कहते हैं कि भानुमति बेहद खूबसूरत और ज़हीन स्त्री थी लेकिन पुरुष प्रबल राजनीति ने उसके सौंदर्य और ज़हानत पर ग्रहण लगा दिया ! उसे एक बेमेल कुनबा जोड़ने वाली खातून के मुहावरे की तर्ज़ पर स्थापित कर दिया गया... शायद नियति यही है , जो सुजनो को भी अप्रतिष्ठा के पंक में गारत कर देती है , मसलन बेचारा विभीषण , जिसे सत्य...धर्म और न्याय का साथ देने के बावजूद घर के भेदी बतौर याद किया जाता है...गरियाया जाता है यहां तक कि जयचंद और मीर जाफर के समतुल्य उद्धृत किया जाता है ! निवेदन ये कि आलेख में उल्लिखित भानुमति बतौर मुहावरा तो पढ़ी जायें लेकिन उन्हें मूल भानुमति से जोड़कर ना देखा जाये क्योंकि मेरी समझ में ऐसा करना एक निरपराध के प्रति अपराध सा होगा ! ...तो मुहावरा ये हुआ कि भानुमति मौलिक चेतना हीनता की प्रतीक स्त्री है जो केवल बेमेल ईंटों और रोडों के जुगाड से कुनबा निर्मिति की हैसियत रखती है ! उसके पास केवल 'स्वत्व-शून्य-परजीवी' व्यक्तित्व है ! आशय ये कि भानुमति अमौलिकता / वैचारिक शून्यता और परजीविता आधारित चरित्र बतौर अधिष्ठित कर दी गई है !
मेरे ख्याल से , बतौर स्त्री , भानुमति प्रेम की देवी हो सकती है लेकिन बतौर मुहावरा , उसे ज़लालत की दृष्टि से देखा जाना चाहिये क्योंकि इस रूप में उसके पास परदोहन के अलावा अन्य कोई दक्षता नहीं हुआ करती... इस अर्थ में वो मौलिक चिंतन और बौद्धिकता की सबसे बड़ी दुश्मन भी है ! उसके कारण नव-पीढियां स्वतंत्र / सतर्क / निरपेक्ष / मौलिक अध्येता होने के बजाये वैचारिक दासता / पराश्रित चिंतन की मिसाल बनती जा रही है ! भारतीय विश्वविद्यालयों में शोध प्रबंधों को लेकर इस तरह की चिंता परसाई ने भी व्यक्त की थी ! गोंद कैंची मास्टर के रूप में एक बन्दा दूसरों के ख्यालात कट पेस्ट कर रातों रात ख्यातनाम स्कालर आरोपित हो जाता है और बौद्धिक दिवालियेपन उर्फ उठाईगिरी की यह परम्परा लंबे समय तक चलती रहती है ...भले ही इस परंपरा की वज़ह से 'स्व विवेक' पर धूल की स्थायी परत जम कर कांक्रीट सी ठोस हो जाती हो ! आहिस्ता आहिस्ता गर्द में दबी हुए कृत्रिम बौद्धिकता स्वयं की महानता के आख्यान गढ़ने लग जाती है कुछ मित्र इसे बतर्ज कोरस और कुछेक ज्ञान की मछलियां एकला चलो रे की धारणा पर आधारित गीत सा गाने लगती हैं ! अपनी अपनी खाप...अपना अपना कुलगीत ! महान लोग ...भानुमतीय प्रवृत्ति के सूमो ! मुहावरे से नक़ल चिंतन परम्परा की यात्रा के दौरान भानुमति एक स्त्री प्रतीक के रूप में शेष नहीं रह जाती बल्कि यह एक प्रवृत्ति ,एक नज़रिया , धीमा जहर बन जाती है जो लिंग भेद से इतर है और जो मानवीय चिंतन / सोच / बुद्धि को गहरे दंश दे रही हो ! कई बार तो ये अहसास भी होता है कि ख्यालों का अपना हुस्न / अपना जिस्म , कुदरत की उम्मीदों के खिलाफ इस दंश की नींद सो ना जाये कही ? ओ भानुमति मेरे ख्याल...ये जिस्म नीला पड़ने लगा है अब...
वैसे ये भानुमति रहती कहाँ है। पता बताइए, तो मैं अपनी रिपोर्ट जरूर दूँगा।
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क्या आप बता सकते हैं कि इंसान और साँप में कौन ज़्यादा ज़हरीला होता है?
अगर हाँ, तो फिर चले आइए रहस्य और रोमाँच से भरी एक नवीन दुनिया में आपका स्वागत है।
भानुमतीय चिंतन को ब्लॉग सर्फियाते बूझना कठिन है. क्षमा, देव क्षमा ! हम आपके लेके पहला पहला प्यार वाले पोस्ट पर टिप्पणी सोंच ही रहे थे कि ये दूसरा पोस्ट आ गया. अब कुछ टिप्पणी आ जाए तो टीप पांए. :)
जवाब देंहटाएंवैसे अब के गोंद मास्टर, नेट में उपलब्ध सामाग्री को कट पेस्ट करके स्वयं की महानता के आख्यान आज भी गढ़ रहे हैं.
लीजिये भानुमती का नाम अपने लिया सर्प पिटारी हाजिर -न जाने क्या क्या देखना बाकी है अभी भी इस भानुमती के पिटारे में ...
जवाब देंहटाएंकिसके पीछे पड़ गए हो महराज ....शायद सर्प संसार भी ऐसी ही एक भानुमतीय चिंतन की सोच हो ..नतीजा हो ...आपके इस भानुमतीय पिटारे में से अब तो कई फुफकारें सुनायी देगीं !
गज़ब की वार्ता करते है आप - सौ फीसदी ओरिजिनल!
जवाब देंहटाएंजैसे नवधनाड्य वर्ग को कुलीन वर्ग से सामाजिक स्वीकार्य की भयंकर मंशा रहती है जिसके चलते वह तरह तरह के खेल करता रहता है...ये कैंची-गोंदिए भी इसी जमात के लोग हैं
जवाब देंहटाएंअभी तो वास्तविक सूत्र खोजने में लगे हैं..मिले तो उसी हिसाब से कुछ टिप्पियाया जाए :)
जवाब देंहटाएंयह चिंतन जरा हट के है..रोचक तो है ही. मैंने गूगल में भानुमती टाईप कर के खोजना शुरू किया ..लेकिन दूसरी-दूसरी बड़ी हस्तियों से सामना हुआ. मैं चाहता था कि इसका पौराणिक सन्दर्भ ढूँढा जाय ..फिर कभी. अभी इस विषय पर और चिंतन करने और ढूँढने की आवश्यकता है. शुरुआत आपने की है तो कोशिश भी आपको ही करनी पड़ेगी.
जवाब देंहटाएंदेवेन्द्र भाई मैने सोचा सब मिलकर ढूंढेंगे :)
जवाब देंहटाएं..हाँ भैया ढूँढना तो पड़ेगा.
जवाब देंहटाएंदेवेन्द्र भाई
जवाब देंहटाएंदुर्योधन की पत्नी का नाम भानुमति है पर उसके ओरिजिन(राजघराने)को लेकर विवाद है ! वो बला की खूबसूरत थी और एक सहज स्त्री की तरह वो भी नहीं चाहती थी कि दुर्योधन द्रौपदी के स्वयम्बर में जाए !
उसका नाम कहावत वाले नाम से साम्य जरुर रखता है किन्तु दोंनों भानुमति एक है अथवा नहीं कह नहीं सकते बस इसीलिए मैंने अपने आलेख में कहावत को राजकुमारी भानुमति ( एक सहज सुन्दर स्त्री ) से अलग करने की कोशिश की है !
कहावत का मिथिकीय लिंक जब तक ना मिले उसे बतौर कहावत / बतौर प्रवृत्ति ही स्वीकार किया जाये !