रविवार, 4 अप्रैल 2010

गुमशुदगी के दिन ....3

मार्च १५,२०१० :
दो  शिफ्ट की परीक्षा...तलाशी का वही रूटीन...नक़ल पर्चियों की मात्रा भी उतनी ही ...सामग्री को जलाते हुए लगता है कि जैसे ओजोन परत की दुर्दशा में थोड़ा बहुत अपराध हमसे भी हुआ !  
मार्च १६,२०१० :
परीक्षायें अपने शबाब पर हैं...परीक्षार्थियों की संख्या बढ़ने लगी है और अपनी मेहनत भी...छात्रों की बेशर्मी की कोई सीमा नहीं अब मेरा सब्र बांध तोड़ने को है लगता है तलाशी का काम थोड़ा देर से शुरू करूं और पूरा का पूरा सेंटर बुक कर दूं...केस बना डालूं सबके ! तिवारी नें कुलपति से फोन पर बात की ...चर्चा से लगता तो नहीं की नक़ल रोकने में उनकी कोई रूचि है !
विश्वविद्यालय का फ़्लाइंग स्क्वाड कहां है पता नहीं सुना है वे जगदलपुर के स्थानीय केन्द्रों में खानापूर्ति में लगे हुए हैं और उनके निज वाहन कुलसचिव की सेवा में है !  विश्वविद्यालयीन अर्थतंत्र  पर  नूरा कुश्ती जैसा कुछ लगता है ...
मार्च १७ ,२०१० :
कोई आश्चर्य नहीं कि अब तक हस्तलिखित नक़लपर्ची के दर्शन नहीं हुए ! शायद वन डे सिरीज बतौर लिखी और छापी गई पुस्तिकाओं नें नक़ल के लिये हस्तलाघव की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया है ...मुमकिन है कि ऐसी पुस्तिकाओं की सर्वाधिक खपत दक्षिण बस्तर में ही होती हो !  सुबह बी.ए. फाइनल में कुछ परीक्षार्थी काफी उम्रदराज दिखे ...उनमें से एक शायद ५५-५६ साल के रहे होंगे ,बाद में पता चला वे प्रोमोशन के लिये डिग्री की चाहत में परीक्षा दे रहे हैं ! मैंने पूछा गुरु जी हैं ? उन्होंने कहा हाँ ...कहां पोस्टिंग है  ?  मद्देड में  ! 
हूं ...आप गुरु जी हैं तब तो आपके पास कोई...पर्ची भी नहीं होगी ? उन्होंने सिर हिलाया...नहीं मेरे पास कुछ भी नहीं है...वल्लाह  बड़ा  खूबसूरत  इंकार था  मैंनें  कहा  जनाब  आपकी  तलाशी  लूंगा  उनकी शर्ट पर हाथ लगाते ही ये अहसास हो गया कि मछली बड़ी है  !  कमर से लेकर नीचे  तक के भूभाग में  तक़रीबन तीन किताबों के बराबर प्रिंटेड सामग्री  मिली...ओह गुरु जी  आप अपने बच्चों को क्या पढ़ाते होंगें मैं समझ सकता हूं  !  क्या अगली परीक्षा में भी आपसे ऐसी ही भेंट होगी ?  उन्होंने फिर से सिर हिलाया ...मैं जानता हूं वे अगली परीक्षा में भी खाली हाथ नहीं होंगे !
मार्च १८ ,२०१० :
कई दिनों की मशक्कत के बाद भी लड़कियों का कोना खाली सा लगता है...कोई लेडी टीचर होती तो जरुर ...एक कसक सी है कि लगभग आधे परीक्षार्थी अनछुए से हैं ...पास के स्कूल से एक महिला शिक्षिका को बुलवाया गया संयोगवश वे मेरे बहुत पुराने परिचितों की परिजन निकली ...मैंने पूछा लड़कियों की तलाशी ले सकोगी ...उसने परिचय के संकोच में हामी भरी और यह भी कहा लेकिन सर मुझे तो बाद में भी यहीं रहना है ! मुझे उसकी बात में दम लगा ! ठीक है तुम तलाशी मत लेना सिर्फ खड़ी रहना मैं ही कोई रास्ता खोजता हूं ...उसके चेहरे पर तसल्ली के भाव तैर गये ! मेरे सामने विकल्प भी कहां थे ! उसे कमरे के बाहर गलियारे में घूमने के आग्रह के साथ मैं पुनः अभियान रत हुआ ! आप सब मेरी बेटी जैसी हैं पिछले कई दिनों से देख रहा हूं कि आप भी वही कर रही हैं जिसके लिये मैं लड़कों की तलाशी लेता रहा हूं ...आज मैंने एक महिला शिक्षिका को खास आप लोगों की तलाशी के लिये बुलवाया है लेकिन मैं जानता हूं कि तलाशी से पहले आपको एक मौका दिया जाना चाहिये इसलिये मैं घूमकर खड़ा होता हूं आप अपनी स्वेच्छा से नक़ल सामग्री निकाल कर अपनी टेबिल पर रख दीजिये ...यकीन जानिये इसके बाद भी तलाशी होगी और जिसके पास नक़ल पर्ची पाई गई उसका केस जरुर बनेगा ! जुगत काम कर गई मेरे घूमते ही कमरा पन्नों की सरसराहट से भर गया ! छात्राओं की टेबिल्स किताबों के टुकड़ों से अटी पड़ी थीं ...चपरासी जूट के बैग में काग़ज समेटने लगा ! विश्वास नहीं होता ...अगर यह काम पहले दिन से चालू किया गया  होता तो  अब तक का कलेक्शन एक ट्रक  भर तो  हो  ही  चुका  होता !
मार्च १९,२०१० :
कल शनिवार छुट्टी और परसों रविवार दो दिन के लिये जगदलपुर का एक चक्कर लगाना तय होता है लिहाज़ा दोपहर की शिफ्ट निपटा कर निकलने की योजना के अंतर्गत सत्यम को खाना जल्दी भेजने की सलाह दी जाती है  !  सुबह नाश्ते में उसके पास केवल तीन विकल्प हुआ करते हैं ...पूड़ी छोला /  इडली / डोसा ! हमेशा की तरह आज भी डोसे के विकल्प पर सहमति हुई ...नारियल की चटनी उम्मीद के मुताबिक सुर्ख लाल थी उसपे तुर्रा ये कि हरी मिर्च के टुकड़े अतिरिक्त ...सफ़ेद नारियल का लाल हो जाना हमारे अंग अंग से धुआं निकालने के लिये पर्याप्त था ...
आज लड़कियों के पास जाकर भिक्षाम देहि की मुद्रा में केवल हाथ पसारे...दान में कोई कमी नहीं ! लड़कों का दान भी स्वैच्छिक लगा या फिर शायद इन पन्नों में से प्रश्न फंसे ही ना हों ? 
बस में बैठते हुए लगा जैसे किसी धमन भट्टी में झोंक दिये गये हों ...हमारे लिये सीट की व्यवस्था थी लेकिन बस यात्रियों से खचाखच भरी हुई थी लगभग ठूंस ठूंस कर भरे जाने की तर्ज पर ...कुछ महिलाएं प्लास्टिक के कंटेनर में तरल पदार्थ रखी हुई थीं जो निसंदेह ताड़ी रही होगी ...बिना ढक्कन के कंटेनरों से ...बस के हिचकोलों के साथ ही साथ हर बार अजब सी गंध बिखर जाती ( मैं साहित्यकार नहीं हूं वर्ना लिखता मादक गंध ) एक बार तिवारी के पैंट में कुछ बूंदे भी आ टपकीं ...मैंने कहा भाभी समझ जाएगी भोपाल पटनम में तुमने क्या किया...
नेटवर्क नहीं था सो बीबी को एसएमएस कर दिया कि रवानगी डाल दी गई है ! उम्मीद ये कि हमसे पहले कहीं ना कहीं नेटवर्क मिलते ही एसएमएस जगदलपुर पहुंच जायेगा ! भैरमगढ़ पहुंचते ही मोबाइल पर नेटवर्क के संकेत और एक सुखद आश्चर्य...हेल्लो ..मैं घुघूती बासूती ...जी नमस्कार ...मैं बहुत नाराज हूं इतनी देर से नेट पर बैठे हो पर मेरी हेल्लो का जबाब तक नहीं दे रहे हो ...पर जीबी मैं तो बस में हूं ...जगदलपुर से करीब १३० किलोमीटर दूर...अरे तो तुम्हारी मेल आई डी / नेट पर कौन है ? मेरी बिटिया हो सकती है ...ओह अच्छा हुआ नाराज होने से पहले फोन कर लिया ...चलिये बाद में बात करते हैं ! जगदलपुर पहुंचते पहुंचते रात गहरा चुकी है लगता है कल की छुट्टी भागमभाग में बीतेगी ....

11 टिप्‍पणियां:

  1. मद्देड के गुरूजी को पढाने की भी कोई जरूरत नहीं है भाई साहब, स्‍कूल तो नक्‍सलियों नें बंद करा दी है, उसे पढाना तो है नहीं, वो तो सिर्फ ताडी और मंद में दिनभर मगन रहता होगा, क्‍या खाख पढता होगा... पर प्रमोशन चाहिए वाह रे गुरूजी, दर्शन करने पडेंगें उनके.

    अनुभवों से हमें रूबरू कराने के लिए धन्‍यवाद भाई साहब, आगे के पन्‍नों का भी इंतजार है.

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  2. आप काहें एक हारी हुयी बाजी को पलने में लगे हैं -भाड़ में जाए सुसरे /ससुरी ..
    नौकरी फरमाईये और शान से लौट आईए ....कौन सा तमगा मिल जाएगा ..इतनी
    सक्रियता दिखाने पर -तनी समझा करिए !

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  3. @ अरविन्द जी
    आपकी सलाह नोट कर ली गई है !

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  4. पिछली पोस्ट पर एक टिप्पणी तीन बार दिख रही है। सो इस पर ना भी करूँ तो चलता है।
    गुरुजी नकल करने के १३ तरीके जैसा कुछ कक्षा में पढ़ाते होंगे।
    घुघूती बासूती

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  5. बहुत मजा आ रहा है इस डायरी मे ।

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  6. नकल की रवायत पुरानी है। पर पहले इतनी नहीं हुआ करती थी। हमें भी सातवीं कक्षा में एक नाम याद नहीं हो रहा था। हमने वही पर्ची पर लिख कर शान से आगे की जेब में रख लिया। सवाल प्रश्नपत्र में आ भी गया। हम जवाब लिखने बैठे तो पर्ची की जरूरत न पड़ी। हमें याद था कि हमने पर्ची पर क्या लिखा था। परीक्षा दे कर बाहर आए तो सोच कर कई दिन परेशान रहे कि पर्ची के साथ पकड़े जाते तो अपना तो अपना पिताजी का नाम भी खराब होता। फिर कभी जीवन में इस सुकृत्य को करने की जरूरत नहीं पड़ी। पर किसी चीज को याद रखने की एक जुगत हाथ लगी कि जो याद न हो सके रात को लिख कर जेब में रख कर सो जाओ। परीक्षा देने से जाने के पहले जेब से निकाल कर फिर पढ़ो और उसे कचरे के डिब्बे में डाल कर परीक्षा दे आओ।

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  7. Badee tanmaytaa se aapki post padhi...afsos..yatha raja tatha praja..darasal nakal khulke karne denee chahiye...jinhon ne kitaben padhee na hon, jawab ke liye kaunse panne paltenge?

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  8. फिर कहते हैं कि पढ़-लिख कर भी नौकरी नहीं मिलती.

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  9. रोचक पोस्ट के माध्यम से परीक्षा व्यवस्था की खामियाँ उजागर कर दी आपने। मैने इस विषय में एक कविता लिखी थी जिसकी दो लाइन लिखता हूँ-

    प्रश्न पत्र के उत्तर अब तो ब्लैकबोर्ड बतला देते हैं
    कौन नकल करता अब चिट से गुरू बोल समझा देते हैं।

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  10. सचमुच की डायरी को वर्चुअल डायरी पर पढना अच्छा लगा।
    समय निकाल कर ऐसे ही लिखते रहें, लोग इंतजार करते रहते हैं।
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    गुफा में रहते हैं आज भी इंसान।
    ए0एम0यू0 तक पहुंची ब्लॉगिंग की धमक।

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