सोमवार, 2 अप्रैल 2012

जो दवा के नाम पे ज़हर दे उसी चारागर की तलाश है...ये इश्क इश्क है !

शायद 1990 की बहार का मौसम था जबकि वे एक दूसरे के प्रति अनुरक्त हुए होंगे और फिर शादी के पवित्र बंधन में बंधना उनकी मजबूरी बन गया ! फिलहाल उनके दो बच्चे हैं , बड़ी लड़की सुजाता , उम्र यही कोई 24 बरस ! सुजाता का जन्म उनके प्रेम की शुरुवात से दो साल पहले का है इसलिए यह माना जाता है कि उसके वास्तविक पिता मदनमोहन वल्द श्याम शरण है , जबकि छोटा बेटा अनिकेत उनकी शादी के बाद पैदा हुआ सो उन दोनों के प्रेम का प्रतीक माना जाये  ! अनिकेत की उम्र लगभग 18 बरस है और उसे अपनी बड़ी बहन सुजाता से बेहद उन्सियत है ! मुख़्तसर ये कि भाई बहिन के दरम्यान सौतेलेपन की कोई खलिश नहीं ! 

मदनमोहन और ललिता की शादी पारंपरिक रीति रिवाज़ के साथ 1986 में हुई थी और उन दोनों की पुत्री बतौर सुजाता का जन्म 1988 में हुआ ! इसे इत्तेफाक ही कहा जायेगा कि नीलोत्पल , मदनमोहन के गांव का रहने वाला था और मदनमोहन को अपने बड़े भाई जैसा मानता था ! सुजाता के जन्म के समय ही नीलोत्पल के परिजनों ने नीलोत्पल की शादी स्वजातीय परिवार की लावण्या से कर दी , हालांकि अगले दो बरस तक वे दोनों किसी संतान को जन्म नहीं दे सके ! सन 1990 के जनवरी माह में अपनी नौकरी में होने वाले विभागीय प्रशिक्षण के सिलसिले में नीलोत्पल को उस शहर जाना पड़ा जहां मदनमोहन पहले से ही नौकरी कर रहा था ! पुराने संबंधों के चलते नीलोत्पल को मदनमोहन के घर पनाह मिली और बहारों के मौसम के खत्म होने से पहले नीलोत्पल और ललिता में प्रणय संबंधों का सूत्रपात हो गया !

मदनमोहन ने इन संबंधों की आंच महसूस करते ही ललिता को तलाक देने का मन बना लिया और इस बारे में नीलोत्पल और ललिता को भी आगाह कर दिया ! नीलोत्पल की बेवफाई से बौखलाई उसकी वास्तविक पत्नी लावण्या ने स्वजातीय पंचायत के सामने नीलोत्पल की अच्छी खैर खबर ली पर...नीलोत्पल ललिता से अपने संबंधों को लेकर अडिग बना रहा ! स्कूल शिक्षिका होने के नाते लावण्या आर्थिक रूप से आत्म निर्भर थी अतः उसने यह मान लिया कि नीलोत्पल को अपनी जिंदगी से खुरच देना ही बेहतर होगा ! लावण्या के इस फैसले से गोया नीलोत्पल की लाटरी खुल गई और उसने ललिता से विधिवत विवाह कर लिया जिसके उपरान्त अनिकेत का जन्म हुआ ! नीलोत्पल और ललिता के विवाह के समय सुजाता की उम्र इतनी कम थी कि उसे घटना की सहजता और असहजता का भेद ही समझ में नहीं आया ! वैसे भी नीलोत्पल उसके ही घर में रहने की परिस्थितियों के चलते उसका जाना पहचाना चेहरा था और आहिस्ता अहिस्ता उसने नीलोत्पल को अपना पिता स्वीकार कर लिया , जबकि मदनमोहन उसके लिए अंकल की हैसियत से चीन्हे जाने का हक़दार हुआ !  

ललिता से नीलोत्पल की शादी के बाद अनिकेत का जन्म लावण्या और नीलोत्पल के संबंधों के ताबूत में आख़िरी कील साबित हुआ ! नीलोत्पल से विरक्त लावण्या अपने ही स्कूल के प्रधान पाठक संजय त्रिवेदी से दिल लगा बैठी , उसे उम्मीद थी कि संजय एक ना एक दिन उसे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लेगा पर संजय विवाहेत्तर सम्बन्धों से आगे बढ़कर लावण्या को अपनी पत्नी की हैसियत देने तैयार नहीं हुआ ! उसे अपनी पत्नी और बच्चों के आगे अपनी औकात पर पर्दा डाले रहने की मजबूरी और लावण्या का भावनात्मक दैहिक शोषण करने की हबस थी ! लंबे इंतज़ार ... नाउम्मीदी और संबंधों में बुरी तरह मात खाई लावण्या को आखिरकार चित्रकोट के खूबसूरत झरने ने हमेशा हमेशा के लिए अपनी पनाह में ले लिया ! 

इधर नीलोत्पल और ललिता की गृहस्थी की गाड़ी सरपट दौड़े जा रही थी ! उन्हें लावण्या की मौत से कोई फर्क नहीं पड़ना था सो नहीं पड़ा पर ... एक दिन मदनमोहन का ट्रांसफर भी उसी शहर में हो गया जहां कि वो दोनों अपनी जिंदगी बेधड़क गुज़ार रहे थे ! मदनमोहन अब उनके ही साथ , उनके ही घर में रहता है और उसकी घोषित भतीजी सुजाता , यह समझने लगी है कि मदनमोहन उसका कौन है ? एक छत के नीचे रिश्तों की इस रेलमपेल में किसी को किसी से कोई शिकायत नहीं ...ये इश्क इश्क...है इश्क  !

37 टिप्‍पणियां:

  1. बड़े वड्डे वड्डे दिलों वाले लोग हैं जी।

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    1. इश्क मजनू की वो आवाज है जिसके आगे
      कोई लैला किसी दीवार से रोकी ना गई ,क्योंकि ...ये इश्क :)

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  2. मदनमोहन ने परिस्थिति से समझौता कर लिया...
    नीलोत्पल और ललिता तो किस्मत वाले रहे पर कहा भी जाता है...हिम्मत करने वालों का ही किस्मत भी साथ देती है..

    पर लावण्या...हमारे सामाजिक परिस्थितयों की शिकार हो गयी...अभी भी हमारे समाज में तलाकशुदा स्त्री को आसानी से प्यार नहीं मिलता...उस पर available का ठप्पा लग जता है...संजय त्रिवेदी ने यही किया....उसकी स्थिति का फायदा उठाया जिसे लावण्या प्यार समझ बैठी..धोखा खाने के बाद..उसे जिंदगी जीने का ना कोई बहाना मिला ना कोई सहारा...और मृत्यु को गले लगा बैठी...
    पता नहीं कितनी सदी और लगेगी हमारे समाज की मानसिकता बदलने में.. ..जहाँ अस्सी बरस के वृद्ध को..कई शादियाँ कर चुके पुरुष को भी कम उम्र की लडकियाँ विवाह के लिए मिल जाती हैं पर कम उम्र की एक तलाकशुदा स्त्री को..सच्चा प्यार करनेवाला कोई पुरुष नहीं मिलता.
    कोर्ट ने महिलाओं के हित में 'तलाक' लेने में आसानी कर दी है...पर तलाक के बाद का जीवन उनका अभी भी कंटकमय है...एक सामान्य जिंदगी गुजारने में उन्हें हज़ार परेशानियां आती हैं.

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    1. तलाक के बाद स्त्रियों के हालात पर आपके ख्यालात तल्ख़ भले ही लगें पर सच भी तो यही है आखिर !

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  3. क्या बात है आजकल इश्क , मुहब्बत , प्रेम का बड़ी बेदर्दी से पोस्टमार्टम करने में लगे हुए हैं ...लगातार नकारात्मक पढ़ते हुए प्रेम से विश्वास ही उठ गया तो ..??

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    1. विश्वास पर कोई संकट नहीं आने दिया जाएगा ! आगे चलकर इश्क के पाजिटिव शेड्स भी पेश किये जायेंगे :)

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  4. कोई जिंदगी से हताश है किसी को अभी भी प्यास है
    इस इश्क को क्या नाम दें यह जलता हुआ पलाश है

    तू गैर की ही बनी रहे बस मेरी भी है क्या विश्वास है!
    जो दवा के नाम पे जहर दे उसी चारागर की तलाश है।

    यह इश्क इश्क है.. इश्क इश्क है.. इश्क इश्क है.. इश्क इश्क है...
    सोचिए कुछ भी नहीं बस देखते ही जाइये.. इश्क इश्क है..इश्क इश्क है..

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    1. कोई वक़्त सुख से गुज़र गया !
      कोई लम्हा दुःख पे ठहर गया !!

      कभी सांस हुस्न-ओ-शबाब सी !
      कभी मौत ज़हर-ओ-अज़ाब सी !!

      मेरे पास आ मेरी आस बन !
      तेरे वास्ते मेरे जान-ओ-तन !!

      मुझे प्रेम पर विश्वास है !
      उसी चारागर की तलाश है !!

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    2. ना कहो मुझे तुम बेवफा
      ना करो कभी कुछ भी गिला

      मैं करूँ इश्क तुम भी करो
      ना रूके कभी ये सिलसिला

      तुझे हो यकीं या न हो कभी
      मुझे जिंदगी की तलाश है।

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    3. तेरी जिंदगी कोई और है
      तुझे पासबां की तलाश है
      मेरी जिंदगी कोई और है
      मुझे रहनुमां की तलाश है

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    4. ...पर उससे भी तो पूछ लो,
      उसे जिंदगी की या तेरी तलाश है ?

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    5. 'मेरे' 'तेरे' बीच में 'उस' से पूछने की बात क्यों :)

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    6. YE PREM HI TO HAI JO 'TERE'...'MERE' VICH 'O' BANKAR AA JATA HAI....

      PRANAM.

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  5. भई, आजकल ऐसी कहानियों के किरदार आपसे तकरीबन रोज़ मिल रहे हैं.ऐसे सम्बन्ध हमारे समाज में खूब फल-फूल रहे हैं,बस परदे की ओट से.मगर इस तरह के अधिकतर संबंधों में प्यार कम वासना या परिस्थिति की भूमिका ज़्यादा होती है.
    ...मनमोहन का दुबारा उनके यहाँ आकार बसना,अकल्पनीय है,आदिम समाज में होता हो तो हो !

    लावण्या इस सबमें सबसे घाटे में रही और त्रिवेदीजी सबसे फायदे में !

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    1. संतोष जी ,
      निश्चित रहिये यह कथा आदिवासियों की नहीं बल्कि सवर्णों के आंचलिक वर्ग से उपजी है ! इसलिए मदनमोहन की दोबारा वापसी पर कहीं ज्यादा आश्चर्यचकित होने की आवश्यकता है ! प्रेम के रंग चहुँ दिश व्याप्त हैं अब ये हम पर है कि हम किस रंग पर किस्सागोई कर डालें !

      मैंने प्रकरण को घाटे फायदे के नज़रिये से नहीं देखा वर्ना फायदे वाले किरदार का नाम संजय के बजाये संतोष रखने की सोच सकता था :)

      बहरहाल आपसे एक गुज़ारिश है प्यार और वासना का भेद हमें भी बतलाईयेगा !

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    2. बकिया सवालों का ज़वाब तो नहीं दूंगा और 'प्यार और वासना का भेद' आप हमसे पूछकर हमारी जान के पीछे लग गए हैं.आप इस समय इस क्षेत्र के एकाधिकार-प्राप्त विशेषज्ञ हैं,फिर भी जितनी हमारी अल्प-बुद्धि है,मैं बताता हूँ.
      ...प्यार देश,काल,धर्म और हासिल नहीं देखता जबकि वासना में केवल हासिल करना होता है,समयानुसार शिकार बदल लिया जाता है !

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    3. तो क्या वासना में देश,काल,धर्म देखा जाता है :)

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    4. ...हाँ,इनकी ओट में इसे खाद-पानी मिलती है !

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    5. ओट की खोट पर संतोष जी की चोट से लहा लोट !

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  6. लावण्या को छोड़ के इस कहानी में किसी और को कोई खास परेशानी नहीं झेलनी पड़ी ... पर क्योंकि लावण्या शायद प्रेम और विवाह में सत्य भी साथ रखना चाहती थी ... उसे ही सबसे ज्यादा दुःख भोगने पड़े ...

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  7. जगदलपुर वैसे भी दशकों पूर्व से ही एकदम इश्क मुश्क के मामलों में अमरीका को पीछे छोड़ गया था. अभी अभी खबर आई है कि दो लोग एक साथ बेवा हो गए.

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    1. हमने तो सुना था कि दो लोग एक साथ विधुर हुए हैं लेकिन आप तक खबर पहुँचते पहुँचते वो बेवा कैसे बन गये :)

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  8. आज चुप्पी.. बस हाजिरी..
    फिर मिली फुर्सत तो किस्सा भी ये सुलझा लूंगा,
    आज उलझा हूँ मैं हालात के सुलझाने को!!

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    1. हम तो आपकी खामोशी को भी टिप्पणी मान रहे हैं :)

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  9. जो एक बार गलती करे उसे बेवक़ूफ़ कहते हैं . जो दूसरी बार भी वही गलती करे , उसे तो इडियट ही कह सकते हैं .
    एक दोस्त दंपत्ति के साथ रहकर गद्दारी करता है --फिर वही गद्दार दोस्त उसी दोस्त को अपने साथ रखता है --हमें तो यह इश्क कहीं से नज़र नहीं आता .
    आप भी अली सा, कैसी कैसी कहानियां ढूंढ कर लाते हैं :)

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    1. बात तो सही है डाक्टर साहब पर जो हो रहा है उसे झुठलाया भी तो नहीं जा सकता ! अंदर कारण क्या होंगे वे ही जाने पर ललिता और नीलोत्पल ने प्रेम विवाह तो किया ही है :)

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  10. उलझे हुए मानवीय संबंधों की बानगी,लावण्या के लिए सहानुभूति,
    शेष वयस्क पात्रों के लिए अजीब सी वितर्षणाहै मन में।इसे इश्क की
    बजाय कुछ और कहा जाना चाहिए।

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    1. यह इश्क ही कुछ और है
      कुछ और भी तो इश्क है

      जो समझ गया वही नहीं
      जो 'और' है वही इश्क है।

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    2. बिष्ट साहब ,
      हमारी वितृष्णा स्वाभाविक है पर ... संबंधों के लिए उत्तरदाई आकर्षण का नाम अभी तक तो प्रेम ही है ! आगे चल कर संभव है कि इसके लिए कोई नये संबोधन प्रचलन में आ जायें !

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    3. देवेन्द्र जी,
      जो इश्क है वही 'और' है , यही 'और' सारा बवाल है !
      जो समझ गया वही पीर है यही पीर दिल का हवाल है !

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    4. जो समझ गया मानकर घूमता नासमझ
      पीर उससे कर रहा हर पीर में सवाल है।

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  11. मदनमोहन का साथ में रहना तो 'तुम किसी और को चाहोगी तो मुश्किल होगी'इस गाने को खुला चेलेंज है।

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    1. फिर तो इस गाने को बदल ही लिया जाये...

      तुम 'कई और' ना चाहोगी तो मुश्किल होगी :)

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