कभी सोचा ना था कि तुम्हे इस तरह , खुद से दूर जाने कहूंगा ...कमसिन था तो सिर्फ तुम्हारा ख्याल रह्ता ...जवानी में सारी मुखालफत ...सारे अंदेशों और सारे ज़माने के सामने ताल ठोंक कर खड़ा हो जाता पर तुम्हारा इस्तकबाल दिल-ओ- जान से करता ...क्या करूं उम्र के सातवें दशक में वो जोश ...वो माद्दा कहां से लाऊं जो तुम्हारे मुकाबिल खड़ा रहकर तुम्हारे हुस्नों जमाल की तपिश बर्दाश्त कर सकूं !
ओह लैला ...अब मैं बूढा हो चला हूं और मेरे बच्चे भी निहायत ही गैर जिम्मेदार और नालायक निकले ! उन्हें जरा भी अन्दाज़ नहीं कि तुम अब भी क़यामत ढाती हो ...सोचता हूं कि तुम्हारी मुहब्बत में बर-हमेश मजनूं को जान देना ही होगा , मैं इस चलन को तोड़ भी देता अगर मेरे बच्चे मेरे मुहाफिज़ होते ...यकीन जानों ! अब तो मुझे ये वहम भी हो चला है कि मेरे चीनी और जापानी रकीब जरुर उम्र में मुझसे छोटे होंगे ! या फिर मुमकिन है कि उनके बच्चे अपने वालिद के ज्यादा मददगार और वालिद के ज़ज़्बात-ओ-हालात के लिये ज्यादा फिक्रमंद रहते हों ! खैर ...
पता नहीं कैसे मेरा ख्वाब अधूरा रह गया और मैं दिन तमाम इस पशोपेश मे रहा कि लैला को खुद से दूर जाने की बात कहने वाले बुज़ुर्गवार कौन थे और वो अपने बच्चों से नाउम्मीद क्यों थे ...मुझे इस तरह का ख्वाब आया ही क्यों और इस ख्वाब के मायने क्या है ? शाम तकरीबन चार बजे स्याह बादलों के दरम्यान सूरज ने धरती को टुक से झांक कर देखा और मेरे ख्वाब का तिलस्म यक-बा-यक टूट गया ...सारी बेचैनी हवा हुई पर ख्वाब के मायनें आपसे शेयर करने की ख्वाहिश ब्लाग पोस्ट में तब्दील होने लगी है ...
हुआ यह कि पिछ्ले कई दिनों से समाचार पत्रो , टीवी न्यूज में ट्रापिकल साइक्लोन लैला का ज़िक्र छिडा हुआ था और मै खुद बेख्याल सा यह सब देख सुन रहा था कि हवाओं की रफ्तार 125 किलोमीटर प्रति घण्टे से ज्यादा होने और तूफान के तटीय क्षेत्रों मे तबाही मचाने की आशंकाओ के दरम्यान दरजनों मौतों और हजारों विस्थापितों की खबरें सुरखियां बनी हुई हैं ! हिन्द महासागर के उत्तरी आठ देश - भारत , बांगलादेश , श्रीलंका , पाकिस्तान , ओमान , म्यांमार , थाईलैंड और मालदीव ,.... बंगाल की खाड़ी की ऊर्जावान बेटी के निशाने को पहचान चुके थे लिहाज़ा भारत के तटीय राज्यों को अलर्ट करनें की कवायद शुरु हुई ! विश्व मौसम विज्ञान संगठन और संयुक्त राष्ट्रसंघ के एशिया पेसेफिक क्षेत्र आर्थिक सामाजिक कमीशन द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अंतर्गत इस बार इस तूफान के नामकरण की जिम्मेदारी पाकिस्तान की थी और उसने इसे नाम दिया 'लैला' ! ख्याल आया कि इसे लैला के बजाये मजनूं क्यों नही कहा गया तो मामला यहां भी लिंग भेद का निकला ! कहते हैं कि ज्यादा ताकतवर तूफान मर्दों और कम ताकतवर तूफान औरतों के नाम से जाने जायेंगे ! मतलब ये कि कुदरत को भी नही बख्शा इंसानों ने ! कहते तो ये भी हैं कि शुरुआती दौर में इन तूफानों का नामकरण आस्ट्रेलियाई मौसम वैज्ञानिको नें चिढ्कर उन महिला राजनेताओं के नाम पर किया जिन्होने कभी उन्हें ज़लील किया था !
फिलहाल मेरा इरादा तूफानों के इतिहास के बजाये अपने स्वप्न फल को बांचने का है इसलिये विषयांतर ना करते हुए मुद्दे पर लौटता हूं ! जेहन में कहीं यह ख्याल भी था कि आपदा प्रबन्धन के मामले में हम जापान और चीन से पिछड से गये हैं ... इतना ही नही देश के प्रति दायित्व बोध और राष्ट्रीयतावाद भी हममे ज़रा कम ही है ! लगभग एक जैसी उम्र के देश और उनके नागरिकों के सामाजिक सरोकार मे ज़मीन आसमान का फर्क दिखता है ! आशय ये कि अचेतन रूप से इन तमाम बातों से गुजरते हुए मुझ जैसे आम आदमी को अच्छी नींद आई भी कहां होगी ? और फिर जैसे ही लैला ने बस्तर को छुआ ही होगा कि मुझे मेरा देश प्राक्रतिक आपदा के सामने बेबस खडा दिखाई दिया होगा ! अपने बच्चों से नाउम्मीद और हताश सा ....!
भारत की बारी जब किसी तूफान को नाम देने की आएगी तो एक बात पक्की है कि उसका नाम महात्मा गांधी से ही शुरू होगा...
जवाब देंहटाएं...प्रसंशनीय पोस्ट !!!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब अली भाई, आपकी पैनी नज़र कहाँ-कहाँ पहुँच गयी.
जवाब देंहटाएं'लैला' के बहाने क्या-क्या कह डाला आपने,
'मजनूं' सा दिल दिखा दिया बच्चो के बाप ने,
ये खैरियत हुई कि वो दर से चली गयी,
या- फिर निकलना पड़ना था सहरा को नापने.
=mansoor ali hashmi
आप की पोस्ट और मंसूर साहब की टिप्पणी दोनों बढ़िया हैं.... साधुवाद..
जवाब देंहटाएंमंसूर भाई की टिप्पणी को हमारी भी टिप्पणी मानी जाए. तूफानों के संबंध में उम्दा जानकारी और उस पर आपका चिंतन अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया। आज तो आप ने वर्षों की सँजोई हुई थाती लुटा दी ! पूरा चिट्ठाजगत मोतीमय हो रहा है। एक एक कर परखते हैं।
जवाब देंहटाएंआपदा विपदा तो दूर रोजमर्रा के प्रबन्धन ही भारतीय तंत्र को 'पदा'मारते हैं।
आप ने इस विषय में भी नारी विमर्श ढूढ़ लिया ! ऐसे ही थोड़े मिश्र जी आप के फैन हैं !
पहले आश्चर्य हुआ था फिर अपनी बेवकूफी समझ में आई। चिट्ठाजगत में आप की पोस्ट के बजाय आप के ब्लॉग लिंक पर क्लिक कर दिया सो केवल आप के ही लेख दिखने लगे। बाद में नोटिस किया ! पता नहीं यह ब्लॉगेरिया का लक्षण है या नहीं?
जवाब देंहटाएंलैला तो हाड चिटका के गयी -अब लुटे लुटे कायनात की बर्बादी का भी नजारा करते रहिये! अब क्यों नहीं कहते की अभी तो मैं जवान हूँ ? सृष्टि की रचनाएं ऐसी भी होती हैं ! तबाह कर देती हैं !
जवाब देंहटाएंलैला कहीं विपदा का प्रयायवाची तो नहीं :-)
जवाब देंहटाएं@ काजल जी, नाम का क्या है, रखने को तो सोनिया गाँधी भी रखा जा सकता है :-)
आप की पोस्ट और मंसूर साहब की टिप्पणी दोनों बढ़िया हैं.... साधुवाद..
जवाब देंहटाएंवत्स जी भी सही कह गये हैं, चाहो तो सोनिया भी रख लें !!
बहुत खूब...
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