अपनी जैविक घड़ी पे भरोसा टूट सा चला है...भोर पांच पंद्रह का अलार्म लगा कर सोया था हालांकि कुदरत की घड़ियां सुबह दो बजे से ही बजने लगी हैं...पास ही कहीं बिजली गिरी होगी ! उठकर देखता हूं बारिश तेजतर होती हुई, दूर स्ट्रीट लाईट सिमट सी गई है गोया तूफ़ान के आसार से सहमी हुई हो ! यक़ीनन कोई और वक्त होता होगा जबकि बूंदे गिनना रोमांटिक एहसासों में शामिल होता हो पर अभी तो उन्हें बूंदे मानने की हिमाकत नहीं कर सकता, आंगन के पक्के फर्श पर हथौड़ों सी बजती हुई, भय पैदा करती हुई, वापस अपने बिस्तर पर दुबक गया हूं पर नींद जा चुकी है कोसों दूर !
बमुश्किल करवटें बदलते हुए तीन घंटे की ताबड़ तोड़ बारिश से बेसब्र हुआ, मैं सोचता हूं चाय पीकर नेट पर बैठ जाऊं...तलब किचन की ओर कदम खींचती है पर मैं कंप्यूटर रूम की ओर बढ़ता हूं, बेबस सा...हसरत भरी निगाहों से बीबी की ओर निहारता हुआ...काश जागती होती ! शादी के बाद की निर्भरता, तलब पर भारी पड़ती है और मैं उसके जागने का इंतज़ार करना तय करता हूं ! बाहर बारिश थम चुकी है, नेट पर आते ही ताज़ा प्रविष्टियों पर टिप्पणियां लिखने की शुरुआत से पहले खिड़की से बाहर झांकता हूं, सागवान के पत्ते गहरे स्याह हरे स्तब्ध से, सूरज महराज के आगमन की फिलहाल कोई खबर नहीं, दरख्तों की शाखों पर बसेरा लिए पत्तों का मौन मुझे हमेशा ही कष्टदाई लगता है, गोया किसी एडिक्ट ब्लागर का कंप्यूटर हैंग हो गया हो !
कुछ देर पहले तक की मूसलाधार बारिश के बाद , विलंबित सुबह के धुंधलके में अटकी हुई रौशनी के लिए पत्तों का यूं ठहर जाना,उदास कर गया ! ख्याल आता है कि ज़िन्दगी के लिए पानी ही नहीं रौशनी भी चाहिए इन्हें ! कुल जमा दोनों चाहिए मगर जरुरत बराबर...ना रत्ती भर कम ना रत्ती भर ज्यादा, इधर बैलेंस गड़बड़ उधर जान के लाले ! बेजुबानों में शुमार हैं सो इनकी चीख-ओ-पुकार कोई सुनता भी नहीं...पता तब चलता है जब लाशें बिछ जाती हैं ! स्तब्ध पत्तियों को देखकर तो यही लगता है कि रात जरुर ज्यादती हुई है, इनके साथ वर्ना हल्की सी हवा में क्या मस्त झूम झूम जाती हैं ये ! तब बूंदें इतनी तेज ही थी कि इन्हें चोट जरुर पहुंची होगी या फिर हवाओं ने ये खबर ही दे दी होगी कि तुम्हारा पड़ोसी अपनी खिडकी से झांकता हुआ अपने कांक्रीट के किले में सुरक्षित है तो क्या ? बगल की बस्ती डूब चुकी है, मिट्टी की दीवारें भरभरा कर ढह गयी हैं, वहां मातम है !
मुझे सुबह के सूरज का इन्तजार है, शायद रौशनी में ये पत्तियां मुस्करा उठें तब मुमकिन है कि इनकी रंगत गहरी स्याह हरी से गहरी हरी दिखाई दे ! सुबह का इंतजार तो बगल की बस्ती वालों को भी होगा पर उनकी सुबह कब होगी ? फिलहाल तो वे रात की बूंदों की मार से साबुत बच गया कुछ सामान खोज रहे होंगे ! उनकी सुबह यक़ीनन मेरी सुबह से बहुत दूर होगी, दरख्त उदास हैं, शाखें खामोश हैं और पत्तियां शायद बगल की बस्ती के सोग में स्तब्ध सी ! वहां मलबे में अब भी कुछ सामान कुछ उम्मीदें जरुर बाकी होंगी ! आह ये सुबह जो आके ठहर गई है बे रौशनी सी अजाब जैसी...
बहुत बढ़िया. आपने अपनी लेखनी से जो सजीव चित्र खीचा है वैसा ही कुछ वर्तमान में यहाँ दिल्ली में घट रहा है. शाम चार बजे से मुसलाधार बारिश हो रही है जो अभी छः बजे तक रुकी नहीं हैं. आगे भगवान जाने .... पर कॉमन वेल्थ गमेस तक तो रुक ही जाएगी.......
जवाब देंहटाएंअली साहब आपको चिंता है पड़ोस के गरीब बस्ती वालों कि और देखो मैं चिंता कर रहा हूँ अपनी शीला जी और माननीय संसद सुरेश कलमाड़ी जी की, कि उनके दिल पर दिल्ली कि ये मुसलाधार बारिश क्या कहर बरपा रही होगी......
जवाब देंहटाएं"ज़िन्दगी के लिए पानी ही नहीं रौशनी भी चाहिए"
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनी में सचमुच जादू है.
अली साहब, पोस्ट शुरू से नहीं दिख रही है। लेकिन जितनी पढ़ी, आपकी संवेदनशील भावनाओं और लफ़्जों की जादूगरी साबित करने के लिये काफ़ी है। मन भारी भारी सा हो गया है। कितने लोग सोचते होंगे आपके जैसा?
जवाब देंहटाएं@ विचार शून्य साहब,
जवाब देंहटाएंप्रविष्टि लिखते वक़्त उन दोनों का ख्याल भी था जेहन में ! बस इसीलिये आप मेरे अज़ीज़ हो !
@ आदरणीय सुब्रमणियन जी ,
आपका आभार !
@ रमेशकेटीए जी ,
शुक्रिया !
@ मो सम कौन ?
भाई ,अब पता नही इस कमबख्त पोस्ट को क्या हुआ ? दोस्तों से आंख मिचौली !
मेरे अधूरेपन पे भी अच्छे कमेंट के लिये बहुत बहुत शुक्रिया !
दिल को छू लेने वाली, मन में गहरे उतर जाने वाली बरसात.
जवाब देंहटाएंशव्दों में भावनाओं का अविरल प्रवाह; यह कविता है भईया. अपनी संपूर्ण शास्त्रीयता के साथ ... कवियों .. कवित्रियों क्या तुमने शव्दों में लैरिक को साधा है, यदि नहीं साधा है तो इसे पढ़ो.
जवाब देंहटाएंयह तो एक सुन्दर सी गद्य कविता है -शब्द शब्द में अहसासो का गहरा संस्पर्श है -अनुपमेय! अद्भुत !
जवाब देंहटाएंअधूरेपन को शब्द देना ही तो मुश्किल काम होता है , ऐसी सुबह की उदासी का चित्र हू-ब-हू खींचा है ।
जवाब देंहटाएं@ बेनामी जी ,भावना जी ,
जवाब देंहटाएंशुक्रिया !
@ राहुल सिंह जी ,
सहृदय टिप्पणी के लिए आपका आभार !
@ संजीव तिवारी जी ,
भाई इतना ज्यादा प्रेम अहंकारी ना बना दे !
@ अरविन्द जी ,
मूल भावना उद्घाटित हो जाये बस ,फिर ये गद्य हो या पद्य ! शुक्रिया !
@शारदा अरोरा जी ,
हां बेहद उदास सुबह थी ! टिप्पणी के लिए आपका आभार !
Aankhon ke saamne andhere me hoti barsaat kee ek tasveer-si khinch gayi...dil waqayi sooraj kee raushanee kaa intezaar karne laga!
जवाब देंहटाएं... bhaavnaatmak lekhan, badhaai !!!
जवाब देंहटाएं@ क्षमा जी ,उदय जी ,
जवाब देंहटाएंआप दोनों का आभार !
प्रशंसा क्या करूँ! अनुभव करने की चीज है। कहना क्या? सम्वेदित गद्य काव्य है यह!
जवाब देंहटाएंआप तो अपन टाइप के हैं - कंफर्म्ड।
जरा इन्हें देख आइए:
http://girijeshrao.blogspot.com/2010/04/blog-post_03.html
http://girijeshrao.blogspot.com/2010/06/blog-post_19.html
http://girijeshrao.blogspot.com/2010/06/blog-post.html
आप कुछ नहीं पर भी इतना कुछ लिख कैसे लेते हैं :)
जवाब देंहटाएं@ गिरिजेश जी,
जवाब देंहटाएंआपकी तीनों पोस्ट पर हमारी टिप्पणी पहले से ही मौजूद है भाई !
स्वभाव साम्य लगता तो है :)
@ काजल भाई ,
ना कुछ से भाई बन्दों नें हजारों हजार खुदा बना डाले मुझे कुछ शब्द भी ना गढनें दीजियेगा :)
हम तो इस बरस ऐसी बरसात के लिए तरस गए हैं। एक घंटे लगातार बरसात भी अब तक नहीं हुई है। कोई दिन नहीं निकला जब सूरज के दर्शनों से महरूम हुए हों। बचपन में ऐसा देखा है कि सप्ताह भर सूरज नहीं दिखा, बादलों की ओट छुपा रहा।
जवाब देंहटाएंकम से कम एक दिन, एक दिन तो मिले ऐसा।
अली साहब ..
जवाब देंहटाएंमैंने आपको थोड़ी देर से पढ़ना शुरू किया है ..
और ख़ुद को लानत देती रहती हूँ कि अब तक क्यूँ नहीं पहुच पाई थी यहाँ...
आपकी लेखनी चमत्कृत कर जाती है ..हम तो बस भाव प्रवाह में ऐसे बहते चले जाते हैं कि बस पूछिए नहीं...
यूँ तो आपकी तारीफ़ करना मुझे शोभा नहीं देता, ये छोटा मुँह बड़ी बात होगी... लेकिन मन कि बात कहने से ख़ुद को मैं रोक नहीं पा रही हूँ ...सचमुच ब्लॉग जगत स्वयं को धन्य मानता होगा...
अब बात..उनकी जिनका जिक्र आप कर रहे हैं....
तो यही कहूँगी कि
हैरान हूँ उनकी किस्मत और उनके घर की वीरानी देख कर..सचमुच कुछ रातें कितनी अँधेरी होती हैं....
बहुत ही अच्छी प्रविष्ठी...
आपका दिल से शुक्रिया..
वाह, क्या गजब का लिखा है!एक कविता भी हो जाए।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
..उनकी सुबह यक़ीनन मेरी सुबह से बहुत दूर होगी , दरख्त उदास हैं , शाखें खामोश हैं और पत्तियां शायद बगल की बस्ती के सोग में स्तब्ध सी !
जवाब देंहटाएं....यही एहसास, यही संवेदनशीलता हमें अच्छा पड़ोसी और अच्छा नागरिक बनाती है.
..उम्दा पोस्ट.
@ दिनेश राय द्विवेदी जी ,
जवाब देंहटाएंअच्छी बारिश के लिए शुभकामनायें !
@ अदा जी ,
दुआएं दीजिए कि जमीन पे बना रहूँ ,शुक्रिया !
@ घुघूती जी ,देवेन्द्र भाई ,
शुक्रिया !
बहुत सुन्दर शब्द चित्र!
जवाब देंहटाएंस्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!