फिलहाल मैं घर के अंदर दुबक गया हूं ! बच्चों ने घर से बाहर दिये जला दिए हैं पर बस्ती में पटाखे यूं फूट रहे हैं गोया ये शाम फिर ना आयेगी , एक शोर युद्ध भूमि में होने जैसा ! खिड़कियों के शीशे हर धमाके के साथ सहम जाते है , मुझे फ़िक्र है कि अगर एक भी चटका तो इस शक्ल का बाज़ार में दूसरा मिलेगा भी कि नहीं ?अभी कुछ रोज पहले ही रश्मि जी की पोस्ट पर शिवकासी के पटाखा उद्योग में झुलसते मुरझाते बचपन की चिंतायें देखी थी ! लेकिन इस वक़्त दूर पड़ोस तक के बंदे इस व्यवसाय की श्रीवृद्धि में लगे हुए हैं ! ज़ाहिर है कि 'नौउम्री' पर मुनाफे का तिलस्म भारी है ! सामाजिक सरोकार पर व्यापार की जीत जैसे धूम धडाम के दरम्यान फिजां में बिखरते हुए धुवें से साँसें लेने में दिक्कत होगी , सो मेरे पास मुंह छिपाने के सिवा दूसरा , कोई विकल्प नहीं ! बस ख्याल ये कि वो सारे बच्चे इस वक्त यूज एंड थ्रो की तर्ज़ पर डस्टबिन में होंगे क्योंकि, धमाके अफोर्ड करने की हैसियत होती तो सुबह ३ से रात १० और रुपये पन्द्रह की दिहाड़ी वाली रोजी की गिरफ्त में फंसते कैसे ?
ऐसा नहीं कि इस धुवें से तकलीफ सिर्फ मुझे ही होगी , यकीनन उन्हें भी जो पटाखे फोड रहे हैं ! उनमें से कई, सुबह सुबह डाक्टरों के शरणागत होंगे पर...इस वक़्त किसके घर के सामने ज्यादा से ज्यादा धमाके हो पाएंगे की होड सी,एक अंधी दौड ! मासूम बच्चों से लेकर प्रौढ़ तक, सारे के सारे तेज आवाजों धमाकों और धुवें से सम्मोहित, दियों को हाशिए में धकेल चुके हैं ! सुनकर भले ही अजीब लगे पर पौराणिक आख्यान मेरी कमजोरी हैं ! चाहे पढूं या देखूं हर सूरत लुत्फंदोज़ होता हूं ! कल्पना करता हूं पुष्पक विमान से उतरते विजेतागण और घी के दियों से रौशन रौशन नगरी के उल्लसित नगरजनों की ! हां उनमें से कोई भी चेहरा धुवें से बचने वाला मास्क नहीं पहनता और उनमें से किसी की भी खुशियां बारूद के व्यापार पर आश्रित नहीं ! दोपहर बेसन के लड्डुओं की निर्मिति के दरम्यान ही लड्डुओं पर हाथ साफ़ करते हुए भी ये अहसास था कि शाम क़ैद में गुजरेगी ! भले ही देश की बड़ी आबादी अस्थमा पीड़ित है पर यहां पूरा इंतजाम है उसे उरूज पर ले जाने का !
सुबह पता चलेगा कितने झुलसे ? कितने अस्पताल आबाद हुये ? इस आलोक पर्व में आलोक से ज्यादा धुवें के सौदागरों का दखल है ! उनकी तिजोरियां सुरसा सी मुंह बाये बचपन और स्वास्थ्य को लील रही हैं ! उन्हें केवल करेंसी खाना और करेंसी ही पीना है ! एक खूबसूरत , खूबसीरत त्योहार का बुनियादी ढांचा बदल दिया है सौदागिरी ने ! पुराने ज़मानों में उल्लास के नतीजे महज़ उल्लास ही हुआ करते थे पर अब उल्लास के नतीजे कल पता चलेंगे ? 'करोड़ों' के नुकसान को 'सैकड़ों' के मुनाफे में तब्दील होते हुए देखना बड़ा ही दुखदाई है पर इसका हल क्या है ? बेशक कुछ बुद्धिमान मित्र इसे, डाक्टरों की रोजी रोटी के तर्क का आलेप भी लगाएंगे, ठीक वैसे ही जैसे बचपन की रोजी रोटी बारूद के ढेर आना से जायज़ बता डाला था !
मेरी कनपटियां बज रही हैं कोई एक ख्याल स्थिर हो पाए तो कहूं घी...दिये...बचपन...पटाखे...रोजी... उद्योग...पूंजी...मुनाफा...धूमधडाम...धुवां...अस्थमा...आह ! ये आलोक पर्व है जीवन में, अंतस में आलोक का, उल्लास का ! इसमें धुवां कहां से आ गया ? सारे मोहल्ले सारी बस्ती केवल धुवां, गहरा बारूदी धुवां, खालिस आलोक को अपने लपेटे में लेता हुआ ! मुझे भय है कहीं, किसी एक दिन आलोक भी धनपिशाचों की साजिश का शिकार हो अस्थमाग्रस्त ना हो जाये ? बच्चे तो पहले से ही...? फिलहाल एक उम्मीद...एक दुआ कि आपका आभा मंडल द्विगुणित हो, आपकी यश कीर्ति दसों दिशाओं में बखानी जाये, आपकी पीढियां स्वस्थ और सानंद हों और फिर सारे का सारा बचपन महफूज हो !
अली साहब,चिंता तो जायज है। त्यौहारों का स्वरुप विकृत होता जा रहा है। पहले और आज में बहुत अंतर आ गया है।
जवाब देंहटाएंपटाखों से हादसे तो होते ही रहते हैं और लक्ष्मी को खुश करने के लिए खर्च किया गया धन किसी की तिजौरी में ही जाकर बंद होता है।
मैने देखा है कि कई व्यापारी लक्ष्मी पूजन के दिन पैसे तो ले लेते हैं लेकिन देते नहीं है। कह देते हैं कि कल भिजवा देगें।
दीपपर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
दीए जलाएं अमावश का तम भगाएं
यह तो सच है कि आज व्यापारिक होड़ लगी हुई है ...पटाखे भी एक दूसरे कि होड़ में ज्यादा चलाये जाते हैं ...मेरे पटाखे दूसरे से कम कैसे ? ..
जवाब देंहटाएंइतना शोर है कि टी० वी० के कार्यक्रम भी नहीं देख पा रहे हैं ...मतलब देख तो रहे हैं पर सुनाई कुछ नहीं दे रहा ...
आपकी चिन्ता जायज़ है ...लेकिन आपका यह लिखा कि ---- ठीक वैसे ही जैसे बचपन की रोजी रोटी बारूद के ढेर आना से जायज़ बता डाला था !
यहाँ बच्चों को उन पटाखों की फैक्टरी में काम करना जायज़ किसी ने नहीं ठहराया था ...जो क़ानून बने हैं उनका सही पालन नहीं होता ...और गरीब माँ- बाप बच्चों को ऐसे काम पर भेज देते हैं ...भूख से मरने से बचाने के लिए ..पर भूल जाते हैं कि ऐसी ज़िंदगी मौत से भी बद्तर होगी ...
दीपावली की शुभकामनायें
धुंये से मैं भी दूर रहता हूं. सौ-दो सौ से अधिक के पटाखे नहीं लाता..
जवाब देंहटाएंत्यौहार पर जम कर हो रही आतिशबाजी अस्थमा के मरीजों के लिए तकलीफदेह तो है ही ...
जवाब देंहटाएंहम लोंग अव्वल तो पटाखे चुदते ही नहीं है न और अगर घर में मेहमान बन कर आये छोटे बच्चों के लिए छुड़ाना हो तो चकरी , अनार , फूलझड़ी जैसे छोटे और कम शोर करने वाले पटाखे ही काम में लेते हैं ...
त्योहारों का उल्लास और आलोक बाजार की गिरफ्त में ना आये ...इस दीपावली यही प्रार्थना कर लेते हैं ...!
किसी भी चीज की अति अच्छी नहीं होती। अति होगी तो नुकसान होगा ।
जवाब देंहटाएंमेरे बच्चे ने कहा, "पापा मैं पटाखे नहीं छुड़ाउंगा,,,इससे ग्लोबल वार्मिंग के लिए खतरा है..मेरे स्कूल के बच्चों ने संकल्प लिया है कि कोई पटाखे नहीं बजाएगा।" मै खुद को नहीं रोक सका मैने कहा, "ठीक है तुम रहने दो मैं तो बजाउंगा..." लेकिन इसका प्रभाव यह पड़ा कि कम पैसे में सिमट कर रह गया।
...वैसे आपकी चिंता मेरे बच्चे की तरह वाजिब है ।
हमने तो उम्र हो गयी पटाखे छुए हुए, शोर शराबा यूँ भी कभी पसंद नहीं रहा, बचपन में कुछ शौक था, वो अपनी जगह ठीक ही होता है..
जवाब देंहटाएंजहाँ तक बाल श्रमिकों का सवाल है, तो मामला बहुत पेचीदा है, जितने भी छोटे बच्चे इस काम में लिप्त देखे है, उनकी माली हालत देखते हुए तो यहीं कहा जा सकता है की उनके पास कोई विकल्प नहीं है, रातों रात कायाकल्प की उमीदें करना तो बेमानी होगी. हाँ यह जरूर है की उन्हें बारूद में काम करते वक़्त उचित सावधानी बरतनी चाहिए, और मास्क, दस्ताने जैसे साधन निश्चित रूप से उपलब्ध कराए जाने चाहिए ... यहाँ भी आखिर बात क़ानून व्यवस्था पर ही आती है ...
बाकी व्यक्तिगत रूप से कहूं तो मेरे देखे बच्चों को काम करने में मज़ा ही आता है, हम भी तो आखिर अपने बचपन में चवन्नी अट्ठन्नी कमाने के लिए माँ बाप के हाथ पाँव दबा देतें थे .. ! यकीन माने, मेरे देखे तो ज्यादातर बच्चे काम करके पैसे कमाने करते वक़्त खुश ही दिखाते है, शोषण एक अलग विषय है .... उस पर तो पूरी सख्ती होनी चाहिए .... हम भी खुद को कमबख्त दुनिया से कम सताए हुए नहीं मानते ... !
दीपावली की शुभकामनाए ....
@ ललित शर्मा जी ,
जवाब देंहटाएंत्वरित प्रतिक्रिया के लिए आभार ! आपको दीप पर्व की शुभकामनाएं !
@ संगीता स्वरुप जी ,
प्रतिक्रिया के प्रथम दो पैरे पर इतना ही कहूँगा कि हां असुविधा तो है ही !
और अंतिम दो पैरे पर ये कि ,अगर कोई गरीबी की मजबूरी और कानून की लचरता का तर्क देकर बालश्रम को डिफेंड करे तो ? तो डिफेंस उसका जिसे इंसान जायज़ समझता हो ? मेरे कहने का आशय केवल इतना सा है कि इंसान जिसे जायज़ समझता है उसके पक्ष में खडा होता है ,तर्क देता है ! बाकी सब शब्दों का फेर है बस !
आपको भी दीप पर्व की अनंत शुभकामनाएं !
@ भारतीय नागरिक जी,
आपका निर्णय सर्वथा उचित है ! पर्व की शुभकामनाएं !
@ वाणी जी ,
आपकी प्रार्थना में हम भी साथ हैं ! आमीन !
पर्व का आलोक आपके परिवार मे सदैव / सतत व्याप्त हो , शुभकामनायें !
@ देवेन्द्र जी ,
तब तो मेरे लिए आपसे आपका बच्चा बेहतर है और उसका स्कूल भी :)
अशेष सुमंगलकामनायें !
@ मजाल साहब ,
ये भी खूब कि जहां आप अठन्नी /चवन्नी कमा लेते थे वहां इस बंदे को कौड़ी भी नसीब ना हुई :)
बच्चों को बच्चों के लायक ,निरापद काम मिलें तो शायद आपत्ति ना हो ! माली हालत और कानून व्यवस्था का रोना तो खैर है ही ! पर मैं सोचता हूं कि जिस मुल्क में 'करोड़ों बालिग़ हाथ' खाली बैठे हों तो उनकी ज़गह बच्चों से काम कराना कोई मजबूरी तो हो ही नहीं सकती , सिवा इसके कि श्रम का प्रतिफल कम देना पड़े और मुनाफा बढे !
बहरहाल बाल श्रम पर रातों रात कायाकल्प की उम्मीद इधर भी नहीं है ! पर शुरुआत ...?
त्योहार पर केवल आल्हाद और शुभता का ख्याल !
आपके लिए कोई दूसरा ख्याल मेरी क्या मजाल !
बच्चों ने लाजवाब कर दिया है, कह रहे हैं हम भी बड़े हो कर आपकी तरह चिंता करना सीख लेंगे.
जवाब देंहटाएंअली साहब, सच कहूँ तो हम गुनहगारों वाली साईड में हैं। पटाखे चलाये नहीं, पर दिलवाये जरूर बच्चों को। ये कोशिश जरूर की, कि कम आवाज वाले हों और कम से कम लिये जायें।
जवाब देंहटाएं@ राहुल सिंह जी ,
जवाब देंहटाएंचिंता यही है कि उनके साथ कितने बच्चे बड़े हो पाएंगे इस चिंता के लिए ?
@ मो सम कौन ?
भाई , यहां आग्रह ग्राउंड जीरो वाला नहीं है , न्यूनतम प्रदूषण और बड़ों के हाथ काम बस ! आपने तो शुरुवात भी कर दी :)
मुझे लगता है...आनेवाले दिनों में हालात में सुधार जरूर होंगे...क्यूंकि लोंग जागरूक हो रहें हैं.
जवाब देंहटाएंइस दिवाली मुंबई को देख सुखद आश्चर्य हुआ...चार साल पहले के हालात और अब में बहुत अंतर आ गया है. पटाखे चलने बिलकुल बंद तो नहीं हुए हैं..पर काफी कम हो गए हैं. एक मित्र ५ साल बाद फिर इस दिवाली पर मुंबई में थे...आश्चर्य कर रहें थे कि मुंबई में इतनी क्वाईट दिवाली है.....यह लोगों के जागरूकता का ही प्रमाण है....स्कूलों में जाकर बच्चों को पटाखे चलाने से होने वाली हानि के बारे में बताया जा रहा है...टी.वी., अखबार भी अपना काम कर ही रहें हैं...
मुंबई में यह मुहिम शुरू हुई थी, करीब १०-१२ साल पहले...परिणाम अब सामने आ रहें हैं...वहाँ के लोंग भी जागरूक हो जायेंगे ...पर शुरुआत करनी होगी...एक-एक व्यक्ति को इसके दुष्परिणामों से अवगत करा..जागरूक करना होगा.
सही चिंताएं हैं ...मगर मैं अपनी बेटी को उसके चेहरे की चमक देखते हुए मन नहीं कर पाया ...अगले वर्ष कोशिश करूंगा !
जवाब देंहटाएंअली साहिब, दिवाली कि बहुत बहुत मुबारकबाद आपको आपके परिजनों को,
जवाब देंहटाएंचिंता आपकी वाजिब हे, इंशाल्लाह लोगबाग अब जागरूक हो रहे हैं, धीरे धीरे सब
समझ में आ जायेगा, बाकी इस प्रकाश पर्व को लोग आपसी बेहूदी होड़ में लगकर अन्धकार पर्व कि और ले जा रहे हैं, एक सार्थक चिंतन के लिए साधुबाद,! लोग समझे आपकी हम सभी के दिल के बात और इस सुदंर पर्व को सुन्दरता से मनाये, इन्ही शुभकामनाओ के साथ
आपका अपना ही एक पाठक !
इस बाज़ार वाद के काले बादल सभी कुछ लील रहे हैं ... फिर वो हमारे त्यौहार हों या कुछ और .....अब वो उमंग .. रौशनी .... वो भाव ... रौशनी की चकाचौंध में खो गए लगते हैं ..... तेज़ी के इस दौर में त्योहारों की चमक वो मिठास खोती जा रही है ... अपने पन का एहसास ... कम्पूटर स्क्रीन में खो गया लगता है ..... आपको और परिवार को दीपावली की मंगल कामनाएं .
जवाब देंहटाएं@ रश्मि जी ,
जवाब देंहटाएंमुम्बई के हाल और आपकी पोस्ट तसल्ली देती है !
@ सतीश भाई ,
इधर लंबी और दीर्घकालिक चमक की दुआ है फिर अगले साल का आपका वादा भी साथ है!हम सभी के बच्चों के चेहरे हमेशा रौशनी से दमकते रहें!
@ आलोक खरे जी ,
आपको आभा पर्व की अनंत शुभकामनायें ! हम सभी की नस्लें आबाद रहें , खुशहाल रहें ! त्योहारों की ज़ीनत बनी रहे ,बस यही कामना है !
@ दिगंबर नासवा जी ,
आपके लिए दीप पर्व की अशेष सुमंगलकामनायें ! इंसानों में अपनेपन का अहसास सलामत रहे ! आपके सुर मे हमारा सुर भी मिला मानियेगा !
अली साहब दीपावली की शाम से ही परेशान हूँ और पता नहीं जाने कितने दिन तक मेरी स्थिति यूँ ही रहने वाली है. करीब ६-७ वषों से दिवाली की शाम मेरे लिए सबसे बुरा वक्त होता है और मैं तो बस अपने घर में बैठा उस दिन का इंतजार करता रहता हूँ जब इस आतिशबाजी पर प्रतिबन्ध लगेगा. पता नहीं इस जन्म में ये होगा भी या नहीं. और ऐसा ही चलता रहा तो ये निशचित है की मैं अगला जन्म ओबामा की धरती पर ही लूँगा.
जवाब देंहटाएंमेरी कॉलोनी अभी नई है, सिर्फ 10 प्रतिशत लोग ही रहते हैं, इसके बावजूद रात में 10 बजे इतना धुंआ था कि सॉंस लेना दूभर हो रहा था।
जवाब देंहटाएंवैसे अखबारों में पढ़ा कि इस बार कम दगे पटाखे। अच्छा लगा, काश ऐसे ही समझदार होते रहें लोग।
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इंटेलीजेन्ट ब्लॉगिंग अपनाऍं, बिना वजह न चिढ़ाऍं।
लोगों में जागरूकता तो आ रही है, हौले हौले!
जवाब देंहटाएंदुःख तो यही है कि संस्कृति के साथ-साथ जारी इन वाहियात चीजों पर लोग ठहर के सोचना नहीं चाहते , भले ही खुद नुकसान सहते रहें !
जवाब देंहटाएंसही कहा है, मगर हर साल पिछले साल से ज्यादा प्रदूषण होता है, सब कोशिश करते हैं तो ये पटाखे कौन जलाता है | मैंने पिछले तीन साल से दिवाली में एक भी पटाखा नहीं जलाया और मुझसे अच्छा लगता है
जवाब देंहटाएंHindi Shayari