सोमवार, 28 जून 2010

ओ प्रेत उस लड़की के घर तुम्हारा डेरा है अब !

आज मैं जो भी किस्सा बयान करने जा रहा हूं उसे सुनकर ये ना समझा जाये कि विज्ञान से मेरा विश्वास उठ गया है !  सच  तो ये है कि प्रेतों की मौजूदगी के अहसास ने विज्ञान पर मेरे भरोसे को और भी मजबूती दी है !  बचपन में  बरगद / पीपल और इमली के बुजुर्गवार दरख्तों को देख कर एक अदृश्य भय जागता ...सयाने कहते ,रात में वहां से गुजरना खतरनाक होगा क्यों कि उन दरख्तों मे अशरीरी आत्माओं का डेरा है !  वे कहते प्रेतों के उलटे पैर होते हैं , वे छाया की मानिंद गुम हो सकते है , वे प्रकाश पुंजों की तरह रात्रि विचरण करते है , वे हवा की तरह मानुष की देहो पर कब्ज़ा भी कर सकते है...वगैरह वगैरह और हम विश्वास करते...विश्वास की पृष्ठभूमि में तर्क का कोई स्थान भी नहीं था ये विश्वास केवल बड़प्पन और अनुभव पर भरोसे पर आधारित हुआ करता !   आहिस्ता आहिस्ता बचपन पीछे छूटता गया और साथ ही ये ख्याल भी कि प्रेत सचमुच में होते भी होंगे...अब थोडा सा दुःख  होता कि हमारे बड़े , फ़िज़ूल में डरते और डराते रहे ...प्रेतों के ना होने का ख्याल ज्यों ज्यों पुख्ता हुआ बुजुर्गो का सम्मान धूल होता गया !  लगता कमबख्त बूढ़े , बचपन खराब कर गये !  वर्ना उन शानदार दरख्तों की छाँव में क्रीडा का आनंद हम भी ले पाए होते !

एक अजीब बात ये कि जिस विज्ञान की वज़ह से हम प्रेतों का होना नकारते रहे आज उसी विज्ञान की वज़ह से प्रेतों का होना सिद्ध हुआ है ...और अफ़सोस भी हो रहा है कि हमने अपने बड़े बूढों को गलत समझा !  वे सही थे , हमसे ही उनका सन्देश / उनकी भाषा बूझने में गलती हुई वर्ना प्रेत उस वक्त भी देखे जा सकते थे !  असल में उन्होंने हमारे चहुँ ओर मौजूद जिन घटकों में प्रेतों का डेरा होने की बात कही थी , हम उन्हें महज दरख़्त ही समझते रहे और वहां प्रेत ना पाकर ...उन्हें गरियाते रहे !  

पिछले बरस अपने बनारस के मित्र के डेरे पर जाना हुआ वहां एक अशरीरी आत्मा को देख कर हैरान रह गया फिर सोचा ये केवल संयोग होगा !  संभव है मेरी आँखों का भ्रम हो ...उनके डेरे में बारम्बार घूमा...सामने शब्द उभरते...गहरे शब्द ...गोया वो प्रेत जतलाना चाहता हो कि मैं हूँ  मुझे बांचो ..मेरे अस्तित्व की पुष्टि करो !  मैं बेहद हैरान और परेशान सा उस वक्तव्य को पढता ...उसके शब्द ,विनम्रता की सारी सीमायें लांघते हुए धरती पर झुक से गये थे...गोया नतमस्तक हों पर उसके वक्तव्य का एक अर्थ यह भी था कि वो किसी ज़माने में डेरे के मालिक , मेरे मित्र का मित्र हुआ करता था पर अपनी  हीनभावना और सतत असफलताओं के चलते उसे यह लोक असमय ही छोडना पड़ा...खैर मै उस घटना को संयोग मानकर खामोश रहा ... जिल्लत का एक भय भी कि मित्र क्या कहेंगे अगर मैं कहूँ कि मैंने प्रेत देखा है और उसके शब्द भी पढ़े हैं !

इस बरस मेरी मित्र अनिंदिता के घर का उदघाटन हुआ उनके सारे शुभ चिन्तक वहां मौजूद थे पर मेरे आश्चर्य का पारावार नहीं कि वो प्रेत वहां भी हाज़िर था अपनी सम्पूर्ण विनम्रता के साथ !  अब मुझे विश्वास हो  गया है कि प्रेत होते हैं !  ओ प्रेत तुम हो  ...यक़ीनन तुम ही हो ...ओ प्रेत उस लड़की के घर तुम्हारा डेरा है अब !  मैं जानता हूं तुम दरख्तों में नहीं वेब साईट पर विचरते हो  आजकल !   तुम तो पुनर्जन्म में विश्वास करते हो फिर दूसरों के घर पर अशरीरी होकर डेरा डालने से बेहतर तुम अपना खुद का ब्लॉग क्यों नहीं बना लेते ?  अपने लिए एक आई डी / एक जिस्म का इंतजाम कर लो फिर शौक से दूसरों के घर आया जाया करो !  कम से कम लोग तुम्हें नाजायज़ / बेनामी / छद्म होने की गालियां तो नहीं देंगे !   

12 टिप्‍पणियां:

  1. Uffo! Kuchh der tak to bhoot pret ka amna samnaa hone ke intezaar me padhtee rahi...iska ant bada mazedaar rahaa!

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  2. वाह, बहुत बढ़िया लिखा। प्रेत योनि ब्लॉग जगत में भी! गजब!
    घुघूती बासूती

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  3. मुझे उनकी तलाश है. जानकारी के लिए आभार.

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  4. बरसों बाद अपने आई डी में बाहर आया हूं मैं, कहॉं है वह प्रेत, मेरे प्‍यारे प्रेत मैं तुम्‍हारी प्रेताई मानसिकता खत्‍म कर दूंगा. मुझे यहां तुम्‍हारे कमेंट का इंतजार है.

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  5. अली सा ,चौका सा दिया आपने...आपके जेहन में अपनी कारगुजारियों से यह नालायक प्रेत गहरे घुस गया है...क्या बताएं बनारस में इसकी दाल नहीं गली तो तो यहाँ की गलियों को छोड़ यह बनारस को चाहने वालों/ वालियों की और मुड गया -सबसे पहले आपके राज्य के करीब के राज्य में इसने एक मासूम को अगवा किया फिर देश छोड़कर विदेशों में भागा और अब वहां से नए मासूमों पर डोरे डालता है...और उइंकी बर्बादगी के जश्न के बाद अगले शिकार की और बढ़ता है -है यह एक मगर ब्लॉगजगत में कई नामों से नमूदार होता है -कभी कभी तो एक ही ब्लॉग पर अलग अलग नामों से ....बड़ा शातिर है और कमीनगी की हद तक चालबाज....कितने मासूम इसके भौकाल में आ सब कुछ लुटा चुके हैं ....बचो बचो ये ब्लॉग वालों....

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  6. वाह भईया पोस्ट की प्रस्तुति बहुत जोरदार रही. यह पोस्ट कहती है कि प्रेत के क्रियाकलापों पर आपकी पैनी नजर रही है और आपने अशरीरी प्रेतों की हर हलचलों को गंभीरता से ध्यान दिया है. और आपकी संजीदगी नें यह पोस्टज लिखने को मजबूर कर दिया होगा.

    इन प्रेतों से मुकाबला करने के लिए राजकुमार सोनी जी जैसा कोई पोस्ट आना चाहिए किन्तु ये प्रेत तो मानसिकता हैं ... अशरीरी हैं .... इनसे मुकाबला सिर्फ और सिर्फ इनके गोपन को ओपन करने से ही हो सकता है. बेनामी भंजक और आईपी तोड़क के सामान्य सहज उपलब्ध तरीकों को आज हर प्रेत समझ गया है और उन मंत्रों को पूरी तरह रट कर सिद्ध कर चुका है. एक पोस्ट में हमने भी कहा था कि ऐसी कोई तकनीक नहीं जो बेनामी का पता लगा सके रवि रतलामी जी नें भी अपने एक पोस्ट में व टिप्पणियों में इस संबंध में विशद विवेचना की है कि अपने आपको ऑनलाइन कैसे छुपाएँ और नक़ली आईपी पता कैसे प्रयोग करें. प्रेतों के लिए ये सब कालाजादू के किताब हैं वे इन्हें पढ़-पढ़ कर और शक्तिशाली और निर्भय होते जा रहे हैं. क्योंकि उन्होंनें यह भी बतलाया कि आईपी पते को छुपाने के बहुत से तरीके हैं यहां उन्होंनें टॉर प्रोजेक्ट के संबंध में भी बतलाया.
    किन्तु उसके बाद उन्होंनें स्पष्टप कहा कि ‘आपको उन्नत औजारों के जरिए ढूंढ निकाला जा सकता है’ और ‘बेहद तेज उपकरणों और रीयल टाइम स्कैन के जरिए आपके बेतरतीब पथ को भी पकड़ा जा सकता है.’ इसके बावजूद प्रेत तो प्रेत हैं इनसे शास्त्रीयता की उम्मीदें नहीं की जा सकती पर शीध्र ही ऐसी सुलभ तकनीक भी आयेगी जो इन प्रेतों का छद्मावरण खोल देगी.

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  7. गजब!
    दुनिया को देखते हुए ये वाले प्रेत भी आधुनिक टाईप के हो लिए हैं..खूब चहलपहल, आवागमन वाली जगहों पर ही ज्यादातर दिखाई पडते हैं..हमारे मरघटी डेरे पे तो झाँकते तक नहीं :)

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  8. @ क्षमा जी ,घुघूती जी ,प्रेत विनाशक साहब,अरविन्द जी ,वंदना जी ,रमेश भाई ,समीर भाई ,बेनामी जी ,समीर लाल जी ,हमारी वाणी एग्रीगेटर्स, आपकी प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया !

    @ संजीव भाई , आपकी उम्मीद से मैं पूरी तरह सहमत हूं !

    @ दिनेश जी ,पंडित जी आप तो भविष्य बांचते है तो भूत आपके डेरे में कैसे आयेंगे :)

    @ ज़ील
    आनंदिता = आनंद देने वाली !
    अनिंदिता = जिसकी निंदा ना की जा सके !

    मेरे ख्याल से हर शब्द का अपना 'स्व' (Self ) होता है इसलिए हमें शब्दों के 'स्व' का सम्मान करना चाहिये :)

    मसलन 'प्रेत' 'अशरीरी' होते है ये सच है किन्तु ये प्रेत 'फासिस्ट' भी है बस उसकी मारकता का बोध है :) भय कैसा ?

    अनिंदिता 'अपनी' भावना है उसका परित्याग क्यों करूंगा :)

    और हां...जो लोग शब्दों का सम्मान करते है उनके मन में प्रेत नहीं बसते :)


    आपकी प्रतिक्रिया के लिए आपका ह्रदय से आभार ! आदर सहित ! कृपया मेरी प्रविष्टियों को किसी मित्र विशेष से जोड़ कर ना पढ़े तो मैं आपका शुक्रगुजार होऊंगा !

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  9. @ज़ील
    शब्दों में भी जलेबियां :)

    १४००० से अधिक ब्लाग्स हैं ! कुछ ब्लाग्स के लिए समय की सीमायें है वहां जा नहीं सकते मजबूरी है और कुछ मित्रों से असहमतियां है सो फ़िलहाल जाते नहीं ! वज़ह हम कुछ भी कहें क्या फर्क पड़ता है ? आप 'भय' कहिये यही सही होगा :)

    आदर सहित !

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  10. अली साहब,
    प्रेत गाथा अच्छी लगी लेकिन अपने लिये धुंध की चादर में छुपी हुई।
    यहां पर अपेक्षाकृत नया होना, ज्यादा परिचय न होना और ’बिटवीन द लाईंस’ समझने में हाथ की तंगी, ये कारण हैं अपने पूरी गाथा को न समझ पाने के।
    बहरहाल, नीमपर्दे वाली चीजें जैसे शुरू से ही आकर्षित करती रही हैं, ये पोस्ट भी कुछ ऐसी ही है। इशारा करती हुई सी कहीं, लेकिन साफ़ न कहती हुई। उत्सुकता बढ़ गई है।

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