शनिवार, 12 दिसंबर 2009

बच्चे कौव्वों से सावधान नहीं हैं लेकिन .....

हमारे मित्र चन्द्रशेखर जी शहर की पाश कालोनी में रहते हैं , खुद की शानदार नौकरी , एक सुन्दर आत्मनिर्भर गृहणी और चिकित्सा शिक्षा प्राप्त कर रही एक मात्र पुत्री का छोटा सा ... सुखी परिवार ! वे सोचते बहुत हैं... कभी देश ...कभी दुनिया ...पर देखा परसों ही...और देखते ही मुझे फोन लगाया , क्या कर रहे हैं ? जी ... न्यूज देख रहा हूं...उन्होंने कहा कुछ खास ? मैंने कहा कुछ खास नहीं , बस टिकट बंट रहे हैं... जो टिकट पा गये वे निष्ठावान सिपाही हैं...जिन्हें नहीं मिला ...उनके हाथ भी खाली कहां हैं ? जब टिकट पाये हुए लोग भी लड़ने ही वाले हैं तो जिन्हें टिकट नहीं मिला वो लड़ रहे हों तो इसमें हर्ज ही क्या है ?
मित्र नें कहा , यहां पास की स्लम के कुछ बच्चे खड्डे के कोरे टुकड़ों को बैनर की तरह लेकर पैदल मार्च कर रहे हैं , उनकी रैली आप भी देखते तो अच्छा होता ! मेरे पास कैमरा नहीं है वर्ना फोटो खींच लेता ...बच्चे नारे लगा रहे हैं ! जिन्दाबाद... मुर्दाबाद ...मित्र लगातार बोल रहे हैं ...पर मेरे कान बंद हो चुके हैं ...और मैं सोच रहा हूँ ...हाँ ...ये सच है ! सारा देश ...सारे का सारा देश...'पाश' और 'स्लम' रिहायशगाहों की सीमा रेखाओं में बंटा हुआ ! पाश इलाकों में रहने वाले 'सिटीजंस' देख रहे हैं , पाश इलाकों में रहने वाले 'सिटीजंस' यानि कि मैं भी सोच ही रहा हूँ !
स्लम्स के बच्चे 'जुलूसों' में तब्दील हो चुके हैं , उन्हें सड़कों से गुजरते हुए , मैदानों में फ़ैल कर भीड़ बन जाना है , उन्हें वोटर बनना ही होगा ! इधर कौव्वे कुर्सियां तोड़ रहे हैं , उधर कौव्वे पत्थर फेंक रहे है ...इमारतों के शीशे चटक रहे हैं और बच्चे ...उनका क्या ? उनके हाथों में खड्डे , जिस्म पर चड्ढी और सामने सड़क तो हैं ना ?
मित्र कहते हैं कि बच्चे कौव्वों से सावधान नहीं हैं लेकिन कौव्वों से निपटने की तकनीक उन्हें और मुझे भी कहां आती है ?

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