सोमवार, 10 मई 2010

अम्मा मेरे हथियार छुपा ले मुझे भाई का क़त्ल करना है ...

बतौर मुलाजिम खुद पर गुज़र रहे हादसात पर डायरी की तीसरी किश्त ४ अप्रैल को लिखी थी...उसके बाद एक तो मसरूफ़ियत ... दूसरे ताड़मेटला  में सी.आर.पी.एफ. के जवानों के लिए दिल में अफ़सोस... कि आगे कुछ लिखा ही नहीं गया ...कई बार लगता है लिखना...पढना...बोलना कितना बेमानी होता जा रहा है ....कौन किसको बर्दाश्त करने तैयार है यहां ...सब जानते हैं जिन्दगी में  सब कुछ वैसा कहां घटता है जैसा कि हम चाहते हैं पर बर्दाश्त ...बिलकुल नहीं ...कतई नहीं  ! सरकारी नौकरी नें बस्तर ला पटका ...सच कहूं तो कुछ भी बुरा नहीं लगा बेहद खूबसूरत धरती ...दिलकश नज़ारे ...अच्छे लोग...शांत लोग ...जिंदगी के इससे बेहतर हालात कहां ...सोचा लौट कर क्यों जाना यहीं बस जाते हैं ! उन दिनों हर संडे को दोपहर का खाना चित्रकोट वाटरफाल के दामन में होता...दोपहियों में जिंदगी के मज़े फटेहाल घुमक्कड़ी  !

शनिवार की शाम करीब ३.१५ बजे भोपालपटनम से जगदलपुर के रास्ते  में  बीजापुर के घाट  पर पहुंचते ही ख्याल आया कि घर बात की जा सकती है यहां से मोबाइल पर सिग्नल्स मिलना शुरू हो जायेंगे ...कुछ रोज पहले ही लैंड माइंस के विस्फोट से  बी.एस.एन.एल के दो कर्मचारियों की जान गई... यहीं कहीं नजदीक ही ...लिहाज़ा टेलीफोन सर्विसेज ठप्प पड़ी हुई थी. ..उम्मीद ये कि घाट पर टेलीफोन संपर्क संभव है ...हुआ भी यही ...बीबी से कहता हूँ ..बीजापुर पहुँच रहा हूँ  रात के ९ बजे तक जगदलपुर पहुंच जाऊंगा फ़िक्र मत करना मैं ठीक था / हूँ ...देर शाम बास्तानार  के घाट तक पहुंचा हूँ कि एक मित्र का फोन आता है भाईजान कहां हैं  ?  मैं कहता हूँ बास्तानार में ...उन्होंने कहा बीजापुर के घाट पर सी.आर.पी. एफ का वाहन उड़ा दिया गया है  !  ८ जवान शहीद हुए हैं और एक लापता है ...ओह ...ओह मैं तो वहीं से गुजरा हूँ अभी ...अभी कहां पिछले दो माह में कई बार ...हजारों वाहन...हजारों यात्री ...उस लैंड माइंस के ऊपर से गुजरे ...हे ईश्वर  !   कोई १-३० घंटे का अंतराल... बीजापुर का घाट ...आह मृत्यु ...इन दिनों बस्तर पर मेहरबान है ...यम देवता और उसके महिष को पूछता ही कौन है  !  मृत्यु आजकल लैंड माइंस पर सवार होकर आती है ...बस्तर में चित्रगुप्त के कायदे कानून नहीं चलते !  हाँ लिखना ...पढना और बोलना ज़रूर  बेमानी हो गया है वर्ना इसी घाट पर बाइक रोक कर कुदरत के नज़ारे लूटने से मुझे कौन रोकता था ...अब तो पता भी नहीं चलता कि मेरे कदमों तले क्या है  ?  जब कोई संवाद चाहता ही नहीं तो कैसा सुनना ...कैसा बोलना ...कैसा लिखना ...कैसा पढना ...क्या जिन्दगी और क्या मौत !  यहां इंसान नहीं ...बंदूकें बोल रही हैं ...खूंखार युद्धोन्मादी ...इंसानों को पीछे रख... राइफलों पर सवार हैं ...उनके एयर कंडीशंड बंगलों से एक ही आवाज आती है सख्ती से कुचला जायेगा ...किसे  ?  मुझे , जो यहां बस गया ?  या उस अदने से पुलिस वाले को जो रोजी रोटी के लिए भीषण ...हाहाकारी दशाओं में काम करने और जान देने को मजबूर है या उन्हें जो क्रांति के नाम पर छद्म युद्ध कर रहे हैं ?  कौन हैं ये रणनीतिकार जिन्होंने यहां की फ़िजाओं में बारूद घोलने की सौगंध खाई है ?

मेरे कान उनके युद्धघोष को सुन सुनकर पक चुके हैं  मुझे फिर से वही बस्तर लौटा दो ...दफा हो जाओ यहां से ...मुझे जीने दो ...उन्हें जीने दो ...सबको जीने  दो ...मुझे शांति की तलाश है पर तुम शोर के सिवा मुझे कुछ दे नहीं सकते ...उधर वे कहते हैं अम्मा मेरे हथियार छुपा ले मुझे भाई का क़त्ल करना है ...तुम सिपाहियों की जिन्दगी से खेलते हो सो वे भी ...वे अम्मा के सीने  में बारूद छुपाकर रखते हैं ...पता नहीं तुम लोगों के चक्कर में अम्मा की गोद में सर छुपाने और अमन से जिन्दगी गुज़ारने का मेरा फैसला क्या मेरी भी मौत का कारण  बन जायेगा ?


6 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ अलग सा चिंतनीय लिखा आपने , शुभकामनायें !

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  2. kash vahi bastar fir se laut aaye....

    87-88-89 me har sal do-do mahine bade bhai ke ghar jagdalpur me gurajara karta tha lekin tab bhi kitni shanti thi bastar me, ab to har pal ek ahat se gunjti rahti hai lekin khamsh, maut ki aahat, aah, kahan hai vo bastar.

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  3. .पता नहीं तुम लोगों के चक्कर में अम्मा की गोद में सर छुपाने और अमन से जिन्दगी गुज़ारने का मेरा फैसला क्या मेरी भी मौत का कारण बन जायेगा ?
    Aah!

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  4. अली सा यह तो बहुत खौफनाक मंजर है -तसल्ली यही है की आप बिस्तर पर नहीं बस्तर में हैं !
    फोन कर रहा हूँ आप उठा नहीं रहे !

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  5. आप की बेचैनी समझ रहा हूँ। उम्मीद है कि 'खैर जारी को भी पढ लें तो ...' टिप्पणी अंश का 'तो' बहुत कुछ ले आएगा।

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