हमेशा की तरह आज भी अजित भाई के ब्लाग शब्दों का सफर में पहुंचा ! वहां उनकी ताज़ा तरीन प्रविष्टि "इनकी रामायण, उनका पारायण" देखते ही दिमाग मे एक ख्याल बिजली की तरह से कौंधा कि... " आपने जो भी लिखा वो तो सब ठीक है अजित भाई पर इस आलेख से "हमारे नारायण" कहां गुम हो गये ? फिर सोचा कि टिप्पणी करूं और एक 'मुस्कारहट फेंकू संकेत' डाल कर आगे बढ लूं ...पर ...पर वे भाषाई संस्कार सम्पन्न व्यक्तित्व हैं सो दिल नही माना कि टरकाऊ टिप्पणी से काम चलाया जाये ! हुआ ये कि उनकी आज की प्रविष्टि मे मुझे कुछ कमी सी महसूस हो रही थी इसलिये नेट बन्द किया और बाद मे फुर्सत से टिपियाने का ख्याल दिल मे लिये घर से निकल लिया... लेकिन जहां भी जाऊं ...बस एक ही ख्याल कि "हमारे नारायण" कहां गये और अगर अजित भाई रामायण और पारायण की तर्ज़ पर नारायण लिखते तो अर्थ क्या होता ? चैन नही मिला तो तुरत फुरत घर वापसी और फिर से नेट कनेकशन आन हो गया ...ओह नारायण !
यूं तो शब्दों का सफर एक शानदार ब्लाग है पर उससे अपना जुडाव केवल प्रतिक्रिया देने वाले पाठक जितना ही है ...अब हम पाठक कैसे हैं ये तो ब्लाग स्वामी जाने पर खुद से सोचें तो लगता है कि ठीक ठाक ही होंगे :) ... हाँ तो बहुत मशक्कत के बाद भी आलेख की तर्ज़ पर 'नारायण' के अर्थ निकालने का जतन किया पर संतुष्टि नही हुई थक हार कर सोचा कि अगर मै ज्योतिषी होता तो क्या करता ? ...बस कमाल हो गया ...यक़ीन जानिये रास्ते खुद ब खुद खुल गये !
ख्याल आया कि हिन्दू समय मापक बतौर अक्सर "अयन" शब्द प्रयुक्त होता है ! एक वर्ष यानि कि दो अयन और एक अयन बराबर तीन ऋतुओं का काल ... अब 'काल' बोले तो क्षण की बडी इकाई माने समय भी और देवता भी !
एक पल को लगा 'नर के रूप मे देवता' नारायण शब्द के सबसे निकट है ( नर + अयन / नर + काल / नर + देवता ) अब ज़रा आगे गौर फर्माइये राम + अयन बराबर राम का समय / राम का युग / राम का कल्प सही है कि नहीं ...मेरे विचार से राम कथा / वृत्तांत के लिये सबसे उपयोगी शीर्षक "रामायण" ही हो सकता था और यही हुआ भी होगा ! इसी तरह से 'पार' यानि कि 'दूसरे किनारे' जाने मे लगने वाले समय के लिये पारायण सबसे बेह्तर शब्द है ! किसी स्थान को छोड भी दीजिये तो ग्रंथ के प्रथम श्लोक / सर्ग / अध्याय से अंत ( पार ) तक ...आद्योपांत वही भाव है ! अजित जी के आलेख मे अयनम / अयणम शब्द का एक अर्थ गति के साथ अवधि भी बताया गया है किंतु उसे राम और पार के साथ जोड्कर नही देखा गया है और ना ही काल रूप देवता के तौर पर नर से ही इसे जोडा गया !
मै नही जानता कि मुझे ऐसा क्यों लगता है कि अयन के बिना.... इनकी रामायण , उनका पारायण : हमारे नारायण अधूरे से हैं ! मुमकिन है कि मेरी दृष्टि भाषा शास्त्र के लिहाज़ से किसी भी लायक ना हो तो भी "एक दृष्टि " ....सोचने का एक नज़रिया तो है !
अजित जी भाषा शास्त्र के उदभट विद्वान हैं ...वे वर्ष तो हम अयन भी नहीं ...वे अयन तो हम क्षण भी नहीं ! इस यथार्थ का ज्ञान हमें भली भांति है किन्तु उम्र का तकाज़ा है सो पोस्ट उन्हें सस्नेह समर्पित है !
अलीभाई,
जवाब देंहटाएंअयन का छूटा हुआ काल-संदर्भ आपने बहुत खूबसूरती से सफर के साथ जोड़ दिया। आपकी विवेचना से पारायण और रामायण के भावार्थ को स्पष्ट करनेवाले और भी आयाम उजागर हुए। शब्दशः सहमत हूं। आप जैसे पाठकों के होने से ही सफर अब तक चल रहा है और निरन्तर आगे बढ़ रहा है।
बहुत आभार..
यह भी एक दृष्टि है.
जवाब देंहटाएंरामायण, पारायण और नारायण अब सही अर्थों में याद रहेंगें. धन्यवाद भईया.
जवाब देंहटाएंआपसे नारायण और अजित भाई से रामायण मिलने पर यूं रचित हुआ:-
जवाब देंहटाएंनयनो से नापे है, विछोह के वो अयन
नारायण-नारायण, नारायण-नारायण
हाथो में रामायण, होंठों पे पारायण,
नारायण-नारायण, नारायण-नारायण.
शब्दों में योगासन, अर्थो में प्राणायाम,
नरायन-नारायण, नारायाण-नारायण.
बग़ल में रामायण, मधुशाला ग्च्छाय्म,
नारायण-नारायण, नारायण-नारायण.
पित्राज्ञा पालन को, भटके वो वन दर वन,
नारायण-नारायण, नारायण-नारायण.
जीवन की पुस्तक पढ़,कर गहरा अध्ययन,
नारायण-नारायण, नारायण-नारायण.
जीवन है संयोजन, मृत्यु है विसर्जन,
नारायण-नारायण, नारायण-नारायण.
धरती धधक उठी, आएगा कब सावन,
नारायण-नारायण, नारायण-नारायण.
नारायण नारायण.
जवाब देंहटाएंजब पोस्ट पढ़ रहा था तो सोच रहा था कि अजित वडनेकर जी की इस पर प्रतिक्रिया क्या होगी..!
पहला कमेन्ट उन्ही का है..
वाह!
नारायण नारायण.
निःसंदेह पाठक लेखक को दृष्टि देता है.
..आनंद आया, शब्द सागर में डूबकर.
नारायण नारायण ...अपने रामायण का शाब्दिक और तात्विक दोनों ही विवेचन कर दिया -राम का का समय -बिलकुल सही !
जवाब देंहटाएंनारायण की व्युत्पत्ति के विषय में भाई बड़ा अंधियाला है.. वैसे तो इसे नृ से उपजे नार यानी नरों के समूह से जोड़ा जा सकता है..लेकिन नार का एक अर्थ पानी भी मिलता है.. और नार का एक दूसरा रूप नाल भी हो सकता है.. कमल की नाल?
जवाब देंहटाएंआख़िर नारायण पानी में लेटे हैं, उनकी नाल से सृष्टि का क्रम शुरु होता है, और उनके परम भक्त नारद करते हैं सदा 'नारायण-नारायण'?
अगर इसे नार के बदले नाल के अर्थ में लिया जाय तो क्या होगा अर्थ? नाल का रास्ता? भैया हम तो नाल के एक अंत पर हैं.. इस रस्ते के दूसरे अंत पर कौन? नाल के रस्ते से जा कर जिसे मिला जाय क्या वो हैं नारायण?
शब्दों में आप की अच्छी दिलचस्पी है.. आइये शब्द चर्चा समूह में, शब्दों के उद्भट विद्वान अजित भाई भी हैं वहाँ.. ये है पता:
http://groups.google.co.in/group/shabdcharcha?hl=en