शनिवार, 4 सितंबर 2010

हताहत शब्दों की देह से गुज़रते हुए कुल जमा ३६५वां मुहब्बतनामचा !

पिछली बार प्रेम की दुविधा के मसले और मेरी कारगुजारियों पर एक्सपर्ट्स की राय मेरे खिलाफ गई सो इस बार का मुहब्बतनामा ज़रा संभल कर  पेश करने की ख्वाहिश है ! बीती बातों से सबक ना लूं तो अहमक कहलाऊंगा , लिहाज़ा गलतियों से सबक लेने वाला इंसान माना जाऊं की तर्ज़ पर अगला बयान दर्ज करने की सोचते , कई दिन गुज़र गये ! इस दरम्यान 'कुहासों' से मुहब्बत करते दोस्तों की हिमाकत अपने उरूज पर थी, ऐसा लगा कि हम सब्जी बाज़ार में हों ! इतनी सारी...चीखती चिल्लाती आवाजों...बजबजाते अहसासों...सडांध मारते गिले शिकवों...हौसले बढ़ाते...हौसले तोड़ते कासिदों की भीड़ से भरा पूरा सब्जी बाज़ार...मुहब्बत , गोया सब्जीफरोशों की राजनीति हो गयी हो ! मेरी मुहब्बत...खालिस मुहब्बत , तेरी मुहब्बत  रेप के हिसाब से फिकरे उछाले गये...कई मर्तबा ऐसा लगा कि शब्द भी रो पड़े होंगे , अपनी दुर्दशा देख कर...लानत है हम इंसान झुण्ड के झुण्ड जमा हो गये , तमाशाबीनों की तरह  !

खैर...अपनी कई राते बेचैन गुज़री इस तमाशे में , खुद की बीबी से दो मीठे बोल का हौसला ना रहा...सोचा , पहले सोच लूं...तय कर लूं , कि मुहब्बत क्या है ? कहीं अपनी जिंदगी बिला मुहब्बत तो नहीं गुज़र गयी ! स्कूल कालेज के जमाने के दोस्त / दोस्तानियां   , मोहल्ले पड़ोस के यार / यारानियां   वगैरह वगैरह हिक़ारत की नज़र से देख्नेगे जब उन्हें पता चलेगा कि हमनें सच्ची वाली मुहब्बत , अरे वही जो ब्लॉग जगत में चल रही है , तो की ही नहीं ! शर्मिंदगी से कुंवें तालाब में डूब मरने की नौबत है ! अब तो सलाह मांगने में भी डर लगनें लगा है कि कहीं ठीकरा नातजुर्बेकार के सिर ही  ना फूट जाये ! घबराहट इस कद्र हो रही है कि बरसों से रटे हुए शेर भी गडमड हो रहे हैं...हो सके तो दुरुस्त कीजियेगा ...

"जो सीने में खलिश है , तू उसे पहचानती होगी  !  मुहब्बत क्या इसी का नाम है, तू  जानती होगी  !  बता दे कौन से मौसम में , ये शोला भडकता है ! मेरा दिल क्यों धडकता है "... इसे किसने लिखा था अब तो ये याद  भी नहीं , पर उस भूले हुए से आभार सहित , अपनी सेफ्टी के ख्याल से एक बात एहतियातन लिख दें  कि जिसे भी बुरा लगे...ये शेर उसके लिए नहीं है...और जिसे अच्छा लगे वो ये फैसला होने तक माफ कर दे कि दर-हकीक़त मुहब्बत है क्या  ?  ऐसी वाली जो हम करते रहे या  वैसी वाली जो अब देख सुन रहे हैं  !  ख्याल आया कि कबूतर नें वानरी को सलाह दी कि अपना खुद का घोंसला डाल ले , नतीज़ा 'अपना' खो बैठा , फिर भीगते रहे मुहब्बत की बारिश में दोनों !  कौन जाने ये उनकी पहली मुहब्बत थी कि आख़िरी ? ...और अगर थी भी तो हमारे ज़माने जैसी ओल्ड फैशंड तो कतई नहीं थी...हम देनें वाली में मुब्तिला बने रहे तो ये फ़कत लेने वाली के सौदागर हैं ! जितना ले सको ले लो उसके बाद , मुन्नी बदनाम हुई ...गाते हुए निकल लो !

पिछला हफ्ता अपने दिल पे स्याह गुज़रा,अपनी प्रेमगत दुविधा और नाकामियों के साये तले जो भी पढ़ा...हर्फ़ दर हर्फ़ स्याह नज़र आया ! खत्मशुद...हताहत शब्दों की देह से गुज़रते हुए कुल जमा ३६५ वां मुहब्बतनामचा... 


39 टिप्‍पणियां:

  1. मुहम्मत क्या है, ये सवाल तो समझ में आया, पर मुआफी चाहूँगा कि ये 365वाँ चक्कर समझ में नहीं आया।

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  2. अली साहब, साहिर ने एक सवाल के जवाब में कहा था.
    "दुनिया ने तज़ुर्बात-ओ-हवादिस की शक्ल में,
    जो कुछ मुझे दिया है, वो लौटा रहा हूँ मैं"
    यह क्या एक शायर की सिर्फ़ खुद की कैफ़ियत थी?
    नहीं सर, हर आम-खास पर यह बात थोड़ी या ज्यादा लागू होती है। जिसके जैसे तजुर्बे, वैसी ही उसकी प्रतिक्रिया। काये कू माथा फ़िराना? आपके वाली समस्या थोड़ी बहुत अपने साथ भी है, खुद की लानत मलानत अकेले में हम भी कर लेते हैं लेकिन किसी से क्या कहें। कौन सुनेगा, किसको सुनायें, इसलिये चुप रहते है(ऐसे मुद्दे पर)। अब जो हैं सो है, काहे को अपना पिछड़ापन और अनाड़ीपना जाहिर करना। अपन को तो ऐसी हिकारत वाली नजर मंजूर है जी। लगे हाथों एक शेर हम भी मार दें?
    "चांद नहीं बन पाये तो क्या गम है,
    आसमां में सितारों की कीमत क्या कम है?" (किसी और का ही है, हम तो गीदड़ भी नहीं मारे हैं कभी) हा हा हा।)
    पिछली पोस्ट पर एक्सपर्टस की राय बेशक आपके खिलाफ़ गई, तम तो कांधे से कांधा मिलाकर खड़े थे। जम्हूरियत में तो सिर ही गिने जाने चाहियें सर। आने वाले हफ़्ते, महीने और साल दर साल आप के लिये बढ़िया बीतें, शुभकामना।

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  3. सोचा , पहले सोच लूं...तय कर लूं , कि मुहब्बत क्या है ? कहीं अपनी जिंदगी बिला मुहब्बत तो नहीं गुज़र गयी !

    जनाब ! जब नतीज़े पॅ पहुंच जाएं तो
    बड़ी मेहरबानी … बताइएगा । ताकि हम भी फ़ैसला कर सकें … कि हमारा क्या हुआ था !!


    … गज़ब !
    … … बहुत ख़ूब !
    … … … मुबारकबाद !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  4. मुहब्बत क्या है, आख़िर ये जानने की ज़रूरत ही क्या है (सच, मैं तो यही नहीं समझ पा रहा हूं).

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  5. @ ज़ाकिर भाई ,
    जी ज़रा रुक के समझाता हूं !

    @ रमेश केटीए जी ,भावना जी
    शुक्रिया !

    @ मो सम कौन ?
    बस भाई ऐसे ही हौसला बढ़ाते रहिये :)

    @ राजेंद्र स्वर्णकार जी ,
    भाई कभी कभार ब्लॉग जगत में चल रही '?' की कसौटी में भी नाप लिया करें :)
    हमारी मुहब्बत का कद वहीं से छोटा हुआ :)

    @ काजल भाई ,
    बिना जाने कुछ करने की आदत कैसे डाली जाय बस यही सोच रहा हूं :)

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  6. मु... क्या है ? - ठेठ लोकवादी अर्थ जो अब तक समझ सका हूँ दो बुद्धिमानों का मांगल्य विवेक ( .००१ %) प्रेरित रचनात्मक कार्य बनाम दो मूर्खों के बीच की गलतफहमी ( . ९९.९९ ९ % ) प्रेरित लक्ष्य-विपथन ! ज्यादा % वाला सर्वत्र सत्तावान | मामला क्लियर ! सुन्दर प्रविष्टि !

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  7. अफशोस हम भी 'सच्ची वाली मुहब्बत' को तरस गए, क्‍या मुह दिखायेंगें दोस्‍तों को .. बड़े ब्‍लागर बनते थे.

    'कितनी .......नियॉं थी'

    '... सरकार कई'

    'फिर भी वापस आ गए, वो भी बिना मुहब्‍बत पाए.'

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  8. अली सा!! फिल्मी दुनिया के “महान शायर” श्री आनंद भक्षी..मुआफी चाह्ता हूँ...मरहूम आनंद बख्शी साहब फ़रमाते हैं कि
    शरीफ़ों का, ज़माने में,
    अजी बस हाल वो देखा
    कि शराफ़त छोड़ दी मैंने.
    मगर वाक़ई ये बिला नागा साल भर मुसलसल चलने वाला मोहब्बतनामचा… मज़ा आ गया गुरूदेव!! ख़ुदा आपको मोहब्बत से नवाज़े और हम आपके मोहब्बतनामे..ओफ्फोह क्या हो गया है..मोहब्बतनामचे की बारिश में सराबोर होते रहें!!

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  9. हिक़ारत की नज़र से देख्नेगे जब उन्हें पता चलेगा कि हमनें सच्ची वाली मुहब्बत , अरे वही जो ब्लॉग जगत में चल रही है , तो की ही नहीं ! शर्मिंदगी से कुंवें तालाब में डूब मरने की नौबत है !
    फिर तो कुएं ,तालाब कम पड़ जाएंगे...डूबने वाले ज्यादा होंगे :)

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  10. जहाँ तक मैं समझा हूँ ये आपकी ३६५वीं पोस्ट है. मैं सुबह ही आपकी पुरानी पोस्टें देख रहा था.अभी तक तो मैं आपको भी ब्लॉग जगत का आपने जैसा इसी फरवरी के आस पास पैदा हुआ नन्हा मुन्हा समझता था पर आपकी एक के बाद एक पुरानी पोस्टें देखकर लगा की आप ब्लॉग जगत के भीष्म पितामह हो सकते हैं. बहरहाल अगर मैं सही हूँ तो आपको इस पोस्ट की बधाई और गलत हूँ तो भी बधाई की आप इतने समय से ब्लॉगजगत से जुड़े हैं.

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  11. @ अमरेन्द्र भाई ,
    ज़रूर किसी दिन ये सारे इक्वेशन बदल जायेंगे ! बस ज़रा इंतज़ार !

    @ संजीव भाई ,
    आज फंस गये आप ! दोस्त लोग '...नियां' के पहले कुछ भी जोड़ लेंगे :)

    @ संवेदना के स्वर
    भाई आज जो लिखा उससे तो ऊपर वाला बचाए :)

    @ रश्मि रविजा जी ,
    कुछ कुछ अंदाज़ तो मुझे भी है कुंवें तालाब कम पड़ने का :)

    @ विचार शून्य जी ,
    पोस्ट में नंबर गेम का ख्याल नहीं ये तो बस मुहब्बत का साल है हर दिन एक नई बरसी :)
    ब्लॉग जगत में तो नहीं पर फरवरी में मेरा सच्चा मुच्चा जनम दिन है सो आपका अनुमान एक तरह से सच है :)
    आप सही रहें कि गलत बधाई तो हम ले ही रहे हैं :)

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  12. इस विषय पर जाने कितने प्रकांड विद्वान् हैं, ब्लॉग जगत पर जो...मंच सम्हाल सकते हैं...अनवरत लिख सकते हैं बोल सकते हैं...
    हम अपने बारे में सिर्फ इतना ही जानते हैं..खाया-पिया कुछ नहीं गिलास तोड़ा बारह आना...हा हा हा...
    और इतने धूम-धड़ाके वाले प्रकरण के बाद तो ...इस विषय से भयातुर हैं हम बाबा...
    किशोर कुमार का गाना याद आ रहा है...ये बेकार बेदाम की चीज़ है...
    खैर...बात हम करना चाहते हैं आपके लेखन की...क्या फर्राटेदार लिखते हैं आप...यूँ लगता है जैसे आपकी पोस्ट कोई गाडी हो...पढना शुरू करते ही गर्र्रर्र्र चल पड़ती है...और सीधा मंजिल पर ही रूकती है...
    बहुत ही सुन्दर...अब और का कहें...कहिये तो..!
    हाँ नहीं तो..!!

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  13. @ मित्रों ,
    अपरिहार्य पारिवारिक कारणों से मैं दो तीन दिन नेट पर नहीं आ पाऊंगा और आपकी टिप्पणियों का जबाब वापस लौट कर दे पाऊंगा !

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  14. मुहब्‍बत की आपकी खोज 365 गुणा 7 गुणा 24 जारी रहे.

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  15. "कबूतर नें वानरी को सलाह दी कि अपना खुद का घोंसला डाल ले , नतीज़ा 'अपना' खो बैठा , फिर भीगते रहे मुहब्बत की बारिश में दोनों !"
    .
    .
    .
    सावन बीत चुका है. भादों भी खत्म हुआ ही समझिए..कुछ दिनों की ही तो बात है..भीग लेने दीजिए :)
    मोहब्बत जिन्दाबाद :)

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  16. .
    .
    .
    "ख्याल आया कि कबूतर नें वानरी को सलाह दी कि अपना खुद का घोंसला डाल ले , नतीज़ा 'अपना' खो बैठा , फिर भीगते रहे मुहब्बत की बारिश में दोनों ! कौन जाने ये उनकी पहली मुहब्बत थी कि आख़िरी ?"

    हा हा हा हा,

    Good one !

    इस मुहब्बत की बारिश के छींटों में सरोबार रहे हम भी गये हफ्ते ...


    ...

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  17. मोहब्बत है क्या चीज़ ....
    धारा प्रवाह लेखन ..जबर्दस्त्त.

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  18. जी मुन्नी के साथ मुन्ना और उसका चाचा भी बदनाम हो गया -पब्लिक है ठुमके लगाये जा रही है ...
    सारी फार मुन्नी ,रियली सारी !

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  19. बहुत ही सुन्दर, शानदार लाजवाब रचना! उम्दा प्रस्तुती!

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  20. "जो सीने में खलिश है , तू उसे पहचानती होगी ! मुहब्बत क्या इसी का नाम है, तू जानती होगी ! बता दे कौन से मौसम में , ये शोला भडकता है ! मेरा दिल क्यों धडकता है "... इसे किसने लिखा था अब तो ये याद भी नहीं , पर उस भूले हुए से आभार सहित , अपनी सेफ्टी के ख्याल से एक बात एहतियातन लिख दें कि जिसे भी बुरा लगे...ये शेर उसके लिए नहीं है..
    हा हा हा.. मगर इशारा किधर है सर???? वैसे मुबारकवाद तो देनी ही होगी इस शानदार मोहब्बतनाम्चे पर.. मैं गलती से जल्दी में मोहब्बततमाचे पढ़ गया था.. माफ़ करना.. :P

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  21. @ राहुल सिंह जी ,
    जी उसमें मेरी उम्र का गुना और कर लेता हूं :)

    @ हमारी वाणी,
    शुक्रिया , पंजीकरण तो कराया था आगे क्या हुआ पता नहीं !

    @ दिनेश भाई,
    जिंदाबाद ...जिंदाबाद...जिंदाबाद !

    @ प्रवीण शाह जी ,
    भाइयों नें साल भर भिगानें का इंतजाम कर रखा है :)

    @ शिखा वार्ष्णेय जी,
    शुक्रिया !

    @ अरविन्द जी ,
    :)

    @ सोनल जी ,
    शुक्रिया !

    @ आशीष आशु ,
    आभार !

    @ प्रिय दीपक ,
    इशारे के बारे में जल्द ही बताता हूं :)

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  22. दास्ताँ-ए-इश्क को बस मेरा अफ़साना कहें
    इस तरह सब इश्क से क्यूं खुद को बेगाना कहें

    अक्स उनका,चाह उनकी,दर्द उनके, उनका दिल,
    दिल में हो जिसके उसे सब, क्यों न दीवाना कहें

    "बे-तखल्लुस" ये जहां वाले भला समझेंगे क्या.?
    जां का जाना है, जिसे सब दिल का आ जाना कहें।

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  23. चार छः महीने पहले कुछ ख़ास नहीं हुआ था हुज़ूर...
    इक आग है जो किसी भी पल हलकी नहीं पड़ती दिखती...काफी कंट्रोल करना पड़ता है कई बार कमेन्ट करने में भी.....

    :)

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  24. Regarding your comment on Bikhare Sitare...Poojane bindi ke alawa any koyi make up nahi lagaya hua hai...kajal hai.bas itnahi.

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  25. आपका ब्लॉग ११.९.२०१० के चर्चा मंच पर सजेगा.. देखिएगा जी..

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  26. ईद-उल-फ़ितर की मुबारकबाद। मुझे भी रजनीश भाई की तरह 365वाँ का अर्थ समझ नही आया। मुहब्बत शायद दुनिया का सबसे खूबसूरत और सब से मुश्किल सवाल है। धन्यवाद।

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  27. ... ईद मुबारकां, बधाई व शुभकामनाएं !!!

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  28. @ प्रिय दीपक
    ज़रूर !

    @ उदय जी ,
    शुक्रिया !

    @ कपिला जी ,
    शुक्रिया ! हर दिन एक लिहाज़ से ३६५वां दिन है ! फिर मुहब्बत जो हर दिन गुज़रती हो उसे हर बार पहला ही क्यों कहा जाये ! मिसाल के तौर पर आज से पहले यकीनन वो ३६४ बार गुज़र चुकी होगी :)

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  29. आपके समस्त परिवार को हमारे परिवार की तरफ से
    ईद की बहुत-बहुत शुभ-कामनाएं।

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  30. आपके ब्लॉग को आज चर्चामंच पर संकलित किया है.. एक बार देखिएगा जरूर..

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  31. पिछला हफ्ता अपने दिल पे स्याह गुज़रा,अपनी प्रेमगत दुविधा और नाकामियों के साये तले जो भी पढ़ा...हर्फ़ दर हर्फ़ स्याह नज़र आया ! खत्मशुद...हताहत शब्दों की देह से गुज़रते हुए कुल जमा ३६५ वां मुहब्बतनामचा..


    कुछ बड़ी गंभीर सी बात कही लग रही है ...

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  32. @ संगीता स्वरुप जी ,
    जी शुक्रिया !

    @ प्रिय दीपक,
    शुक्रिया !

    @ डाक्टर हरदीप कौर जी , ज़ील जी ,संवेदना के स्वर बंधुओं ,
    आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें !

    @ उपेन्द्र जी ,
    शुक्रिया ,बहुत बहुत शुभकामनायें !

    @ मनु जी ,
    शुक्रिया ,आप कह रहे हैं तो विश्वास करना ही पडेगा :)

    @ क्षमा जी ,
    जानकारी के लिए शुक्रिया !

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  33. इतना गूढ लेखन और उस पर हम सा मूढ पाठक। पोस्ट गिनीं - 365 से कम दिखीं। ब्लॉग का जन्मदिन देखा, 365 दिन से इतर दिखा। समझ ही नहीं आ रहा कि टिप्पणी करें तो क्या करें।
    सो ईद, तीज और गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें देना ही सुरक्षित लग रहा है।

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