शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

लोक आख्यानों की आत्मायें...!

दोंगचिन नाम के बच्चे को सोते समय कहानियां सुनना बेहद पसंद था और वह रात में सोने से पहले अपने पारिवारिक नौकर 'पाक' से कहानी ज़रूर सुनता था किन्तु उसने कथावाचक से वादा ले रखा था कि कहानियां उसके कमरे तक ही सीमित रहनी चाहिये, क्योंकि वह इन कहानियों को किसी दूसरे बच्चे / व्यक्ति से बांटना नहीं चाहता था !  दोंगचिन  की आयु के पन्द्रहवें वर्ष तक ये सिलसिला चलता रहा !  इस समय उसके पिता ने पास की ही घाटी की एक समवयस्क युवती से  दोंगचिन  का ब्याह तय कर दिया, जिसे लेकर सारे परिजन उत्साहित थे ! ब्याह से पहले की रात में दोंगचिन के पिता ने उसके वस्र और उसकी केश सज्जा वैसे ही की जैसी उनकी स्वयं की थी !  दोंगचिन वर्षों से इस समय की प्रतीक्षा में था और वह स्वयं को पूर्ण पुरुष की तरह से महसूस करके गौरान्वित हो रहा था ! ब्याह की सुबह जब सभी परिजन, वधु के घर जाने को तैयार थे तब कथावाचक पाक भी ब्याह से सम्बंधित कामकाज में व्यस्त था ! ऐसे ही किसी कार्यवश  दोंगचिन के कमरे के बाहर से गुजरते हुए ,  उसने कमरे के अन्दर से आने वाली फुसफुसाहट भरी कई आवाजें सुनी !

उसे आश्चर्य हुआ कि मालिक  दोंगचिन तो कमरे से बाहर हैं , तो फिर कमरे के अन्दर कौन बात कर रहा है ? पाक ने खिड़की से अन्दर झांका तो पूरे कमरे में ऊपर , नीचे , चारों ओर सैकड़ों आत्मायें मंडरा रही थीं !  तभी एक आत्मा ने कहा , आपस में बात मत करो , शांत रहो , वर्ना हम कहीं नहीं जा पायेंगे !  दूसरी ने कहा सही है , लड़के का ब्याह आज है , इसलिये हमें तय करना चाहिये कि हमें क्या करना है और फिर कमरे में सन्नाटा छा गया !  एक अन्य आत्मा ने कहा , हमें उसे दण्डित करना चाहिये , जो उसने हम कहानियों को इस कमरे में अटकाये रखा है !  यह सुनकर कथावाचक पाक आश्चर्यचकित हुआ कि वे सब कक्ष में बाधित रखी गई कहानियां हैं ! एक आत्मा ने कहा हां, उसे दण्डित करना चाहिये मगर कैसे ? दूसरी ने कहा मैं ज़हरीले कुंवें वाली कहानी हूं , अगर मैं सड़क पर रहूंगी तो वह मेरा पानी पीते ही बीमार हो जाएगा !  बहुत बढ़िया , और मैं ज़हरीले स्ट्राबेरी वाली कथा हूं , तो मैं सड़क में और आगे के खेत में रह जाऊंगी ताकि अगर वह पानी से बचे तो मुझे खाले , एक अन्य आत्मा ने कहा !

अच्छा चिंतन ,मैं गर्म लाल छड़ वाली कथा हूं , वधु के तकिये के नीचे रह जाऊंगी , अगर वह पानी और स्ट्राबेरी से बचेगा तो मैं उसे भयानक रूप से जला डालूंगी, एक अन्य कथा की आत्मा ने कहा !  हमें यही करना चाहिये , मैं मारक सांप की कथा हूं , सो वधु के बिस्तर के नीचे छुप जाऊंगी,  ताकि वे तुम सब से बचे , तो मैं उन दोनों को दंश कर मार सकूं !  यह सुनकर कथावाचक चिल्लाया , अरे नहीं !  उसने दरवाजे खोले तो कमरे में कोई नहीं था , उसने सोचा , क्या यह मेरी कल्पना थी ? फिर उसने निश्चय किया कि वह अपने युवा मालिक को मुसीबत से बचायेगा !  हालांकि  दोंगचिन  के पिता कथावाचक को अगले दिन की तैयारी के लिए घर पर छोड़ना चाहते थे , किन्तु उसने अनुनय किया कि वह  दोंगचिन के  छोटे श्वेत घोड़े की लगाम थामेगा !  दोंगचिन ने उसकी  इच्छा का समर्थन किया !  बारात में कथावाचक , वर दोंगचिन  के घोड़े की लगाम थाम कर चल पड़ा !  ये बसंत का एक गर्म दिन था , उसने पहाड़ी रास्ते में बारात का नेतृत्व किया !

रास्ते में कुंवां देखकर दोंगचिन ने कहा मुझे प्यास लगी है , तुमड़ी में पानी ले आओ ! आतंकित कथावाचक ने कहा , मालिक आप अपने ब्याह के दिन साधारण तुमड़ी में पानी नहीं पी सकते , वधु के घर तक पहुंचने का इंतज़ार कीजिये और उसने घोड़े को तेज तेज आगे बढ़ा दिया , दोंगचिन  हुक्मअदूली से आश्चर्य चकित हुआ किन्तु उसने कुछ कहा नहीं ! आगे चलते हुए वे स्ट्राबेरी वाले स्थान पर पहुंचे तो , दोंगचिन  ने कहा , मैं भूखा भी हूं और प्यासा भी मेरे लिए रसीली स्ट्राबेरी तोड़ लाओ ! कथावाचक ने कहा , ये स्ट्राबेरी बहुत छोटी हैं ,ब्याह के दिन आपको रसीली और बड़ी स्ट्राबेरी खाना चाहिये जो वधु के यहां मिलेंगी और आगे बढ़ लिया! दोंगचिन  अचंभित हुआ , पीछे से उसके पिता ने पूछा,  वहां क्या हो रहा है ?  तो  दोंगचिन  ने कहा कुछ नहीं !  दोंगचिन ने कथा वाचक से फुसफुसा कर पूछा , ये तुम क्या कर रहे हो ? मेरे पिता को लग  रहा है ,  कि तुम मेरे आदेशों की अवहेलना कर रहे हो ! कथावाचक ने मृदु स्वर में कहा ,मालिक मुझ पर विश्वास कीजिये  ! 

वे वधु के घर पहुंचे तो द्वाराचार के समय  दोंगचिन के ससुर ने स्वागत किया और उसके दो नौकर एक तकिया लेकर खड़े थे ताकि  दोंगचिन उस पर पैर रखकर नीचे उतर सके ! दोंगचिन के पैर तकिये पर पड़ने ही वाले थे , कि कथावाचक ने चिल्लाते हुए तकिया दूर फेंक दिया,  ब्याह के दिन इतना गंदा तकिया !  दोंगचिन सदमें में आ गया , उसके पिता के चेहरे पे तूफ़ान के बादल छाये थे ,  पर वो सबके सामने कुछ कह नहीं सकता था !  दोंगचिन  के ससुर के नौकरों ने जमीन में पड़कर गंदे हो गये , उसके पैर साफ किये ! इसके बाद वे सब बागीचे में गये , जहां पर बने सुंदर मंच पर दोंगचिन का ब्याह उस सुंदर युवती से संपन्न हुआ !  देर रात्रि में मेहमानों के आराम की व्यवस्था के अंतर्गत दोंगचिन को वधु के कमरे में पहुँचाया गया !  मोमबत्ती की रौशनी में , परम्परा के अनुसार , वधु ब्याह के वस्त्रों में , घुटनों के बल एक कोने में बैठी हुई थी !  वो दोंगचिन को देखकर नर्वस ढंग से मुस्कराई ! 

दोंगचिन ने उससे कहा , मैं आपकी सहायता से एक अच्छा पति साबित होने का यत्न करूंगा !  तभी कथा वाचक एक लंबा चाकू लेकर कमरे में घुस पड़ा !  नवदंपत्ति चिल्लाये किन्तु कथावाचक ने बिस्तर दूर फेंक दिया , जिसके नीचे एक सांप फुफकार रहा था !  उसनें सांप को मार डाला और फिर स्तब्ध खड़े  दोंगचिन के सामने घुटनों के बल बैठ कर कहा, मालिक इस व्यर्थ नौकर की धृष्टता को क्षमा करेंगे ! शोर सुनकर  दोंगचिन  के पिता आये और उन्होंने क्रोधित होकर , कथावाचक से इस हंगामें का सबब पूछा !  दोंगचिन ने कहा, पिता , कथावाचक ने मेरी जान बचाई है ! इसके बाद कथावाचक ने पूरे घटनाक्रम का विवरण दिया तो  दोंगचिन ने कहा ये मेरी गलती थी ! आज की रात से मैं ऐसा कभी नहीं करूंगा ! मुझसे वादा करो कि अबसे ये कथायें सब से कहोगे  !  कथावाचक ने वादा किया  ! कथाओं की आत्मा की ये कथा यहीं समाप्त हुई , किन्तु आप जान गये हैं  , सो यह सुनिश्चित करें कि इन्हें दूसरों से कहेंगे , वर्ना कथाओं की आत्मायें आपसे नाराज हो जायेंगी ! 

देवेन्द्र पाण्डेय इस लोक कथा के निहितार्थ पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं , कि कथा यानि कि ज्ञान को तत्काल सार्वजनिक कर देना चाहिये , उसे सीमित रखना उचित नहीं है , किन्तु ज्ञान को सार्वजानिक करते समय वे शिष्य को केवल सद्- साहित्य का ज्ञान दिये जाने पर ही ज़ोर देते हैं !  वे असद साहित्य के दुष्प्रभाव को शिष्य तक नहीं पहुंचने देना चाहते !  शालिनी कौशिक इस आख्यान की शिक्षा बतौर समवेत / संयुक्त ग्रहणीयता , ज्ञान के व्यापक प्रसार की बात करती हैं !  प्रवीण शाह के अभिमत में अच्छी कथाओं का स्वयं का अस्तित्व होता है , अतः इन कथाओं को सीमित दायरे / किसी विशिष्ट दिमाग में बंध कर नहीं रहना चाहिये ! वे ज्ञान को अभिजात्य बौद्धिक समूह की जकड़ से बाहर अधिसंख्य जनसमूह की पहुंच के दायरे में लाना चाहते हैं , वे ज्ञान पर सम्पूर्ण दुनिया का हक़ मानते हैं, इसलिये दोंगचिन जैसे दृष्टान्तों की पुनरावृत्ति की अपेक्षा नहीं करते क्योंकि इससे विनाश होता है !  वाणी गीत कथावाचक को मनोचिकित्सक की भूमिका में व्याख्यायित करती हैं जोकि अपने शिष्य दोंगचिन के अज्ञात भय से दोंगचिन को बचाता है !  ज़ाहिर है कि वे ज्ञानी और अज्ञानी की भूमिकाओं को साफ़ साफ़ रेखांकित करने वाले आशय में कथा अर्थ सुझाती हैं  !   

सुज्ञ इस लोक आख्यान को केवल , सामुदायिक प्रसार प्रचार के बोध तक सीमित नहीं मानते !  वे इसे वैवाहिक जीवन के पूर्व और पश्चातवर्ती संघर्षों के संकेतों और शिक्षा से जोड़ते हैं !  उनके विचार से गुरु पाक अपने शिष्य के , ज्ञान को निज स्वार्थ वश सीमित रखने के, उद्देश्य से आने वाले खतरे / कष्ट को भांप गये थे !  वे कथा के प्रतीकों नव अर्थ देते हुए कहते हैं कि ज़हरीला कुंआ , अतिउत्साह / दुस्साहस के स्थान पर जल की उत्तरदायित्व पूर्ण / नियमित और सचेत व्यवस्था के संकेत देता है ! इसी तरह से ज़हरीली स्ट्राबेरी, भोजन की व्यवस्था में उचित अनुचित के विवेकसम्मत निर्णय और धैर्य तथा साहस का मार्ग सुझाती है ! वे तकिये की लाल गर्म छड़ को वैवाहिक जीवन में आलस्य / अर्थात भस्म करने वाली अग्नि तुल्य मानते हैं और आलस्य से दूर रहने का सुझाव देते हैं !  उनके अभिमत में सेज का मारक सांप, सहशयन के अतिरेक की अवस्था में मारक होने का प्रतीक है इसलिये सहशयन को केवल केवल जीवन आवश्यकता बतौर देखा जाये !   वे दोंगचिन के बहाने शिक्षा की व्यावहारिकता पर बल देते हैं ! 

डाक्टर दराल ज्ञान के सीमित रखे जाने में विनाश के संकेत देखते हैं , उनके अनुसार ज्ञान सर्वलोक के लिए होता है , उसे बांटा जाना चाहिये , कथा के सन्दर्भ में उनकी व्याख्या भारतीय नीति कथा ज्ञान की मछली से साम्य रखती है ! अंशुमाला ज्ञान के सार्वजनीन प्रसार के तथ्य से सहमति के अतिरिक्त कथाओं की आत्मा के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करती हैं , वे दोंगचिन की कथा में सांकेतिक रूप से मौजूद जहरीले कुंवें , जहरीली स्ट्राबेरी , गर्म लाल छड़ और मारक सांप की कथाओं को नकारात्मक आत्माओं / बोध वाली कथा मानते हुए उनकी व्यवाहरिक परिणति के नकारात्मक हो जाने का संकेत देती हैं !  उनके अभिमत में अगर ये कथायें सकारात्मक बोध वाली हों, तो उनके परिणाम भी सकारात्मक होंगे !  उनका आशय यह है कि ज्ञान नकारात्मक हो तो परिणाम भी नकारात्मक होगा और ज्ञान यदि सकारात्मक हो तो परिणाम भी सकरात्मक प्राप्त होंगे !  चूंकि गुरु पाक को शिष्य के प्रति अपनी नकारात्मक कथाओं वाली भूल की अनुभूति हो गई थी , सो उसने समय रहते अपनी भूल का सुधार किया , गुरु होने के नाते ये उसका दायित्व था कि वह दोंगचिन की रक्षा करे , खास कर उन संकटों से जो उसकी ही शिक्षाओं के कारण से सामने आने वाले थे !

बेशक यह आख्यान एक गुरु द्वारा अपने शिष्य को भावी संकटों से बचाने वाले व्यक्ति की भूमिका का निर्वाह करने के आशय में कहा गया , किन्तु हमें यह भी नहीं भूलना चाहिये कि गुरु ने शिष्य के कहने पर ज्ञान को सीमित रखने की भूल की थी , गुरु को उसकी भूल का अहसास कराने वाली कथाओं की आत्मायें प्रतीकात्मक हो सकती हैं और कथा में जगह जगह उपजे संकट भी !  ज्ञानी को अज्ञानी के आग्रह पर ज्ञान के प्रसार की दिशा और सीमायें तय नहीं करना चाहिये , वर्ना इसके परिणाम गंभीर / भयंकर / विनाशकारी भी हो सकते हैं !  इस कथा में उल्लिखित , गुरु की भूल को उसके कर्मचारी होने की संस्थिति का लाभ दिया जा सकता है , यानि कि गुरु अगर उस घर का कर्मचारी नहीं होता तो संभवतः वह ज्ञान को सीमित रखने की भूल कदापि नहीं करता ,  अस्तु उसने अपनी भूल का सुधार भी किया और इस बहाने अपने शिष्य को ज्ञान के प्रसार की शिक्षा भी दे डाली !





{ मित्रो यथा संभव प्रतिक्रियाओं का सार संक्षेप कथा की व्याख्या में जोड़ने का यत्न किया है , संभव है टीप का मंतव्य समझने में मुझसे कोई त्रुटि हो जाये अतः कृपा करके सम्बंधित ब्लॉगर की मूल टीप अवश्य पढ़ें }

93 टिप्‍पणियां:

  1. अभी जो अर्थ सूझ रहा है....

    (1)कहानी लिखो और तुरंत ब्लॉग पर डालो ताकि सभी पढ़ सकें वरना कहानी की आत्मा तु्म्हें मार डालेगी। अभिव्यक्ति पर ताले मत लगाओ। कमेंट का विकल्प खुला रखो।:)

    (2)अच्छा साहित्य ही पढ़ना/सुनना चाहिए। ऊल-जलूल कहानी जैसा की 'पाक' ने सुनाई, नहीं सुननी चाहिए। लड़के ने भयावह कथायें पढ़ी थीं जिनका बुरा प्रभाव तो पड़ना ही था। :)

    (3)यदि ऊल जलूल कहानी पढ़ना ही चाहते हो तो जिसकी कहानी पढ़ो (जिसका ब्लॉग पढ़ो)वह वफादार हो। तुम्हें कहानी पढ़ने से होने वाले नुकसान से बचा सके।:)

    अंत में कहना यह कि आपने 'चाहे जो अर्थ दें' लिखकर अभयदान दिया था इसलिए वही लिखा जो ठीक समझा। आप दंडित तो कर ही नहीं सकते।:)साथ ही कहना यह कि कहानी बहुत रोचक है। इसके अर्थ ब्लॉगर मन से लगायें तो खूब आनंद आयेगा।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अभयदान देने वाले को जम के धुन डाला आपने :)

      हटाएं
    2. पाण्डे जी की टिपण्णी नंबर १ , नंबर एक . :)

      हटाएं
    3. धन्यवाद डाक्टर साहब। मुझे पता था यह कहानी सुपर-सुपर हिट होने वाली है। मजाकिया अंदाज में ही सही लेकिन मैने भी काम भर की व्याख्या तो कर ही दी थी। लेकिन गंभीर विषयों पर मजाकिया ढंग असरकारी नहीं होता। :(

      हटाएं
    4. हास्य परिहास में गम्भीर कथ्य भी सहज ग्रहणीय हो जाता है।:)

      हटाएं
    5. देवेन्द्र जी कोई प्यार से छेड़े तो छिड़ जाने का, नाराज नहीं होने का :)

      हटाएं
  2. अकेले अकेले लिए जाने वाले काम में यही होता है काम सभी के साथ मिल कर कियाजाना चाहिए अर्थार्त यदि हमें किसीसे कुछ सीखने को मिलता है तो हमें उसे अपने तक ही नहीं रोकना चाहिए बल्कि उसे समस्त विश्व में प्रसारित होने देना चाहिए.सार्थक प्रस्तुति सृष्टि में एक नारी,

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इस कथा में मौजूद , सामूहिकता / सहकार / टीमवर्क को प्रश्रय के बिंदु तथा सीखने और उसे प्रसारित करने वाले सन्देश की पहचान के लिए आपका हार्दिक आभार !

      हटाएं
  3. कुछ विचित्र सी कथा है.....पढ़ कर ही लगता है कि आम भारतीय लोक कथा से अलग है...

    पढवाने का शुक्रिया.
    रमजान मुबारक.

    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. कथा नि:संदेह विचित्र सी लगती है किन्तु आत्माओं की मौजूदगी / अस्तित्व के मसले पर यह कथा भारतीय परिदृश्य से अभिन्न है !

      आपका बहुत बहुत शुक्रिया !

      हटाएं
  4. मित्रो,
    कथा की प्रतीकात्मकता और उसके निहितार्थों पर टिप्पणी कीजियेगा क्योंकि आपकी सारगर्भित टिप्पणियाँ मैं कथा की व्याख्या में जोड़ने वाला हूं !

    जवाब देंहटाएं
  5. और तभी यह कथा भी यहाँ तक आ गयी -बहुत रोचक!

    जवाब देंहटाएं
  6. .
    .
    .
    १- अच्छी कथायें स्वयं का एक अस्तित्व सा बना लेती हैं ।
    २- किसी भी अच्छी कथा को बंध कर नहीं रहना चाहिये... न लिखने वाले के दिमाग में(वहाँ से तो उसे जल्दी से जल्दी बाहर निकल कागज पर उतरना चाहिये)... न किसी बौद्धिक-आभिजात्य-समूह की जकड़ में... न अधिसंख्य की पहुंच से बाहर की कीमती जिल्दों में... वे सारी दुनिया की हैं और दुनिया का हक है कि उन कथाओं को बाँच सके-सुन सके, कथा का भी हक है कि वह दुनिया के हर हिस्से में बाँची जाये, सराही जाये, चर्चित हो...
    ३- आइन्दा कोई दोंगचिन किसी पाक को केवल और केवल अपने लिये कथा कहने का फरमान न सुनाये, इससे विनाश होगा...



    ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रवीण शाह जी,
      बहुत सुंदर ! शानदार ! आपसे अपेक्षित व्याख्या !

      हटाएं
  7. हमें ये समझ आया कि -

    १. अपने ब्याह के दिन साधारण तुमड़ी में पानी नहीं पी सकते , वधु के घर तक पहुंचने का इंतज़ार करना चाहिए,

    २. ब्याह के दिन आपको रसीली और बड़ी स्ट्राबेरी खाना चाहिये जो वधु के यहां मिलेंगी'

    ३. ब्याह के दिन तकिये पर पैर नहीं पड़ने चाहियें,

    ४. एक लंबा चाकू अपने पास रखना चाहिए|

    जवाब देंहटाएं
  8. मुझे लगता है यहाँ कथावाचक मनोचिकित्सक की भूमिका में है .जिस अज्ञात भय से स्वय दोंगचिन भी वाकिफ नहीं , उसने उसे समझा, दूर किया .

    जवाब देंहटाएं
  9. कथावाचक ने अंततः अपने मालिक को बचा लिया क्योंकि उसने खुद आत्माओं की कथा सुन ली थी.

    ....पर मैं किसी डर से ये कथाएं किसी और को सुनाने वाला नहीं हूँ.ये समझाती कम डराती ज़्यादा हैं !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मालिक को बचा लेने वाला बिंदु ध्यान देने योग्य है ! उसके आगे जैसा आपका निर्णय :)

      हटाएं
  10. बहुत सालों पहले जब ऑरकुट नाम की चीज़ इंटरनेट पर सक्रिय हुआ करती थी, तब 'ये माता जी का मंत्र है/ फलाना धिंका मंत्र है, ५० लोगो को फारवर्ड करो नहीं तो पाप लगेगा का कुछ अशुभ हो जाएगा' किस के स्क्रैप बहुत चलते थे. उनका स्रोत अब पता चला है :)

    लिखते रहिये :)

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मजाल साहब,
      काफी अरसे बाद मुलाकत हुई ,आपका स्वागत है !

      क्या हम उस धंधे के बारे में सोचें :)

      हटाएं
    2. aap ki ye majaal ke aap yse dhandhe ke bare sochen.....

      pranam.

      हटाएं
  11. प्रवीण शाह जी ने बहुत कुछ कह डाला. अब केवल हमारे तरकश में यही बचा है " आ नो भद्रा क्रतवो यन्तु विश्वतः"

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय सुब्रमनियन जी,

      आपका बहुत बहुत धन्यवाद !

      हटाएं
  12. सो अब हमें, आपके तमाम आख्यान, कम से कम दो बार सबको सुनाने पड़ेंगे साथ ही हर आख्यान कम से कम १० लोगों को मेल , इस आशय के साथ करना चाहिए कि वे भी आगे दस लोगों को अवश्य भेजें ! अगर भेजने में भूल हुई तो तकिया के नीचे से ...जिन्न
    बाप रे ...
    आज ही यह काम करता हूँ

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चिंता नै करो मालक ,विश्वास करौ सेवक पै !

      गंडासा लेके खड़े रहेंगे हुज़ूर :)

      हटाएं
    2. तब तो बल्ले बल्ले ...

      जाओ पहले ...
      डॉ अरविन्द मिश्र के गुरु को ढूँढ के लाओ !

      हटाएं
    3. itta ghanghor chaileng......jinka 'gurudum' se koi vasta nai ..... unke guru
      dhoondhane ke liye keh riye ho aap?????


      pranam.

      हटाएं
    4. जिन्न कुछ भी कर सकता है
      हमें इसका फायदा उठाना चाहिए :)

      प्रवीण शाह को ताबीज पहनाना अगला काम होना चाहिए !

      हटाएं
    5. सतीश भाई,
      ढूंढने से उनके गुरु तो मिल ही जायेंगे ! पर आपके सुझाव के आईने में अरविन्द जी की उम्र अभी भी ब्याह के लायक हुई :)

      प्रवीण शाह जी से दुखी लग रहे हैं आप :)

      सञ्जय जी ,
      सतीश भाई और अरविन्द जी यारी / दोस्ती बस ऐसी ही है :)

      हटाएं
    6. @ प्रवीण शाह जी से दुखी लग रहे हो आप ...

      बिलकुल नहीं , प्रवीण शाह सम्मानित हैं मगर जिन्न से कौन सा काम कराया जाए ?? :)

      हटाएं
    7. दुखी होने के लिए सम्मानित और असम्मानित में भेद कैसा :)

      प्रवीण शाह जी, ताबीज फाड़ / जिन्नात गाड़, व्यक्तित्व और चिंतन के धनी है, ताबीज पहनवाकर आप काहे उन्हें अंधों की जमात में भर्ती कराना चाहते हैं :)

      हटाएं
  13. यह कोई कथाओं के सामुदाहिक प्रसार प्रचार का बोध देने मात्र के लिए आख्यान नहीं है। यह आख्यान, विवाह पूर्व सूचित किए जाने वाले और विवाह बाद आने वाले संघर्षों की तरफ संकेत कर रही है।
    वाणी जी के "कथावाचक मनोचिकित्सक की भूमिका" और संजय जी के 'कुटिल खल कामी संकेतो' से मुझे यह चिंतन-बीज मिला। सादर आभार सहित!!
    वस्तुतः आख्यान की यह कथाएँ, जीवन संग्राम में विवाह पूर्व शिक्षित करने के उद्देश्य से ही कथावाचक 'पाक' द्वारा कही गई है। किन्तु अमूल्य ज्ञान को मात्र अपनी ही प्रगति लिए सुरक्षित रखने के उद्देश्य से दोंगचिन कक्ष सीमा की शर्तें रखता है। जब 'पाक' को ध्यान आता है कि ज्ञान सुना तो गया पर धारण नहीं किया गया है इसलिए कथा में कथित सारी समस्याएं और कष्ट दोंगचिन के जीवन में आने ही है। और दोंगचिन विवाह-बाद के जीवन संघर्ष से अज्ञानी रहकर मुसिबतों में फंस सकता है।

    >विवाह बाद………

    १. पूर्ण जिम्मेदारी और सावधानी से नियमानुसार पानी की व्यवस्था करनी है, उज्झड अतिउत्साह दुस्साहस से नहीं।(ज़हरीला कुंआ)

    २. भोजन व्यवस्था, साहस व धैर्य व उचित-अनुचित का विवेक करते हुए पत्नी सहित करना है।(ज़हरीले स्ट्राबेरी)

    ३. वैवाहिक जीवन में आलस्य, भस्म करनेवाली अग्नी के समान है, कदम न धरें। (तकिये में गर्म लाल छड़)

    ४. सहशयन को जीवन की आवश्यकता की तरह लें, उसी में डूबे रहने पर वह विषधर समान है। (सेज में मारक सांप)

    कथावाचक दोंगचिन कथ्य शिक्षा को प्रेक्टिकल स्वरूप में सीखा जाता है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. देवेन्द्र जी ,
      आपने सुज्ञ जी की स्थापनायें उत्कृष्ट मान ली हैं सो अब ये बताइये कि आपकी वालियों का क्या करूं :)

      हटाएं
    2. यह व्याख्या नये अर्थ देती है। अपनी व्याख्या से अच्छी लगी लेकिन इसका मतलब यह थोड़े न है कि मेरी वाली को कूड़े में फेंक देंगे।:)

      हटाएं
    3. यह भी ध्यान देने वाली बात है कि मेरे मजाकिया ढंग से कही हुई मूल बात.."अभिव्यक्ति पर ताले मत लगाओ" से इतर गंभीर व कसे हुए सुंदर शब्दों में, उसी बात को विस्तार देते हुए, प्रवीण शाह जी ने भी कहा है। जिसे आप 'बहुत सुंदर!' 'शानदार' कह चुके हैं।:)

      हटाएं
    4. @ अपनी व्याख्या से अच्छी लगी ,

      अरे भाई मैंने इसीलिये तो पूछा कि आपकी व्याख्या का क्या करूं :)

      हटाएं
    5. देवेन्द्र जी, कह भी दो कि मैं सौजन्य वश कह रहा था कि "अपनी व्याख्या से अच्छी लगी" स्वमुख से प्रसंशा अच्छी नहीं होती इसलिए। अली सा के मन में पहले से ही आप वाली उत्कृष्ट तो है ही, और उँची भी लगी है नम्बर 1 पर। :)

      हटाएं
    6. सुज्ञ जी,
      सौजन्य वश! अरे नहीं..ब्लॉग में मैं किसी के वश में नहीं रहता न सौजन्यता न दुर्जनता। दिल से निकली प्रतिक्रिया है। मेरी वाली को तो 'अली सा' पहले ही खारिज कर चुके हैं।:)

      हटाएं
    7. हद हो गई भाई, मैंने कहा, अभयदान देने वाले को जम के धुन डाला आपने, और आप कह रहे हैं कि अली सा तो पहले ही से ख़ारिज कर चुके है, अब कोई भी कहे कि पिटने वाली की इच्छा क्या ? अनिच्छा क्या ? :)

      हटाएं
    8. हां!! देवेन्द्र जी,

      अली सा उसे धुनाई तो कहे ही है। :)
      बाकी अली सा है "कहन के नापदार" :)

      हटाएं
    9. जब धुनाई करने वाला धुनके भूल जाये तो क्या किया जाये ? दोबारा धुने जाने की संभावना तो बनी ही रहती है :)

      हटाएं
    10. काहे शर्मिंदा कर रहे हैं सर जी!:)

      हटाएं
    11. देवेन्द्र जी,
      शर्मिंदा क्या, हम सभी शरमा के रह जाएँगे, अगले एपीसोड में 'अभयदान' मिलने वाला नहीं :)

      हटाएं
    12. मित्र की धुनाई से बुरा क्यों मानना , अभयदान ज़ारी रहेगा :)

      हटाएं
  14. एक्साम देने की आदत छूट सी गई है . क्यों हमारा टेस्ट ले रहे हो प्रोफ़ेसर साहब ! :)

    जवाब देंहटाएं
  15. इस कथा में कथा का नायक देंगचिन कथाओं को अपने तक सीमित रखना चाहता है . जबकि लोक कथाएं तो सर्वलोक के लिए होती हैं . सब तक पहुंचें , तभी उनका उद्देश्य पूर्ण होता है .
    इसी तरह ज्ञान भी बाँटने से बढ़ता है . ज्ञान को सीमित रखने से ज्ञान का अंतत : विनाश हो जाता है . इसीलिए इतनी पुस्तकें , आलेख , और अन्य संसाधनों द्वारा ज्ञान बांटा जाता है .
    कथा से इस बात बात का बोध होता है -- ज्ञान को अपने तक सीमित मत रखिये , सबको लाभान्वित होने दीजिये .

    यह कथा का एक सार है . और भी कई अर्थ निकल सकते हैं . आपके निष्कर्ष का इंतजार रहेगा .

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. डाक्टर साहब आपने बहुत गहरी और अर्थपूर्ण बात कही है !

      पहले मैंने इस आलेख का शीर्षक 'ज्ञान की मछली' रखा था फिर ये सोचा कि टिप्पणीकार मित्रों को लगेगा कि मैं ज्ञान के बांटने और सीमित रखने वाले संकेत दे रहा हूं सो उसे हटाकर नया शीर्षक लिख दिया !

      हटाएं
    2. हास्य कवि से गंभीर बात निकलवा ही ली आपने! बधाई।:)

      हटाएं
    3. हास्य एक गंभीर विषय है :)

      हटाएं
  16. ये लो ! टिपण्णी को प्रेत आत्मा ले उडी ! :)

    जवाब देंहटाएं
  17. संजय जी और वाणी जी से प्रेरित आपकी व्याख्या प्रभावित करती है खासकर नायक के ज्ञान परिष्कार को लेकर आपका वक्तव्य !

    विवाह के बाद ... के चारों वक्तव्य शानदार हैं , आपके चिंतन का परिणाम हैं ! प्यास को नियम से जोड़ना और अतिउत्साह से पृथक करना ! उचित अनुचित के भेद में विवेक और पत्नी का साथ ! वैवाहिक जीवन में आलस्य निषेध ! सहशयन की अतिशयता का मारक होना ! सभी बढ़िया सुझाव !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभार अली सा,

      जब कहानियां अपना परिचय दे रही थी तो उनके नाम देखकर लगा कुछ विशेष संकेत होने चाहिए। कहानियां बोधदायक ही होती है पाक कथित वे कहानियां जो भी रही होगी, उसमें जीवन शिक्षा तो अवश्य रही होगी।

      हटाएं
  18. लो जी आने में बड़ी देर कर दी, हमारे कहने के लिए ज्यादा कुछ बचा तो नहीं है विद्वान जन पहले ही सभी मायने व्याख्याए कह चुके है | एक दो हमारे दिमाग में थी वो भी सब ने कही दी है , जैसे की कहानियो -ज्ञान को जितना फैलाया जाये उतना अच्छा | एक और बात आ रही है फ़िलहाल, जो अभी तक किसी ने नहीं कही है , वो ये की जिन भी कथाओ की आत्माये बात कर रही है उन कथाओ से पता चलता है की ज्यादातर कहानिया , नकरात्मक बुरी कहानिया है , मतलब जहरीला कुंवा , ज़हरीले स्ट्राबेरी ,गर्म लाल छड़ और मारक सांप ऐसी कहानिया तो उनकी आत्माये भी बुरी ही होंगी और वो हर काम बुरे तरीके से ही करेंगी जैसे यदि कहानी मीठे कुंवे की होती तो उस कहानी की आत्मा उस कमरे से बाहर आने के लिए कहती की विवाह के समय मै रास्ते में मीठा कुंवा बन कर रहूँगा और पानी इतना मीठा कर दूंगा की मुझे पीते ही उसे मीठे कुंवे की कहानी याद आ जाएगी और वो उसका जिक्र जरुर किसी ना किसी से करेगा क्योकि विवाह में बहुत से लोग आये रहेंगे, उसी तरह मीठी स्ट्राबेरी , एक मजबूत छड जो घर को मजबूत बनाता है और मारक सांप की जगह कोई मीठा बोलने वाली कोयल , ये परी की कथा सुनाई जाती तो कथा अच्छे नियत से और अच्छे तरीके से नायक को अपनी याद दिला कर उसे उकसाती की वो उन कहानियो का जिक्र किसी और से कर के उन्हें मुक्त करे | पाक को ये बात समझ आई होगी की उसने दोंगचिन को गलत कहानिया सुना कर उसे खतरे में डाल दिया है इसलिए अब मेरा और फर्ज बनाता है की मै उसे अपनी बुरी कहानियो से बचाऊ | बिल्कुल वैसे ही जैसे कहते है की बच्चो को सोते समय अच्छी कहानिया सुनानी चाहिए ताकि उन्हें रात में अच्छे सपने आये और वो चैन की नीद सोये ना की बुरी कहानिया जिन्हें सुन कर भूत प्रेत और खाने को दौड़ता शेर ( अक्सर बच्चे ऐसे ही डरावने सपने देखते है ) उन्हें नजर आये | एक छोटी संभावना और है की पाक को लगा की कहानियो की आत्माये इतनी बुरी है तो इन आत्माओ को अपने दिमाग में ही रखने वाला भी कितना बुरा बन जायेगा, काश की मै अच्छी कहानिया सुनता तो सुनने वाले के अंदर कुछ अच्छी आत्माये रहती और उसकी सोच भी अच्छी रहती और वो मुझसे भले वादा लेता किन्तु अच्छी आत्माओ के प्रभाव में वो वादा वापस ले कर सभी जगह अच्छी कहानिया फैलने की बात कहता जो उसने नहीं कही जो की बुरी कहानियो का भी प्रभाव हो सकता है | कुल मिला कर अर्थ ये की सकरात्मक बाते और सोच आप को और सकारात्मक बनाती है और नकरात्मक बाते ( कहानिया ) आप को बुरे प्रभाव ही देती है |

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अमूमन हर कथा कोई एक या अधिक सन्देश देती है सो उन कथाओं में भी सन्देश ज़रूर रहे होंगे चाहे अच्छे या बुरे ! आपने इस कथा को एक नया आयाम दिया है , उसे नये ढंग से समझने की बात कही है ! नि:संदेह देरी से आने के बाद भी आपका योगदान अनूठा है, अन्य टिप्पणीकारों से सर्वथा भिन्न पर स्वीकारणीय ! मुझे आपकी व्याख्या पसंद आई !

      दूसरे मित्रों की सुंदर व्याख्यायें, कथा को जिस जोनर में समझाती हैं आपने उससे हटकर, निहितार्थ खोजे हैं सो आपके लिए साधुवाद !

      हटाएं
    2. मेरी पहली टीप का दूसरा व तीसरा अंश।:)

      हटाएं
    3. @कुल मिला कर अर्थ ये की सकरात्मक बाते और सोच आप को और सकारात्मक बनाती है और नकरात्मक बाते ( कहानिया ) आप को बुरे प्रभाव ही देती है|
      अंशुमाला जी, मस्त व्याख्या!!

      @आपका योगदान अनूठा है, अन्य टिप्पणीकारों से सर्वथा भिन्न पर स्वीकारणीय ! मुझे आपकी व्याख्या पसंद आई !
      अली सा, मुझे भी!!

      @तुम्हें कहानी पढ़ने से होने वाले नुकसान से बचा सके।:)
      देवेन्द्र जी,
      सही कहा, नकरात्मकता से भी!!

      हटाएं
    4. गज़ब,आज तो सुज्ञ जी और पांडेय जी ने झंडे गाड़ दिए,डंडा भले ही अली सा का रहा हो !

      हटाएं
    5. देवेन्द्र जी,
      हां ज्यादातर आपके एक जैसे और शेष आपके दो और तीन जैसे ! लेकिन इसका एक मतलब और भी है :)

      हटाएं
    6. प्रिय सुज्ञ जी,
      धन्यवाद !

      हटाएं
    7. संतोष जी ,
      आपका भी स्वागत है :)

      हटाएं
  19. ये कथा सुनाकर/लिखकर तो आपने तो मुझे डरा ही दिया...कितनी सारी कहानियाँ जेहन में घूम रही हैं...अब सबको एक-एक कर लिख डालती हूँ...अन्य विषय पर अब कोई पोस्ट नहीं. (अभी तो यही ख्याल आया )
    ये कहानी पढ़कर तो ऐसा लगा...जैसे भारत की ही कोई कथा पढ़ रहे हैं. वधु के घर तक बारात का जाना...दुल्हे का घोड़ी पर सवार होना...दुल्हे के पैर जमीन पर ना पड़ने देना..{हमारी तरफ भी..वर के पैर ...बड़ी सी थाली में वधु के पिता धोते हैं, जिस रस्म से अब लड़कों को इनकार कर देना चाहिए )} ..दुल्हन का सिमट कर दुल्हे का इंतजार करना..आदि.

    कथा-लेखक यही कहना चाहते होंगे कि ज्ञान की कोई भी बात हो...चाहे कहानी के माध्यम से कोई संदेश हो...इसका प्रसार दूर दूर तक होना चाहिए और सबका इस से लाभान्वित होने का अधिकार है. इसे सिर्फ खुद तक सीमित रखने का प्रयास जानलेवा हो सकता है.
    (अब टिप्पणियाँ पढ़ती हूँ...और लोग क्या कह गए हैं..:))

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रश्मि जी,
      दुल्हन वाले मामले को उलट दिया जाये तो भी हमें एतराज़ नहीं :)
      बिल्कुल अब सारी कहानियां लिख ही डालिए :)
      ज्ञान के प्रसार वाली बात पर सहमति है !

      हटाएं
  20. शोषण विद्रोह का पिता होता है|

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. ये सुक्तिकार महाशय तो अभिन्न है :)
      शोषण विद्रोह का पिता होता है और विद्रोह की औलाद द्वेष, द्वेष की औलाद हिंसा होती है और हिंसा बे-औलाद् (अफलप्रद)। यहाँ वंश विनाश हो जाता है।

      हटाएं
    2. प्रिय सुज्ञ जी ,
      विद्रोह के प्रति इतना नाराज़ मत होईये ! यह एक घटना है जो समाज में अक्सर घटती रहती है ! शोषण अगर मौजूद हो तो इसे टाला नहीं जा सकता, परिणाम चाहे जो भी हो, अच्छा या बुरा !

      मुझे नहीं पता कि बेनामी बंधु / बान्धवी कौन हैं , पर उनकी सूक्ति घटना के परिणाम से पहले के चरण का ही कथन करती है इसलिये उसे इसी स्तर पर देखा जाये !

      बाकी अपने कथन के पक्ष में उन्हें जो भी जबाब देना हो ?

      हटाएं
    3. नहीं, नहीं अली सा,

      मैं उद्देलित या नाराज नहीं। शोषण, विद्रोह, द्वेष और हिंसा समाज में अक्सर सम्भावित घटनाएँ है। और परिणामों पर भी किसी का बस नहीं। हिंसा को बे-औलाद् कहने का तात्पर्य बस इतना था कि उसके बाद न तो सुधार और न विकास करने को कुछ बचता है। शोषण विद्रोह सुधार और विकास का चक्र समाप्त हो जाता है। इसी आशय में कहा गया कि इस पीढी का वंश का विनाश हिंसा के अन्तिम पायदान पर हो जाता है।
      बाकी उनके बेनामी होने/रहने से हमें कोई समस्या नहीं, उनका कथन था हमने अपना दृष्टिकोण रख दिया। :)

      हटाएं
    4. उनके उत्तर का इंतज़ार हमें भी है :)

      हटाएं
  21. ... और
    प्यार और बफदारी अंधी होती है|

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्यार का अंधापन तो सुना हुआ था अब वफादारी के बारे में भी सोचेंगे !

      हटाएं
    2. फिर तो परोपकार, सहकार, सहायता, सम्-वेदना सभी कुछ अंधा ही अंधा हो जाएगा। गहन अंधकार!!

      हटाएं
    3. बेनामी जी, सुज्ञ जी की प्रतिक्रिया पर आपका उत्तर अपेक्षित है !

      हटाएं
  22. कथा की आत्‍मा तक पहुंच पाना बडी बात होती है।

    वैसे अब कहां रही कहानी कहने और सुनने की परम्‍परा।

    ............
    International Bloggers Conference!

    जवाब देंहटाएं
  23. मित्रो इस कथा को समझने बूझने के सिलसिले में बहुत शानदार प्रतिक्रियाएं आई हैं ये सारी प्रतिक्रियाएं मूलतः सुरक्षित तो रहेंगी ही किन्तु आपके नाम सहित इनकी भाव संक्षेपिका मूल आलेख में जोड़ने जा रहा हूँ ! कृपया इस हेतु मुझे कुछ समय दें ताकि मुझसे कोई शाब्दिक भूल ना हो जाये ! इस कार्य के लिए आपकी अग्रिम अनुमति मिल गई है मानकर चल रहा हूं ! आपके सहयोग के लिए हार्दिक आभार सहित !

    चलते चलते एक बात और कहना चाहूंगा कि कथावाचक ज्ञानी अर्थात ज्ञानदाता गुरु जी उस घर के नौकर / कर्मचारी हैं वाले बिंदु पर मित्रों ने ज़ोर नहीं दिया है , वे स्वयं कोई गुरुकुल नहीं चलाते हैं ,उनका अपना स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है , सो मैं स्वयं इसे व्याख्या में सम्मिलित करने जा रहा हूं !

    जवाब देंहटाएं
  24. मित्रो आपकी टिप्पणियां यथावत मौजूद हैं और आपकी प्रतिक्रिया के सार को कथा की व्याख्या के साथ जोड़ दिया गया है यदि उचित लगे तो देख लें और कोई आपत्ति हो तो भी कह दें !

    जवाब देंहटाएं