शनिवार, 16 जनवरी 2010

वो मेरे इश्क में है सो ये भी नहीं पूछती कि ...

दोस्त कह रहे हैं कुछ हल्का फुल्का लिखूं  !  सोचता हूं जिन्दगी इतनी आसान कहां है ? यंत्रवत जीवन और अनन्त अपेक्षाओं के अधूरेपन से उपजे  तनावों के दरम्यान कोई सहज लेखन ? बस सवाल ही है !  मेरे लिये सहजता और हल्के फुल्केपन का ख्याल बेहद आनंदमयी है लेकिन वो अन्दर कहीं शेष रह गई हो तभी तो अभिव्यक्त हो पायेगी ! वर्ना दोस्त चाहें...मैं चाहूं क्या फर्क पड़ता है !
फिलहाल मेरे अन्दर 'मैं' है  केवल ढेर सारी 'मैं'  !  पर वो   !  वो तो मेरी तरह से असहज नहीं है ! अप्रतिम सौन्दर्य की स्वामिनी नख शिख तक प्रेम में डूबी हुई  !  हाँ उसके बारे में कहना / लिखना ठीक होगा ! सोचता हूं उसके बारे में  /  उसकी खूबसूरती के बारे में और उसकी चाहतों के बारे में लिखूं पर... मन भटकता है !   ये ओजोन परत...?  फिर उसके बिना हम क्या हैं  ?  और वो जो गर्म होती  हुई  दुनिया के लिये चिंताएं हैं , वो  कहां जायेंगी ! मैं लिखना चाहता हूं सहजता पर / प्रेम पर / सौन्दर्य पर / लेकिन मन भटकता है ...?  ये जंगल क्यों कट रहे हैं  ?  पर्यावरण से छेडछाड  कुछ  यूँ लगती है जैसे हम ...घर से बाहर  निकली अकेली लड़की के साथ पेश आते हैं हिंसक पशु की तरह से  !  मेरा अंतर शुष्क और रिक्त है प्रेम से ! इसीलिए मैं यह सब सोचने लगता हूं फिर भला उसके बारे में कैसे लिख पाऊंगा  ?  वह प्रेम करती है निश्छल प्रेम और मैं पशु हूं , असहज पशु , उसे लील जाना चाहता हूं  !  उसकी  देह पर अपने  नाखूनों का पैनापन कितनी ही बार आजमाया है मैंने !  निशान कितने गहरे और स्याह पड़ चुके हैं  !  मेरे दुर्व्यवहार से वो दुखी  तो  जरुर होगी पर  कहती नहीं ! उसके अंतहीन प्रेम के सामने मेरी असहजता और पाशविकता का शेष रह जाना  आश्चर्य का विषय है !
वो मेरे इश्क में है सो ये भी नहीं पूछती कि कौन ठाकुर हो ... ?  इधर मैं सारे जहान  में ठाकुर ठाकुर खेलता फिरता हूं  !  शायद किसी दिन तो मुझे उसके प्रेम के बदले अपनी असहजता त्यागना ही  होगी वर्ना..........? ? ?
दोस्तों इस आलेख के आधार पर मेरे बारे में कोई वहशियाना किस्म की  धारणा मत बनाईयेगा ! यह आलेख किसी स्त्री और मेरी  प्रेम कथा नहीं बल्कि प्रकृति और इंसानों के संबंधों पर चिंता की अभिव्यक्ति है इसे उसी रूप में पढ़ा जाये !



2 टिप्‍पणियां:

  1. आप कितना भी दावा त्याग कर लें मगर मुझे मालूम है अली साहब कि सच क्या है ?
    ये कुदरत कुदरत मुझसे मत खेलिए ! उधर भी कोई बेकरार है आपके लिए !

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  2. चिन्ता सही है।
    घुघूती बासूती

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