9 अक्टूबर की सुबह जगदलपुर से राजनांदगांव के लिये निकलते हुए संजीव जी से बात हुई कि 10 को दिन भर पारिवारिक कार्यक्रम में व्यस्त रहूंगा पर 11 अथवा 12 तारीख को पिछली उधारियां चुकाने की ख्वाहिश है ! अगर आप मित्रगण फुर्सत में हों तो इस नाचीज़ के लिये थोड़ा वक़्त निकालें ! 11 अक्टूबर की सुबह उनका फोन आया...उन्होंने कहा पाबला जी को ट्रेन पकडनी है :) उससे...ऍन पहले मिलना मुमकिन हो सकता है इसलिये आप दोपहर बाद ,लगभग एक बजे मेरे घर आ जाइए ! मैंने पूछा लेकिन आपके घर तक कैसे पहुंचूंगा ? उन्होंने कहा ज़रा आइये तो सही...दुर्ग के कचहरी चौक में, उसके बाद मैं खुद आपको पकड़ लूंगा :) हमारी बेगम साहिबा शुद्ध नान ब्लागर हैं सो उन्हें श्रीमती तिवारी और चिरंजीव अनिमेष तिवारी जैसे नान ब्लॉगरों की सुसंगति में 'बोरियत' से बचने के आश्वासन के साथ दुर्ग के लिये रवानगी डाल दी ! डोंगरगढ़ जाने वाले पदयात्रियों की कृपा से कचहरी चौक तक पहुंचते पहुंचते हुई आधा घंटा देरी के लिये भाई संजीव से खेद प्रकट करने की मंशा बना चुका था पर उनकी खूबसूरत गुलाबी शर्ट से मैच करती मुस्कराहट ने ये ख्याल दिल से निकाल दिया कि वे इस देरी से ज़रा भी अपसेट हुए होंगे !
अगर वे गाइड ना बनते तो मजाल है कि मैं पहले वाले 16 मोड़ पार कर उनके घर पहुंच पाता :) वहां जाकर पता चला कि उनमें एक सयाने ब्लॉगर की वो तमाम खूबियां मौजूद हैं कि वे श्रीमती तिवारी की आंखों से काजल चुरा लें पर उन्हें पता भी ना चले :) यानि कि भाई ने टीवी के पास ही ब्लॉगर का डेरा बना रखा है ! वे सीरियल देखें और ये ब्लागिंग ...चूंकि तिवारी जी को अनुज मानता हूं तो फिर अनुज वधु के सामने कोई प्रतिक्रिया कैसे देता...पता तो ये भी चला कि पुत्र अनिमेष ने भी एक इंग्लिश ब्लॉग बनाया था पर पिता जी ने किसी मित्र ब्लागर को लिंक देकर प्रमोट ही नहीं किया सो डिलीट कर दिया ! इसी दरम्यान उन्होंने पाबला जी को फोन किया तो पता चला कि ट्रेन पकड़ने की पूरी तैयारी के नाम से जनाबे आली आराम फर्मा रहे हैं, खैर उन्हें सन्देश रिकार्ड करा के तसल्ली हुई !
कोकास जी ने बता दिया कि वे पहुंच ही रहे हैं पर ललित भाई मौक़ा-ए-वारदात की पहचान नहीं कर पा रहे थे तो तय ये किया गया कि बेगम तिवारी और जनाब अनिमेष हमें रास्ता दिखाएंगे और संजीव भाई ललित जी को ! मज़ा ये कि हमारे गाइड अच्छे थे तो हम वक़्त पर तृप्ति जा पहुंचे और अब इंतज़ार...कि बाकी बंदे कब पहुंचेंगे ? उधर एक छोटी से गड़बड़ की सूचना मिली कि ललित भाई रानी लक्ष्मी बाई के स्टेच्यू की जगह रानी दुर्गावती के ठिकाने जा पहुंचे हैं ! अब...या तो ये गाइड संजीव जी कि गलती थी या कि ललित भाई 'रानियों' में भेदभाव नहीं करते हैं :) तभी शरद जी खरामा खरामा चौपहिया हांकते दिखे...मैंने शिद्दत से हाथ हिलाया...पर वे ड्राइविंग करते हुए संभवतः ज़रा भी मुस्कराते नहीं हैं...उनके चेहरे पर अनिश्चय के भाव थे शायद मुझे या...फिर कार पार्किंग की जगह को लेकर :) बहरहाल मुझसे गर्मजोशी से मिलने के बाद ही वो दोनों भाभियों से पहली बार मिले और संजीव भाई की लानत मलामत की, कि तिवारी भाभी इसी शहर में रहती हैं फिर भी... :)
बाहर ललित जी का आगमन हो चुका था ! हमने उन्हें जैसे ही गले लगाया अहसास हुआ कि बंदे की मूंछों की तबियत नासाज़ सी है वर्ना ब्लागर तो माशा अल्लाह काफी हैंडसम है :) सबसे मिलते हुए कुछ ऐसा लगा कि हमारे दिलों के अलावा हमारे पहनावे के रंग भी बेहद ताजे और खुशनुमा हैं ! इधर शरद जी के 'हलके हरे' पर ललित जी के 'धानी' की संगत और उधर संजीव जी के गुलाबी पर अनुज वधु का कत्थई रंग कमाल का लग रहा था और हम तो वैसे भी अपनी 'अहलिया' के रंग में रंगे हुए रहते हैं :)
थोड़ी बहुत गपशप के बाद नान ब्लागर्स ने अपना एजेंडा घोषित कर दिया कि वे ब्लागर्स को रेस्तरां में झेलने के बजाये घर जाकर बैठक जमायेंगे ! उनके इस आइडिये से सारे ब्लागर्स के चेहरों की रौनक देखते ही बनती थी...एक मुस्कान...आज़ादी की ? इस हिसाब से नान ब्लागर्स भी खुश और ब्लागर्स भी ! भोजन के फ़ौरन बाद तयशुदा प्रोग्राम के हिसाब से चिरंजीव अनिमेष तिवारी, श्रीमती सुरभि तिवारी, श्रीमती निज़हत दानिश अली और उनके लघु भ्राता जनाब आवेश अली साहब 16 मोडों वाले घर की ओर प्रस्थान कर गये और हम सब विलंबित ताल में बज रहे पाबला जी का इंतज़ार करते हुए ताम्बूल चर्वण सुख की अभिलाषा में बाजू की गली में प्रस्थित हुए !
कोई दस पन्द्रह मिनट बाद पाबला जी का फोन आया कि वे रेस्तरां में पहुंचने वाले हैं तो हम सब एक फिर से तृप्ति के शरणागत...सच कहूं तो पाबला जी से गले मिलते वक़्त 'दिल मिलने' में कुछ वक़्त लगा ऐसी अनुभूति,ललित ,संजीव और शरद जी से मिलते हुए नहीं हुई थी :) मुझे लगा शायद इसीलिये ब्लॉग जगत में पाबला जी को लेकर कुछ कन्फ्यूजन हो जाता है...उनका दिल ज़रा देर से मिलता है...अब ये सब पढकर पाबला जी के बारे में कयास आराई मत करने लग जाइयेगा दरअसल हमारे दिल मिलते वक़्त 'पेट' थोड़ा सा व्यवधान पैदा कर गया, यानि कि वो पहले मिला :) वर्ना पाबला जी तो अपने हाथों से ही अपने ज़ज्बात ट्रांसमिट कर देते हैं !
यह एक पारिवारिक मित्र मिलन सा आयोजन था लगा ही नहीं कि हम पहली बार रूबरू हुए हैं ढेर सारी गपबाजी के बावज़ूद कुछ कम रह गया है, का अहसास लिए हम सब देर शाम विदा हुए...सबसे पहले ललित जी ...उन्हें दूर जाना था फिर पाबला जी उन्हें और भी दूर जाना था ! शरद जी के आमंत्रण पर उनके घर जाने की इच्छा तो थी पर गहराती शाम और बढते ट्रेफिक के ख्याल से मामला कल पर टाल दिया ! अब देखें ये कल कब आता है शायद अगला...और अगला या फिर कभी बाद वाला अगला दिन ?
बेगम अब तक फोन कर चुकीं थी, मैंने कहा संजीव भाई के साथ घर वापसी पर हूं...बस चलते हैं...और तिवारी विला पहुंचते ही हम वापस चल दिए...कुछ सुहृद मित्रों के साथ भेंट की सुखद स्मृतियां लिए हुये...पर जल्द ही हम फिर मिलेंगे ! आखिर को ये दुनिया इतनी बड़ी भी नहीं कि हम बार बार ना मिल पायें ! अगली बार शायद और भी ज्यादा मित्रों से :)
खाना खा लिया अब खिसकने की तैयारी वाला एजेंडा घोषित करने मूड में
नान ब्लागर्स श्रीमती तिवारी,श्रीमती अली और उनके लघुभ्राता आवेश अली
बालिंग एक्शन में पाबला जी और शरद भाई अंपायरिंग के मूड में
उम्मीद है कि फोटो के बैक ग्राउंड वाली केमिस्ट्री आगे भी काम करती रहेगी :)
बहुत अच्छी प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंश्री दुर्गाष्टमी की बधाई !!!
मित्रों के साथ सहज समय बिताना अपने आपमें एक उप्लब्धि है !
जवाब देंहटाएंअली सा! कितनी आसानी और ख़ूबसूरती से आपने अपनी अनुपस्थिति की सफ़ाई भी दे डाली और बतौर सबूत तस्वीरें भी पेश कर डालीं... पाबला जी के संदर्भ में अपने निदा साहब का जो शेर बदल डाला कि दिल मिले या न मिले पेट मिलाते रहिये... वैसे भी पुरानी कहावत है कि मर्द के दिल का रास्ता वाया पेट ही जाता है, लिहाजा ताज्जुब नहीं... इतने सारे लोगों से आपके मारफत मुलाक़ात, एक रूहानी तजुर्बा रहा!
जवाब देंहटाएंवाह. ब्लागर मीट की तो बहुत सी रपटें देखीं पर, ब्लागरों के मिलने से पहले की गतिविधियों पर भी इतना विस्तार से लिखा जा सकता है, यह पहली बार पढ़ने को मिला :)
जवाब देंहटाएंआप माने न मानें, आपको जितना मज़ा मिलाने में आया होगा, उससे कहीं ज्यादा मज़ा हमको घर बैठे बैठे आपकी पोस्ट पड़ने में आ गया है ! शायद सभी लोगों ने गल्तियाँ इसी लिए करीं होंगी, की अली साहब को पोस्ट मारने का मौका मिल जाए, और फिर सब घर बैठे पढ़ कर उसके मज़े ले .. !
जवाब देंहटाएंलिखते रहिये ....
@उनमें एक सयानें ब्लॉगर की वो तमाम खूबियां मौजूद हैं।
जवाब देंहटाएंरोज 16 मोड़ वाली सड़क पर चलते वक्त हादसे से बचने के लिए इतनी खूबियाँ तो रखनी पड़ती है:)
@ बंदे की मूंछों की तबियत नासाज़ सी है वर्ना बलागर तो माशा अल्लाह काफी हैंडसम है :)
जवाब देंहटाएंहा हा हा,माशा अल्लाह क्या निगाहें पाई हैं आपने भाई साहब।
सबसे मिल कर बहुत अच्छा लगा,वैसे भी हम मित्रों से मिलने का बहाना ढूंढ ही लेते हैं।
जवाब देंहटाएंफ़िर मिलेंगे (एक ट्रक के पीछे लिखा था):) वहीं से उधार ले रहा हूँ।
इस ब्लॉगर मिलन समारोह का एक वर्णन ललित शर्मा के ब्लॉग पर पढ़ चुके हैं उससे बिलकुल जुदा अन्दाज़ में है आपका यह वृतांत ।
जवाब देंहटाएंअच्छा है वह स्कूटर वाला किस्सा आप भूल गए । और तो सब ठीक है लेकिन वह कल कब आयेगा जब आपके पाँव हमारी दहलीज़ पर पड़ेंगे । हम इस इंतज़ार में हैं ।
अब बचे पाबला जी संजीव और मैं , इनका अन्दाज़े बयाँ भी देख लेते हैं ।
ब्लौगर मिलन तो होते रहते हैं और उन पर आई रपट भी पढ़ते रहते हैं किन्तु अली जी का बताने का तरीका ही गजब का है।
जवाब देंहटाएंऐसा लग रहा है कि हम भी सबसे मिल लिए। भाभियों से मिलवाने के लिए आभार।
घुघूती बासूती
बड़ा जुदा अंदाज-ए-बयाँ रहा....और आपकी बारीक नज़रों ने सब नोटिस कर लिया... लिया...संजीव जी का टी.वी.के पास कम्प्यूटर, शरद जी के चहरे की परेशानी...पाबला जी के हाथों से ट्रांसमीट होती दोस्ती...क्या बात है. :)
जवाब देंहटाएंतस्वीरें भी शानदार हैं....खासकर अली दंपत्ति के मैचिंग ड्रेस कोड की....फिरोजी और ऑफ वाईट का क्या कॉम्बिनेशन है..:)
@ अशोक बजाज जी ,
जवाब देंहटाएंआपको भी बहुत बधाई !
@ रमेश केटीए जी ,
शुक्रिया !
@ सम्वेदना के स्वर बन्धुओं ,
सच कहूं तो दिल के बाद , कुछ हद तक पेटमय मुलाकात ही थी ये :)
@ काजल भाई / मजाल साहब ,
किसी बहानें से ही सही इस पोस्ट में आप दोनों भी मौजूद हैं :)
@ भाई ललित जी,
सब कुछ स्मरणीय रहा !
@ शरद भाई ,
स्कूटर का ख्याल मलाल की तरह बाकी रह गया उसका फोटो संजीव भाई के पास देर से पहुंच पाया और आप जानते ही हैं कि ये पोस्ट 14 अक्टूबर की तारीख खत्म होनें से पहले डालना ज़रुरी थी :) बहरहाल उसका उपयोग अवश्य किया जायेगा क्योंकि वो हमारे शौकों में से एक है :)
@ घुघुती बासुती जी ,
भाभियां आपको पसन्द आईं ये जानकर अच्छा लगा :)
@ रश्मि जी ,
इतनी कलरफुल तारीफ सुनकर अपनें गालों में लजायापन सा फील कर रहे हैं :)
अरे वाह... मौजाँ ही मौजाँ ... :)
जवाब देंहटाएंगुलाबी शर्ट कि मुस्कराहट तो पानी के गिलास के नीचे छुप गयी पर नीली शर्ट का प्रभावशाली व्यक्तित्व खुल कर सामने आया और अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंभाभी जी की साड़ी और आपकी शर्ट बरबस ही मैच कर गयी कि यह तयशुदा था ?
जवाब देंहटाएंयह चिट्ठाकार मीट और रपट भी खूब रही !
ब्लागरे महफिल का दिलकश फसाना :)
जवाब देंहटाएंये महफिलें यूँ ही गुलजार होती रहें...
चित्रण हो या वर्णन दोनों कमाल का करते हैं आप ! एक बार पढ़ना शुरू करो तो ख़त्म करके ही रुको ! आनंद आ गया !
जवाब देंहटाएंआप ब्लॉगर मिले , ऐसा लगा ही नहीं की आभासी मिलन हो ! ठेठ वास्तविक ! सभी जो दिल-दुरुस्ती के शिकार हैं ...:) | १६ क्या ६१ मोड़ होते तो भी पता न चलता , क्योंकि आखिर दुनिया इतनी बड़ी भी नहीं जिसे बातों बातों में न जिया जा सके !
ललित जी तो दिल्ली आने वाले हैं , इसलिए उनसे मुलाक़ात तय है अगले माह ! आप कब इधर रुख करेंगे ? दिल्ली में दिल्ली के अपवाद-स्थल ( JNU ) में आपका स्वागत है ! आभार !
@ प्रिय दीपक ,
जवाब देंहटाएंमौजें बनी रहें बस यही दुआ है !
@ विचार शून्य जी ,
पिछले कई दिनों से मन कर रहा है कि नीले रंग पर कुछ लिखा जाये :)
@ अरविन्द जी ,
यह केवल संयोग था :)
@ दिनेश भाई ,
कभी फोटो देख कर भी कुन्डली विवेचन किया करें :)
@ भाई अमरेन्द्र जी ,
बडी तमन्ना थी जेएनयू में पढनें की जो पूरी ना हुई ! अब देखें आपसे मिलना कब होता है !
मौजां ही मौंजा
विजयादशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
दशहरा में चलें गाँव की ओर-प्यासा पनघट
मूछ वाले भैय्या के ब्लॉग पर इस मित्र मिलन की कमेंटरी पढ़ ली थी. आपकी छूट गई. यहाँ कुछ अतिरिक्त चित्र और रोचक बातों से अवगत हुए.
जवाब देंहटाएंअली साहेब..
जवाब देंहटाएंबहुत व्यस्त थी/हूँ किन्तु आपकी लिखने के चमत्कार से वंचित रह पाना कठिन है ...और अब तो इस चमत्कार के पीछे जो रहस्य है वो भी हम देख रहे हैं...जब इतनी खूबसूरत प्रेरणा बगल में बैठीं हों, तो फिर कलम चलती नहीं है दौड़ती है...हम तो बस खामख़ाह आपकी तारीफ करते जाते थे...हमारी तरफ से बेहद्द खूबसूरत नाजनीन को आदाब कहियेगा...आज मेरी टिप्पणी सिर्फ़ उन बहुत ही ख़ास शख्शियत के लिए है...
शुक्रिया...
@ ललित भाई ,
जवाब देंहटाएंदोबारा शुक्रिया ! लिंक को देखता हूं !
@ आदरणीय सुब्रमनियन जी,
आपका आभार !
@ अदा जी ,
ये लो आपनें पाला बदल डाला :)
खूबसूरत तस्वीरों के साथ शानदार रिपोर्ट ...भाभियों से मिलवाने के लिए बहुत आभार ..!
जवाब देंहटाएंहा हा हा!
जवाब देंहटाएंअली जी, आपने तो पूरी पोल ही खोल दी दिल मिलने में होने वाली देर का रहस्य बता कर
प्योर नॉन-ब्लॉगर भाभियों से मुलाकात नहीं हो पाई, अखर गया
वैसे सयाने ब्लॉगर वाली बात सही है।
कम समय मिलने के बावज़ूद आपकी जिन्दादिली ने इस बात का अहसास न होने दिया
फिर मिलेंगे, जगदलपुर में :-)
एक बात की ओर ध्यान दीजिएगा
जवाब देंहटाएंसंजीव वाली लिंक गड़बड़ है जी वाली लिंक ठीक है :-)
...चित्र, चित्रण दोनो लाजवाब। देर से आया पर खूबर निहार कर देखा, चाव से पढ़ा.
जवाब देंहटाएं@ वाणी जी ,
जवाब देंहटाएंशुक्रिया !
@ पाबला जी ,
उम्मीद करता हूं कि अगली मुलाकात में आपको ट्रेन पकड़ने वाला काम नहीं करना पड़ेगा :)
लिंक वाला 'जी' संजीव सहित कर दिया है जी :)
@ देवेन्द्र भाई ,
अपनें लोग ही हौसला बढाते हैं !
ब्लॉगरों का अपना-अपना अन्दाजे-बयां भाने वाला है.
जवाब देंहटाएंbahut hi aatmiy milan raha ye to
जवाब देंहटाएं@ राहुल सिंह जी ,
जवाब देंहटाएंशुक्रिया !
@ राम त्यागी जी ,
आत्मीयता के लिये आभार !