रविवार, 29 अगस्त 2010

ये हल्दी लगा खत मेरा मुंह स्याह कर गया होता ...?

पता नहीं क्यों आज सुबह से एक खब्त सी तारी थी ! सो पुरानी फाइलें पलटते हुए चंद खत हाथों में अटक गये, बारी बारी से सबको  पढते हुए पुराने दिन जेहन की पर्त दर पर्त जमा धूल से बाहर नमूदार होने लगे !  यही कोई पांच छै साल जितनी नौकरी और रोमानी पार्टनर की तलाश ज़ारी रहनें  के हालात में जिंदगी गुजारते हुए हम ! सरकारी कालोनी में अपने घर के बिलकुल  करीब के मकान में आंध्र प्रदेश का एक परिवार अभी कुछ रोज पहले ही आया था ! परिवार के मुखिया केन्द्रीय सरकार के किसी प्रोजेक्ट में मुलाजिम थे और पत्नी शुद्ध गृहणी, एक बेटा उम्र कोई १५-१६ बरस और १३-१४ साल की एक सुन्दर सी बेटी भी ! आम तौर पर खुशदिल दिखाई देते लोग, दिन तमाम चेहरों पर मुस्कराहट सजाये घूमते ! यूं समझिए कि कालोनी में एक रौनक सी ! हां एक बात समझ से बाहर नज़र आती कि गृहस्वामी अपने आफिस से लौटकर भी घर से बाहर निकल जाया करते और देर रात लौटते ! ये  मानिए  कि २४ घंटों में से, रात के कुछ घंटे ही वो अपने घर में गुजारते ! जब तक घर में रहते अमूमन सन्नाटा छाया रहता !

गृहस्वामिनी अपनी सांवली रंगत के बावजूद हसीन कही जा सकेंगी, कद कोई साढ़े पांच फीट के आस पास और छरहरा बदन, एक रोज सुबह अपने बागीचे में टहलते हुए पौधों की नब्ज़ टटोल ही रहा था कि उन्होंने आवाज़ दी,सर आपको फुर्सत है तो इधर आइये ! फेंस के पिछले दरवाजे से बाहर उनके आंगन तक की दूरी कुल ३० सेकण्ड की रही होगी ! आंगन  में पड़ी कुर्सियों में बैठने का इशारा करती हुई वो अंदर गईं और लौटे वक़्त उनके हाथों में काफी थी ! आंटी...मैं काफी तो पीता ही नहीं ! ओह... हम लोग भी चाय नहीं पीते है ! आज इसी से काम चलाइए और हां...मुझे आंटी मत कहियेगा ! तो फिर...क्या कहूं ? कुछ भी, चाहें तो नाम लीजिए मगर आंटी हरगिज़ नहीं ! थोड़ी झिझक थी,पर मैंने कहा ठीक है,आपको भाभी कहूंगा ! आगे कुछ हल्का फुल्का पारिवारिक परिचय और बैठक समाप्त !  

उन्हें जानने वाले कुछ मित्रों ने कहा वे लोग अच्छे नहीं हैं उनसे दूर रहना, मैंने कहा बुरे भी नहीं लगते...फिर मोहल्लेदारी में अपरिचय कैसा ? कह तो दिया पर मन में एक फांस सी बनी रही ! वे अच्छे लोग नहीं हैं...अच्छे लोग...अच्छे ? उनसे सुबह शाम आमना सामाना होता पर अघट कुछ घटा नहीं, मुस्कराहटें हवा में बदस्तूर तैरतीं रहीं, कोशिश करता, कन्नी काट जाऊं पर अंधा और बदतहजीब भी नहीं था !  हां ये ज़रूर है कि मेरी मुस्कराहट के पीछे की फांस गहराती जा रही थी ! अक्सर सोचता ये क्या तरीका  है ? वे  लोग  अच्छे  हैं कि बुरे ? ...होंगे ? किसी दूसरे के कहने से बुरा मान लूं  ? धारणाओं का सुना सुनाया निर्धारण , चिंतन का कच्चापन ही तो है ! मुझे क्या हक़ है सुन कर फैसले करने का ? जब घटेगा सो जानेंगे ! अमां देखा जायेगा ! अमां देखा...! अमां...फांस और भी चुभने लगी थी !   

एक शाम के धुंधलके में उन्होंने मुझे आवाज़ दी ! मैं बागीचे की फेंस तक गया ही था कि वो उस पार आकर खड़ी हो गईं और हाथ बढाकर बोलीं लीजिए इसे पढियेगा ! ये सब इतनी तेजी से घटा, कि होश में आने तक वो वहां से जा चुकीं थीं और मेरे हाथ में एक पर्चा सरसरा रहा था ! सर्द शाम में धारों धार पसीना...! पर्चे को पढते हुए ! बार बार पढते हुए मुझे लगता ये प्रेम पत्र है...? ...ये प्रेम पत्र है ? नहीं ये प्रेम पत्र नहीं है...?  प्रेम पत्र है ...नहीं है... आंटी ... कुछ भी कहिये...भाभी कहूंगा...कुछ भी कहिये...फिर अगले कुछ दिनों तक मैंने अपने पौधों की नब्ज़ भी नहीं देखी ! बागीचे की जानिब देखते ही पसीना छूटता और मैं उनसे निगाहें भी नहीं मिला सकता था ! उसके बाद चोरों की तरह अपने ही आफिस से घर के रास्तों से गुजरने लगा मैं...

वर्षों बाद आज सुबह फिर से उसी दुविधा में हूं ! तब खुद,जो तय नहीं कर सका, वो अब मित्रों पर छोडता हूं ! खत को शब्दशः, अल्प, पूर्ण विरामश:, वेब पेज पर उतारते हुए एक ख्याल बना रहा...कि किसी की हस्तलिपि और प्राइवेसी में खलल ना पड़ पाये...बस एक उम्मीद कि वे कोई निर्णय लेने में मेरी मदद कर सकेंगे ! क्या सच में...ये हल्दी लगा खत मेरा मुंह स्याह कर गया होता...? क्या इसमें...हल्दी थी भी ?  और ये भी कि घटनाक्रम से मेरा पलायन कितना जायज़ था ?

नमस्ते ,
मेरे से आप बात करने से क्यों डरते हैं, मैं अच्छी नहीं हूं क्या, तीन दिन से आप मेरी आँख में हैं, आप भी मेरे विषय में किसी - किसी को कुछ बोलते रहते हैं क्या, इसलिए आप मुझसे बात करने के लिए डरते हैं, यह पत्र मैं बहुत हिम्मत कर के लिख रही हूं !  मैं आपके लिए बहुत हिम्मत वाली हूं लेकिन किस्मत वाली नहीं, आपसे बात करने के लिए मन है एक मिनट आप समय देंगे तो मैं आप को बता दूंगी कि मैं अच्छी हूं या बुरी ! इस पत्र को पढ़ने के बाद भी अगर आपके पास दो मिनट का वक़्त नहीं तो मैं आपको दुबारा मुंह नहीं दिखाउंगी अगर मुझसे कोई गलती हुई होगी तो मुझे माफ करेंगे ! 

44 टिप्‍पणियां:

  1. हम्म्म वास्तव में ही दुविधापूर्ण है स्थिति.

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  2. अली भाई
    क्यों जमी जमाई गृहस्थी …
    मेरा मतलब क्यों चाय के प्याले में तूफ़ान लाना चाह रहे हैं ?

    सुना था कि समझदार लोग कोमलांगियों के लिखे ख़ुतूत चूस - चबा कर फेंक देते हैं ।
    और आप हैं कि फाइलों में … ???
    बाकी फाइलें चैक कर लीजिएगा …
    पता नहीं कहां क्या निकले !!

    हा हाऽऽऽ हा …
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  3. अरे साहब क्या बात कर दी आपने अपन तो उस मिटटी के हैं की कोई रास्ता पूछता है और हम उसे घर तक छोड़ कर आते हैं. तो चलो आपको पंहुचा ही दें... आइये शुरू करते हैं....



    महिला की बड़ी संतान १५-१६ वर्ष की थी इनमे २० जोड़ दें तो महिला की उम्र हुई करीब ३५ से ४० के आस पास की ...यानि की हम उसे cougar कह सकते है.



    आपकी उम्र भी वही जो अपने Ashton Kutcher की और उनकी उम्र वही Demi Moore वाली .......



    पति देर रात तक घर से बाहर रहता है..... और पति की उम्र ४५ से ५० के आस पास की हो सकती है.

    पता है male menopause भी होता है....



    हो सकता है आप उस समय बोरिस बेकर से लगते हों जो सिर्फ ३० सेकिंड्स में निहाल हो गया था अतः आपके लिए १ मिनट में खुद को अच्छी या बुरी साबित कराने का वक्त उन्हें काफी लगा हो....



    मुझे तो ख़त में हल्दी क्या पूरी हल्दी घाटी की संभावनाएं नजर आती है.



    और आपका मैदान छोड़ने का निर्णय बताता है की आपमे समाज सेवा करने और लोगों का दुःख बाटने की भावना कभी नहीं रही .........



    ( अंत में यही कहूँगा की मेरा कमेन्ट गंभीरता से ना लिया जाय.....)

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  4. @ काजल भाई ,
    फेंस पर ही छोड़ दिया आपने :)

    @ राजेंद्र स्वर्णकार जी ,
    अब तो प्याले में काफी बर्फ जम चुकी है :)

    इस केस में मुझे लगा कि सबूत मेरे हक़ में हैं :)

    पर आप डरा रहे हैं तो सारी फाइलें नए सिरे से चेक करना पड़ेंगी :)

    @ बेनामी जी ,
    आप हमदर्द तो नहीं लगते :)

    @ समीर भाई ,
    शुक्रिया !

    @ आदरणीय सुब्रमनियन जी ,
    अफ़सोस पर सच यही है !

    @ विचार शून्य जी ,
    आपकी ज्यादातर गणनाएं सही हैं ! मानता हूं कि इस मामले में आपका तजुर्बा ज़बरदस्त है :)

    आपने शायद गौर नहीं किया कि उसी खत में समय सीमा दोगुनी कर दी गयी थी ! यानि कि टाइम एक फ्लेक्जिबिल ट्रेप हो सकता है !

    पहले सोचा था कि उस पीरियड की एकाध फोटो लगा ही दूं पर आप जैसे सहृदय ,सदाशय भाई बन्दों का ख्याल आते ही हौसला पस्त हो गया :)

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  5. अली साहब,
    साहिर लुधियानवी का गाना याद आ रहा है,
    "चलो एक बार फ़िर से अजनबी बन जायें हम दोनों"
    और गाने में जो पंक्तियाँ थीं, वो और भी ज्यादा मौजूँ हैं -
    वो अफ़साना जिसे अंजाम तक........।
    सुनी सुनाई बातों के आधार पर धारणा बना लेना अपने को भी कभी नहीं रुचा, हाँ, विवेक आपका अगर जागृत है और उसकी आप सुनते भी हैं तो मुँह स्याह नहीं हो सकता।
    मैं आपके कृत्य को पलायन नहीं मानता, नैतिकता का एक उच्च स्तर मानता हूँ।(मैं अपनी कहानी लिखूँगा तो कम से कम आप तो मेरे हक में गवाही देंगे न?)

    राजेन्द्र जी और विचारशून्य वाले दीप जी के कमेंट बहुत दमदार हैं,फ़ाईलें चैक कर लीजिये और कोई हल्दी घाटी वाली पाती हो तो सलाह ले लीजिये, सब अपने ही बन्धु हैं।

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  6. Aapke raaste hee jab juda hain to duvidha kaisi? Aapki khamoshi,khud b khud unke liye jawab ban jayegi!

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  7. नैतिकता के नाते यह पलायन उचित ही था ...!

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  8. अपना रास्ता लें वही बेहतर...

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  9. बात करने में भी नैतिकता जाती है?
    बतिया लिए होते तो एक अच्छी सी कहानी हो जाती।

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  10. तीन टिप्पणियाँ पसन्द आयीं।
    ;)

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  11. वैसे पात्र से तो मामला कुछ खतरनाक ही लगता है, बाकी हालात पर निर्भर है. कई बार खतरनाक लगने वाली बातें खतरनाक होती नहीं है और कई बार खतरनाक ना लगने वाली बातें भी खतरनाक हो जाया करती हैं.

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  12. @ मो सम कौन ?
    आपकी कहानी में गवाही ही क्यों सह अभियुक्त भी बनने के लिए सहमत हूं :)
    हल्दी घाटी पर सलाह मानके सारी फाइलें जल्द ही चेक करता हूं ! नैतिकता वाले मुद्दे पर साथ बने रहने के लिए शुक्रिया !

    @ क्षमा जी ,
    आभार !

    @ वाणी जी ,
    शुक्रिया !

    @ समीर लाल जी ,
    तब तो बेहतर ही किया है !

    @ गिरिजेश जी ,
    भाई अभी कितनी भी चुहल कर लूं ,पर उस वक़्त सदमें में था ! कहानी की प्लानिंग तो तब करता जब कुछ सूझता :)

    @ स्मार्ट इन्डियन ,
    तीनों टिप्पणियां मुझे भी पसंद हैं :)

    @ शाहनवाज़ भाई ,
    आपने भी काजल भाई की तर्ज़ पर मामले को फेंस पर बनाये रखा :) बल्कि उससे आगे खतरनाक कह के डरा भी दिया !

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  13. पतली गली से निकलना ही श्रेयस्कर रहा।

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  14. पलायन ही सही लग रहा है,
    यहाँ भी पधारें :-
    अकेला कलम
    Satya`s Blog

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  15. अली साहब,
    मेरी नज़र में यह पलायन नहीं था, यह एक सर्वथा उचित और परिपक्व निर्णय था....
    जिस रिश्ते का कोई सार्थक अंत न हो उसकी शुरुआत भी क्यों करनी थी...
    आपका लेखन लाजवाब है अली साहब...पता नहीं मैं कभी ऐसा लिख भी पाऊँगी या नहीं...सच में आपके आलेखों में पाठकों को बाँध रखने की अद्भुत क्षमता है....
    एक बार फिर बेमिसाल पोस्ट...
    आपका आभार...

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  16. अली साहब,
    इस 'मातमे निशात' पर सान्तवना ही दे सकता हूँ! मगर थोड़ी सी दिल्लगी के साथ. वैसे उम्र के उस मोड़ पर 'नैतिकता' कमज़ोर पड़ती तो अनपेक्षित नतीजे आते. फिर ये दास्तान आप हमें थोड़ी न सुनाने वाले थे !

    तीन दिन तक वो नज़र गाड़े रही,
    आपको बन्ने मियाँ ताड़े रही,
    कित बरस के बाद अब आंखां खुली?
    क्यूँ गुलाबी कोंपले ज़र्दी* लगी. [*हल्दी]

    खूबसूरत जिस्म उनका याद है,
    काठी, कद और छरहरापन याद है,
    फासलों के पल* भी गिन डाले मियाँ! [*३० सेकण्ड]
    काफी भी गटका गए थे याद है!

    "मुस्कराहट तैरती थी", क्या कहा?
    "फांस सी मन में चुभी थी ", क्या कहा?
    धारणा-निर्धारणों के बीच में,
    'पक्का फल', "कच्चा लगा", ये क्या कहा?
    =================================
    ख़ुद की नब्ज़ टटोले चोट कहाँ पर है
    'लेप' हल्दी का काम वहां आ जायेगा,
    दिल के जज़बातो पर अब तो काबू कर ले,
    अब भी फिर कोई इसको भा जाएगा.
    ================================
    अब 'मातमे निशात' से होगा क्या फायदा,
    दिल की खलिश बढ़ेगी ही, बिगड़ेगा जायका,

    mansoorali hashmi

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  17. वो भी क्‍या दिन थे ............

    मेरी नजर में भी एक शंका के साथ पलायन ही उचित था। शंका यह कि परिस्थिति व उनकी उम्र आदि की गणना करते हुए यदि पत्र का उद्देश्‍य 'मैं अच्छी हूं या बुरी !' को साबित करने मात्र रहा हो तो उसकी बातें अनकही रह गई.

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  18. @ वंदना जी ,
    :) शुक्रिया !

    @ सत्यप्रकाश पाण्डेय ,
    आभार, आपको जन्मदिन की शुभकामनायें !

    @ अदा जी ,
    सबसे पहले तो मसले पर दो टूक राय देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार !
    आगे ये कि आप खुद भी बेहद खूबसूरत लिखती हैं इस पर यकीन तो कीजिये ! आप जैसा संवेदनशील भावुक / मन दूसरों को कैसे प्रोत्साहित करता है ! ये बात सुख पहुंचाती है !

    @ मंसूर अली हाशमी साहब ,
    आपकी टिप्पणी दिल के बहुत करीब संभल कर रख रहा हूं ! आपका अंदाजे बयान और एनालिसिस गज़ब का है ! आपका बहुत बहुत शुक्रिया !

    @ संजीव भाई ,
    अनकही रह गई और रिस्क में से मैंने
    अनकही को चुना ! हो सकता है आकलन के नज़रिये से मैं गलत रहा होऊं ! मेरी दुविधा भी यही है !

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  19. यह पोस्ट पढ़ते कुछ बातें मन में आयीं...एक तो उन दक्षिण भारतीय महिला का हिंदी पर उतना अच्छा अधिकार नहीं होगा, इसलिए वह अपने भावों को ठीक से संप्रेषित नहीं कर पायीं. और यह पत्र एक दोस्ती के पत्र से ज्यादा प्रेम -पत्र लगने लगा.
    जैसा कि आपको लोगों ने बताया कि 'वे लोग अच्छे नहीं हैं...उनसे दूर रहिये' हो सकता है उक्त महिला,पुरुषों से बात करना गलत नहीं समझती हो, या वो जहाँ से आई हो वहाँ पुरुषों से मिलने-जुलने को बुरी नज़र से नहीं देखा जाता हो जबकि उत्तर भारत के शहरों,कस्बों में स्त्री-पुरुष का बात करना अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता. इसलिए कॉलोनी के लोगों ने ऐसी धारणा बना ली और आपको भी आगाह किया.
    दक्षिण में भाभी शब्द का चलन नहीं है....और आंटी कम से कम दस-पंद्रह साल बड़ी महिला को ही कहा जाता है,इसलिए उनके भाभी या किसी और संबोधन के आग्रह में कोई इतर मतलब नहीं देखना चाहिए.

    उक्त महिला को भी यह आभास हो गया होगा कि लोग उन्हें अच्छी दृष्टि से नहीं देखते. और आप उनके पड़ोसी थे, पहले मुस्करा कर बातें भी कीं, फिर कन्नी कटाने लगे,इसलिए उसने अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाही हो.

    वैसे आपने निर्णय सही ही लिया क्यूंकि कॉलोनी वाले बदलने वाले तो हैं नहीं, बातें बनाते ...और उक्त महिला भी उत्तर-भारत के शहरों के चलन से परिचित हो गयी होगी...उसने भी पुरुषों से दूरी बना कर चलना सीख लिया होगा.

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  20. ओह अली भाई एक भद्र महिला को आपने भी ज़माने की नजरों से देख लिया ...
    उससे दो मिनट बात तो कर लिए होते -तो भूली बिसरी याद आज न दुकाह्ती आपको और मुझे भी !
    गंदी औरतें तो पुरुषों की बुराई करती है -किसी वैश्या के शब्द सुने कभी आपने ..एक ब्लॉग जगत में भी मुखर हो गयी है

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  21. यह तो जबरदस्ती गले पड़ने वाली बात हुई. किनारा कर लिया . कुछ भी गलत नहीं किया.

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  22. बाल-बच्चे वाला आम गृहस्थ वही करती जो आपने किया...पतली गली से गुजरना! शायद मैं भी यही करता. लेकिन इमानदारी से कहूँ तो यह गलत निर्णय था। उस महिला की बात, उसका दर्द जरूर सुना जाना चाहिए। यह भी हो सकता है कि जिसे भी उसने अपना दर्द सुनाने का प्रयास किया, उसने उसे बुरा समझा। आखिर वह किससे अपना दर्द कहे जब 30 सेकेंड दूर वाला पड़ोसी भी ...!

    दरअसल मध्यमवर्गीय, बाल-बच्चेदार, शरीफ लोग, अपने घर के छत की सीलन ही ठीक करने में पूरी जिंदगी खपा देते हैं। दूसरे का घर चुए तो सिर्फ आह निकलती है..मदद के लिए हाथ आगे
    तभी बढ़ाते हैं जब इज्जत चौतरफा सुरक्षित नज़र आता है। ..ले दे कर इज्जत ही तो इनकी पूँजी होती है।

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  23. अब कमेंट पढ़ कर लिख रहा हूँ..
    मंसूर चचा का जवाब नहीं..

    खूबसूरत जिस्म उनका याद है,
    काठी, कद और छरहरापन याद है,
    फासलों के पल* भी गिन डाले मियाँ! [*३० सेकण्ड]
    काफी भी गटका गए थे याद है!
    ..मजा आ गया !

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  24. @ संजय चौरसिया जी,
    ठीक बात !

    @ रश्मि रविजा जी ,
    आपकी टिप्पणी काफी संतुलित है और दूसरी संभावना को भी जगाती है संभव है मेरा असेसमेंट गलत रहा हो पर मैं उस वक्त काफी डरा (शायद सदमें में ) हुआ था ! ये सब सूझा ही नहीं !

    @ अरविन्द जी ,
    :)शुक्रिया !

    @ हेम पाण्डेय जी ,
    सुस्पष्ट बात के लिये आपका आभार !

    @ बेचैन आत्मा ,
    ज़रूर मुझे दूसरा विकल्प भी देखना चाहिये था पर सच यही है कि मैं बहुत डरा हुआ था उस वक्त !
    मंसूर साहब नें खूब रगडा है तबियत से , मुझे भी बहुत पसंद आई उनकी टिप्पणी :)

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  25. बड़ा जटिल मामला निकला...ख़त भी क्या-क्या न करा जाते हैं.
    ________________
    'शब्द सृजन की ओर' में 'साहित्य की अनुपम दीप शिखा : अमृता प्रीतम" (आज जन्म-तिथि पर)

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  26. .
    .
    .
    अली सैयद साहब,

    ईमानदारी से कहूँ तो आपका पलायन जायज नहीं था...बुजदिली व स्वयं पर विश्वास की कमी का द्मोतक था...बात करने के लिये एक-दो मिनट के समय की हकदार तो थी हीं वोह...उनके मामले में तो आपने महज सुना था कि वो अच्छे लोग नहीं हैं...परंतु यदि विश्वस्त जानकारी भी होती उनके अच्छा न होने के बारे में...तो भी बात तो की ही जा सकती थी...

    आभार!


    ...

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  27. उचित कदम... दुविधापूर्ण किन्तु उचित...

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  28. अली साहेब,
    आदाब अर्ज़ है!
    आप अपनी जगह सही थे शायद, लेकिन ये दो परस्पर प्रथक, आई मीन अलायदा तहजीबों के चलते मिस्क्म्युनिकेशन भी हो सकती है. और बाऊ जी रही बात दुनिया की तो कुछ तो लोग कहेंगे... लोगों का काम है कहना!
    (शायद मैं कुछ ज्यादा समझदारी की बात कर गया हूँ.... मेरे फूहडपने की रेटिंग कम मत कीजियेगा!)
    खुदा आपको सलामत रखे!
    --
    अब मैं ट्विटर पे भी!
    https://twitter.com/professorashish

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  29. @ के.के.यादव जी,
    शुक्रिया !

    @ प्रवीण शाह जी ,
    रश्मि रविजा जी की टिप्पणी के जबाब में मैने इसे स्वीकार किया है ! आपकी बात महत्वपूर्ण है !

    @ रोहित जैन जी ,
    शुक्रिया !

    @ आशीष जी,
    तहज़ीबों और लोगों के मुताल्लिक आपकी राय दुरुस्त है :) आपका शुक्रिया !

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  30. आपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
    बहुत बढ़िया ! उम्दा प्रस्तुती!

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  31. क्या कहें..
    एक तो आपके शानदार लेखन से ही हमें जलन होती है..जाने हम ऐसा लिख सकेंगे या नहीं कभी


    अब तक जाने कितनी बार ऐसे पलायन किये हैं..कभी मुड़कर नहीं याद करना चाहा...
    हाँ,

    एक बार जब किसी की बातें सुनी थी रूककर...वो घडी अब भी याद है...

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  32. @ बबली जी ,
    जन्माष्टमी की शुभकामनायें !


    @ मनु जी ,
    "एक बार जब किसी की बातें सुनी थी रूककर...वो घडी अब भी याद है.."
    मुझे इंतज़ार है ,इसे ज़रुर सुनाइयेगा :)

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  33. .
    मी लॉर्ड, पॉइन्ट टू बी नोटेड..
    इतने दिन इस ख़त को सहेज कर रखने का मकसद साफ नहीं होता है ।
    चलिये, मक़सद अब हमें ही बता दीजिये, यहाँ सभी तो अपने हैं ।


    प्रथम-दृष्ट्या, हल्दी का मौज़ूद होना किसी वशीकरण प्रभाव के चलते लगता है ।
    पर गवेषणात्मक रूप से यह जल्दबाज़ी में मसाला पिसते हुये छोड़ कर लिखे मज़मून की तस्दीक करते हैं ।

    अपने को अच्छी या बुरी निश्चित करने का नीर-क्षीर विवेक उन्होंनें आपमें पाया हो, और वह अपने पति के उलझे व्यवहार को लेकर आपसे कोई मदद चाहती रही हो, क्योंकि आपकी बतायी दिनचर्या से वह महाशय किंवा परस्त्रीगामी न रहे हों ?

    जो भी हो, यह आपका अपने ऊपर भरोसे की कमी दिखाता है, सा्मान्य प्रतिक्रिया तो यह होती कि उनको बाद में मिलने की बात कह आश्वस्त कर देते, बाद में किसी दिन सामने के दरवाज़े से बेहिचक घुसते, यह दिखाते हुये कि कोई इसे चोरी न समझे ।

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  34. @ डाक्टर अमर कुमार जी ,
    शायद अजीब लगे पर स्कूल के वक़्त की कुछ चीजें आज भी सहेजी हुई हैं सो उसी तर्ज़ पर ये खत भी महफूज़ रह गया और कोई खास वज़ह नहीं !

    आपका पूर्वानुमान ज़बरदस्त है,वे महाशय परस्त्रीगामी ही थे ! आत्म विश्वास की कमी वाले नुक्ते पर आपसे सहमत हूं !

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  35. aap to aise naa the ali saa ;)

    tatkalin deshkaal aur vataran ko khyaal karne ke baad, patra padhne ke baad kaa aapka vyavhaar samayanukul hi lagaa...

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  36. जो भी होता है, अच्छे के लिए होता है।
    वैसे राजेन्द्र स्वर्णकार जी की सलाह पर कुछ तवज्जो दीजिएगा।

    ………….
    जिनके आने से बढ़ गई रौनक..
    ...एक बार फिरसे आभार व्यक्त करता हूँ।

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  37. @ संजीत त्रिपाठी जी,
    आप मुझे पहले वाला ही समझियेगा :)


    @ ज़ाकिर अली रजनीश जी ,
    स्वर्णकार जी की नेक सलाह पर चुपके चुपके अमल ज़ारी है !

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  38. प्रिय अली भाई
    बराबर नज़र रखे हुए हूं …

    फाइलें भी तो इतनी सारी इकट्ठी कर रक्खी हैं , आपने ! आपको कहां फ़ुर्सत होगी …
    आपके घर के आस पास का नज़ारा आजकल देखने की !
    काम निपटाने में जो लगे हैं लगातार …
    हा हाऽऽऽ …

    ज़रा मुआयना करलें … खिड़की के नीचे
    आप द्वारा फेंके हुए पुराने काग़ज़ों को लूटने के लिए गली मुहल्ले के नौजवानों में उसी तरह छीना झपटी चल रही हैं कुछ दिनों से
    जैसे छोटे बच्चों में पतंगें लूटने के लिए हुआ करती है …


    आप भी अली भाई , अब क्या कहूं … ?


    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  39. मैथिली बाबू की जानिब से कहूँ तो -
    यशोधरा : '' राहुल तू निर्णय कर इसका / न्याय पक्ष लेता है किसका / .... सुन लूँ तेरी बानी !''
    राहुल : '' मां मेरी क्या बानी / मैं सुन रहा कहानी !''
    अब बच्चे क्या बताएँगे ? बच्चों में अनुभव-वार्धक्य नहीं , इसलिए कुछ कह तो नहीं सकेंगे , पर बात चीत में हिस्सा तो बनने ही लगते हैं ! आभार !

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  40. @ राजेंद्र स्वर्णकार भाई ,
    अरे आप देख रहे हैं मैंने सोचा चुपके से निपटा लूंगा :)

    @ अमरेन्द्र भाई ,
    आपके लिए वही भाव जो पहले थे अब भी हैं ! वही प्यार, वही सम्मान, कोई बदलाव नहीं !

    चर्चाओं का क्या वे तो चलती रहेंगी ! कुछ लोग मित्रों के काँधे पर चढ कर बड़े दिखनें की कोशिश में और भी बौने हो जाते हैं ! उनकी चिंता कैसी ?

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  41. शुक्रिया अली साहब,
    "लेने के देने".... http://aatm-manthan.com पर पब्लिश कर दी है. आपका 'हल्दी' लगा परचा लीक हो ही गया है तो देखे कहाँ-कहाँ पहुँच कर क्या-क्या गुल खिलाता है!
    --mansoorali hashmi

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  42. शुक्रिया अली साहब,
    "लेने के देने".... http://aatm-manthan.com पर पब्लिश कर दी है. आपका 'हल्दी' लगा परचा लीक हो ही गया है तो देखे कहाँ-कहाँ पहुँच कर क्या-क्या गुल खिलाता है!
    --mansoorali hashmi

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