मंगलवार, 24 अगस्त 2010

टिमटिमाता तो रौशनी देता... !

उन दिनों उसके बालसखा केन्द्रीय मंत्री नहीं थे सो उसने भैरमगढ़ के किसी मिडिल स्कूल में बतौर जूनियर टीचर नौकरी शुरू की पर किसी छात्रा को प्रेम सिखाने की कोशिश  भारी पड़ी और उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया !  घर की खेती पर गुज़ारा मुमकिन ना था तो मित्रों की मदद से एक प्राइवेट कालेज में नौकरी करने लगा , वेतन कभी मिलता कभी नहीं भी  !  भाग्य ...हां भाग्य नें अंगडाई ली और कालेज को गवर्नमेंट नें टेकओवर कर लिया सो स्कूल से बर्खास्त आदमी रातों रात सरकारी कालेज का प्राध्यापक हुआ ! 

उसका मुझसे परिचय तब हुआ जब वो जगदलपुर ट्रांसफर होकर आया , एक पुरानी टीवीएस ५० और उस पर भटकता दुबला पतला मरियल  सा  आदमी , नौकरी के अलावा ईंट बनाने का काम भी करना चाहता था , जिला औद्योगिक केन्द्र वाले चौबे जी मेरे मित्र थे ,रोज रोज की रगड़ घिस से उकता कर मैंने कहा यार ये...ससुरा बीबी के नाम से ईंटों के भट्टे लगाना चाहता है तो लगानें  दो ना यार  !  उन्होंने कहा ठीक है  !  कुछ महीनों के बाद मैंने उसे एक सेकण्ड हैंड मोटर साइकल पर सवार पाया  !  हालांकि वो तब भी ज्यादा खुश नहीं था  !  उसने कहा अभी और आगे जाना है ...

फिर पता चला कि वो  मित्र  की गैस एजेंसी में भी काम करने लगा !  जब भी मिलता गर्व से बताता कि पैसे कैसे बनते हैं  और ये भी कि सरकारी नौकरी तो मूर्खता के सिवा कुछ भी नहीं , क्या मिलेगा यहां   ?   उसके व्यवसायों की फेहरिश्त दिन ब दिन लंबी होती गई , शेयर बाजार ,  भूमि क्रय विक्रय , उसके नए ठिकाने थे  !उसे ज़ल्दी थी , करीब ५० वर्ष का होते होते उसने स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति ले ली !  अब उसके पास अपना आकाश था जहां वह खुल कर उड़ सकता था !  इस दरम्यान उसके बालसखा केन्द्रीय मंत्री हो चुके थे ! जब भी मिलता करोडों की बाते करता और अपने हाथों के इशारों से अपनी हवाई यात्राओं का संकेत देता ...

दोनों बेटे लगातार फेल हो रहे थे वो पत्नी को डांटता , तुम ध्यान नहीं देतीं , क्या घर भी मैं ही सम्भालूं  ?  छोटा बेटा घर से भाग निकला उसने अंतरजातीय विवाह कर लिया और एक प्राइवेट स्कूल में काम चलाऊ तनख्वाह वाला गुरु जी बन गया !  इस झटके के चलते उसने बड़े बेटे के लिए एक बड़ी सी दुकान , जिसमें स्पेयर पार्ट्स बेचे जाना थे खोल दी और पुत्री की शादी भी निपटा दी  !  सुना कि आस पास के गांवों में उसके और भी बच्चे थे जो विभिन्न व्यवसायों के दौरान उसके प्रणय संबंधों का परिणाम थे ! 

अभी उसकी उम्र केवल ५५ ही थी कि बड़े बेटे की दुकान में जबरदस्त घाटा हुआ लाखों रुपये डूब गये ! ...उसे दुकानदारी का अनुभव भी कहां था !  छोटा बेटा मलेरिया से चल बसा  !  सागौन के वृक्षों वाली जमीनों की खरीदी बिक्री के कुख्यात कांड में वो खुद भी सीबीआई के लपेटे में आ गया , शेयर मार्केट की मंदी नें करोड़ों की चपत दी ! व्यावसायिक  घाटे और  बुरे समय से आक्रांत होकर ज्योतिषियों के चक्कर काटते काटते एक दिन अपने ही बाथरूम में हृदयाघात का शिकार हो गया  !  उसकी पत्नी और बड़े पुत्र को ये तक पता नहीं कि उनकी संपत्तियां कहां कहां हो सकती हैं ?  

वो जल्दी में था...उसके पास  परिवार के लिए समय नहीं था ...पर वो परिवार के लिए ही कमा रहा था शायद  ?अब उसका परिवार दुःख में है !  उसने क्या कमाया और क्या गंवाया  ?  वो ही जानता होगा ! ...पर मेरा ख्याल है कि यूं जो भभका तो बुझ गया ज़ल्दी... टिमटिमाता तो रौशनी देता...  





[ आप सभी को  रक्षाबंधन  पर्व की हार्दिक शुभकामनायें ]     

53 टिप्‍पणियां:

  1. ..पर मेरा ख्याल है कि यूं जो भभका तो बुझ गया ज़ल्दी... टिमटिमाता तो रौशनी देता...
    बहुत बढिया संदेश देता लेख .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!

    जवाब देंहटाएं
  2. धनकुबेर-वणिंकों की भाषा में कहें तो भाग्‍य नें उसका साथ नहीं दिया किन्‍तु उसने उपर उठने के सामयिक जायज-नाजायज प्रयास भरपूर किए थे... धनार्जन का शार्टकट रास्‍ता जीवन के लिए भी शार्टकट हो जाता है उसने सोंचा ना रहा होगा.

    उन केन्‍द्रीय मंत्री और उनके सभी साथियों के सितारे भी अब गर्दिश में हैं. जो हुआ अच्‍छा हुआ.
    यहीं सब देख-सुन-पढ़ कर ईश्‍वर के परमसत्‍ता पर विश्‍वास कायम रहता है।

    जवाब देंहटाएं
  3. बिल्कुल सही कहा………………………रक्षाबंधन की बधाई

    जवाब देंहटाएं
  4. रक्षाबन्धन के पावन पर्व की हार्दिक बधाई एवम् शुभकामनाएँ

    जवाब देंहटाएं
  5. @ एसबीएस जी, समीर भाई ,
    शुक्रिया ! पर्व की शुभकामनायें !

    @ संगीता पुरी जी,
    शुक्रिया ! पर्व की हार्दिक शुभकानायें !

    @ संजीव तिवारी जी,
    शुक्रिया ! पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !

    @ वन्दना जी ,
    शुक्रिया ! पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !

    @ अशोक बजाज जी ,
    पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  6. Bahut achha likha hai...andhi daud me aksar log bhool jate hain,ki,daud ka to ant nahi,zindagee ka hai..apnon ka hai..
    Raksha bandhan kee anek shubh kamnayen!

    जवाब देंहटाएं
  7. है कहाँ तमन्ना का दूसरा क़दम यारब !
    हमने दश्ते-इम्काँ को एक नक़्शेपा पाया ।[~ग़ालिब]
    --- अब इससे ज्यादा मैं क्या कह सकता हूँ !

    जवाब देंहटाएं
  8. क्या कहा जाये!


    रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ.

    जवाब देंहटाएं
  9. आज की टिमटिमाती कोई लौ परिवार को रौशन करे.

    जवाब देंहटाएं
  10. अली सा!आख़िरी शेर पूरा क़िस्सा बयान करता है...आए दिन नामालूम कितने शख्स सूरज गुरूब होने के क़बल सारी दुनिया नाप लेना चाहते हैं,और हासिल होती है बस दो गज ज़मीन...या बादशाह मिडास की तरह हाथ लगाते सोना बना देने का हुनर कितनों को फला है!!! हैरत है इनसे भी कोई सबक़ नहीं लेता!! बेहतरीन क़िस्सा और उससे भी बेहतर क़िस्सागोई!!

    जवाब देंहटाएं
  11. बात तो सही है पर टिमटिमाने की फ़ुर्सत में आदमी आज है ही कहां. ज़िदगी की दौड़ में ओवरहीटेड होने को ही अपनी उपलब्धि मान बैठा है इन्सान.

    जवाब देंहटाएं
  12. @ क्षमा जी ,
    शुक्रिया ! आपको भी मुबारकबाद !

    @ अमरेन्द्र जी ,
    ये भी कम तो नहीं ! पर्व की शुभकामनायें !

    @ समीर लाल जी ,
    फिलहाल मुबारकबाद क़ुबूल फरमाइए !

    @ राहुल सिंह जी ,
    वक़्त कम सा है लोगों के पास इसलिए कम समय में निकल लेते हैं ! पर्व की शुभकामनायें !

    @ काजल भाई ,
    यही ओवर हीट जिंदगी से हाथ खींच लेती है !

    @ संवेदना के स्वर बंधुओ ,
    सम्मोहक और अंधी दौड है ये आत्मघाती सी !
    रक्षाबंधन पर्व की शुभकामनायें स्वीकारियेगा !

    जवाब देंहटाएं
  13. जबरदस्त -इन दिनों कहानी मोड़ में हैं :) लगता है कईयों की छुट्टी हो जायेगी :) ;)

    जवाब देंहटाएं
  14. @ आपकी अघोषित कहानी कला , सच में कह रहा हूँ कि आप सहज ही लघु कथा रच देते हैं ! ब्लोग्बुड में लघुकथा के नाम पर जहां - तहां जल रही छद्म मशालें लघु-कथा-रस का बंटाधार कर रही हैं ! ऐसे में मुझे भी लग रहा है कि कईयों की छुट्टी हो जायेगी ! .....बस जारी रहें आर्य !

    जवाब देंहटाएं
  15. ऐसे लोग 'परिवार के लिए कमाने का दम भरते है' जबकि दरअसल इनकी चाह होती है... जल्दी से जल्दी बड़ा बनने की और वो चाह उन्हें कहीं का नहीं छोड़ती....वही इन साहब का हाल हुआ.
    पर मन दुखी हो गया पढ़कर...ऐसे बहुत से लोग समाज में मिल जाएंगे....जो अपना जीवन तो होम कर ही देते हैं...परिवार को भी सुखी नहीं रख पाते.

    जवाब देंहटाएं
  16. अच्छा तो ई लघुकथा है...
    हम का जाने बाबा ...हम तो बस पढ़ लेते हैं और खुस हो जाते हैं...आज भी गज़ब लिखाई रही आपकी...एकदम सुपट...
    बाकी हम तो यही समझे कि ई कौनो संस्मरण है...
    और बात रही आपके हिट हो जाने की और दूसरों को फिट आने की...तो हम तो यही कहेंगे ...आप जो हैं जैसे हैं बहुत-बहुत एक ठो और बहुत....अच्छे हैं...
    जो भी आप लिखते हैं...दिल से लिखते हैं...और आपका लिखा दिल में ही उतरता है....किसी का छुट्टी-उट्टी होता है कि नहीं ई हमको नहीं मालूम...और न जानना भी नहीं चाहते हैं...
    हम आपके अदना से प्रशंसक हैं...और वही रहेंगे...
    धन्यवाद...

    जवाब देंहटाएं
  17. @ अनुरोध है कि लघुकथा संबंधी मेरी बात की कोई अन्यत्र छाया न पहुंचाई जाय ! मैंने अपनी बात में 'अघोषित' शब्द कहा है और इसी माध्यम से कहना चाहा है कि वे जो घोषित होकर 'लघुकथा' कहते हैं वे अनायास ही इस कथारस को अभिप्रेत कर सकते हैं ! 'छुट्टी' वाली बात में हो सकता है कि 'ज्यादा' सा कुछ हुआ हो , अस्तु क्षमा ! हालिया परिदृश्य में किसी विधा के नाम के उल्लेख के साथ बरती अगम्भीरता को कहना ही एक उद्देश्य था , बस ! .......... अंततः अफ़सोस बस इतना ही होता है कि सुधारोन्मुख मूल-आत्मा से युक्त बातों को पूर्वाग्रहोन्मुख समझ लिया जाता है !

    जवाब देंहटाएं
  18. भैया कहानी तो एक सांस में पढ गए।
    कई किरदारों के करीब से गुजर गई।
    मालिक मकबूजा का किस्सा बड़ा मशहूर हुआ।
    लघु(सत्य के करीब)कथा के लिए आभार।

    जवाब देंहटाएं
  19. @ सर्व टिप्पणीकार मित्रों से आग्रह है कि अमरेन्द्र जी के मंतव्य को किसी अन्य रंग और प्रसंग में ना देखा जाये ! उनके कथन का निहितार्थ केवल इतना ही है कि वे मुझे लघु कथा लेखन के लिए प्रेरित कर रहे हैं !

    @ अरविन्द जी ,
    था तो ये उपन्यास के लायक पर समेट कर क्या बना डाला पता नहीं ! मकसद केवल सन्देश पहुंचाना था सो पहुंचा ! आगे किसी विधा की चिंता नहीं ! ज़मीन पर रहने दो भाई :)

    @ अमरेन्द्र जी ,
    केवल कहने की कोशिश करता हूं फार्मेट क्या बन गया उसका ज्ञान कम से कम मुझे नहीं है पर आप और अरविन्द जी कह रहे हैं तो अच्छा ही लग रहा है :)

    @ रश्मि रविजा जी ,
    सही है , बस यही कह रहा हूं मैं !

    @ अदा जी ,
    सच तो यही है कि यह संस्मरण ही है ! उस व्यक्ति के घटना क्रम बहुल जीवन पर उपन्यास बनता है ! पर मैंने उसे इस कदर लपेटा है कि पूछिए मत ! कितनी ही घटनाएं छुपानी पड़ीं ! जानता हूं कि सरपट भागते लेख को किसी विधा में शामिल करना कितना मुश्किल है ! मुझे उसकी परवाह भी नहीं है ! वो बहु स्त्री गामी , धन पिशाच था जो अल्प काल जी सका ! उसने अपनी मौत स्वयं अर्जित की और अपने परिजनों का दुःख भी . मुझे उसके बहाने एक बात कहना थी सो कह दी !

    @ अमरेन्द्र जी ,
    आपके 'वक्तव्य' का जो 'अर्थ' आप कहेंगे वही अंतिम और सही है. ऐसा मैं अपने लिए भी सोचता हूं ! बाकी मित्रों के अपने अपने नज़रिये हो सकते हैं !

    @ ललित शर्मा जी ,
    भाई सत्य ही है ! जो घटना क्रम आपने सुना था उसमें से एक ये सज्जन भी थे !

    जवाब देंहटाएं
  20. उस 'भभकते' से रौशनी लेकर , कितनी तारीकियाँ मिटाई है,
    जायज़ा 'गिर्दो पेश' का लेकर, कितनी सच्चाईयां दिखाई है.
    -mansoorali hashmi

    जवाब देंहटाएं
  21. अली साहब,
    जो भभकने के लिये आया है उसे टिमटिमाना कहाँ से सुहायेगा? सबका अपना अपना नज़रिया है।
    हमने भी ऐसे केस देखे हैं जो साईकिल की सवारी से शुरू होकर लंबी गाडि़यों तक पहुंचते हैं, और तब डाक्टर उन्हें सेहत बचाने के लिये साईकिल चलाने की सलाह देते हैं।
    @ सबकी छुट्टी होने वाली है:
    लिखते बहुत खूब हैं आप, छुट्टी वाली बात तो मुहावरे में ही कही गई होगी, लिखना सीखेंगे हम सम बहुत से आपको पढ़कर।

    जवाब देंहटाएं
  22. यूं जो भभका तो बुझ गया ज़ल्दी... टिमटिमाता तो रौशनी देता...

    आपकी लेखनी इन दोनों के बीच जज्वल्यमान दिख रही है और रौशनी भी दे रही है ... बधाई

    जवाब देंहटाएं
  23. @ मंसूर अली हाशमी साहब,
    हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया !

    @ मो सम कौन ? जी ,
    सेहत व्हाया साइकिल व्हाया लंबी गाड़ी भी खूब है :)
    छुट्टी को ज़रा लंबीssssssssssssssssssss छुट्टी पर भेज दीजिए :)

    @ पद्म सिंह जी ,
    बहुत बहुत शुक्रिया !

    जवाब देंहटाएं
  24. "...पर मेरा ख्याल है कि यूं जो भभका तो बुझ गया ज़ल्दी... टिमटिमाता तो रौशनी देता... "

    सोच रहा हूँ कि भभक कर जितनी रौशनी दे पाया क्या टिमटिमा कर उतनी रौशनी दे पाता?

    जवाब देंहटाएं
  25. आपने तो बहुत अच्छा लिखा..बधाई.
    ______________________
    "पाखी की दुनिया' में 'मैंने भी नारियल का फल पेड़ से तोडा ...'

    जवाब देंहटाएं
  26. मेरे नजरिये से तो ये एक सच्ची... लघुकथा लगी ..
    .जिससे बहुत कुछ सीखा और सीखाया जा सकता है \

    जवाब देंहटाएं
  27. @ अवधिया जी ,
    अल्पकालिक झुलसाने वाली रौशनी से देर तक टिमटिमाना बेहतर है ऐसा मुझे इस लिए लगा कि उसका परिवार उसके भभकने के साथ ही राख हो गया ! वैसे भी हमें 'सामान्यता' और 'असामान्यता' में से ही अपने सुख दुःख तय करना होते हैं :)

    बहरहाल सेकण्ड थाट के लिये आपका आभार !

    @ प्रिय अक्षिता ,
    मैं आपके ब्लॉग में पहुंचने ही वाला हूं ! देखूं तो सही कि बिटिया नें नारियल कैसे तोड़ा ?

    @ अर्चना जी ,
    शुक्रिया !

    जवाब देंहटाएं
  28. क्या लिखते है आप अली भईया इक दम बोले तो झक्कास । आप जो कुछ भी लिखते है उसमे सच्चाई दिखती है और शिक्षा प्रद भी होता है, बढिया लगा एक बार फिर आपको पढना ।

    जवाब देंहटाएं
  29. @ प्रिय मिथिलेश जी ,
    आप यूं तारीफ़ करेंगे तो मेरी मति ना मारी जाये :) शुक्रिया !

    @ परमजीत सिंह बाली ,
    बहुत शुक्रिया !

    जवाब देंहटाएं
  30. टिमटिमाता ,, तो रौशनी देता
    जी... बिलकुल सही कहा आपने
    इस कहानी का उद्देश्य आपके पुख्ता लेखन से
    स्पष्ट हो उठा है ....
    हालाँकि समापन प्रक्रिया में
    आतुरता की झलक भी छिप नहीं पाई है
    एक सफल और सार्थक प्रयास के लिए बधाई

    जवाब देंहटाएं
  31. @ मुफलिस जी ,
    आपका कहना सही है इस आतुरता को मैंने अदा जी की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया [सरपट भागते लेख] देते हुए पहले ही क़ुबूल कर लिया है ! आपकी टिप्पणी का हार्दिक स्वागत है !

    जवाब देंहटाएं
  32. ..यूं जो भभका तो बुझ गया ज़ल्दी... टिमटिमाता तो रौशनी देता...

    ...सार्थक संदेश देती बेहतरीन पोस्ट .

    जवाब देंहटाएं
  33. "Bikhare Sitare"pe aapkee tippanee ke sandarbhme...aapne bilkul sahi kaha..Poojaki parchhayi se nikalna hoga.
    First person aur third person,in dono narration ka prayog karne me kahin na kahin mano mai Pooja ka kirdaar jeene lag gayi aur ab us prabhav se nikalna zaroori hai.

    जवाब देंहटाएं
  34. पोस्ट पढ चुकने के बाद तरीफ में एक लम्बीईईईईईई सी टिप्पणी लिखने का विचार बना था..लेकिन आपके द्वारा मिथिलेश को की गई प्रतिटिप्पणी पढने के बाद विचार बदलना पडा :)
    बहरहाल आज चर्चा मंच की खूँटी पर टाँगने जा रहे हैं..पोस्ट को :))

    जवाब देंहटाएं
  35. @ बेचैन आत्मा ,
    टिप्पणी के लिये आभार !

    @ क्षमा जी ,
    यही सही लगता है !

    @ दिनेश भाई ,
    लम्बाई कम करने के लिए :)
    चर्चा में सम्मिलित करने के लिए शुक्रिया !

    जवाब देंहटाएं
  36. हाँ, मोमबत्ती के दोनों सिरों में आग लगा कर अधिक रोशनी के मुगालते में रहना हानिकर है। आदमी बहुत जल्दी चुक जाता है।

    जवाब देंहटाएं
  37. @ गिरिजेश जी ,
    उसनें तो मोमबत्ती में पेट्रोल छिड़क कर चारों तरफ से आग लगा ली थी :)

    @ स्मार्ट इन्डियन ,
    लालसा का अतिवाद दुखद ही होता है !

    जवाब देंहटाएं
  38. भाग्य ...हां भाग्य नें अंगडाई ली और.....




    .............

    बस ...बाद में भाग्य ने वापस अंगडाई ले ली..


    शे'र बहुत पसंद आया...

    जवाब देंहटाएं
  39. देर से टीपने का फायदा है की लघु कथा क्या होती है , पता चल गया ..:):)
    धन की लालसा में भागते फिरते लोगों की ऐसी दुर्दशा भी हो जाती है कभी- कभी...

    ये भी सच है की किस्सा कहानियों के ऐसे किरदार हमारे आस पास ही होते हैं ...मगर उनका सबकुछ उजागर कर लिख देना बहुत मुश्किल हो जाता है ...आपकी इस लघु कथा जैसे कुछ पात्र देखे हैं हमने भी ..कुछ का तो अंजाम देख चुके ...कुछ का देखना बाकी है अभी ...!

    जवाब देंहटाएं
  40. @ शाहिद साहब,
    शुक्रिया !

    @ मनु जी ,
    भाग्य को पलटने वाली टिप्पणी पसंद आई :)

    @ वाणी जी ,
    देर से आने के फायदे तो हैं :)
    "कुछ का देखना बाकी है अभी" शायद यही जीवन है एक अंधी दौड में लिप्त लोग !

    जवाब देंहटाएं
  41. आज लोगों में भभकने की ही आकांक्षा है, परिणाम कुछ भी हो.

    जवाब देंहटाएं
  42. @ हेम पाण्डेय जी ,
    जिस परिवार के नाम पर वे भभकते हैं वही पीछे छूट जाता है !
    ये एक अलग किस्म का सम्मोहन है जो परिणाम की चिंता से मुक्त करता है ! आप सही कहते हैं !

    जवाब देंहटाएं
  43. Abhi aapko thanks kahana bacha hai..aap punah prashan me( Bikhare sitare" ke) pooree tarah se jude...! Waise yahan bhi shukriya kahti chalun!

    जवाब देंहटाएं
  44. @ क्षमा जी,
    पढकर मुझे अच्छा लगा तो थैंक्स मुझे कहना चाहिए ! थैंक्स !

    @ दर्शन लाल जी ,
    शुक्रिया !

    जवाब देंहटाएं
  45. .
    .
    .
    उसने क्या कमाया और क्या गंवाया ? वो ही जानता होगा ! ...पर मेरा ख्याल है कि यूं जो भभका तो बुझ गया ज़ल्दी... टिमटिमाता तो रौशनी देता...


    अली साहब,

    टिमटिमाता तो एक बात तो तय थी कि उस पर पोस्ट तो कोई नहीं लिखता !

    वैसे ऐसे ही भभकने वाले कई कुछ सालों में ही हमारे उद्मोग जगत के जगमगाते नक्षत्र भी बन गये हैं हाल के सालों में... वह बेचारा थोड़ा दुर्भाग्यशाली था...ऐसे ही चल बसा...


    ...

    जवाब देंहटाएं
  46. @ प्रवीण शाह जी,
    आपने सही कहा कि तब उसपर कोई पोस्ट नहीं लिखता ! पर उसकी लिखी पोस्ट पढ़ी ज़रूर जाती :)

    जवाब देंहटाएं
  47. आपको पहली बार पढ़ा ...सटीक लेखन ..अच्छा लगा .

    जवाब देंहटाएं
  48. जहां संतोष नहीं, वहां सुख कहां। प्रेरणादायक कहानी अच्‍छी लगी।

    जवाब देंहटाएं
  49. @ संगीता स्वरुप जी ,अशोक पाण्डेय जी ,
    आभार !

    जवाब देंहटाएं