गुज़रे दिनों में हर रोज के अनुभव और उसके सबक अमूमन विशिष्ट व्यवहार की पुनरावृत्तियों के कारण बनते आये हैं ! तब कोई इंसान उन व्यवहारों के मायने / निहितार्थ खोजने की कोशिश भी नहीं किया करता था ! यूं समझिए कि किसी व्यवहार विशेष की सफलता पे सम्मोहित सी यंत्रवत बारंबारता ! आशय ये नहीं कि व्यवहारगत निहितार्थों का संज्ञान शून्य हो बल्कि ये कि ऐसा अमूमन होता है ! मिसाल के तौर पर बचपन के दिनों में कोई दीवाल चढने अथवा बेर / आम / इमली / जामुन / अमरुद जैसे फलों की जुगाड़ में मित्र मंडली एक टीम की तरह काम करते हुए दीवाल और पेड़ों के बड़प्पन पर विजय प्राप्त करती है वर्ना हर बालक अपने अपने कद के हिसाब से इस विजय के योग्य नहीं हुआ करता !
एकल सामर्थ्य के पराभव की संभावना के समय एक बच्चा दूसरे बच्चों की पीठ अथवा गुंथी हुई अंगुलियों वाली हथेली में पैर रख कर ऊंचाई छू पाने का यकीन रखता है ! अपने बालपन के समय में हम गुंथी हुई अंगुलियों वाली हथेलियों के सपोर्ट को फंदोली देना कहते थे, बहुत कुछ घोड़े की रकाब जैसा, आज जो डिक्शनरी देखता हूं तो यह शब्द मिलता ही नहीं पर देशज व्यवहार में बहु प्रचलित शब्द जोकि लक्ष्य प्राप्ति में सहायता के लिए फंदे की तरह से गुंथे हाथों का प्रतीक है याकि उद्देश्य प्राप्ति में असमर्थ को सामर्थ्य देने के प्रतीक जैसा !
उद्देश्य / लक्ष्य की दुरुहता और ऊंचाई पर एकल सामर्थ्य की तुलना में समेकित सामर्थ्य की सफलता की संभावना अधिक होती है ! जहां ऐसा लगे कि सफलता व्यक्तिगत है वहां भी समेकित सामर्थ्य परोक्षत: मौजूद हुआ करता है जैसे विद्यार्थी के लिए परिजन /गुरुजन /पुस्तकें आदि आदि ! सामान्यतः समेकित सामर्थ्य की प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष मौजूदगी से व्यक्तिगत उपलब्धियों के द्वार खुलते हैं और यह सामाजिकता की दृष्टि से अत्यंत सकारात्मक प्रवृत्ति भी है किन्तु इसका एक नकारात्मक आयाम भी है ! सच कहें तो फंदोलियां पा कर अयोग्य भी अपनी योग्यता से अधिक की प्राप्तियां कर सकते हैं और योग्य, अपेक्षाकृत अधिक सामर्थ्यवान बंदे फंदोलियों के अभाव में यथोचित से भी वंचित रह सकते हैं !
बचपन में फंदोलियों को उनके शाब्दिक अर्थ जाने बिना दैहिक सहयोग स्वरूप स्वीकार करने से आगे की नहीं सोच सके पर आज लगता है कि फंदोलियां महज दैहिक नहीं हुआ करतीं पैतृक धन किसी नाकारे के लिए चिकित्सा संस्थान अथवा नामचीन अभियांत्रिकी संस्थान की सीट की तथा स्वजन की राजनैतिक प्रभुता सत्ता के आस्वाद की और ऐसी ही बहुविध फंदोलियां बहुविध श्रेष्ठताओं की प्राप्तियों का कारण बन जाया करती हैं ! फंदोलियों की उपलब्धता अथवा अनुपलब्धता कूड़े को कुलपति और व्यास को प्राइमरी के मास्टर में तब्दील कर सकती हैं ! जातिगत / दलगत / परिवारगत फंदोलियों से कितने ही अपाहिज योद्धा बन कर उभरे होंगे और वास्तविक योद्धा अपाहिज बन कर रह गए होंगे !
ईश्वर प्रिय इस भूमि में, ईश्वरीय सत्ता की अभिव्यक्ति फंदोलियों से बढ़कर और कहां हो सकती है ! फंदोलियां गये गुज़रे को चतुर सुजान और चतुर सुजान को गये गुज़रे में बदल डालने का सामर्थ्य रखती हैं ! ये जनव्यापी, विश्वव्यापी, सार्वभौमिक, सर्वयुगीन, देवत्व और अमरत्व की सच्ची प्रतिनिधि वरदायिनी शक्तियां हैं ! चाहें तो अच्छे भले को शापित कर दें और शापित को भवसागर पार ! भक्त सूरदास को भी कहां पता रहा होगा कि उन्होंने हजारो हज़ार साल पहले जो कुछ भगवान की शान में कहा है वो अब फंदोलियों पे भी फिट है ! फंदोलियां हैं तो उन्नति है, विकास है, ऐश्वर्य है, वैभव है, पराग है और मधुर मधु भी, फिर बिहारी चाहे लाख, अलि को कलि से बंधे रहने का उलाहना दें, तो देते रहें ! अथ श्री फंदोलियां कथा...जाकि कृपा पंगु गिरी लंघै !
@ फंदोलियों की उपलब्धता अथवा अनुपलब्धता कूड़े को कुलपति और व्यास को प्राइमरी के मास्टर में तब्दील कर सकती हैं !
जवाब देंहटाएंहै तो सच्ची बात यही जुगाड़ में बड़ा दम है गुरु !
फंदोलियों का कहीं अकाल और कहीं भरमार ब्लॉग जगत में भी नज़र आता है ...विषय नाज़ुक है नहीं तो और लिखता :-)
आपको आज इनकी याद कैसे आ गयी ?
शुभकामनायें !
पैतृक धन किसी नाकारे के लिए चिकित्सा संस्थान अथवा नामचीन अभियांत्रिकी संस्थान की सीट की तथा स्वजन की राजनैतिक प्रभुता सत्ता के आस्वाद की और ऐसी ही बहुविध फंदोलियां बहुविध श्रेष्ठताओं की प्राप्तियों का कारण बन जाया करती हैं !
जवाब देंहटाएंभूला बिसरा देशज शब्द याद आया .ऐसे फंदोलिये अब आम हो गए है , हर गली नुक्कड़ में मिलेंगे , लेकिन अब ये केवल आम और बेर ही नहीं तोड़ते है बल्कि प्रगति की राह में दीवार भी खड़े करते है .अब ऐसे फंदोलियो से उम्मीद रखना रेत का महल बनाने जैसा ही है ना? अली साहब कली से बन्धे या कोई अलि?
फंदोलिया प्रस्तावना तो पढ़ ली ..अब मूल कथ्य लाईये !
जवाब देंहटाएं@ सतीश भाई ,
जवाब देंहटाएंआज विशेष कुछ नहीं , इन्हें तो वर्षों से बर्दाश्त कर रहे हैं :)
आपकी ब्लॉग वाली बात गौर तलब है और अपील करती है :)
कभी कभार नाजुकताई पर भी लिखा करिये :)
@ आशीष भाई ,
सही तो अलि ही है पर अरविन्द जी इसे अली लिखते / वापरते हैं सो उनकी दिलजोई के लिए हमने भी लिख दिया :)
@ अरविन्द जी ,
इससे आगे के लिए हम तो आपसे मदद की उम्मीद कर रहे थे :)
भक्त सूरदास को भी कहां पता रहा होगा कि उन्होंने हजारो हज़ार साल पहले जो कुछ भगवान की शान में कहा है वो अब फंदोलियों पे भी फिट है ! फंदोलियां हैं तो उन्नति है , विकास है , ऐश्वर्य है ,वैभव है , पराग है और मधुर मधु भी , फिर बिहारी चाहे लाख , अलि को कलि से बंधे रहने का उलाहना दें , तो देते रहें !
जवाब देंहटाएंMaza aa gaya padhke.....aaki posts ka hamesha intezaar rahta hai!
दिल्ली के जिमखाना क्लब की सदस्यता के लिए 28 बरस की प्रतीक्षासूचि है पर मेंबर बाप की फलोंदड़ी के चलते सदस्यता रातों रात मिल जाती है :)
जवाब देंहटाएं! सच कहें तो फंदोलियां पा कर अयोग्य भी अपनी योग्यता से अधिक की प्राप्तियां कर सकते हैं और योग्य ,अपेक्षाकृत अधिक सामर्थ्यवान बंदे फंदोलियों के अभाव में यथोचित से भी वंचित रह सकते हैं
जवाब देंहटाएंsahi kaha ali ji aisa to aksar dekhne me aata hai.
जैसी आपसे आशा रहती है, तथ्य-कथ्य सभी महत्वपूर्ण है। फन्दोलियों ने वाकई आम को खास और खास को खासुल-खास किया है। फन्दोलियों के विलुप्त होने से पहले ही यह शब्द किसी शब्दकोश में आना चाहिये। ऐसा न होने का कारण कहीं यही तो नहीं कि अक्षम साहित्यकार फन्दोलियों की कृपा से शब्दकोशकार बन गये हों?
जवाब देंहटाएंलेकिन निराश होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि फन्दोली भी एक साधन ही है और सफलता के लिये बहुत से अन्य गुण भी चाहिये। फिल्म-जगत और राजनीति में ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जहाँ सब की सब फन्दोलियाँ बेकार हुयीं।
जहाँ फन्दोलियों की तारीफ में कसीदे पढे जा रहे हों, वहाँ से बच के निकलते हैं, हम इतना तो कर ही सकते हैं।
जवाब देंहटाएंफंदोलियाँ बड़े काम की चीज !
जवाब देंहटाएंयह ज्यादा मूल रूप में 'पंदोली' कहा जाता है, अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें...(जिसे आप उपयुक्त मानें)
जवाब देंहटाएं@ क्षमा जी ,
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया !
@ काजल भाई ,
दसों दिशाओं में यही रंग बिखरे हैं :)
@ शालिनी जी ,
बहुत आभार !
@ स्मार्ट इन्डियन जी,
(१) बहुतेरे देशज शब्द विलोपन की कगार में खड़े किसी ना किसी शब्दकोश में अपने सम्मिलन की वाट जोह रहे हैं / या शायद एक अदद फंदोली नुमा शब्दकोशकार की आस लगाये बैठे हैं !
यह सच है कि जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों में अनेकों प्रतिभायें फंदोलियों के बिना भी अपना आलोक बिखेर रही हैं ! आक्षेप सिर्फ इतना है कि कतिपय प्रतिभाहीन बंदे , इन प्रकाश पुंजों के बराबर यहां तक कि इनसे ऊपर भी खड़े दिखाई देते हैं :(
(२) हमें बच के निकलने की तकलीफ नहीं उठाना पड़ती फंदोलियां खुद ही कन्नी काट जाती हैं :)
@ वाणी जी ,
:)
@ राहुल सिंह जी ,
हमारे बालपन ने फंदोली को ही व्यवहृत पाया है ! संभव है इसके उच्चारण में स्थानीयता का प्रभाव हो ! वैसे कूदने फांदने की कवायद में से फांदना लफ्ज़ उठा कर देखियेगा शायद फंदोली के उच्चारण को कुछ राहत मिले :)
पंदोली अगर मूल शब्द है तो सहज स्वीकार्य होगा पर अपनी आदत जाते जाते जायेगी :)
आपसे अभी के अभी संपर्क कर रहा हूं !
मूक होए वाचाल, पंगु चढ़य गिरिवर गहन .... तुलसीदास जी नें भी इस फंदोली/पंदोली की महिमा बखानी है। जीवन में फंदोलियों का अहम स्थान है, सबको फंदोलियां मिलती रहे.
जवाब देंहटाएंfandoliya yane ke fandebaj.....ya kuch aur.....
जवाब देंहटाएंpranam.
मेरे लिए तो यह नया शब्द है ...हाँ, अर्थ में नया नहीं है ....
जवाब देंहटाएंफंदोलियां हैं तो उन्नति है , विकास है , ऐश्वर्य है ,वैभव है , पराग है....और भी ना जाने क्या क्या...
आजकल उलाहनाओं का असर कहां होता है। वर्ना संसार इतना टेढा क्यों होता जाता।
जवाब देंहटाएंवैसे तत्सम प्रधानता का कोई कारण तो होगा।
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…ये ब्लॉगिंग की ताकत है...।
@ प्रिय संजीव जी,
जवाब देंहटाएं'सबको' में अपात्र भी शामिल हुए ना :)
@ संजय झा जी,
अयोग्य के लिए सिफारिश / अप्रोच की तर्ज़ पर स्वीकारिये ! इसके कारण योग्य अक्सर पिछड़ जाते हैं !
@ रश्मि जी ,
संभव है इस अर्थ वाला कोई और शब्द आपके क्षेत्र में प्रचलित रहा हो !
@ रजनीश जी ,
यूं तो दुनिया को गोल ही रहना है पर अगर वो अंदर से भी गोल हो जाए तो चीज़ों का स्थिर रह पाना दुश्वार होगा बस इसी लिए अंदर के बंदे टेढ़े बने रहते हैं :)
हमने तो बचपन में पेड़ों पर चढ़ना भी किया और दीवारों पर भी। मुझसे बड़े भाई बहन तो और भी कुशल थे । किन्तु प्रायः यह सब एकल ही किया। सलाह अवश्य मिलती थीं।
जवाब देंहटाएंकिन्तु यह फंदोली वाली बात जंची बहुत। शब्द भी अजब गजब लगा। आप इसके नकारात्मक पहलू को ले रहे हैं। मैं सकातरात्मक पर लट्टू हूँ। सोचिए सारा समाज एक दूजे के लिए फंदोली बनाता और सब कूदते फांदते यह भवसागर पार कर जाते। कोई किसी की टाँग खींच नीचे न गिराता। फंदोली को राष्ट्रीय चिन्ह बना दिया जाता। बचपन से ही सबको फंदोली बनाना व सभी के लिए बनाना सिखाया जाता। सोचिए क्या बेहतरीन समाज होता।
घुघूती बासूती
फंदोलियां हैं तो उन्नति है , विकास है , ऐश्वर्य है ,वैभव है , पराग है और मधुर मधु भी , फिर बिहारी चाहे लाख , अलि को कलि से बंधे रहने का उलाहना दें , तो देते रहें
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
सच है,
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
@ घुघूती जी ,
जवाब देंहटाएंमैं फिलहाल रुग्णता को फोकस कर रहा हूं क्योंकि निदान भी इसी का होना होता है !
@ अंकुर जी ,
बहुत आभार !
@ विवेक जी ,
शुक्रिया !
"फंदोलियों की उपलब्धता अथवा अनुपलब्धता कूड़े को कुलपति और व्यास को प्राइमरी के मास्टर में तब्दील कर सकती हैं ! जातिगत /दलगत / परिवारगत फंदोलियों से कितने ही अपाहिज , योद्धा बन कर उभरे होंगे और वास्तविक योद्धा अपाहिज बन कर रह गए होंगे !"
जवाब देंहटाएंbahut hi accha kaha! bachpan me mari gayi "fandolia" aage chalkar jugaad ka kam karti hai!
aur jab jugaad hoga to "Vyaas Ji" pyaase hi rahenge! aur "kude" kulpati!
nice stare!
congrate janab!
इस पोस्ट को कोपीराईट कर दीजिये.प्रबंधन विषय पर प्रवचन देने के लिए कारगर रहेगी. व्यवहार विज्ञानं के क्षेत्र में भी उपयोगी हो सकती है. काश मुझे पहले मिला होता:).
जवाब देंहटाएंव्यस्तता में से समय निकालते रहें, इस शमा को जलाए रखें।
जवाब देंहटाएं------
TOP HINDI BLOGS !
yah sachchai bhi to hai. is yug ke liye jyada sach ko batati-----
जवाब देंहटाएंlambe samay se aapne kuch likha naheen hai. kya bat hai . sab khairiyat to hai . aap ke lekh se mujhe likhane kee prerna milti hai .
जवाब देंहटाएंपंदोली से चने के झाड़ पर भी चढाया जाता है।
जवाब देंहटाएंफंदोलिया ही परमाणु है ,सत्ता का केंद्र है "बिजूके" से"http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/ मम्मी -जी" तक.फंदोलिया ही कोंग्रेस है .फंदोलिया यशोगान कीजिए .कृपया यहाँ भी आयें .
जवाब देंहटाएंhttp://veerubhai1947.blogspot.com/ और यhttp://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/हाँ भी -शुक्रिया
फंलोदड़ी देखते ऐसा जीवन कटा...अब तक...कि आदत में शुमार से लगते हैं सब!!
जवाब देंहटाएंआपकी यह पोस्ट मेरे लिए एक नया शब्द और ताज़गी ले कर आई है. पोस्ट एक मामूली खेल को बड़े अर्थ दे जाती है. सुंदर.
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