दोस्त कह रहे हैं कुछ हल्का फुल्का लिखूं ! सोचता हूं जिन्दगी इतनी आसान कहां है ? यंत्रवत जीवन और अनन्त अपेक्षाओं के अधूरेपन से उपजे तनावों के दरम्यान कोई सहज लेखन ? बस सवाल ही है ! मेरे लिये सहजता और हल्के फुल्केपन का ख्याल बेहद आनंदमयी है लेकिन वो अन्दर कहीं शेष रह गई हो तभी तो अभिव्यक्त हो पायेगी ! वर्ना दोस्त चाहें...मैं चाहूं क्या फर्क पड़ता है !
फिलहाल मेरे अन्दर 'मैं' है केवल ढेर सारी 'मैं' ! पर वो ! वो तो मेरी तरह से असहज नहीं है ! अप्रतिम सौन्दर्य की स्वामिनी नख शिख तक प्रेम में डूबी हुई ! हाँ उसके बारे में कहना / लिखना ठीक होगा ! सोचता हूं उसके बारे में / उसकी खूबसूरती के बारे में और उसकी चाहतों के बारे में लिखूं पर... मन भटकता है ! ये ओजोन परत...? फिर उसके बिना हम क्या हैं ? और वो जो गर्म होती हुई दुनिया के लिये चिंताएं हैं , वो कहां जायेंगी ! मैं लिखना चाहता हूं सहजता पर / प्रेम पर / सौन्दर्य पर / लेकिन मन भटकता है ...? ये जंगल क्यों कट रहे हैं ? पर्यावरण से छेडछाड कुछ यूँ लगती है जैसे हम ...घर से बाहर निकली अकेली लड़की के साथ पेश आते हैं हिंसक पशु की तरह से ! मेरा अंतर शुष्क और रिक्त है प्रेम से ! इसीलिए मैं यह सब सोचने लगता हूं फिर भला उसके बारे में कैसे लिख पाऊंगा ? वह प्रेम करती है निश्छल प्रेम और मैं पशु हूं , असहज पशु , उसे लील जाना चाहता हूं ! उसकी देह पर अपने नाखूनों का पैनापन कितनी ही बार आजमाया है मैंने ! निशान कितने गहरे और स्याह पड़ चुके हैं ! मेरे दुर्व्यवहार से वो दुखी तो जरुर होगी पर कहती नहीं ! उसके अंतहीन प्रेम के सामने मेरी असहजता और पाशविकता का शेष रह जाना आश्चर्य का विषय है !
वो मेरे इश्क में है सो ये भी नहीं पूछती कि कौन ठाकुर हो ... ? इधर मैं सारे जहान में ठाकुर ठाकुर खेलता फिरता हूं ! शायद किसी दिन तो मुझे उसके प्रेम के बदले अपनी असहजता त्यागना ही होगी वर्ना..........? ? ?
दोस्तों इस आलेख के आधार पर मेरे बारे में कोई वहशियाना किस्म की धारणा मत बनाईयेगा ! यह आलेख किसी स्त्री और मेरी प्रेम कथा नहीं बल्कि प्रकृति और इंसानों के संबंधों पर चिंता की अभिव्यक्ति है इसे उसी रूप में पढ़ा जाये !
दोस्तों इस आलेख के आधार पर मेरे बारे में कोई वहशियाना किस्म की धारणा मत बनाईयेगा ! यह आलेख किसी स्त्री और मेरी प्रेम कथा नहीं बल्कि प्रकृति और इंसानों के संबंधों पर चिंता की अभिव्यक्ति है इसे उसी रूप में पढ़ा जाये !
आप कितना भी दावा त्याग कर लें मगर मुझे मालूम है अली साहब कि सच क्या है ?
जवाब देंहटाएंये कुदरत कुदरत मुझसे मत खेलिए ! उधर भी कोई बेकरार है आपके लिए !
चिन्ता सही है।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती