शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010

गुमशुदगी के दिन ....१

मार्च ८ , २०१० :

दोपहर ढलने को है , अधिकारी के बुलावे पर ...मिलना मजबूरी है सो जा पहुंचे ...अली सा...मुझे पता है कि आप बीमार हो...मैं तो बदले में किसी दूसरे को भेज ही देता पर 'ऊपर' से दबाब है ! आप जिम्मेदार हैं ..संभाल लेंगे... इसलिये आप  ही  को जाना होगा !  वे दिखावे के लिये ही सही ऊपर फोन लगाते हैं ...देखिये अली सा... बीमार हैं इनके बदले किसी और को भेज दूं  ?  मैं उनकी मुख मुद्रा देख कर समझ जाता हूं  कि  'ऊपर' वाला अपने 'ऊपर' वाले से भयभीत है ! अधिकारी फोन पटक कर मेरे बोध की पुष्टि कर देते हैं ! अब कोई विकल्प नहीं मुझे ही जाना है ,ये तय हो चुका है ! 
डाक्टर से बात करता हूं वो चिंतित है ...हास्पिटल में भर्ती हो जाइये ...पर मुझे अपनी सिंसियरटी / जिम्मेदार होने की कीमत चुकाना है ! परसों हर हाल में निकलना होगा !


मार्च ९ , २०१० :


दिन भर तैयारियों में गुज़रा ,परिवार के लिये राशन पानी , अपने लिये दवाइयां और बच्चों की परीक्षाओं के लिये शुभकामनायें ...सत्येन्द्र को फोन करता हूं ...अरे यार तुम्हारी बसों की टाइमिंग्स क्या है ? दो सीट मेरे लिये सुरक्षित रखना कल ...उसे विश्वास नहीं होता ! क्यों मज़ाक कर रहे हैं क्या करेंगे भोपालपटनम जाकर ? मैं कहता हूं वहां कालेज में सामूहिक नक़ल की शिकायते हैं ...मुझे नक़ल रोकना है ! ...पर आप ही क्यों ? जबाब में , मैं हंसता हूं ...भला उससे कैसे कहूं , जिम्मेदार होने की सजा भी होती है ! सत्येन्द्र से निपट कर एक फोन भोपालपटनम भी...बड़ी मुश्किल हुई... कनेक्टिविटी थी ही नहीं...कहता हूं तैयारी रखना मैं कल देर शाम को पहुंच जाऊंगा !
बीबी परेशान है , पर मुझे दिलासा देती है फ़िक्र मत कीजियेगा 'ऊपर' वाले पर भरोसा रखिये ...हंसी साधे नहीं सधती मेरा पेट दुखने लगा है...बीबी का 'ऊपर' वाला , मेरा 'ऊपर' वाला...इस 'ऊपर' वाले का और 'ऊपर' वाला ये सारे 'ऊपर वाले' फ़ौज पर भारी हैं ! बीबी को मेरी हंसी समझ में नहीं आती, अब दिलासा देने की बारी मेरी है ! चलते चलाते ब्लाग पर एक पोस्ट डाल दी है ! सोचा नेट से लम्बी गैर मौजूदगी / गुमशुदगी हम पर भारी है तो शायद मित्रों को बताते जाना ठीक हो ...


मार्च १० , २०१० :


दोपहर की आखिरी बस यूं तो लक्जरी है और सत्येन्द्र के ड्राइवर तथा कंडक्टर भी सेवा में हैं पर सड़क ...कुल जमा २१५ किलोमीटर , शुद्ध ८ घंटे का सफर ...पोर पोर दुखने लगा है ! भोपालपटनम के दूसरे सिरे पर कालेज है , कुछ पहले बस रुकते ही कर्मचारी लपक कर सामान लेते हैं ! यहां कोई होटल नहीं... रेस्ट हाउस भी मरम्मत पर , लिहाज़ा कालेज बिल्डिंग में ही रुकना तय हुआ ! मुंह हाथ धोकर घर फोन लगाया, जो लगा ही नहीं एसएमएस करता हूं , सकुशल पहुंच गया हूं चिंता मत करना ...बीबी का जबाबी एस एम एस मिलता है खाना , दवा समय पर लेना और आराम भी ...खाने की रत्ती भर इच्छा नहीं इसलिये सुबह की तैयारियों का जायजा लेता हूं और संतुष्ट होकर सोने के लिये बिस्तर की शरण में ...


मार्च ११ , २०१० :


सुबह ५ बजे दैनिक गतिविधियों का शुभारम्भ जंगल से और स्नान ध्यान कालेज के द्वार पर लगे हैण्ड पम्प पर ... सुबह सात बजे बी.एससी. फर्स्ट इयर और फाइनल इयर के एक्जाम्स शुरू हुए बिल्डिंग के बाहर पुलिस फ़ोर्स फ़ैल गई है और अन्दर मैं कंट्रोल रूम छोड़ कर तिवारी जी के साथ तलाशी अभियान पर ....चार कमरे ...करीब दो बोरा भर नक़ल पर्चियां बरामद हुईं ! सामग्री की बरामदगी कालेज की ख्याति के अनुरूप ही लगी ! छात्रों से पूछता हूं कोई वज़ह कि मैं आपका प्रकरण ना बनाऊं...वे कहते हैं यहां कोई शिक्षक नहीं...मैं जानता हूं ! सरकारी कालेज , २२साल पुराना कालेज , कोई प्रोफ़ेसर नहीं , एक लैब टैक्नीशियन प्रभारी प्राचार्य और कोई १५०० बच्चे .....
शाम को बस्ती घूमना हुआ पुराने परिचित मिले ! मैं १९९३ और १९९४ में भी यहां आया था कुछ इसी तरह से ! उनके ज़ख्म हरे हो चले हैं ...कहते हैं सर आप बहुत दिनों बाद आये हैं ! लगता है इस बार सारे बच्चे फेल हो जायेंगे ...मैं क्या कहूं ?
भोजन की व्यवस्था सत्यम होटल से की गई है खाद्य सामग्री पर्याप्त से अधिक लगी ! तेज मिर्च और खट्टा पन यहां की खासियत है ...महाराष्ट्र ३ किलोमीटर और आंध्र प्रदेश मात्र ३२  किलोमीटर की दूरी पर जाहिर है खाने पर उसका असर तो होना ही था ! मैं जानता हूं सुबह नित्य क्रिया में समय नहीं लगेगा !
फिलहाल आश्चर्य यह कि बिना प्रोफेसर्स के इस कालेज में यूनिवर्सिटी नें परीक्षा केंद्र बनाया कैसे ? और यहां जगदलपुर ,गीदम , बीजापुर के बच्चे पेपर देने क्यों आ रहे हैं क्या वे यह भी जानते नहीं ?





3 टिप्‍पणियां:

  1. हे केवल मैं आपको अली सा कह सकता हूँ -यह मेरा कापी राईट है वो आपका गुर्कुल नहीं बोल सकता -आपके जाने के बाद नेट पर कौन था आपकी आयी डी से ...
    मैं पहले ही कह रहा था चले जाईये मेडिकल पर ...मगर हाय रे टुच्ची सिंसियारटी! झेलिये मित्र की बात नहीं मानी !

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  2. चलिए भारत का भविष्य सुधारिए। वैसे नकल के सैकेन्ड हैंन्ड सामान की दुकान खोलना कैसा रहेगा?
    घुघूती बासूती

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