शनिवार, 29 मई 2010

ब्लाग पोस्ट...टिप्पणियां...नक्सलवाद और गिटार के टूटते हुए तार !

इन दिनों दो ही बातें अपनें चरम पर है एक नक्सलवादी हमले और दूसरे गर्मी...जिम्मेदार मानें भी तो किसे  ?  तर्क ये नहीं कि दोनों समस्यायें एक दूसरे से भिन्न हैं तो कारण भी भिन्न होना चाहिये  !...दोस्त कहते है सरकार निकम्मी है...और हम कहते है  कि ये सब ऊपर वाले का किया धरा है ...आखिर को सरकारें भी तो उसी के भरोसे चल रही हैं इसलिये गर्मी हो या फिर कुछ और... जिम्मेदार तो वो ही माना जायेगा !   इधर अपने अरविन्द जी गोपियों से लेकर (अ) भूतपूर्व मित्र के ब्लाग विचलन और ट्विटर / फेसबुक प्रेम को लेकर चिंतित हैं उधर गिरिजेश जी जाति के लिये इमोशनल हुए जा रहे हैं  ! चन्द रोज़ पहले तक बीबी के नाम से पानी पी पी कर पोस्ट पेल रहे ज़ाकिर भाई... शिरीष खरे के भरोसे सामाजिक सरोकार निबाह रहे हैं ...खैर उनसे उम्मीद भी यही थी कि अर्शिया भाभी जल्द ही उन्हे अर्श से  फर्श पे ला देंगी ...दिक्कत ये है कि मै बज़ाते खुद आसमान साध पाता तो मज़ा ही कुछ और होता पर...

अगर गर्मियां अपने चरम पर ना होतीं तो  हमें  छुट्टियों  का बुरा होना पता भी कैसे चलता  ?  इसी तर्ज़ पर ज़िन्दगी की क्षणभंगुरता  का  अहसास  नक्सलवादियों ने करा ही दिया है ...तो  गर्मियां ईश्वर की ...जाति ईश्वर की...जीवन की क्षणभंगुरता  ईश्वर  की... ऊधो  के  दर्शन  से  मोहभंग /  तन /  मन  भी ईश्वर का ...फिर बेचारी सरकार  का  क्या  ?

आज की पोस्ट भी मै कहाँ लिख रहा हूँ ...वो तो ...?   ...कई दिनो से सोच रहा था कि टिप्पणियों पर नुक्ताचीनी करुंगा... गर्मियां / छुट्टियां / हिंसा / फुर्सत / दर्शन / सरकारें और यहां  तक कि ईश्वर भी अखरने लगे है अब  !  मित्र लिख रहे है पर लगता है  वे  लिखना नही चाहते थे...वो तो ...?   मित्र टिपिया रहे है पर लगता है कि वे टीपना नहीं चाहते थे ...वो तो ...?   अब जो भी कहिये मैंने आलेख  में  नाम सिर्फ उनके लिखे  , जिनके बुरा नही मानने की उम्मीद है वर्ना और भी मित्र हैं जिनके ब्लाग  मुझे  गर्मियों / फुर्सतों / और आहत होने के अह्सास से दूर रखते हैं !

पढना शौक जरुर है पर एग्रीगेटर की लिस्ट जल्द ही तमाम हो जाती है फिर शौक...फुर्सत मे तब्दील हो जाता है...ये ससुरा ईश्वर लोगों को ढंग से लिखवाता भी नहीं  ...आज गलती से एक देव सूफी के ब्लाग पर चले गये यूं लगा गोया आगरा से लौटे हों ...पहले समझ मे नही आता था कि लोग इतना कम क्यों लिखते है ...50 लोग मिल बैठे और लिखीं सिर्फ 100 पोस्ट...तौबा...उसमे  से  आधी बेनामियों के खाते  !  तकरीबन 14000 ब्लाग्स है और अगर 10  ब्लाग प्रति दिन की दर से चर्चा करी जाये तो एक ही दिन मे 1400  पोस्ट बनती है अगले दिन आलोचना और फिर समालोचना मे भी शताधिक पोस्ट की गुंज़ायश है  !  मान लीजिये एक दिन केवल लिंक दी जाये और दूसरे दिन विषयवस्तु पर चर्चा कर दी जाये  तो इसमे खर्चा क्या है ...इसके अलावा भेंट मिलाप से असहमति / कवितायें / कहानियां और ...ना जाने क्या क्या  ?  फिर टिप्पणियों पर प्रतिटिप्पणियों और उनपर आधारित पोस्ट लेखन की सम्भावनायें भी तो है ...पर अब समझ मे आया इसमे जो भी कसूर है वो मित्रों का नही ईश्वर का है ...बेचारा एक अकेला  आखिर कितनों को लिखाये ... हालांकि गलती तो गलती ही है ...औकात ना हो तो सबका ठेका लेना ही क्यों....?

कल किसी मित्र को पढ रहे थे कुछ टिप्पणियां ...टिप्पणियां क्या स्तुतियां ही कहिये बांचीं अच्छा लगा ...मिले सुर मेरा तुम्हारा तो....मज़ा आना शुरु ही हुआ था कि पोस्ट के विषय से दुश्मनी निभाती एक टिप्पणी सुर ताल का बैंड बजा गई !  रोमांटिक मूड पर ज्ञान जी के बड्बोलेपन से ब्लागजगत को बचाने का आह्वान जैसे पंडित रविशंकर के सितार पर मुहर्रम का ढोल भारी पड गया हो ...बांसुरी मे गाय का रम्भाना घुस गया हो...बजते हुए गिटार का तार टूट गया हो  ...मायके गई बीबी ( मित्रगण अपनी सुविधानुसार उदाहरण जोडें ) से टेलीफोन वार्ता मे मेकेनिकल नोइज घुस गया हो ...ओह ईश्वर ये सब क्या करते रह्ते हो ...तुम चाहो तो मुझे गर्मियां / फुरसतें / दर्शन अच्छे लग सकते है इसके बाद देखना मेरे प्रेम और ...मेरी चाहत के समन्दर में सारी नफरतें ...सारी हिंसा डूब जायेगी  !


12 टिप्‍पणियां:

  1. कई बार तो मुझे भी लगता है कि मानो शायद किसी ऐसे पागलखाने में मुशायरा चल रहा हो जिसमें बाहर वालों का भाग लेना प्रबंधित हो...कुछ को वाह-वाह से ही फ़ुर्सत नहीं तो कोई आस्तीनें चढ़ाए बैठा है..अजब दुनिया है यहां की भी..

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  2. सर से गुजरी तो नहीं है पर प्रेम से लगी चपत की धमक सुनाई दे रही है.
    काश 14000 परम आत्‍ममुग्‍ध लोगों में से 1400 लोग कुछ संजीदा हो जाते.

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  3. भाई अली जी, हम भी आ रहे हैं आपके पीछे पीछे :-)

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  4. @ संजीव तिवारी जी
    भाई वे संजीदा तो है पर .....के लिए :)
    ( रिक्त स्थान आप भर लीजिएगा )


    @ दिनेश शर्मा वत्स जी
    पंडित जी देखिये ना मेरी पिछली पोस्ट ज्योतिष की वज़ह से लिखी गयी पर आप आये नहीं : ) खैर अभी तो साथ चलिए !

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  5. भाई ज़ान, अधिकाँश ब्लॉगर अभी तक ऑरकुटीय हैंग-ओवर से नहीं उबर पाये हैं, फिर इसमें नेटवर्किंग की सँभावना तलाशते हुये फ़ेसबुकीय तड़का लगाने के प्रयास में दर्ज़नों गुट / ग्रुप बनते जा रहे हैं ।
    मैं मानता हूँ कि बेनामी ब्राँड ज़ालिम लोशन भी स्वयँ ही तैयार किये और लगाये जाते हैं, ताकि हाय-हूय मचाने का औचित्य ठहरा सकें । हाय हूय होवेगी, तो भला उनके मुकाम पर कौन न पहुँचेगा ! चलचल की हलचल बनाये रखने की भेड़िया-धसान है ब्लॉगिंग !

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  6. एक बार दूरदर्शन पर कवि-सम्मेलन देख रहा था...
    कुल ५ कवि थे. एक कविता सुनाता तो बाकी चार चीखते ..वाह! वाह!..वाह! वाह!
    वहाँ कवियों की मजबूरी होती है..जो यह प्रोग्राम बना रहा होता है ..उसका निर्देश होता है कि भाई ..जब आप वाह वाह नहीं करेंगे तो आम जनता क्या करेगी...?
    ..ब्लॉग जगत में किसी का निर्देश तो नहीं होता हाँ स्वतः जन्मा स्वार्थी भाव हो सकता है.

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  7. पता नहीं क्यों पर मुझे लग रहा है पहली बार आपकी टिप्पणियों वाली खिलंदणी प्रवृत्ति पोस्ट में दृष्टिगोचर हुई है। बधाई।
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    क्या आप जवान रहना चाहते हैं?
    ढ़ाक कहो टेसू कहो या फिर कहो पलाश...

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  8. आईये जानें .... मैं कौन हूं!

    आचार्य जी

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  9. उत्तम पोस्ट. व्यंग कटाक्ष और विचार से परिपूर्ण.

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  10. पागलखाने का मुशायरा , चंडूखाने की आवाजें .....और जाकिर का लोगों से जवान बनने की अपील -ये क़यामत की झलकियाँ तो नहीं !

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  11. कहाँ है अली साहब, आपके दर से दीवाने लौटे जाते हैं....
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    ब्लॉगवाणी माहौल खराब कर रहा है?

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