पिछले कई दिनों से बेतरतीब सी जिंदगी...बस गुज़र ही रही है अव्वल तो परीक्षाओं का मौसम उस पर लोकसभा उपचुनाव की आमद ! गोया बेहिसाब से ट्रेफिक में फंस गया होऊं ! अपना दिन तमाम स्ट्रेस में और रात देर तक उसके उतारे में गुज़ारते हुए, हालात कुछ ऐसे कि चाह कर भी मित्रों की पोस्ट पढ़ने और प्रतिक्रियायें दर्ज करने का हौसला नहीं जुटा पाता ! अनपढ़ / अनपढ़ी प्रविष्टियों / मेल्स की फेहरिश्त काफी लंबी है पर ख्याल ये कि पहली ही फुर्सत में सिलसिलेवार निपटाऊंगा!
इधर मैं फटेहाल / मरते दम तक काम के बोझ का रोना रो रहा हूं ! उधर अट्ठाईस सालों के बाद कुछ अच्छा भी हुआ है !बन्दों ने दुनिया जीत ली ,झंडे गाड़ दिये ! एक शानदार टीम का शानदार कारनामा ! अब असली जीत की ट्राफी असली है भी या नहीं ये शरद जी ही बेहतर जाने / जानते होंगे ? क्रिकेट का विश्व कप हमारा हुआ, जश्न भी मनाया गया ! खिलाड़ियों को ईनाम मिले ! मिलना भी चाहिये ! मिलते ही रहेंगे...पर एक सवाल अपने मन में बे-ज़बाब सा गड़ गया है !
ट्राफी मिलते ही खिलाड़ियों ने शैम्पेन हवा में उड़ाई, इतनी कि खुद तर बतर हो गये, शैम्पेन उड़ाना कोई जुर्म नहीं पर उससे तरबतर खिलाडियों ने अपने शराब आलूदा कपड़ों के ऊपर तिरंगे को क्यों लपेट लिया ? अपने को यह बात सिरे से हज़म नहीं हुई...उस दिन भी नहीं और आज भी नहीं ! चैम्पियंस की जीत चमकदार है, बेहतरीन है ! उन्हें लाख लाख बधाइयां...शायद उस वक़्त जो भी हुआ, अनजाने में ही हुआ होगा...पर हुआ तो है ! अब...इतनी असहमति का अधिकार / फ़र्ज़ तो अपना भी बनता ही है !
इरादे गलत नहीं थे , मकसद तो, सम्मान देना ही रहा होगा मगर जोश में लड़कों से यह भूलें होना अस्वाभाविक भी नहीं सो माफ़ कर दीजिये !
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शुभकामनायें !
बाकी भी बहुत कुछ हुआ है -खुमार धीरे धीरे उतर रहा है .
जवाब देंहटाएंव्यस्तता के आपने प्रत्यक्ष कारण बताये -परोक्ष हम समझ ही रहे हैं ! :)
यूँ समझ लीजिए भैया कि बच्चे खेल के घर आये। माँ को जीत का तोहफा दिया। खुशी में माँ के आँचल से ही मुँह पोछ लिया। पास खड़े दूसरे भाइयों को नागवार गुजरा। मगर माँ ने हंस कर कहा...जाने दो, माफ करो..जीत की खुशी में कुछ ध्यान नहीं रहा इनको।
जवाब देंहटाएंबात तो सही कही,आपने...जोश में ही ऐसा हुआ होगा...पर जोश में भी होश कायम रखने चाहिए
जवाब देंहटाएंअखबार में, सड़क के किनारे जमीन पर रख कर बिकते तिरंगों की तस्वीर छपी थी...यह भी तिरंगे का अपमान ही है.
पर एक ख्याल यह भी आया , कितने ही लोगो ने उस दिन पेट भर खाना खाया होगा. (गणतंत्र दिवस में जहाँ मेरे घर के पास वाले दुकान में चार तिरंगे बिके थे..मैच वाले दिन ,उसने ४६ तिरंगे बेचे.)
व्यस्तता से उबरें.. व्यस्ततता का निर्वाह करें.. राष्ट्र ध्वज वालीबात की तरफ ध्यान नहीं गया होगा.. लेकिन जो कहा आपने वो सौ फी साद वाजिब बात है!!
जवाब देंहटाएंचलिये, जाने दिजिये. बहुत समय बाद ऐसा मौका पाये थे बेचारे.
जवाब देंहटाएं@शैम्पेन उड़ाना कोई जुर्म नहीं
जवाब देंहटाएंआश्चर्य की बात है। ये खिलाडी बच्चों के आदर्श हैं। वैसे भी अनिर्बन्धित TV पर धूम्रपान और शराब का विज्ञापन/प्रमोशन दिखाने से तो बचना ही चाहिये। हम नई पीढी के सामने कौन सा उदाहरण रख रहे हैं?
राष्ट्रीय ध्वज फहराने के मामले से ही इन प्रतीकों/चिह्नों की आचार-संहिता पर पुनर्विचार की जरूरत महसूस होने लगी है.
जवाब देंहटाएंअसहमति जताने के अधिकार का उपयोग कर लेना भी कम बड़ी बात नहीं है ...
जवाब देंहटाएंफ़ुर्सत के रात दिन??? :)) हमारा आभार मानिये कि फ़िलवक्त आपका स्ट्रैस बढ़ा नहीं रहे हैं।
जवाब देंहटाएंजश्न का नजारा नहीं देख पाये, उसका कोई गम भी नहीं। जो आपको हजम नहीं हुआ वो अपने को भी नहीं पचना था।
अनुराग शर्मा जी से पूर्णतया सहमत, बैडमिंटन के खिलाड़ी पी.गोपीचंद को कभी खेलते हुये नहीं देखा लेकिन अपने लिये वो बहुत श्रद्धेय है। वजह उनका नजरिया है कि रोल मॉडल कैसे होने चाहियें।
और हाँ, आपकी असहमति से सहमत होकर हम भी अपनी फ़र्ज अदायगी पूरी समझ रहे हैं।
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अली सैयद साहब,
मुझे लगता है कि एक 'स्टिफ' ध्वज आचार संहिता होने से हमारा आम आदमी न तो जुड़ पाया और न ही जुड़ना चाहता है झंडे से... एक Relaxed Flag Code की जरूरत है हमें...
वैसे इस मामले में अमेरिका आदर्श है... कुछ भी करो झंडे से... कोई ऑफेन्स नहीं लेता...
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सर, बल्ला अंग्रेजी (English Willow), बॉल अंग्रेजी (Kookaburra), खेल अंग्रेजी तो इसकी जीत का जश्न मनाने का तरीका भी अंग्रेजी ही होगा. अब ऐसे अंग्रेजों से से भारतीय परंपरा और आस्था की अपेक्षा रखना तो व्यर्थ है. वैसे भी अंग्रेजों के लिए शेम्पेन शराब नहीं देवताओं का चरणामृत है जिसे विशेष अवसरों पर सभी को पवित्र करने के लिए पिलाया और उनके ऊपर छिड़का जाता है.
जवाब देंहटाएंHarek jeet kaa khumaar utar hee jata hai...yebhee utar jayega! Haan! Tirange kaa istemaal waqayi bada atpata aur nagawaar laga!
जवाब देंहटाएंबात तो आपकी सही है।
जवाब देंहटाएंवैसे सतीश जी ने कहा है कि इरादे गलत नहीं थे, सच में इरादे गलत नहीं थे फिर भी प्रश्न तो खडा होता है।
वैसे 2 अप्रैल को टीवी में खिलाडियों को जश्न मनाते देखा था, उस दिन सचिन तेदूलकर शेंपेन की बोतल का काक खोलकर उसे उछाल रहे थे, सवाल कौंधा था कि क्या यह वही सचिन है जिसने शराब का विज्ञापन करने से मना कर दिया था और करोडों का आफर ठुकरा दिया था, जिसके बाद सचिन के सामाजिक सरोकार को लेकर काफी तारीफें हुई थीं।
खैर अब माफ हम न करें तो भी क्या पर तिरंगे का सम्मान तो रखना ही चाहिए। जीत के खुमार में इसे बिसराना नहीं चाहिए।
josh me hosh kho baithe......isko samarthan nahi hai....kam se kam
जवाब देंहटाएंrashtrdhwaz ke mamle me.........
bakiya nazarandaz karne ke tarike-tark 'devendra pandeyji' ke .....
bal-sulabh lage aur muskan aa gayee
kshobh ke upar.....
anyway, mo sum koun se hum apni sahmati jata-te hain...
pranam.
बात तो जायज है। कमसे कम किसी ने नोटिस तो किया।
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प्रेम रस की तलाश में...।
….कौन ज्यादा खतरनाक है ?
अपने यहां तो न कोई परीक्षाएं रहीं न ही जंतर मंतर बाज़ी, पर मुआ वक़्त है कि हाथ ही नहीं आ रहा... :)
जवाब देंहटाएंजी,,, ठीक कहा आपने ..
जवाब देंहटाएंसफलता मिल जाने पर संयम भी आवश्यक है
लेकिन
देवेन्द्र जी की बात पढ़ कर
सुकून हासिल होता है
ek dam pate ki baat note ki he aapne, lekin iraade galat nhi the, haan josh me hosh kho dene wali bat jarur thi, jo ki sarasar galat he, aapki apatti ek dam sarthak he! ek sachhe hindustani ka yahi kartavye he, Ali sahib ji"
जवाब देंहटाएंआप तो काम में व्यस्त हैं, ऐसे काम में जो दिखता तो है. मैं न जाने किस काम में उलझी हूँ. जब से मकान बदला है,अपने लिए समय ही नहीं मिलता.
जवाब देंहटाएंजब आप सारे बलॉग पढ़ें तो चुन चुनकर सूचि इधर भी सरका देना.
ध्वज के मामले में मैं प्रवीण शाह से सहमत हूँ.
घुघूती बासूती
माफ किजियेगा अली साहब...मैं तो ख़ुद जीत के तुरंत बाद फ़टाके फोड़ने बाहर चला गया था सो इस बात पर ध्यान ही नहीं गया...बहरहाल काम की माथापच्ची से उबर कर नयी पोस्ट लिखने के लिये शुक्रिया आपका...
जवाब देंहटाएंJo galat hai vo sahi kabhi nahi ho sakta ... haan jeet ki khushi mein ek baar bhoola jaror ja sakta hai ...
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