रविवार, 26 सितंबर 2010

तिनका तिनका ज़रा ज़रा है रौशनी से भरा भरा !

सुबह सुबह कविता पर टिप्पणी की...अब रात के बारह बजे जाग रहा हूं, बाहर ज्यादातर बत्तियां गुल हुई हैं लिहाज़ा वहां, बागीचे में अंधेरा बिखर सा गया है, गोया उसकी हालत भी मेरे अंतर्मन सी हो चुकी हो ! स्त्रियों के बदलते अहसासात और हालात पर लिखी गयी उस कविता में एक शब्द ऐसा...जो मुझे दिन तमाम परेशान करता रहा और अब...नींद मुझसे कोसों दूर है ! फिलहाल तन्हा बैठा सोच रहा हूं कि, किससे शेयर करूं कि ये शब्द मुझे क्यों हांट करता है जबकि उन दिनों...

उन दिनों गांव से कुछ ही किलोमीटर्स की दूरी पर बुआ का स्कूल था ! लड़कियों का मिडिल स्कूल जहां वो पढाती थीं ! हर शनिवार की शाम बुआ के पास पहुंच जाना और इतवार की छुट्टी उनके साथ गुज़ारना एक दस्तूर जैसा ! स्कूल के एन पिछवाड़े में अवस्थियों का बाड़ा था जहां वो परीजाद रहती !  दूध माफिक गोरी चिट्टी गुड़िया सी...हम साथ खेलते कोई दो बरस छोटी रही होगी मुझसे ! वो छठवीं में और मैं आठवीं जमात में पढ़ते थे उस वक्त ! अवस्थी चाचा शौक़ीन तबियत इंसान...खूब पीते, घोड़े पालते, हर बरस रामलीला का प्रायोजन उनकी जानिब से हुआ करता ! आहिस्ता आहिस्ता उनके खेत बिकते गये, संपत्तियां सिकुड़ती गईं...पर शौक सलामत रहे ! वो घर से ही आवाज़ देते और मैं...दौड़ कर उनके बाड़े में हाज़िर हो जाया करता ! एक बड़े से आम के दरख्त में पड़े झूले में, मीरा और मैं घंटों झूलते...

वक़्त गुज़रता गया और मेरे लिये आगे की पढाई का सिलसिला कुछ यूं चला कि अवस्थियों के बाड़े की ख़बरें आंखों देखी से कानों सुनी हो चलीं थी ! अब जब भी बुआ घर आतीं, तो पता चलता कि उन लोगों की माली हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती ही जा रही थी पर चाचा अपनी ही धुन में...कोई रोक सके तो रोक ले ? बस कुछ ही बरस बाद सुना कि मीरा की शादी कर दी गयी...लड़का बड़ी उम्र का था यक़ीनन बाड़े की हालत इससे बेहतर वर के लायक ना रही होगी ? चिंता हुई...बुरा भी लगा...वो मेरे बचपन की सबसे अच्छी दोस्त एक बेमेल ब्याह का शिकार हुई...फिर सुना उसका पति बीमार है और वो खुद पूजा पाठ में लीन हो चली है...उसके पास चारा ही क्या था ?

और एक दिन अचानक वो अखबारों और टी.वी.चैनल्स की सुर्खियाँ बन गयी...उस दिन भी आज की रात के जैसा अन्धेरा पसर गया था मेरे सामने, सुना कि वो सती हो गयी और मैं ? आज फिर से सुबह सुबह कविता पढ़ते हुये...बाड़ा / झूला / घोड़े / रामलीला / शौक़ीन तबियत इंसान / बिकते खेत / आग में झुलसती सखि के अवसाद से घिर सा गया हूं ! एक ज़ख्म...नये सिरे से गहरा गया है ! बाहर रात गहरी है और घना अन्धेरा भीतर बाहर अपनी पकड़ मज़बूत करता हुआ सा ! मैं सो नहीं सकूंगा आज रात फिर से...यही कोई 32 बरस बाद !

कोई इंसान जीवित जल मरे...दु:खद है...अभिशाप है...इंसानियत पर कलंक है...कहो तो ? क्या मेरे लिए इस शब्द के इतनें ही मायने हैं ? इधर मैं जाग रहा हूं...मीरा सती हो गयी...मैं शराब नहीं पीता...चाहूं तो पी भी नहीं सकता...यकीन मानों मैं एक बेहतर पिता साबित होऊंगा और एक बेहतर इंसान भी ! इस गहन तिमिर में...मैं जाग तो रहा हूं ना !

40 टिप्‍पणियां:

  1. सबकुछ प्रभावशाली...

    प्रस्तुति, भाषा , भाव...

    सतीप्रथा की विभीषिका हम कहाँ समझ पायेंगे भला...!

    परन्तु क्या देह का ही जलना 'सती' कहलायेगा...प्रतिपल अपमान, दुराचार से जलना भी तो सती होने से कम नहीं...जिसमें न सिर्फ़ देह जलती है , बल्कि आत्मा तक जल कर राख हो जाती है....ऐसी भी सतियाँ हैं, हर घर के आस-पास बस देखने वाली नज़र चाहिए...

    हमेशा की तरह लाजवाब कर दिया आपने....

    हाँ नहीं तो..!

    जवाब देंहटाएं
  2. अली साहब,
    मूक कर दिया है आज आपने।
    जाईये ये दुआ नहीं करते कि आपको नींद आये, अरसे बाद जो यादें आती हैं उनका मान रखना चाहिये।

    जवाब देंहटाएं
  3. आप जैसे जागने वाले ही इस कुप्रथा को मिटाने में कामयाब हुए हैं , होंगे ...
    अदा जी की टिप्पणी भी गौर करने योग्य है ..सती सिर्फ तन जलने से ही तो नहीं होती ....
    हर पल स्त्री को साबित करना पड़ता है अपने आप को ...जलने वाले को तो एक बार में ही मुक्ति मिल गयी होगी ...
    मगर हालात इतने बुरे भी नहीं ...आप जैसे लोंग हैं ...आशा है ...!!

    जवाब देंहटाएं
  4. तन्हाईयों में ही आदमी ऐसी यादों में खो जाता है. दिक्कत यह है की हम जाग कर भी कुछ नहीं कर पाते.

    जवाब देंहटाएं
  5. काश पूरी दुनिया आपकी तरह जाग जाये तो शायद सब के जीवन मे उजाला हो। शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं
  6. जिंदगी आसूँओ का एक प्याला था,
    कोई पी गया, कोई छलका गया,
    जो न पी पाया और न छलका पाया उसे,
    भर गया वो थोड़ी देर में और,
    मौत बन कर बाहर आ गया ..

    जवाब देंहटाएं
  7. काश, उसके पिता ने भी एक रात ,इस चिंता में जाग कर बिताई होती कि बेटी इस बेमेल विवाह से खुश कैसे रह पाएगी ..तो बरसो बाद वो हादसा नहीं होता.

    सती प्रथा आज ख़त्म हो गयी है पर क्या आज भी लडकियाँ ,आग की लपटों के हवाले नहीं की जा रहीं या खुद ही हालातों से तंग आ, खुद को नहीं झोंक दे रहीं, उस जलती ज्वाला में.....यकीन मानिए आपके साथ भी देश के किसी कोने में कहीं ना कहीं दो आँखें जाग रही होंगी...क्यूंकि मुट्ठी भर आप जैसे संवेदनशील लोगों ने इस दुनिया का संतुलन संभाले रखा है...वरना यह दुनिया जीने लायक नहीं होती. बस शिकायत यही है.....ऐसी संवेदनशीलता, सबो में क्यूँ नहीं है?

    जवाब देंहटाएं
  8. आलेख पढ़कर मन में उदासी सी छा गई ... क्या कहूं...

    जवाब देंहटाएं
  9. जीवंत यादें, सखि के सती होने की दुखभरी दास्‍तां.

    अवस्‍थी जी भी समय रहते जाग जाते तो एक शरीर तिल तिल कर जलते हुए भस्‍म नहीं होती... यद्धपि सखि की आत्‍मा उसी दिन मुक्‍त हो पाई होगी.

    जवाब देंहटाएं
  10. "कोई इंसान जीवित जल मरे... दु:खद है...अभिशाप है...इंसानियत पर कलंक है."
    पुर्णतः सहमत.

    जवाब देंहटाएं
  11. आजकल और इर्द-गिर्द हो रहा है वही क्‍या कुछ कम है नींद उड़ा देने को. वैसे भी अहसास सोता नहीं, फर्क होता है कि उसे जगाए कौन रखता है, आपकी मुबारक यादें ऐसा कर रही हैं, कितने कम होते हैं ऐसी किस्‍मत वाले.(मैंने तो क्षेत्र ही चुना पुरातत्‍व का, अब आओ देखें, कौन मुकाबला करता है. स्‍टीफन हॉकिंग न आ जाए मुकाबले में 'बिग बैंग' ले कर.)

    जवाब देंहटाएं
  12. अली सा! आपने इस क़ाबिल ही नहीं छोड़ा है कि कुछ कह सकूँ... इतना तो तय है कि वो उसी दिन सती हो गई थी जिस दिन उसके अरमानों की चिता सजा दी गई थी और एक उम्रदराज़ शख्स से उसकी शादी कर दी गई... वो सती तो उसी दिन हो गई थी जिस दिन वो गृहस्थ जीवन के इंद्रधनुषी जज़्बात की चिता जलाकर पूजा पाठ में रम गई...और जब वो टीवी ख़बरों की सुर्खियाँ बनी उस दिन तो बस उसका जिस्म जला होगा, रूह के सती होने से ख़बर नहीं बनती...
    अल्लाह आपकी अहद हर बाप की ज़ुबान तक पहुँचाए! आमीन!!

    जवाब देंहटाएं
  13. @ रमेश केटीए जी , अदा जी , मो सम कौन ? भाई , वाणी जी , आदरणीय सुब्रमनियन जी , कपिला जी ,मजाल साहब ,रश्मि जी , महेंद्र वर्मा जी , संजीव भाई , विचार शून्य साहब ,राहुल सिंह साहब , संवेदना के स्वर बंधुओं , एस एम मासूम साहब ,
    आज सिर्फ शुक्रिया कहूँगा आप सबको !

    जवाब देंहटाएं
  14. मन भर आता ऐसी त्रासदी सुन कर. सच तो यही है की आज भी स्त्री होना अभिशाप बन सकता है, पर आप जैसे सोच वाले लोग इसे रोक सकते हैं.

    जवाब देंहटाएं
  15. बेहद अफ़सोसजनक घटना अली भाई !
    हमारे देश और समाज को कलंकित करती यह प्रथाएं ...
    अभागिन मीरा पूरे जीवन अभागिन ही रही और एक कली को खिलने का मौका ही नहीं मिला ! अगर यह घटना नयी है तो दोषियों को सजा दिलाने के लिए कुछ न कुछ करना चाहिए अली सा !
    मार्मिक आँखें खोलने वाले लेख के लिए आभार !

    जवाब देंहटाएं
  16. सचमुच बहुत दुखद है..
    सत्ति ...चाहे तन से हो या मन से...


    पता नहीं ये बचपन की ख़ास दोस्त ठीक से हंसी ख़ुशी की जिंदगियां क्यूँ नहीं गुजार पातीं...

    जवाब देंहटाएं
  17. आज देश-दुनिया कहां से कहां पहुच गये, ऐसे में गाहे-बगाहे सती हो जाने की खबरें विचलित कर देती हैं... असल में अपनी मर्ज़ी से सती हो जाने की बात कभी मेरे गले ही नहीं उतरी, मुझे तो लगता है, कि सती होने के लिये मजबूर कर दिया जाता है... जो विधवा महिलाएं सती नहीं हुई, क्या उनका प्रेम सती से कम आंका जाना चाहिए?
    दर्दनाक घटना, बहुत सजीव भाषा में.

    जवाब देंहटाएं
  18. मार्मिक!
    इतना दर्दनाक लिखेंगे तो कैसे काम चलेगा!
    आखिर आप भी यादों में खो गए न!
    क्या लिखूं समझ ही नहीं पा रहा...

    जवाब देंहटाएं
  19. आज कहने को कुछ नहीं...बस सिर्फ सोच रहा हूँ.

    जवाब देंहटाएं
  20. आपकी लेखनी और घटनाओं की अनुभूति में तादात्म्य होगा ही -मैं मान कर चल रहा हूँ ..
    दरअसल शब्द शिल्पी कभी कभीर अतियथार्थ के परिवेश का सृजन कर डालता है -आपका गद्य लेखन उसी सतह को छूता रहता है ....

    जवाब देंहटाएं
  21. .
    .
    .
    हृदयविदारक !

    इधर मैं जाग रहा हूं...मीरा सती हो गयी...मैं शराब नहीं पीता...चाहूं तो पी भी नहीं सकता...

    अली साहब,

    पी सकते होते तो नींद भी आ ही जाती... कभी-कभी यह मुई शराब बड़े काम की चीज बन जाती है ।
    चलिये जाने दीजिये...
    आप बेहतर पिता व उम्दा इंसान हैं... यह आपकी कलम से झलकता है!


    ...

    जवाब देंहटाएं
  22. बहुत ही मार्मिक एवं ह्रदय को छू लेने वाली
    कथा का चित्रण है ....
    और
    आपका ऐसा 'जागना' ही आह्वान बनेगा ,
    अवश्य ही .

    जवाब देंहटाएं
  23. विधवा होने के बाद तो नारी वैसे कहां ज़िंदा रह जाती है मानसिक और भावनात्मक तौर पर ,ऐसे में उसे ज़िंदगी की ओर लाने के बजाय अगर हम शारीरिक मौत भी दे दें तो ये कहां की इंसानियत है?
    पहली बार आप को पढ़ा है ,बहुत प्रभावशाली तरीक़ा है आप के लेखन का
    बधाई

    जवाब देंहटाएं
  24. बहुत मार्मिक ... आपकी लेखनी के जादुई शब्दों ने जान डाल दी है इसमें ....
    नारी अक्सर परिवार के किसी भी तरह के हादसों का शिकार होती आई है ... धरती की तरह उसे सबकुछ सहना पड़ता है ...

    जवाब देंहटाएं
  25. दुखद ! यह तो समूह की सच्छाई है !
    क्या घटना के मूल में शराब थी ? , व्यक्ति शराब तो 'जीने की शरण-स्थली' समझ कर जाता है और फिर एक बृहत्तर जाल में फंस जाता है ! सामूहिक तबाही ! पर हेतु ? शायद ज्यादा गहन विचार की मांग करता है ! किसी द्रव्य विशेष तक रखना तो एक सरलीकरण है !

    आपका लेखन प्रभावित करता ही है ! अलग से क्या कहना !

    जवाब देंहटाएं
  26. अंजना जी ,सतीश भाई ,मनु जी ,वंदना अवस्थी दुबे जी, callezee , देवेन्द्र भाई ,दिनेश भाई , कोकास जी , अरविन्द जी , प्रवीण शाह जी , मुफलिस साहब , ज़ैदी साहिबा , दिगंबर नासवा साहब , अमरेन्द्र जी ,

    इस संस्मरणात्मक पोस्ट पर आपको शुक्रिया ही कह सकूंगा !

    जवाब देंहटाएं
  27. padhakar khamosh, nistabdh hun.

    aapka yah sansmaran kahin kisi kone se ek sandesh bhi de rahaa hai....

    जवाब देंहटाएं
  28. सर.. इस पोस्ट ने एक ही समय में भावुक भी क्या और झिंझोड़ा भी..कल तालिबानियों के हाथों संगसार द्वारा मारी गई महिला का दर्द भी उभर आया.. लगता है दुनिया का सबसे कम मतावलंबियों वाला मज़हब होता जा रहा है इंसानियत..

    जवाब देंहटाएं
  29. अली साहेब,
    दुखद, हृदय-विदारक.
    इन्श'अल्लाह ये मनहूसियत जल्द रुखसत होगी!
    आशीष

    जवाब देंहटाएं
  30. इंसान का ज़िंदा जल मरना न सिर्फ इंसानियत पर कलंक है ,बल्कि यह तो इंसानियत के भी जल मरने के समान है. दूसरे शब्दों में कहें तो 'इंसानियत की आत्महत्या'. यह तो आज की दुनिया में हम हर रोज देख रहे है .इंसानियत को जलने से बचाने की ज़रूरत है. मुझे लगता है कि इस कहानी का भी यही सन्देश है. एक ह्रदय-स्पर्शी कहानी के लिए आभार .

    जवाब देंहटाएं
  31. इंसान का ज़िंदा जल मरना न सिर्फ इंसानियत पर कलंक है ,बल्कि यह तो इंसानियत के भी जल मरने के समान है. दूसरे शब्दों में कहें तो 'इंसानियत की आत्महत्या'. यह तो आज की दुनिया में हम हर रोज देख रहे है .इंसानियत को जलने से बचाने की ज़रूरत है. मुझे लगता है कि इस कहानी का भी यही सन्देश है. एक ह्रदय-स्पर्शी कहानी के लिए आभार .

    जवाब देंहटाएं
  32. इंसान का ज़िंदा जल मरना न सिर्फ इंसानियत पर कलंक है ,बल्कि यह तो इंसानियत के भी जल मरने के समान है. दूसरे शब्दों में कहें तो 'इंसानियत की आत्महत्या'. यह तो आज की दुनिया में हम हर रोज देख रहे है .इंसानियत को जलने से बचाने की ज़रूरत है. मुझे लगता है कि इस कहानी का भी यही सन्देश है. एक ह्रदय-स्पर्शी कहानी के लिए आभार .

    जवाब देंहटाएं
  33. सहमत हूं आपसे. इस तरह की स्थितियां नींद उड़ाने का माद्दा रखती ही हैं, सही में. ज़रूर, अपना फ़र्ज़ निभाने की ईमानदार कोशिश होनी ही चाहिये.

    जवाब देंहटाएं
  34. आपकी संवेदनाएँ भीतर तक हिला देती हैं।
    गहन तिमिर में भी जाग रहे हैं और सकारात्मक सोच रहे हैं, अच्छे इंसान होने की यह भी एक निशानी है।
    ................
    .....ब्लॉग चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।

    जवाब देंहटाएं
  35. वह सती नहीं हुई, जीवन संग्राम से पलायन कर गयी | यह पलायनवादी प्रवृति निंदनीय है |

    जवाब देंहटाएं