंशुमाला नायक के स्मृति लोप और नायिका के कपट वाली सुज्ञ की धारणा से सहमत नहीं होतीं ! वे आलेख में ऐसे किसी सत्यवान / नायक / दृष्टान्त की कमी पाती हैं , जिसने कथा की नायिका की तरह से अपनी पत्नी के पक्ष में इतना महती योगदान दिया हो ! उनका आग्रह यह है कि कथा की नायिका का प्रेम और योगदान कथा के नायक की तुलना में कहीं अधिक प्रबल है ! अंशुमाला प्रेम की उन असंख्य कथाओं का हवाला देती हैं जिनमें स्त्री असाधारण प्रेमिका के रूप में मौजूद है , किन्तु उनके अभिमत में पुरुषों के सन्दर्भ में ऐसी कथाओं / दृष्टान्तों का नितांत अभाव है , जहां पुरुष प्रेमी प्रेम को लेकर असाधारण सिद्ध हुआ हो / दिखाई दिया हो !
कथा के नायक को डरपोक कहा गया है , जबकि नायिका उसका एक उपकार चुकाने के लिए कृतसंकल्पित थी ! उसे नायक के साधारणत्व के बावजूद नायक से सच्चा प्रेम हुआ , नायिका से विवाह करने से पूर्व खोज परख करने की जिम्मेदारी उस नायक की भी बनती थी ! केवल एक सत्य का छुपाव और शेष अटूट वफादारी ! इसलिये दोष का निर्धारण करते वक़्त संवेदनशीलता से काम लेना होगा ! मुझे लगता है कि विजातीयता शब्द अधिक उपयुक्त है , प्रेमी युगल के विवाह संबंधों को रेखांकित करने के लिए ,चूंकि विजातीय संबंधों का विरोध तत्कालीन समाज द्वारा किया गया होगा , सो नायिका को सर्पिणी कहा गया , प्रतीकात्मकता के हिसाब से देखा जाये तो मुझे नायिका का सर्पिणी होना तार्किक नहीं लगता !
आप गौर करें , आलेख में इस बात को बड़े ही सुंदर तरीके से कहा गया है कि टूटे हुए पुल पर आहिस्ता गिरती हुई बर्फ श्वेत सर्पिणी जैसी प्रतीत होती है , याद रहे इसी पुल पर प्रेमी युगल का मिलन हुआ था ! कितना अदभुत कथन है , टूटे पुल पर गिरती बर्फ का श्वेत सर्पिणी के समान दिखना और नायिका द्वारा इसी जगह पर अपने प्रेमी को दिल दे बैठना उसपे तुर्रा ये , प्रेमिका का विजातीय होना ! सो मेरा अनुमान यह है कि नायिका गौर वर्ण स्त्री ही है , किन्तु गैर जाति की है , नायक से पुल पर मिली सो सर्पिणी समान है , जिसने तत्कालीन सामाजिक परम्पराओं को प्रेम की 'शीत-ऊष्मा' से खुर्द बुर्द कर दिया और फिर सामाजिक दुर्भाव का शिकार हुई !
संभवतः विवाहोपरांत पेय पदार्थ के असर से नायिका अपने 'जाति वर्ग' के अनुरूप आचरण कर बैठी हो , जिसे उसका पुनः सर्पिणी होना कहा गया ! नायक को पत्नी से यह अपेक्षा नहीं रही होगी सो उसे आघात हुआ ! बाकी मैंने जो भी कहा वो अनुमान ही हैं फिर भी , सांप को इंसान और इंसान को सांप बनाने से बेहतर यही कल्पना ज्यादा बेहतर लगती है मुझे ! जातियां पूरे संसार में केवल हमारी विशिष्टता हैं सो भारत में जाति सूचक नाम(संबोधन) भी हो सकता है ! हालांकि चीन में इसे कुल देवता / गण चिन्ह के तौर पर देखा / कहा और उससे जोड़ कर देखा गया हो तो पक्का कह भी नहीं सकते ? संभव है वो हमारे समाज के सपेरों जैसे व्यवसायिक / आर्थिक कुल से हो ?
इस प्रणय गाथा में अपने पति के पुनर्जीवन को प्राप्त करने में सफल स्त्री को कारावास में डाला जाना , स्त्रियों के प्रति समाज के रवैये को उजागर करता है , तथा उसके प्रतिभाशाली पुत्र की प्रार्थना और ईश्वरीय सहायता से माता की मुक्ति का कथन कमोबेश ऐसा ही है जैसे कि हम लोग बिना पुत्र के अभिभावकों की मुक्ति की कल्पना ही नहीं करते ! उल्लेखनीय है कि सर्पिणी और मनुष्य के ब्याह का प्रसंग तथा मृत पति के पुनर्जीवन के लिए पत्नी का प्रयास भारतीय जनमानस को चौंकाने वाला बिल्कुल भी नहीं है ! लगता तो यही है कि एक कृषक समाज तथा बौद्ध धर्म से प्रभावित क्षेत्र के रूप में चीनी समाज , भारतीय लोक जीवन से गहरा साम्य रखता है , वर्ना गहन और ईमानदार प्रेम के बदले, सारे घटनाक्रम के लिए केवल स्त्री को ही दण्डित किया जाना और क्या मायने रखता है ?
{ मित्रो यथा संभव प्रतिक्रियाओं का सार संक्षेप कथा की व्याख्या में जोड़ने का यत्न किया है , संभव है टीप का मंतव्य समझने में मुझसे कोई त्रुटि हो जाये अतः कृपा करके सम्बंधित ब्लॉगर की मूल टीप अवश्य पढ़ें }
Haan....badee koft hotee hai jab bina baat kisee stree ko avmanit kiya jata hai.
जवाब देंहटाएंजी सही है ! शुक्रिया !
हटाएंसरासर बेइंसाफी है. हाँ "जिसे पीने के उपरान्त उसके औषध प्रभावों को रोक पाने की उसकी सारी कोशिशें व्यर्थ हुईं" . क्या उसे पूर्वाभास था. दवा पिलाने की जरूरत ही क्यों पड़ी?
जवाब देंहटाएंआदरणीय सुब्रमनियन जी ,
हटाएंउसे हर्बल पेय क्यों दिया गया ? इसका कोई उल्लेख कथा में नहीं है सो ये मान लिया जाये कि उसे कोई व्याधि हुई होगी तभी उसके पति ने उसे पेय दिया और हर्बल पेय ने रिएक्शन बतौर उसका राज फाश कर दिया ! लेकिन मई उत्सव का दिन होना इस अनुमान में खटक पैदा करता है !
यहाँ तो सर्पिनी की बात है जबकि भारत में तो सावित्री सत्यवान की कहानी पहले ही सभी जानते हैं और जैसा इस सर्पिनी ने झेला ऐसा तो बहुत सी भारतीय नारियां झेलती ही हैं आपने सही कहा भारत के निवासियों के लिए इसमें कुछ भी नया नहीं है सुन्दर प्रस्तुति..हमें आप पर गर्व है कैप्टेन लक्ष्मी सहगल
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद !
हटाएंयह संयोग है या योजित कि यह सर्प प्रणय कथा नागपंचमी के अवसर पर ही आयी?
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी,
हटाएंयह महज़ संयोग ही है !
बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है कि कई ऐसे मौके आते हैं जब हम व्यक्तिगत रूप से सार्थक प्रयास करते हैं,जैसे उस सर्पिणी ने अपने पति को बचाने के लिए किया,पर समाज हमारा साथ नहीं देता.पहले तो समाज ने उसके पति के पुनर्जीवन में कोई सहयोग नहीं किया,बाद में सर्पिणी को सजा भी दे दी.
जवाब देंहटाएं...इस तरह की घटनाएं ही समाज और व्यवस्था के प्रति विद्रोह उकसाती हैं और यह कथा बताती है कि ऐसा चिरंतन-काल से चला आ रहा है !
शुक्रिया संतोष जी !
हटाएंसर्पिणी में मानवोचित गुणों का भी समावेश था , डरपोक जू जियान के प्रति अपने प्यार को साबित करने के लिए, शक्तिशालिनी प्रेयसी ने,वे सब उपाय किये,मगर पुरुष की घटिया और डरपोक मानसिकता के आगे उस प्यार की कद्र न हुई !
जवाब देंहटाएंबेचारी निर्दोष सर्पिणी ..
शक्तिशाली के प्रति भय,सर्पिणी होने का कलंक,मूर्ख व्यक्ति का साथ, बेहतरीन ह्रदय की मालकिन होने के बावजूद उसे सुखी न रख सके !
आपसे सहमति !
हटाएंशायद ये कथा..यह संदेश भी देती है कि माता-पिता के काम आना है...उनका उद्धार करना है तो लायक बनो..मेहनत करो.
जवाब देंहटाएंकथा में यह संशय बना रहता है..अगर उनका पुत्र मेधावी ना होता... राष्ट्रव्यापी शाही परीक्षा में सर्वोच्च स्थान न प्राप्त किए होते तो क्या उसकी प्रार्थना पर उसकी माँ को मुक्त किया जाता?
@ माता की मुक्ति,
हटाएंकह नहीं सकते पर ये बच्चों के लिए भी सन्देश है और अभिभावकों के लिए भी !
भय प्रेम का दुश्मन, साहस और त्याग मित्र हैं।
जवाब देंहटाएंअगर यह सूक्ति आपने बनाई है तो सहमति मानिये वर्ना :)
हटाएंकहानी से यही अर्थ लिया। भय ने एक प्रेमी की जान ली। दूसरे प्रेमी ने साहस और त्याग दिखाया तो मरे प्रेमी को भी जीवत कर दिया। जीवित होने के बाद वह प्रेमी से पुरूष बन गया तो माँ बन चुकी प्रेमिका को पुत्र का ही तो सहारा मिलना था।
हटाएंशायद एक से ऊब कर , पुत्र की मां से अलग कोई और राह भी खोज ली हो उस पुरुष ने ?
हटाएंइच्छाधारी सर्पिणी थी। शायद उस समाज में भी देवयोनि, पशुयोनि व नागयोनि से विवाह को अच्छा नहीं माना जाता होगा।
जवाब देंहटाएंश्वेत सर्पिणी नें माया से रूप धर के नायक के साथ विवाह किया, जड़ी-बूटी पेय से वह अपने असली स्वरूप में आ गई। नायक को इस कपट का ही आघात लगा। उसे पुनः जीवन दिलवाने की भाग-दौड और संघर्ष से नायक अनभिज्ञ रहा। क्योंकि मृत्यु और पुनर्जन्म के बीच की उसे स्मृति न थी। कपट से विवाह करने के दडस्वरूप ही उसने नायिका को लेईफेंग टावर में कैद कर दिया। पुत्र का माँ कों न्याय दिलाना और बचाना मातृ-कर्तव्य प्रतीत होता है।
मेरा मानना है यह आख्यान रिश्तों की गलतफहमी से होने वाले दुखद और हानिप्रद परिणामों का बोध देने के उद्देश्य से प्रचलित हुई है।
@ नायक को इस कपट का ही आघात लगा। उसे पुनः जीवन दिलवाने की भाग-दौड और संघर्ष से नायक अनभिज्ञ रहा। क्योंकि मृत्यु और पुनर्जन्म के बीच की उसे स्मृति न थी।
हटाएं:(
@कपट से विवाह करने के दडस्वरूप ही उसने नायिका को लेईफेंग टावर में कैद कर दिया।
:((
नायक में क्रोध या द्वेष उत्पन्न करने वाला अन्य कोई कारण भी नजर नहीं आता। :(
हटाएंकथा के नायक को डरपोक कहा गया है, जबकि नायिका उसका एक उपकार चुकाने के लिए कृतसंकल्पित थी ! उसे नायक के साधारणत्व के बावजूद नायक से सच्चा प्रेम हुआ, वो रूप बदल सकती थी सो उसे इच्छाधारिणी मान सकते हैं! उसके प्रेम को पाने के लिए उसने नायक से एक बात छुपाई थी तो उसके भावनात्मक और पारिस्थितिक निर्णय के लिए 'कपट' के स्थान पर कोई अन्य शब्द खोज कर कहा जाये तो उचित होगा!
हटाएंकोई भी इंसान अपनी पत्नी को सर्पिणी के रूप में देख कर आघात का शिकार हो सकता है! हालांकि नायिका से विवाह करने से पूर्व खोज परख करने की जिम्मेदारी उस नायक की भी बनती थी! केवल एक सत्य का छुपाव और शेष अटूट वफादारी! इसलिये दोष का निर्धारण करते वक़्त संवेदनशीलता से काम लेना होगा !
नायक के अविवेकी होने में कोई संशय नहीं, दंड निर्णय तो अनुचित कहा जाएगा।
हटाएंकपट की जगह 'माया' से काम चलाया जा सकता है।:)
शब्द माया ठीक है पर पति पत्नी के बीच 'गोपन' जैसा कोई और शब्द सुझाइए !
हटाएंअली सा,
हटाएंआज कल आपके आख्यानों में पलडा नारीवाद की तरफ अनावश्यक ही झुक रहा है।:)
अब कितना सॉफ्ट करवाएंगे? :) मानव मात्र की स्वभाविकता में खपाया जा सकता है न।:)
जी, 'दुराव-छिपाव' ही ले लीजिए :)
वो इंसान जिन्हें आप प्रेम करें , उनके लिए झुकने / साफ्ट बने रहने में हर्ज़ ही क्या है :)
हटाएंशब्द 'दुराव छिपाव' अच्छा है माया से बेहतर !
@ वो इंसान जिन्हें आप प्रेम करें , उनके लिए झुकने / साफ्ट बने रहने में हर्ज़ ही क्या है
हटाएंकुछ हर्ज़ तो है,फर्क पड़ता है……
असंतुलन, प्रेम तो सीमातीत, मात्रातीत हो सकता है किन्तु देने वाले की समय आदि की सीमाए होती है।
जब कोई वस्तु/व्यक्ति अतिशय ध्यान खींचती है तो कहीं कोई वस्तु/व्यक्ति हमारे ध्यान से वंचित रह जाती है।
समाज में भी जब कोई वर्ग अतिरिक्त समृद्ध होता है तो नियमानुसार कोई दूसरा वर्ग अभावों से घिर जाता है।
अर्थशास्त्र का भी नियम है कि यदि एक रूपया आपकी जेब में आया है तो निश्चित ही एक रूपया किसी अन्य की जेब से गया है।
दर्शन-आध्यात्म भी कहते है जब आप अत्यधिक सुखोपभोग करते है तो कहीं दूर किसी के अभावो और पीड़ा का कारण बनते है।
लोगों की मानसिकता में संग्रहवृति या बेलगाम उपभोगवृति जनमती है तब पास ही कहीं शोषित वर्ग पनप उठता है।
अत्यंत असंगत प्रेम किसी अन्य को प्रेम से वंचित रख देता है। संतुलन जरूरी है।:))
@ आज कल आपके आख्यानों में पलडा नारीवाद की तरफ अनावश्यक ही झुक रहा है।:)
हटाएंअब कितना सॉफ्ट करवाएंगे? :)
@कपट से विवाह करने के दडस्वरूप ही उसने नायिका को लेईफेंग टावर में कैद कर दिया।
सुज्ञ जी
पुरुष रूपी मेढक के लिए हर हाल में दंड की जगह माफ़ी की बात और स्त्री के लिए कपट ( मै तो बिल्कुल भी कपट नहीं मानती ) के लिए कोई माफ़ी की बात नहीं उलटा दंड को सही ठहराने की चेष्टा
@ मानव मात्र की स्वभाविकता में खपाया जा सकता है न।:)
पलड़ा एक तरफ झुका लग रहा है आप का भी :)
आप जवाब दीजिये किन्तु मै बहस नहीं करने वाली हूं :)
अंशुमाला जी,
हटाएंबहस तो हमें भी प्रिय नहीं, विमर्श के रसिया अवश्य है, विचार मंथन के वायब्रेशन्स में आनन्द जो आता है।
दंड के पक्ष में हम कभी नहीं रहे, यहां मात्र उस दंड के कारकों पर ही विचार किया गया था। इसी लिए स्पष्ट भी करना पडा कि "दंड निर्णय तो अनुचित कहा जाएगा"
पलड़ा एक तरफ झुका लग रहा है आप का भी :)
मानव में पुरूष नारी (यहाँ पति-पत्नी) दोनो आ गए,फिर पलड़ा कहां एक तरफ झुका?
यह मात्र अपना जवाब देने के लिए है, बहस को प्रेरित करने के लिए नहीं :)
@ अर्थशास्त्र ,
हटाएंमैंने कहा जिससे आप प्रेम करें उसके लिए झुकने में हर्ज़ ही क्या है , विनम्रता और प्रेम, व्यय से घटते नहीं हैं और अर्थशास्त्र, जिसका आपने उल्लेख किया है ,उसके नियम इनपे लागू नहीं होने चाहिये ! भावनाओं को अर्थशात्र के तराजू पे ना तौला जाये !
:) सही कहा, यदि काल व्यय न हो। बाकि तराजु के बिना तुलना सम्भव नहीं, और अर्थ के बिना सहज जीवन!!
हटाएंतौलना या तुलना :)
हटाएं'तौलने' के कार्य को ही तो 'तुलना' कहते है :)
हटाएंअतुल प्रतुल समतोल, तुलना, संतुलन, सभी तराजु की तौलन विधि से ही निसृत हुए है। :)
जब हम किसी की तुलना करते है तब हम उसके गुण-दोषों को तौल ही रहे होते है :)
तराजु का पलडा एक ओर झुकाना, गलत माप-तौल है। दोनो पलडे बराबर संतुलित नहीं होते, तब हम असंतुलित कहते है।
तब तो प्रेम बनाम घृणा , ईमानदारी बनाम बेईमानी , खूबसूरती बनाम बदसूरती , श्रेष्ठता बनाम हीनता , सज्जनता बनाम दुष्टता, धृष्टता बनाम विनम्रता वगैरह वगैरह की पारस्परिक तुलना में असंतुलन से चिंता का कोई कारण नहीं बनता :)
हटाएंमेरा मतलब ये कि प्रेम , ईमानदारी , ख़ूबसूरती , श्रेष्ठता , सज्जनता ,विनम्रता वगैरह अधिक हों तो अतिउत्तम :)
{ तराजू को 'तोलन विधि' / 'मापन विधि' के एक उपकरण के रूप में ही देख रहा हूं इसके अलावा दूसरे मापक उपकरण भी हो सकते हैं }
जी!! सद्गुण अधिक हों तभी अतिउत्तम!!
हटाएंखैर…… पुनः मुख्य विषय पर लौटते है………
रचना जी की टिप्पणी ने इस बात को रेखांकित किया कि वह सर्पिणी पुनः मनुष्य रूप नहीं पा सकी। जब तक वह पुनः नारी-देह न धर सके, पत्नी-धर्म के योग्य नहीं है। शायद उस पति में यह योग्यता नहीं थी कि उसे नारी स्वरूप में ला सके। कदाचित उस सर्पिणी को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से उसने पैगोड़ा में रखा हो!! भविष्य में कभी अनुकूलता आई तो उसे नारी स्वरूप में पुनः पाया जा सके। यह कैद अवस्था उस बुद्धिमान पुत्र को स्वीकार नहीं थी। उसने भी उसे पुनः माँ स्वरूप पाने की प्रार्थना नहीं लग रही। बेटे नें उसके कल्याण व मुक्ति की कामना से प्रार्थना की।
इन तथ्यों की रोशनी में नायक खल प्रतीत नहीं होता न डरपोक या अहसानफरामोश। परिस्थितियाँ ही कुछ ऐसी थी। पत्नी-प्रेम या स्त्री-प्रेम का संदर्भ लेकर क्या सर्पिणी के पक्ष में अत्यधिक सहानुभूति तो नहीं जा रही जबकि पति परिस्थिति वश मजबूर है?
मैंने अंशुमाला जी को जबाब लिखते हुए कहा , "अगर आप कथा की नायिका को सर्पिणी के बजाये विजातीय कहें तो संभवतः उस समय विजातीय विवाहों को सामाजिक स्वीकृति नहीं रही होगी"
हटाएंमुझे लगता है विजातीयता शब्द अधिक उपयुक्त है प्रेमी युगल के विवाह संबंधों को रेखांकित करने के लिए ,चूंकि विजातीय संबंधों का विरोध तत्कालीन समाज द्वारा किया गया होगा सो नायिका को सर्पिणी कहा गया ,प्रतीकात्मकता के हिसाब से देखा जाये तो मुझे नायिका का सर्पिणी होना तार्किक नहीं लगता ! आप गौर करें, आलेख का पैरा तीन ,चौथी लाइन , जहां इस बात को बड़े ही सुंदर तरीके से कहा गया है कि टूटे हुए पुल पर आहिस्ता गिरती हुई बर्फ श्वेत सर्पिणी जैसी प्रतीत होती है, याद रहे इसी पुल पर प्रेमी युगल का मिलन हुआ था !
कितना अदभुत कथन है, टूटे पुल पर गिरती बर्फ का श्वेत सर्पिणी के समान दिखना और नायिका द्वारा इसी जगह पर अपने प्रेमी को दिल दे बैठना उसपे तुर्रा ये , प्रेमिका का विजातीय होना ! सो मेरा अनुमान यह है कि नायिका गौर वर्ण स्त्री ही है किन्तु गैर जाति की है , नायक से पुल पर मिली सो सर्पिणी समान है , जिसने तत्कालीन सामाजिक परम्पराओं को प्रेम की 'शीत-ऊष्मा' से खुर्द बुर्द कर दिया और फिर सामाजिक दुर्भाव का शिकार हुई !
संभवतः विवाहोपरांत पेय पदार्थ के असर से नायिका अपने 'जाति वर्ग' के अनुरूप आचरण कर बैठी हो जिसे उसका पुनः सर्पिणी होना कहा गया ! नायक को पत्नी से यह अपेक्षा नहीं रही होगी सो उसे आघात हुआ ! बाकी मैंने जो भी कहावो अनुमान ही हैं फिर भी, सांप को इंसान और इंसान को सांप बनाने से बेहतर यही कल्पना ज्यादा बेहतर लगती है मुझे !
वैसे तो हमारी परम्पराओं में मनुष्य की ही नागजाति, तक्षकजाति रही है वस्तुतः वे किसी नाग आदि सांपो से उत्पन्न नहीं है सम्भवत् नाग पूजक आदि होने के किसी कारण से उनकी जाति संज्ञा हुई होगी।
हटाएंप्रस्तुत आख्यान सर्पिणी होना प्रतीकात्मक भी ग्रहण करें तो यह किसी स्वभाव अथवा लाक्षणिक व्यवहार की तरफ संकेत है, किसी सांप जैसे गुण-अवगुण की तरफ। ऐसी दशा में भी उसके वे अवगुण स्वीकार नहीं किए गए है। लडकी का रूप लेना अर्थात् सौम्य स्वभाव धारण करना। पुनः सर्पिणी बनना अर्थात् उसका वापस क्रोधी, द्वे्षी या हिंसक स्वभाव में लौटना हो सकता है। क्रोधी होने के उपरांत भी पति पर अत्यधिक प्रेम वश उसके प्राण बचाना हो सकता है। किन्तु अन्य परिवार या समाज के लिए उसके स्वभाव से कार्य लेना दूरह हो, परिणाम स्वरूप उसे एकांत स्थल पैगोडा में वनवास की तरह वास दिया हो। बेटे ने उसके उग्र व विषैले स्वभाव को दूर करने व उसकी मुक्ति के उपाय रूप प्रार्थना की हो।
जातियां पूरे संसार में केवल हमारी विशिष्टता हैं सो भारत में जाति सूचक नाम(संबोधन) भी हो सकता है ! चीन में इसे कुल देवता / गण चिन्ह के तौर पर देखा / कहा और उससे जोड़ कर देखा गया हो तो भी पक्का कह नहीं सकते ? संभव है वो हमारे समाज के सपेरों जैसे व्यवसायिक /आर्थिक कुल से हो ? बहरहाल प्रेमिका के स्वभाव में परिवर्तन को लेकर आपका कथन ठीक माना जा सकता है !
हटाएंकथा को अपने हिसाब से समझना और उसको इन्टरप्रेट करना आप का अधिकार हैं लेकिन मूल कथा क्या हैं और उसका क्या मतलब हैं ये केवल और केवल उस भाषा में जिसमे वो कथा हैं उसमे पढ़ा जाए तभी सही हो पाता हैं .
हटाएंदूसरी और मुख्य बात जिस वजह से यहाँ दुबारा कमेन्ट दे रही हूँ
जब प्रतीक के रूप में बात हो तो हर "बुराई , छल और कपट" के लिये दिये हुए प्रतीक बिम्बों को "नारी" ना बना दिया जाए .
इतिहास में दर्ज कथाओ के आधार में अगर बुराई और चल कपट का पर्याय नारी हैं तो उन कथाओं को तिलांजलि देने का वक्त हैं क्युकी यही हैं जेंडर बायस की पहली सीढ़ी जहां पुरुष अच्छाई का और नारी बुराई का प्रतीक बन गयी हैं .
इस कथा में क़ोई ऐसा बिम्ब या प्रतीक मुझे कहीं नहीं दिखा कई जगह ये कथा अलग अलग रूप में मैने पढी हैं नेट पर ही इस पोस्ट पर कमेन्ट देने के बाद . कहीं भी ये नहीं कहां गया हैं की नारी रूप में सौम्यता थी , क्रोध आया तो नागिन बन गयी .
नारी का सौम्य होना और वही बने रहना अन्यथा नागिन कहे जाना , ये गलत हैं और मै सुज्ञ जी कमेन्ट को नितांत नारी विरोधी मानते हुए अपनी अपनी आपत्ति दर्ज करवाती हूँ . { दिस्क्लैमेर कृपा करके ध्यान दे की मैने कमेन्ट को नारी विरोधी कहा हैं } .
इस प्रकार की सोच एक कंडिशनिंग का नतीजा है जो नारी को बस एक रूप में "सौम्य " में स्वीकार करती हैं और उसके बाकी सब रूपों को "बुराई , छल और कपट" का प्रतीक मानती हैं
रचना जी ,
हटाएं(१)
आपसे पूर्ण सहमति कि कथा अपनी मूल भाषा में ही पढ़ी जाये तो बेहतर है किन्तु दिक्कत ये है कि संकलनकर्ता उसे अपनी भाषा के लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं जैसे कि इस कथा को 'मंदरिन' में ही होना चाहिये पर संकलनकर्ताओं ने इसे 'अंग्रेजी' में दुनिया के सामने लाया और अब हम 'हिन्दी' में प्रस्तुत कर रहे हैं ! कथाओं के प्रसरित होने का तरीका भी यही है ! इस कथा के अनेक वर्शन मंदरिन में होंगे और अंग्रेजी तथा हिन्दी में भी हो जायेंगे पर भाव वही रहें तो बेहतर हो !
(२)
सुज्ञ जी का अपना इंटरप्रटेशन है ! वे कथा की व्याख्या अपनी तरह से करते हैं तो कर सकते हैं हालांकि मैंने उन्हें नायिका को नागिन के बजाये स्त्री ही मानने का सुझाव दिया है और बात उसके स्वभाव तक सीमित की है ! आपकी इस बात से सहमति कि मामला सोशल कंडीशनिंग का है जो व्यक्ति की सोच को विशिष्ट/पृथक बनाती है और जिसके कारण हम एक दूसरे से असहमत भी होते हैं ! आपकी आपत्ति दर्ज की गई !
(३)
उम्मीद करता हूं कि सुज्ञ जी आपकी प्रतिक्रिया पर अपना पक्ष रखेंगे !
प्रस्तुत कथा में ‘सर्पीणि’ प्रतीक स्पष्ठ रूप से युवती के लिए प्रयुक्त हुआ है, इस प्रतीक की व्याख्या करते हुए प्रतीकात्मक गुण-दोष का वर्णन नारी के लिए ही आना अवश्यम्भावी है। यहाँ अगर सांप होता और यह प्रतीक पुरूष के लिए होता तो निश्चित ही क्रोध, उग्रता, विषवमन, बुराई आदि दुर्गुण पुरूष में कल्पित किए जाते। वास्तविक सर्पीणि उसे मान नहीं सकते, जब वह एक नारी ही है और सर्पीणि प्रतीक उसके लिए ही प्रयोग हुआ है, तो व्याख्या का आधार नारी ही होगी। ध्यान देने योग्य तो यह है कि सभी वर्जन में सर्पीणि प्रतीक ही प्रमुखता से उल्लेखित है, कथा शीर्षक भी यही है। मात्र नारी विरोध से बचने के लिए इस तथ्य को कैसे छुपाया जा सकता है। या इग्नोर किया जा सकता है।
हटाएंउन कथाओं को अवश्य तिलांजलि देने का वक्त हैं जो जेंडर बायस की पहली सीढ़ी जहां पुरुष अच्छाई का और नारी बुराई का प्रतीक बन गयी हैं .साथ ही वे कथाएँ भी जो जेंडर बायस आधार पर नारी को कोमल, करूणा, धीरगम्भीर, ममता, प्रेम, मोह, का प्रतीक और पुरूष को कठोर, अधीर, आक्रमक, अत्याचार का प्रतीक दर्शाती है।
नहीं!, सभी इतिहास में दर्ज कथाओ में बुराई और छल कपट का पर्याय नारी नहीं हैं और नारी का इन बुराईयों पर एकाधिकार भी नहीं दर्शाया गया है। अधिसंख्य पुरूष पात्र भी इन बुराईयों के प्रतीक है साथ ही नाग सहित कईं नर प्रतीक भी खल रूप में इतिहास में दर्ज है। जहां जो पात्र जैसा है उसे उसी स्वरूप में देखना ही सम्यक विचार है। अतिश्योक्ति पूर्वक एकांगी पक्षपात देखना वक्र कंडिशनिंग का ही नतीजा है, जहां सौम्य रूप की स्वीकृति बर्दास्त से बाहर है।
नारी हो या पुरूष, समाज में अवगुणों के ‘होने’ अथवा उनके ‘अस्तित्व’ को तो स्वीकार किया जा सकता है किन्तु इस अस्तित्व के आधार पर अवगुणों को प्रधानता देकर चलन में क्यों लाया जाय? अवगुणों की स्थापना किसी भी समाज में मान्य नहीं है, यह समाज की कंडिशनिंग है तो है, लोग इसे ही आचरण कहते है। सद्गुण और सद्व्यवहार की तरफ गमन की इच्छा अगर कंडिशनिंग है तो यह सभ्य समाज की नियमावली है, बुराईयों से अरूचि और अच्छाईयों की अभिरूचि। असतो मा सद्गमय॥ तमसो मा ज्योतिर्गमय॥ मृत्योर्मामृतं गमय॥ मानव मात्र के सांस्कृतिक विकास की कंडिशनिंग है।
मेरा कमेंट जो निश्चित ही मेरे विचारों का प्रतिनिधित्व करता है, विचार जिनमें निराग्रह परिष्कार के लिए जगह है। लेकिन विशेष कर उस कमेन्ट को ‘नितांत नारी विरोधी’ मानने से तीव्र प्रतिकार करते हुए, तथ्यहीन आपत्ति पर प्रतिरोध दर्ज करवाता हूँ, और विचारों पर तोड़-मरोडयुक्त निराधार आरोप लगाने से बचने की सलाह देता हूँ।
यह इसलिए भी नहीं कि मेरी नारी के प्रति किसी छवि के धूमिल होने का भय है, नारी-पुरूष समानता की मेरी सुदृढ अवधारणा है प्रत्येक को मैं स्वतंत्र आत्म रूप में ही देखता हूँ। जब प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्र है तो उनमें गुण दोष भी उनके अपने है और स्वतंत्र रूप से उनके स्वभाव में है। जेंडर तो क्या कर्मों के अतिरिक्त किसी दूसरे आधार पर निश्चयात्मक वर्गीकृत नहीं किया जा सकता।
वैसे तो आपस में लड़ाई
जवाब देंहटाएंपर हिंदी चीनी भाई भाई !
कथा से यह भी साबित सा हो रहा है .
डाक्टर साहब,
हटाएंभाईचारा समाज का और युद्ध राजनीति का , बटवारा बड़ा साफ़ है !
स्त्री पुरुष वाला दृष्टिकोण तो आप ने कह दिया , उससे हमारी सहमती आज तक किसी ऐसे सत्यवान की कथा नहीं सुनी जिसने अपनी "पत्नी" के जीवन के लिए इतना कुछ ( कुछ भी ) किया हो | एक दूसरा कोण प्रेम का भी दिख रहा है ये जरुरी नहीं है की हम जिससे प्रेम करे बदले में वो हमें भी प्रेम करे या उस स्तर तक करे जितना हम सामने वाले से करते है | साफ दिखता है की सर्पिणी जितना अपने पति से प्रेम कर रही है पति उससे उतना नहीं कर रहा है इसी प्यार के कारण वो उसके जीवन के लिए सब कुछ करती है जबकि वही प्यार नहीं होने के कारण पति उसके लिए कोई प्रयास नहीं करता है | इसलिए कई बार सवाल किया जाता है की विवाह या जीवन गुजारना किसके साथ बेहतर होगा वो जो आप को प्रेम करता है या वो जिससे आप प्रेम करते है पर वो आप को नहीं करता है | किन्तु देखा गया है की एक मानव के रूप में हम सभी उसी के पीछे भागते है उसे ही पाना चाहते है जिससे हम प्रेम करते है अक्सर उन्हें कोई भाव नहीं देते है जो हमें प्रेम करते है , (कहानी में ये कोण नहीं है ) मतलब की विवाह के लिए सिर्फ आप का प्रेम करना एक उचित कारण नहीं हो सकता है निश्चित रूप से इससे पति/पत्नी का जीवन तो अच्छा गुजर जायेगा किन्तु कुछ ही समय बाद या किसी कष्ट के समय आप को ये स्थिति बड़ी दुखदाई लगेगी , दोनों तरफ से प्यार ना हो तो दर्द कम होता है किन्तु ढेर सारा प्यार देने के बाद भी बदले में वो वापस ना मिले तो वो ज्यादा दिल को दुखाने वाला होता है | वैसे प्रेम विवाह हो या परिवार ने किया हो, विवाह के समय हंसती खिलखिलाती नवविवाहितो का कुछ ही महीनो बाद उतरता चेहरा इस एक तरफ़ा प्रेम की गवाही देना शुरू कर देता है |
जवाब देंहटाएंअंशुमाला जी ,
हटाएंअभी 'स्त्री / प्रेम' के लेबल से कहानियां दर्ज कर रहा हूं ! आगे कभी 'पुरुष / प्रेम' के लेबल से आख्यान लिखते वक़्त इस तरह की कथाओं को खोजने की कोशिश ज़रूर करूंगा , हालांकि सुना मैंने भी नहीं है कि कोई सत्यवान , सावित्री के लिए उस तरह से भटका हो जैसे कि सावित्री , सत्यवान के लिए भटकी थी !
कथा के नायक और नायिका के दरम्यान प्रेम की तीव्रता का साम्य निश्चित रूप से नहीं था , कथा कहती है कि नायिका आसक्त हुई , वो एक पुराना उपकार भी चुकाना चाहती थी ! कहने का आशय ये है कि कथा की नायिका प्रेम की शिद्दत को लेकर नायक पर भारी है ! किन्तु इसका मतलब यह भी नहीं है कि नायक , नायिका को प्रेम नहीं करता ! उसका आघात केवल एक छुपाव है , अगर आप कथा की नायिका को सर्पिणी के बजाये विजातीय कहें तो संभवतः उस समय विजातीय विवाहों को सामाजिक स्वीकृति नहीं रही होगी !
वैसे भी कथा के नायक को साधारण आदमी और नायिका को असाधारण कहा गया / माना गया है सो दोनों के प्रेम में अंतर भी इसी नज़रिये से देखिये !
अली जी
हटाएंपुरुष के अपनी प्रेमिका से प्रेम की तो बहुत सी कहानिया मिल जाएँगी कहानी तो ऐसी खोजिये जिसमे पति अपनी पत्नी को इस स्तर तक प्रेम करे , पत्नी और प्रेमिका में बहुत फर्क होता है | प्रेम के इस स्तर को छूने वाले तो अपने आप असाधारण बन जाता है चाहे वो किसी भी जाति का हो और जो उसे ना समझ सके उसकी कद्र ना कर सके वो तो साधारण से भी एक पायदान नीचे होगा | प्रेम में किया गया एक अहानिकारक छुपाव उसे याद रहा किन्तु उस छुपाव के साथ उसने जीवन को प्रेम से भर दिया उसके लिए इतना कुछ किया वो सब भूल गया , मुझे तो लगता है पति ने कहने भर का नाम मात्र का भी प्रेम अपनी पत्नी से नहीं किया था , वो बस उसके प्रति आकर्षित था उसे प्रेम का नाम कैसे दे | प्रेम इनसान को अपने आप मजबूत बना देता है फिर समाज का डर किस बात का पर वहा डरपोक का डरपोक ही रहा क्योकि उसके अंदर प्रेम था ही नहीं |
अंशुमाला जी ,
हटाएंखोजने का वादा तो पहले ही कर चुका हूं , शायद आपने ध्यान नहीं दिया !
हमारी पत्नी ही आज भी हमारी प्रेमिका है सो इन दोनों का फर्क हमारी समझ में नहीं आया ! शायद फर्क हो या नहीं भी !
मैंने कहा कि इस कथा में प्रेम के मसले में पत्नी (असाधारण) का पलड़ा भारी है , अब इससे ज्यादा क्या कहूं ?
खोजना पड़ रहा है! मतलब पति के द्वारा अपनी पत्नी को स्तरीय प्रेम करने के किस्से सहज उपलब्ध नहीं है। पुरष लेखक कल्पना करने में भी चूक गये!:)
हटाएं@ खोजना पड़ रहा है ?
हटाएंपड़ नहीं रहा है बल्कि आगे चलकर खोजने का वादा किया है !
जब इस 'लेबल' पर लिखना होगा तब खोजा ही जाएगा इस तरह के किस्सों को ! लेकिन अभी , मुझे , मेरे लक्ष्य से भटका क्यों रहे हैं आप लोग :)
फिलहाल मैं 'स्त्रियों और प्रेम' पर ही लिखूंगा :)
@ आगे कभी 'पुरुष / प्रेम' के लेबल से आख्यान लिखते वक़्त इस तरह की कथाओं को खोजने की कोशिश ज़रूर करूंगा |
हटाएंअली जी
इसे पढ़ लिया था आप ने बस पुरुष प्रेम की बात की थी इसलिए मैंने कह था कि पुरुष के अपनी प्रेमिका से प्रेम की तो बहुत सी कहानिया मिल जाएँगी कहानी तो ऐसी खोजिये जिसमे पति अपनी पत्नी को इस स्तर तक प्रेम करे , पत्नी और प्रेमिका में बहुत फर्क होता है |
इसमे कोई शक नहीं है की आप की पत्नी आज भी आप कि प्रेमिका हो किन्तु जिस समाज में लोग स्त्री पर और खासकर विवाहित स्त्री पर इतनी पाबंदिय लगाते है नियम निर्देश बनाते है क्या वो अपनी पत्नी को प्रेमिका मानते होगे ( कई बार तो इन्सान ही नहीं मानते है ) मै तो देखना चाहती हूं की दुनिया में कितने लेखक है जो इस विषय पर ( पति का पत्नी के प्रति प्रेम ) कोई दिल को छूने वाली कहानी लिखी हो |
जी ज़रूर !
हटाएंपत्नी हर्बल दवा पीने से सर्पिनी बन गयी
जवाब देंहटाएंपति नहीं रहा
पत्नी ने पुनह जीवित किया
पति ने उसके बाद एक जगह उसे कैद कर दिया
कौन पति नहीं करेगा , अपनी पत्नी की सुरक्षा करना पति का धर्म हैं जो उसने निभाया
सर्पिनी ही सही थी तो उसकी पत्नी
क्युकी वो पुनह स्त्री वेश में आयी ऐसा मुझे कथा में नहीं दिखा { हो तो कमेन्ट निरस्त्र हैं खुद ही }
अब पत्नी को जीवित रखने का और क्या उपाय था उसके पास
फिर बेटा पढ़ा लिखा था उसने इश्वर से प्रार्थना की अपनी माँ की हिफाज़त और सहयता के लिये शायद वो फिर स्त्री रूप में आगई हो
लिंक दे तो देखू असली कथा सार क्या हैं
ये कथा हैं पत्नी के विश्वास की , पति के प्रेम की और बच्चे के आत्मिक बल की
चलते चलते
सर्पिनी पत्नी के रूप में
क्या आप जानते हैं की पहले जब कन्या का विवाह छोटी आयु में होता था तो सास कन्या को वस्त्रहीन देखती थी और अगर उसकी पीठ पर रीढ़ की हड्डी की बनावट सर्पिनी के आकर की होती थी तो उस कन्या का विवाह ना मुमकिन था क्युकी वो अपने पति को डसने वाली मानी जाती थी .
और कुछ लड़कियों की कुंडली में भी सर्प दोष माना जाता हैं यानी पति को खाने वाली
चीनी पुरुष लगता हैं भारतीये पुरुषो से ज्यादा बहादुर थे , सर्पिनी हैं पत्नी ये जानने के बाद भी मारा नहीं वरना अपने यहाँ तो आज कल दहेज़ के लोभी जिन्दा जलाते हैं
सादर
रचना
अफ़सोस , मैं देर से आ पाया सो लिंक दे नहीं सका !
हटाएंsir
हटाएंbut you did not give a comment in response to my comment as you have done for other comments
रचना जी,
हटाएंथोड़ा भागम भाग हो गई है रात में जल्दबाजी से काम लिया ! कृपया अन्यथा ना लें आपका कमेन्ट आलेख की व्याख्या में जोड़ने के बारे में सोच रखा है , इसलिये यहां प्रतिक्रिया नहीं दी , आपको बता देना चाहिये था वो मेरी चूक थी !
its ok sir the ever curious child in me makes me read reactions to my comments to furthur grow
हटाएंरचना जी का अवलोकन ठीक है………
हटाएं"…………पति ने उसके बाद एक जगह उसे कैद कर दिया
कौन पति नहीं करेगा , अपनी पत्नी की सुरक्षा करना पति का धर्म हैं जो उसने निभाया
ये कथा हैं पत्नी के विश्वास की , पति के प्रेम की और बच्चे के आत्मिक बल की………"
I searched the net and found many versions of the story but they all have a saint in the story to catches the spirits , also the madam white snake drank wine to please her husband and not any herbal liquid
जवाब देंहटाएंany ways i am happy to have found the source already on the net so no need to email the link thanks again
@ madam white snake "drank wine" to please her husband and not any "herbal liquid",
जवाब देंहटाएंhttp://www.absolutechinatours.com/china-travel/Hangzhou/Lady-White-Snake.html
as already stated in my above comment that there are many versions of this popular story i searched this way chinese love story whitesnake https://www.google.co.in/search?q=chinese+love+story+whitesnake&ie=utf-8&oe=utf-8&aq=t&rls=org.mozilla:en-US:official&client=firefox-a
हटाएंand then read few of them from the top and found wine and saint and many more reasons
आपका कहना सही है !
हटाएं"madam white snake" searching with these terms brings many more results which are very very interesting
हटाएंthis comment is not for publication Mr Ali
padhai jarri hai.....
जवाब देंहटाएंbimb-pratik ko aapas me jorne aur phir pahle se vyakhaya-it vicharon ke saath samya dhoondhne me, dimag ka jor+ hil jata hai...
pranam.
मित्रो, आपकी टिप्पणियां यथावत मौजूद है और उनका भाव संक्षेप कथा की व्याख्या से जोड़ दिया गया है जिसे आप देख सकते हैं , यदि कोई आपत्ति हो कृपया सूचित करें !
जवाब देंहटाएंjust sent a mail to u the interpretation is wrong please delete this comment once you read my mail
हटाएंthanks
आख्यान के नायक की दायित्व हीनता का उल्लेख करते हुए कहती हैं कि पत्नी चाहे सर्पिणी ही सही उसकी सुरक्षा करना पति का कर्तव्य था ना कि उसे कैद में डाल देना !
जवाब देंहटाएंजी नहीं मैने इसका एक दम उलटा कहा था
26 जुलाई 2012 9:25 pm
पत्नी हर्बल दवा पीने से सर्पिनी बन गयी
पति नहीं रहा
पत्नी ने पुनह जीवित किया
पति ने उसके बाद एक जगह उसे कैद कर दिया
कौन पति नहीं करेगा , अपनी पत्नी की सुरक्षा करना पति का धर्म हैं जो उसने निभाया
सर्पिनी ही सही थी तो उसकी पत्नी
क्युकी वो पुनह स्त्री वेश में आयी ऐसा मुझे कथा में नहीं दिखा { हो तो कमेन्ट निरस्त्र हैं खुद ही }
अब पत्नी को जीवित रखने का और क्या उपाय था उसके पास
फिर बेटा पढ़ा लिखा था उसने इश्वर से प्रार्थना की अपनी माँ की हिफाज़त और सहयता के लिये शायद वो फिर स्त्री रूप में आगई हो
लिंक दे तो देखू असली कथा सार क्या हैं
ये कथा हैं पत्नी के विश्वास की , पति के प्रेम की और बच्चे के आत्मिक बल की
सुज्ञ जी ने अपने कमेन्ट में मेरे मत का अनुमोदन किया हैं
27 जुलाई 2012 1:11 pm
खैर…… पुनः मुख्य विषय पर लौटते है………
रचना जी की टिप्पणी ने इस बात को रेखांकित किया कि वह सर्पिणी पुनः मनुष्य रूप नहीं पा सकी। जब तक वह पुनः नारी-देह न धर सके, पत्नी-धर्म के योग्य नहीं है। शायद उस पति में यह योग्यता नहीं थी कि उसे नारी स्वरूप में ला सके। कदाचित उस सर्पिणी को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से उसने पैगोड़ा में रखा हो!! भविष्य में कभी अनुकूलता आई तो उसे नारी स्वरूप में पुनः पाया जा सके। यह कैद अवस्था उस बुद्धिमान पुत्र को स्वीकार नहीं थी। उसने भी उसे पुनः माँ स्वरूप पाने की प्रार्थना नहीं लग रही। बेटे नें उसके कल्याण व मुक्ति की कामना से प्रार्थना की।
आप इस बात को दोनों कमेन्ट के दिये हुए समय देख कर पढिये मेरा कमेन्ट २६ तारीख का हैं उनका २७ तारीख का हैं
आप ने मेरी कही बात को उनका कह कर मेरी ist पूरी टिपण्णी को ही उल्ट दिया
aur jo stri purush vaali baat haen wo pehlae kament kae samay sae agale din ki
your summerization is completly different from my comment and also what i intrepreted in the comment , you gave credit for the same to suyg
please dont use my comment in ur summary let the readers read it in its correct form
thanks
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